शीर्षक: पारिवारिक विवादों में डिजिटल साक्ष्य की वैधता – मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय
मामला:
Anjali v/s Raman
Misc. Petition No. 3395
निर्णय दिनांक: 16 जून 2025
न्यायालय: मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय
🧾 मामले का संक्षिप्त परिचय:
यह मामला एक विवाह-विच्छेद (Divorce) याचिका से जुड़ा है, जिसमें पति रमन द्वारा यह आरोप लगाया गया कि पत्नी अंजलि का विवाहेतर संबंध (extramarital affair) है, जिसे प्रमाणित करने हेतु उसने WhatsApp चैट्स को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया।
पत्नी अंजलि ने आपत्ति जताई कि ये चैट्स ग़ैरक़ानूनी रूप से प्राप्त की गई हैं और इसलिए इनका उपयोग अदालत में नहीं किया जाना चाहिए।
⚖️ मुख्य कानूनी प्रश्न:
क्या पारिवारिक न्यायालय के समक्ष विवाह विच्छेद के मामले में ग़ैरक़ानूनी रूप से प्राप्त WhatsApp चैट्स को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है?
🧑⚖️ मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय:
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि:
- परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 14 के अंतर्गत,
“पारिवारिक न्यायालय किसी भी रिपोर्ट, दस्तावेज़, सूचना, वक्तव्य या सामग्री को स्वीकार कर सकता है, यदि वह विवाद के निपटारे में सहायक हो।”
- WhatsApp चैट्स को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, भले ही वे ग़ैरक़ानूनी रूप से प्राप्त की गई हों, यदि वे इस बात से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हों कि विवाह टूटने के कारण क्या हैं।
- न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि:
- साक्ष्य का केवल ग़ैरक़ानूनी होना उसे अपात्र नहीं बनाता, यदि वह साक्ष्य सीधा और प्रासंगिक (direct & materially relevant) हो।
- लेकिन यदि साक्ष्य का विषय-वस्तु से कोई सीधा संबंध नहीं है, तो उसे अस्वीकार किया जा सकता है।
📱 WhatsApp चैट्स और डिजिटल साक्ष्य का कानूनी मूल्य:
- अदालत ने यह स्वीकार किया कि आधुनिक युग में डिजिटल संवाद, जैसे कि WhatsApp मैसेज, वैवाहिक जीवन में घट रही घटनाओं का सटीक प्रतिबिंब हो सकते हैं।
- लेकिन साथ ही यह भी कहा कि ऐसे साक्ष्यों की स्वीकृति के लिए यह आवश्यक शर्त है कि वे:
- प्रामाणिक हों (authentic),
- छेड़छाड़ रहित हों (untainted), और
- विवादित मामले से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ते हों।
⚖️ न्यायिक दर्शन (Judicial Philosophy):
यह निर्णय यह दर्शाता है कि जब मामला पारिवारिक संबंधों की टूटन से जुड़ा हो, तो न्यायालयों का उद्देश्य सत्य तक पहुँचना होता है, न कि केवल प्रक्रिया के दायरे तक सीमित रहना।
Family Courts Act की धारा 14 न्यायालयों को सामान्य साक्ष्य कानून की औपचारिकताओं से अलग रखती है, ताकि न्याय सुलभ और प्रभावी हो सके।
📌 निष्कर्ष:
Anjali v/s Raman (Misc. Petition No. 3395, Dtd. 16 June 2025) का यह निर्णय डिजिटल साक्ष्यों की वैधता और उनकी सीमाओं को स्पष्ट करता है।
इस निर्णय में न्यायालय ने संतुलन बनाया —
✔️ एक ओर निजता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए,
✔️ तो दूसरी ओर विवाह विच्छेद की सच्चाई को उजागर करने की आवश्यकता को प्राथमिकता दी।