“पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 : भोपाल गैस त्रासदी से जन्मा भारत का समग्र पर्यावरण कानून”

लेख शीर्षकः
“पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 : भोपाल गैस त्रासदी से जन्मा भारत का समग्र पर्यावरण कानून”

भूमिका:
भारत में औद्योगीकरण के तीव्र विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण बनती गई। 1984 की भोपाल गैस त्रासदी ने देश को यह सिखाया कि यदि औद्योगिक गतिविधियों को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह मानव जीवन और पारिस्थितिकी दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। इसी पृष्ठभूमि में भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 को अधिनियमित किया।

अधिनियम की पृष्ठभूमि और उद्देश्य:
भोपाल गैस कांड ने न केवल हजारों लोगों की जान ली, बल्कि यह प्रदर्शित किया कि देश में समग्र पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए कोई एकीकृत और व्यापक कानून नहीं है। इस त्रासदी के बाद, भारत सरकार ने पर्यावरण की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली कानूनी ढांचा विकसित करने की आवश्यकता महसूस की। इसका प्रत्यक्ष परिणाम था – पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986। इसका मुख्य उद्देश्य था पर्यावरण की गुणवत्ता बनाए रखना, प्रदूषण को रोकना और मानव स्वास्थ्य तथा जीवमंडल की रक्षा करना।

मुख्य विशेषताएं:

  1. व्यापक परिभाषा: अधिनियम ‘पर्यावरण’ को जल, वायु, भूमि और इनके बीच अंतःक्रियाशील सभी जीवों एवं अन्य तत्वों के समष्टि रूप में परिभाषित करता है।
  2. सरकार के अधिकार: केंद्र सरकार को पर्यावरण की रक्षा के लिए नियम बनाने, मानक तय करने, उद्योगों की निगरानी करने और उल्लंघन पर दंड देने का अधिकार दिया गया।
  3. दंडात्मक प्रावधान: जो कोई अधिनियम का उल्लंघन करता है, उसे कारावास (5 वर्ष तक) और जुर्माने का प्रावधान है।
  4. निवारक कार्रवाई: सरकार को यह शक्ति है कि वह संभावित खतरे को रोकने के लिए अग्रिम कार्रवाई करे।

न्यायिक सक्रियता और पर्यावरण संरक्षण:
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को लागू करने में न्यायपालिका की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने इस अधिनियम के अंतर्गत कई ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं जैसे कि वेल्लोर सिटीजन्स वेलफेयर फोरम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, जिसमें ‘सतत विकास’ और ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ को मान्यता दी गई।

नागरिकों की भूमिका:
इस अधिनियम में नागरिकों की भागीदारी को भी बढ़ावा दिया गया है। आम लोग किसी पर्यावरणीय खतरे की सूचना दे सकते हैं और यदि कार्रवाई न हो तो वे जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय का रुख कर सकते हैं।

निष्कर्ष:
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत में पर्यावरणीय न्याय और संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने का प्रयास करता है और एक समग्र दृष्टिकोण से पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिए एक ठोस ढांचा प्रदान करता है। इसकी सफलता इस पर निर्भर करती है कि सरकार, न्यायपालिका, उद्योग और आम नागरिक कितनी सजगता और जिम्मेदारी से इसका पालन करते हैं।