“पहले नागरिकता, फिर मतदाता सूची: CAA आवेदकों को SIR में शामिल करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का कठोर रुख”
भूमिका
भारत में मतदाता सूची (Electoral Roll) तैयार करना और उसका संशोधन चुनावी प्रक्रिया का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। विशेष रूप से, संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act – CAA) 2019 के लागू होने के बाद लाखों लोगों ने नागरिकता आवेदन की नई श्रेणी के तहत नियमितिकरण की प्रक्रिया शुरू की है।
इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह प्रश्न आया कि—
क्या CAA के तहत नागरिकता के लिए आवेदन कर चुके लोगों को भी Special Intensive Revision (SIR) के दौरान मतदाता सूची में शामिल किया जाए?
याचिकाकर्ता का तर्क था कि ऐसे लोगों को मतदाता सूची में पंजीकरण से वंचित करना अनुचित और भेदभावपूर्ण है।
इस पूरे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट और निर्णायक टिप्पणी की—
“पहले नागरिकता प्राप्त करें, फिर मतदाता का दर्जा मिलेगा (First Acquire Citizenship, Then Voter Status).”
यानी, केवल आवेदन कर देने मात्र से कोई व्यक्ति मतदाता नहीं बन सकता।
यह टिप्पणी न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह चुनावी पारदर्शिता, नागरिकता कानून और लोकतांत्रिक प्रणाली की संरचना को गहराई से प्रभावित करती है।
याचिका में क्या मांग थी? — पृष्ठभूमि
याचिका में यह दावा किया गया कि—
- CAA के तहत नागरिकता के लिए आवेदन कर चुके कई व्यक्ति वर्षों से भारत में रह रहे हैं,
- वे करदाता हैं,
- वे समाज में योगदान देते हैं,
- इसलिए उन्हें मतदाता सूची में शामिल न करना अनुचित है।
इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की:
“Special Intensive Revision (SIR) के दौरान इन CAA applicants को मतदाता सूची में जोड़ा जाए।”
SIR वह प्रक्रिया है जिसमें चुनाव आयोग मतदाता सूची का विशेष, गहन और व्यापक पुनरीक्षण करता है।
सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी
अदालत ने इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“मतदाता (voter) केवल वही बन सकता है जो भारतीय नागरिक (Indian Citizen) हो।
नागरिकता आवेदन लंबित होने का मतलब नागरिकता प्राप्त होना नहीं है।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया:
- नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act)
- प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People Act, RPA), 1950
दोनों में यह स्पष्ट है कि—
मतदाता वही है जो भारत का नागरिक है।
इसलिए—
“जब तक किसी व्यक्ति को कानूनन नागरिकता प्रदान नहीं की जाती, उसे मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जा सकता।”
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य अवलोकन (Key Observations)
1. नागरिकता आवेदन = नागरिकता नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
- केवल आवेदन भरने से आप नागरिक नहीं बन जाते,
- आवेदन स्वीकृत होना आवश्यक है,
- और स्वीकृति भी वैधानिक प्रक्रिया के बाद ही वैध होती है।
2. मतदाता सूची में शामिल होने के लिए नागरिकता पहले और अनिवार्य शर्त है
Court ने Representation of People Act (RPA), 1950 की धारा 16(1) का हवाला दिया:
- “non-citizens cannot be registered as voters.”
मतदाता बनने का प्राथमिक आधार नागरिकता ही है,
उम्र (18 वर्ष) और निर्वाचन क्षेत्र में निवास दूसरी शर्तें हैं।
3. SIR प्रक्रिया को नागरिकता प्रसंस्करण से नहीं जोड़ा जा सकता
SIR का उद्देश्य है—
- मतदाता सूची में डुप्लिकेट, मृतक, स्थानांतरण, नई एंट्री आदि सुधारना।
- यह नागरिकता देने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है।
इसलिए SIR के दौरान गैर-नागरिक को जोड़ना कानून का उल्लंघन होगा।
4. CAA पर अदालत का संतुलित रुख
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया:
- CAA के प्रावधानों को लेकर अदालत पहले से कई याचिकाएँ सुन रही है,
- इसलिए नागरिकता प्रदान करने की मूल संवैधानिक वैधता अलग मुद्दा है,
- लेकिन जब तक किसी व्यक्ति को नागरिकता दी नहीं जाती,
वह मतदाता सूची का हिस्सा नहीं बन सकता।
5. निर्वाचन आयोग की भूमिका पर भी अदालत ने दी स्पष्टता
अदालत ने कहा:
- चुनाव आयोग कानून का पालन करने के लिए बाध्य है
- उसे CAA applicants को भी ‘prospective voter’ मानने का अधिकार नहीं
“Law does not recognise a category called ‘future citizens’.
Either you are a citizen, or you are not.”
SIR (Special Intensive Revision) क्या है और इसमें विवाद क्यों उठा?
SIR एक व्यापक मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया है जिसमें—
- हर बूथ पर सर्वे होता है
- नए मतदाताओं को जोड़ा जाता है
- गलत, दोहरी या मृतक प्रविष्टियों को हटाया जाता है
- पात्रता का पुनः सत्यापन होता है
ऐसे समय CAA applicants ने यह उम्मीद जताई थी कि उन्हें नागरिकता आवेदन लंबित रहने के बावजूद मतदाता सूची में जोड़ा जाए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि—
SIR का उद्देश्य नागरिकता प्रसंस्करण नहीं है।
इसलिए CAA applicants को मतदाता सूची में जोड़ना असंवैधानिक होगा।
क्यों सुप्रीम कोर्ट ने CAA आवेदकों को मतदाता सूची में जोड़ने का विरोध किया?
इस निर्णय के पीछे कई ठोस कानूनी और संवैधानिक कारण हैं:
(A) नागरिकता = संघ का विशेषाधिकार
संविधान के अनुसार नागरिकता—
- संसद द्वारा निर्धारित कानूनों
- और गृह मंत्रालय की प्रशासनिक प्रक्रिया
से तय होती है।
Election Commission किसी व्यक्ति को नागरिक घोषित नहीं कर सकता।
(B) चुनावी प्रणाली की पवित्रता (Purity of Elections)
भारत में मताधिकार एक मूलभूत लोकतांत्रिक अधिकार है।
यदि किसी ऐसे व्यक्ति को वोट देने दिया जाए जो कानूनी रूप से नागरिक नहीं है,
तो—
- चुनावी प्रक्रिया दूषित होगी
- मतदाता संख्या कृत्रिम रूप से बढ़ सकती है
- क्षेत्रीय जनसांख्यिकी प्रभावित हो सकती है
- चुनाव परिणामों पर अवैध प्रभाव पड़ेगा
अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि चुनावी प्रणाली मजबूत और पारदर्शी रहे।
(C) CAA की प्रक्रिया समय लेती है — लेकिन यह मतदाता बनने का आधार नहीं
कई लोग CAA के तहत आवेदन करते हैं,
लेकिन—
- आवेदन की जांच,
- दस्तावेज़ सत्यापन,
- सुरक्षा रिपोर्ट,
- अंतिम आदेश
पूरा होने में समय लगता है।
जब तक अंतिम आदेश न मिले, नागरिकता केवल “संभावित” है — वास्तविक नहीं।
(D) संवैधानिक व्याख्या — RPA और Citizenship Act का सीधा टकराव
अदालत ने कहा:
- RPA कहता है: मतदाता = नागरिक
- Citizenship Act कहता है: नागरिकता आवेदन = नागरिकता नहीं
इसलिए दोनों कानूनों को समन्वित रूप से पढ़ने पर निष्कर्ष स्पष्ट है कि—
नागरिकता प्राप्त होने से पहले मतदाता सूची में शामिल करना कानूनन संभव नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश/निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करने से इंकार करते हुए कहा:
CAA applicants को SIR के दौरान voter rolls में शामिल नहीं किया जा सकता।
केवल वे लोग ही वोटर सूची में शामिल होंगे जो नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं।
मतदाता सूची तैयार करने में RPA, 1950 का पालन अनिवार्य है।
Election Commission नागरिकता आवेदन की स्थिति के आधार पर मतदाता पंजीकरण नहीं कर सकता।
“First acquire citizenship, then voter status” — यही विधि का सिद्धांत है।
इस निर्णय का व्यापक प्रभाव
1. चुनावी प्रक्रिया पर प्रभाव
यह निर्णय चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से नागरिकता कानूनों के अनुरूप रखता है।
मतदाता सूची की पवित्रता सुनिश्चित होती है।
2. CAA applicants के लिए संदेश
- CAA applicants को पहले नागरिकता प्राप्त करनी होगी
- तभी उन्हें मतदान का अधिकार मिलेगा
- इससे आवेदन प्रक्रिया का महत्व और पारदर्शिता दोनों बढ़ते हैं
3. राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
- यह निर्णय राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषय को कानूनी आधार पर स्पष्ट करता है
- “नागरिकता” और “मताधिकार” को अलग-अलग श्रेणियों के रूप में स्थापित करता है
- किसी भी सरकार या एजेंसी को इन दोनों प्रक्रियाओं को मिश्रित करने से रोकता है
4. Long-term Population Dynamics में पारदर्शिता
देश के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषकर असम में,
मतदाता संख्या का मुद्दा अत्यंत संवेदनशील है।
अदालत का निर्णय सुनिश्चित करता है कि—
- जनसांख्यिकीय संतुलन प्रभावित न हो
- केवल “वैधानिक” नागरिक ही वोट डालें
कानूनी परीक्षाओं व शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
Representation of People Act, 1950 की धारा 16:
Non-citizen = not eligible for voter registration
Citizenship Act:
Citizenship application ≠ Citizenship
SIR की प्रकृति:
Electoral correction exercise, not citizenship determination
संविधान:
लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता सर्वोपरि
सुप्रीम कोर्ट का सिद्धांत:
“First citizenship, then voting rights.”
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत के चुनावी ढांचे को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने स्पष्ट किया कि—
मतदाता सूची में शामिल होना एक संवैधानिक अधिकार है,
और यह केवल उन्हीं को प्राप्त हो सकता है जो भारत के विधिक नागरिक हैं।
इसलिए, CAA applicants को चुनावी सूची में शामिल करने की मांग को अदालत ने क़ानून और संविधान के विरुद्ध पाते हुए खारिज कर दिया।
यह निर्णय न्यायपालिका द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा, स्पष्टता और पारदर्शिता को आगे बढ़ाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।