IndianLawNotes.com

“पल्लिकरणै वेटलैंड को बचाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा कदम: रियल एस्टेट निर्माण पर अस्थायी रोक”

“पल्लिकरणै वेटलैंड को बचाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा कदम: रियल एस्टेट निर्माण पर अस्थायी रोक”

       भारत के पर्यावरणीय कानून के इतिहास में ऐसे कई मुकदमे आए हैं, जिन्होंने न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा निर्धारित की है, बल्कि न्यायपालिका की भूमिका को भी सुदृढ़ बनाया है। इन्हीं में हाल ही का महत्वपूर्ण मामला है J. Brezhnev Versus The Chief Secretary and Others, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट ने Brigade Enterprises Limited—एक प्रमुख रियल एस्टेट कंपनी—को पल्लिकरणै मार्शलैंड (Pallikaranai Marshlands) में किसी भी प्रकार के आगे के निर्माण से अस्थायी रूप से रोक दिया है। यह क्षेत्र कथित रूप से रामसर साइट (Ramsar Site) के रूप में चिन्हित है, और जैव विविधता के लिहाज़ से अत्यंत संवेदनशील माना जाता है।

यह लेख इस निर्णय की पृष्ठभूमि, पर्यावरणीय महत्व, कानूनी सिद्धांतों, और न्यायिक तर्कों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।


1. पृष्ठभूमि: पल्लिकरणै मार्शलैंड का महत्व

       पल्लिकरणै मार्शलैंड, चेन्नई क्षेत्र में स्थित दक्षिण भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण वेटलैंड है।
यह जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है:

  • एशियाई प्रवासी पक्षियों का ठिकाना
  • 100 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ
  • अनेक सरीसृप, उभयचर और मछलियों की प्रजातियों का प्राकृतिक आवास
  • चेन्नई शहर के लिए प्राकृतिक फ्लड बफर (बाढ़ से संरक्षण)
  • भूजल पुनर्भरण का मुख्य स्रोत

पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र पर अत्यधिक अवैज्ञानिक नगरीकरण, भूमि अधिग्रहण, तथा अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों का दबाव बढ़ा है। परिणामस्वरूप wetlands का प्राकृतिक स्वरूप लगातार क्षतिग्रस्त हो रहा था।

इसी पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता J. Brezhnev ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया।


2. याचिका का मूल विवाद

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में उल्लेख किया कि:

  1. Brigade Enterprises Limited ने पल्लिकरणै मार्शलैंड क्षेत्र में विशाल निर्माण परियोजनाएँ प्रारंभ की हैं,
  2. यह पूरा क्षेत्र पूर्व में इको-सेंसिटिव भूभाग के रूप में अधिसूचित है,
  3. यह कथित रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत RAMSAR Site है,
  4. निर्माण गतिविधियाँ Wetlands (Conservation and Management) Rules, 2017 का उल्लंघन कर रही हैं,
  5. राज्य सरकार ने उचित पर्यावरणीय मूल्यांकन (EIA) और अनुमति के बिना भूमि उपयोग परिवर्तन की अनुमति दी।

याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि:

  • सभी निर्माण गतिविधियों पर तत्काल रोक लगाई जाए,
  • भूमि के वास्तविक पर्यावरणीय महत्व का स्वतंत्र मूल्यांकन करवाया जाए,
  • अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

3. राज्य सरकार एवं कंपनी का पक्ष

राज्य के वकील ने तर्क दिया कि:

  • भूमि को आधिकारिक रूप से RAMSAR Site घोषित नहीं किया गया है।
  • परियोजना के लिए आवश्यक अनुमति व लाइसेंस प्राप्त किए गए हैं।
  • निर्माण गतिविधियाँ पर्यावरण नियमों का पालन करती हैं।

वहीं, कंपनी ने यह दावा किया:

  • वे केवल सरकार द्वारा अनुमोदित भूमि पर निर्माण कर रही हैं।
  • उनका प्रोजेक्ट पर्यावरण-अनुकूल है और किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया।

4. न्यायालय का दृष्टिकोण: संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता

मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले को सामान्य ज़मीन विवाद न मानते हुए, पर्यावरणीय न्याय के एक संवेदनशील क्षेत्र के रूप में देखा। निर्णय में अदालत ने यह माना कि:

  • याचिकाकर्ता की चिंताएँ prima facie उचित प्रतीत होती हैं।
  • पल्लिकरणै मार्शलैंड एक critical ecological zone है।
  • किसी भी निर्माण से पहले अत्यधिक सावधानी आवश्यक है।
  • सरकार एवं कंपनी के दावों की गहन जांच आवश्यक है।

इस आधार पर अदालत ने अस्थायी निषेधाज्ञा (temporary injunction) जारी करते हुए स्पष्ट कहा:

“Ecologically fragile wetlands cannot be allowed to be altered or disturbed unless authorities discharge their statutory obligations with utmost transparency and scientific backing.”


5. Wetlands (Conservation and Management) Rules, 2017 का उल्लंघन

इन नियमों के अनुसार:

  • किसी भी notified wetland में निर्माण, भूमि-उपयोग परिवर्तन, प्रदूषणकारी कार्य व बड़े प्रोजेक्ट प्रतिबंधित हैं।
  • राज्य Wetland Authority का दायित्व है कि वह हर प्रस्ताव की वैज्ञानिक जांच करे।
  • वेटलैंड के catchment area में भी अवांछित निर्माण प्रतिबंधित है।

हाईकोर्ट ने माना कि:

  • राज्य प्राधिकरणों द्वारा wetlands सीमा निर्धारण (demarcation) में पारदर्शिता नहीं थी।
  • रियल एस्टेट कंपनी के प्रोजेक्ट के लिए दी गई अनुमतियों की वैधता संदिग्ध है।

6. रामसर साइट—कानूनी प्रासंगिकता

रामसर कन्वेंशन के तहत जिन wetlands को सूचीबद्ध किया जाता है, वे “अंतरराष्ट्रीय महत्व” रखते हैं।
भारत इस कन्वेंशन का सदस्य है, इसलिए:

  • ऐसे क्षेत्रों का संरक्षण राज्य का अंतरराष्ट्रीय दायित्व है।
  • किसी भी विकास परियोजना को “No Significant Ecological Impact” सिद्ध करना अनिवार्य है।

याचिका में यह तर्क दिया गया था कि:

  • पल्लिकरणै क्षेत्र को भारत सरकार ने पहले से RAMSAR सूची के लिए अनुशंसित किया था,
  • अतः इसे de facto संरक्षण प्राप्त है।

अदालत ने कहा:

“Whether formally declared or not, the ecological character of the marshland is undisputed. Courts cannot allow irreversible environmental degradation merely due to administrative delay.”


7. न्यायालय के प्रमुख अवलोकन (Key Observations)

  1. वेटलैंड का संरक्षण व्यापक लोकहित का विषय है।
    यह केवल पक्षियों या वनस्पतियों का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे शहर की जल सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन का विषय है।
  2. नगरीकरण पर्यावरणीय कानूनों के ऊपर नहीं हो सकता।
    भूमि उपयोग परिवर्तन का निर्णय एक प्रशासनिक आदेश भर नहीं है; इसके पीछे वैज्ञानिक आधार होना चाहिए।
  3. अधिकारियों की निष्क्रियता गंभीर चिंता का विषय है।
    Wetland Mapping और boundaries निर्धारण में देरी ने स्थिति को बिगाड़ा।
  4. अदालत ने precautionary principle और public trust doctrine को आधार बनाया।
    भारतीय पर्यावरणीय न्यायशास्त्र का आधार—“संदेह होने पर प्रकृति के पक्ष में निर्णय”—यहाँ लागू किया गया।

8. Public Trust Doctrine का महत्व

सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों—जैसे M.C. Mehta बनाम Kamal Nath—में कहा गया है कि:

  • नदी, जंगल, समुद्र, वेटलैंड आदि जनसंपत्ति (public trust) हैं।
  • राज्य इनका trustee है, मालिक नहीं।
  • वह इन्हें निजी व्यक्ति या कंपनियों को सौंप नहीं सकता यदि इससे पर्यावरण को क्षति हो।

मद्रास हाईकोर्ट ने यही सिद्धांत अपनाया और कहा:

“Marshlands cannot be treated as ordinary real estate properties. They are custodial assets held by the State for future generations.”


9. Precautionary Principle और Sustainable Development

भारत में पर्यावरण कानून के तीन प्रमुख सिद्धांत हैं:

  1. Precautionary Principle – जोखिम होने पर निर्माण रोकना आवश्यक
  2. Polluter Pays Principle – प्रदूषणकारी इकाई को क्षतिपूर्ति करनी होगी
  3. Sustainable Development – विकास और संरक्षण का संतुलन

न्यायालय ने माना कि:

  • जब तक भूमि के पर्यावरणीय चरित्र पर पूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन न हो,
    तब तक किसी भी कंपनी को निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती।

10. आदेश: निर्माण पर तत्काल रोक

हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि:

  • Brigade Enterprises Limited
    किसी भी प्रकार का further construction नहीं करेगी
    जब तक कि:

    • Wetland Authority विस्तृत रिपोर्ट न दे
    • राज्य सरकार उचित सीमांकन (demarcation) न करे
    • पूरी परियोजना पर वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत न हो
  • राज्य सरकार को आदेश दिया गया कि
    Wetland Mapping और boundaries को 12 सप्ताह में पूरा किया जाए।

11. सुप्रीम कोर्ट में संभावित प्रभाव (यदि अपील हो)

यद्यपि यह मामला हाईकोर्ट में है, परंतु यदि यह सुप्रीम कोर्ट पहुँचे, तो उसकी न्यायिक दृष्टि इस प्रकार हो सकती है:

  • सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा wetlands के संरक्षण पर कड़ा रुख अपनाया है।
  • Court may uphold the precautionary approach.
  • सभी बड़ी परियोजनाओं को स्वतंत्र Expert Committee से जांच करवाकर ही अनुमति दी जाती है।
  • विकास और संरक्षण के बीच संतुलन सुनिश्चित किया जाएगा।

12. निर्णय का व्यापक महत्व

यह निर्णय केवल एक रियल एस्टेट परियोजना को रोकने का आदेश नहीं है—
यह भारतीय पर्यावरणीय शासन के लिए कई नई दिशाएँ निर्धारित करता है:

(a) Wetlands संरक्षण के लिए चेतावनी

अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि wetlands को बचाने के लिए सरकार की निष्क्रियता स्वीकार्य नहीं।

(b) रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए संदेश

किसी भी संवेदनशील क्षेत्र में बिना वैज्ञानिक अध्ययन के बड़े निर्माण नहीं हो पाएंगे।

(c) शहरी बाढ़ प्रबंधन का महत्व

चेन्नई में हर वर्ष आने वाली बाढ़ का मुख्य कारण wetlands का नष्ट होना है।
यह निर्णय शहरी संकट को कम करने में सहायक होगा।

(d) नागरिकों की भूमिका मजबूत

यह निर्णय यह भी दिखाता है कि एक साधारण नागरिक पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ी लड़ाई जीत सकता है।


13. भविष्य की दिशा

अदालत द्वारा जारी अंतरिम आदेश केवल पहला कदम है।
आगे:

  • Expert Committee की रिपोर्ट
  • State Wetlands Authority का सीमांकन
  • EIA अध्ययन
  • और केंद्रीय अनुमतियों पर निर्भर करेगा कि यह क्षेत्र संरक्षित रहेगा या विकास जारी रहेगा।

यदि यह wetlands वास्तव में RAMSAR Site घोषित किया जाता है,
तो यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय संरक्षण की उच्च श्रेणी में आ जाएगा,
जहाँ विकास लगभग असंभव हो जाएगा।


निष्कर्ष

J. Brezhnev बनाम Chief Secretary एवं अन्य का यह निर्णय
भारत की न्यायपालिका की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया है कि:

  • विकास प्रकृति को कुचलकर नहीं हो सकता।
  • Wetlands शहरों की लाइफलाइन हैं।
  • जनहित सर्वोपरि है।

     यह निर्णय न केवल चेन्नई के नागरिकों के लिए, बल्कि देशभर के पर्यावरण कार्यकर्ताओं और नीति-निर्माताओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा।