“पिता की संपत्ति में बहनों को वंचित करना और धमकाना है अपराध: बॉम्बे हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

“पिता की संपत्ति में बहनों को वंचित करना और धमकाना है अपराध: बॉम्बे हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

परिचय:
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और महिला अधिकारों को सशक्त करने वाला निर्णय दिया है जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि कोई भाई अपनी बहनों को पिता की संपत्ति में उनके वैध हिस्से से वंचित करता है और उन्हें धमकाता है या डराता है, तो यह एक दंडनीय अपराध है। यह फैसला समानता, उत्तराधिकार और महिला संपत्ति अधिकारों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है।


मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला महाराष्ट्र के एक परिवार से जुड़ा था, जहाँ बहनों ने आरोप लगाया कि उनके भाई ने पिता की मृत्यु के बाद सारी संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया और जब उन्होंने अपने अधिकार की मांग की, तो उन्हें धमकी दी गई, डराया गया और संपत्ति से बेदखल कर दिया गया। बहनों ने थाने में प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई लेकिन पुलिस द्वारा उचित कार्रवाई न करने के कारण उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।


कानूनी प्रश्न:
क्या भाई द्वारा बहनों को पिता की संपत्ति में उनके वैधानिक उत्तराधिकार से वंचित करना और उन्हें डराना/धमकाना भारतीय दंड संहिता और उत्तराधिकार कानूनों के अंतर्गत एक आपराधिक कृत्य माना जा सकता है?


हाई कोर्ट का निर्णय:
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले की गहराई से जांच की और निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं को स्पष्ट किया:

  1. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन के पश्चात, पुत्रियों को पिता की संपत्ति में पुत्रों के समान अधिकार प्राप्त हैं — चाहे पिता की मृत्यु कब भी हुई हो (यदि यह 2005 के संशोधन के बाद हो)।
  2. अगर कोई बहन अपने वैध अधिकार की मांग करती है, तो उसे संपत्ति में हिस्सा देना बाध्यकारी है। यदि कोई भाई ऐसा नहीं करता और धमकी या हिंसा का प्रयोग करता है, तो यह IPC की धारा 503 (आपराधिक धमकी), 506 (दंड), और 441/447 (अवैध रूप से कब्जा) आदि के अंतर्गत अपराध बनता है।
  3. महिला की उत्तराधिकार से वंचना न केवल सिविल अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह एक गंभीर सामाजिक अपराध है

न्यायालय ने आगे कहा कि पुलिस की निष्क्रियता भी निंदनीय है और महिलाओं के वैधानिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए राज्य का कर्तव्य है कि वह अपराधियों के विरुद्ध शीघ्र और प्रभावी कार्यवाही करे।


प्रभाव:
इस निर्णय के माध्यम से बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि:

  • बहनों को पैतृक संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • यदि उन्हें डराकर या धमकाकर संपत्ति से बाहर किया गया है, तो यह गंभीर आपराधिक कृत्य है।
  • ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करना और उचित पुलिस कार्रवाई अनिवार्य है।
  • महिला अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका सक्रिय और निर्णायक होनी चाहिए।

न्यायालय की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति ने टिप्पणी करते हुए कहा:

महिलाएं किसी भी रूप में द्वितीय श्रेणी की उत्तराधिकारी नहीं हैं। कानून ने उन्हें समान अधिकार दिए हैं, और जो लोग इस अधिकार को ताक पर रखकर दबाव या धमकी का सहारा लेते हैं, वे कानून के दोषी हैं और दंडनीय हैं।


निष्कर्ष:
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय उन बहनों के लिए आशा की किरण है जिन्हें पारिवारिक दबाव, सामाजिक भेदभाव या भाइयों की धमकी के कारण उनकी पैतृक संपत्ति से वंचित किया जाता है। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज को भी यह संदेश देता है कि महिला उत्तराधिकारियों के अधिकार अब सिर्फ कागज़ पर नहीं, बल्कि न्याय की प्रक्रिया में भी समान रूप से मान्य और संरक्षित हैं।