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“पर्यावरण-संवेदनशील न्याय: पौधे लगाने की शर्त पर हाईकोर्ट ने दी जमानत – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का अभिनव दृष्टिकोण
“पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की अवकाश पीठ, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश शील नागू कर रहे थे, ने हाल ही में कम से कम पाँच जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एक अद्वितीय और पर्यावरण-संवेदनशील आदेश पारित किया। न्यायालय ने आरोपियों को मानसून के दौरान देशी प्रजातियों के पौधे लगाने की शर्त पर जमानत दी है।
इस आदेश के अनुसार, प्रत्येक याचिकाकर्त्ता को —
- 15 दिनों के भीतर सार्वजनिक स्थान पर देशी प्रजातियों के 10 पौधे लगाने होंगे,
- और उन पौधों के फोटोग्राफिक सबूत उस पुलिस स्टेशन में जमा करने होंगे, जहाँ उनकी एफ.आई.आर. दर्ज की गई है।
जमानत की मानक शर्तों के साथ पर्यावरणीय शर्त भी लागू:
पीठ ने स्पष्ट किया कि यह पर्यावरणीय शर्त जमानत की पारंपरिक शर्तों के साथ लागू होगी, जिनमें शामिल हैं:
- न्यायालय में व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करना,
- जब भी बुलाया जाए, जांच में सहयोग करना,
- और गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ से बचना।
गैर-अनुपालन पर कार्रवाई:
यदि कोई याचिकाकर्ता इस शर्त का पालन नहीं करता है या गलत जानकारी प्रस्तुत करता है, तो राज्य को यह अधिकार होगा कि वह न्यायालय में जमानत रद्द करने के लिए याचिका दायर करे। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि यदि आरोपी जांच में सहयोग नहीं करता है, तो राज्य के अनुरोध पर जमानत रद्द की जा सकती है।
एक सतत पहल:
पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं पर मारपीट, आपराधिक धमकी, जालसाजी, रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। बावजूद इसके, अदालत ने पर्यावरणीय चेतना को बढ़ावा देते हुए उन्हें समाज के प्रति उत्तरदायी व्यवहार अपनाने का अवसर प्रदान किया।
एक याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश शील नागू पूर्व में भी इसी प्रकार के आदेश पारित कर चुके हैं, जो न्यायपालिका की सुधारात्मक न्याय की ओर उन्मुखता को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल जमानत प्रणाली में एक नवाचार है, बल्कि यह सामाजिक जिम्मेदारी और पर्यावरण संरक्षण को न्यायिक आदेशों के माध्यम से एकीकृत करने का प्रेरणादायक उदाहरण भी है। यह रेखांकित करता है कि न्याय केवल सजा नहीं, बल्कि समाज को सुधारने का माध्यम भी हो सकता है।