पर्यावरण संरक्षण बनाम विकास की दौड़: सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल और इंडस्ट्रियल शेड निर्माण में पर्यावरण मंजूरी से छूट को ठुकराया
भूमिका
पर्यावरण संरक्षण बनाम विकास की दिशा में भारत के न्यायिक दृष्टिकोण की पुनः पुष्टि करते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में केंद्र सरकार की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया जिसमें स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल और इंडस्ट्रियल शेड जैसे निर्माण कार्यों को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट प्रदान की गई थी। यह अधिसूचना 29 जनवरी, 2025 को केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई थी और इसे “वनशक्ति” नामक पर्यावरण-संरक्षक संस्था ने चुनौती दी थी।
पृष्ठभूमि: केंद्र सरकार की अधिसूचना
केंद्र सरकार ने 29 जनवरी, 2025 को एक अधिसूचना के माध्यम से यह छूट दी थी कि यदि कोई निर्माण गतिविधि स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल या इंडस्ट्रियल शेड के लिए की जा रही है, तो उसके लिए पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) की आवश्यकता नहीं होगी। सरकार का तर्क था कि ये निर्माण ‘सार्वजनिक हित’ और ‘विकास’ से संबंधित हैं तथा इनमें देरी नहीं होनी चाहिए।
याचिका और वनशक्ति का तर्क
“वनशक्ति” नामक पर्यावरण-संस्था ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर इस अधिसूचना को चुनौती दी। याचिका में यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि–
- पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित “स्वच्छ पर्यावरण में जीने के अधिकार” का उल्लंघन है।
- छूट से अनियंत्रित और अनियोजित शहरीकरण को बढ़ावा मिलेगा, जिससे पर्यावरणीय क्षति की गंभीर संभावनाएं हैं।
- स्कूल और कॉलेज जैसे संस्थानों की आड़ में व्यावसायिक और औद्योगिक हित छिपे हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियाँ
मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी प्रकार का निर्माण, चाहे वह सामाजिक उद्देश्य से ही क्यों न हो, पर्यावरणीय प्रभाव से अछूता नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने निम्नलिखित मुख्य टिप्पणियाँ दीं:
- “पर्यावरणीय मंजूरी केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि एक अनिवार्य और वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए आवश्यक है।”
- “विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन आवश्यक है, न कि एक को दूसरे पर प्राथमिकता देना।”
- “केंद्र सरकार की यह अधिसूचना मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती है।”
इसके साथ ही, कोर्ट ने अधिसूचना को रद्द कर दिया और इसे अवैध घोषित किया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह निर्णय न्यायपालिका द्वारा पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने का प्रमाण है। इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव निम्नलिखित होंगे:
- पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन को मजबूती मिलेगी।
- निगरानी एजेंसियों की भूमिका और मजबूत होगी।
- निर्माण कार्यों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ेगा।
- औद्योगिक और शैक्षणिक संस्थानों को पर्यावरणीय मानकों का पालन करना अनिवार्य होगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय केवल एक कानूनी फैसला नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए एक सशक्त संदेश है कि पर्यावरण संरक्षण कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक अनिवार्य सामाजिक-न्यायिक दायित्व है। यह न्यायालय की ओर से विकास की अंधी दौड़ के विरुद्ध एक चेतावनी है कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की सीमा तय होनी चाहिए। इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायपालिका संविधान और पारिस्थितिकी दोनों की रक्षा के लिए तत्पर है।