पर्यावरण कानून (Environmental Law)

पर्यावरण कानून (Environmental Law)

पर्यावरण कानून उन विधियों, नियमों और नीतियों का एक समूह है जो पर्यावरण की रक्षा और सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। यह कानून विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों, जैसे प्रदूषण नियंत्रण, जैव विविधता संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बनाए जाते हैं।

मुख्य पर्यावरण कानून और नीतियां

  1. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
    • जल स्रोतों के प्रदूषण को रोकने के लिए बनाया गया।
    • प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई।
  2. वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
    • वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया।
    • औद्योगिक इकाइयों पर वायु गुणवत्ता मानकों का पालन अनिवार्य किया गया।
  3. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
    • सरकार को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
    • औद्योगिक प्रदूषण, खतरनाक अपशिष्ट और पारिस्थितिकी संतुलन से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
  4. जैव विविधता अधिनियम, 2002
    • जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग को बढ़ावा देता है।
    • परंपरागत ज्ञान और जैविक संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  5. वन संरक्षण अधिनियम, 1980
    • वनों की कटाई को नियंत्रित करता है और वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देता है।
    • वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
  6. जलवायु परिवर्तन और सतत विकास नीतियां
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना (2010) पर्यावरणीय विवादों के समाधान के लिए।
    • भारत की राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) को लागू किया गया।

पर्यावरण कानूनों के अनुपालन की आवश्यकता

  • प्रदूषण को रोकना और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करना।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना।
  • औद्योगिक गतिविधियों के कारण होने वाले दुष्प्रभावों को कम करना।

पर्यावरण कानूनों का पालन सभी नागरिकों और संगठनों के लिए आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और हरित पर्यावरण सुनिश्चित किया जा सके।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (Environmental Protection Act, 1986)

परिचय:
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत में पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के लिए बनाया गया एक व्यापक कानून है। यह अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी (1984) के बाद पर्यावरणीय खतरों को रोकने और नियंत्रित करने के उद्देश्य से लागू किया गया था।

मुख्य उद्देश्य:

  • पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करना।
  • प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कठोर प्रावधान लागू करना।
  • सरकार को पर्यावरणीय नीतियों और नियमों को लागू करने के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करना।
  • प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना।

मुख्य प्रावधान:

  1. सरकार के विशेष अधिकार:
    • पर्यावरण की रक्षा के लिए नियम और मानक तय करने का अधिकार।
    • प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों को रोकने और नियंत्रण के लिए निर्देश जारी करना।
    • उद्योगों और परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजूरी (Environmental Clearance) अनिवार्य करना।
  2. प्रदूषण नियंत्रण:
    • जल, वायु और भूमि प्रदूषण को रोकने के लिए सख्त मानक लागू करना।
    • खतरनाक अपशिष्ट (Hazardous Waste) के निपटान के लिए दिशानिर्देश।
    • औद्योगिक और विकासात्मक गतिविधियों की निगरानी।
  3. दंड और सजा:
    • कानून का उल्लंघन करने पर अधिकतम 5 साल की कैद या ₹1 लाख तक का जुर्माना
    • उल्लंघन जारी रहने पर प्रतिदिन अतिरिक्त जुर्माने का प्रावधान।
    • गंभीर मामलों में 7 साल तक की सजा का प्रावधान।
  4. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA):
    • किसी भी बड़ी औद्योगिक परियोजना से पहले पर्यावरण पर उसके प्रभाव का आकलन आवश्यक।
    • सरकार को किसी भी परियोजना को अनुमति देने या अस्वीकार करने का अधिकार।
  5. जन भागीदारी और जनहित याचिका:
    • नागरिकों को पर्यावरणीय मुद्दों पर शिकायत करने और अदालत में जनहित याचिका (PIL) दायर करने का अधिकार।
    • पर्यावरण संरक्षण के लिए गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और जनता की भागीदारी को बढ़ावा।

महत्व:

  • इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना (2010) की गई, जो पर्यावरणीय मामलों की त्वरित सुनवाई करता है।
  • वन, जल, वायु और भूमि के संरक्षण के लिए यह अधिनियम एक महत्वपूर्ण कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
  • औद्योगिक गतिविधियों पर पर्यावरणीय मानकों का पालन अनिवार्य बनाकर सतत विकास को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत में पर्यावरणीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक प्रमुख कानून है। यह न केवल प्रदूषण नियंत्रण और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग को बढ़ावा देता है, बल्कि नागरिकों और सरकार को पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए भी प्रेरित करता है।

पर्यावरण कानून (Environmental Law)

• वायु और जल प्रदूषण कानून

भारत में वायु और जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विशेष कानून बनाए गए हैं। ये कानून पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने, प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों पर निगरानी रखने और दंडात्मक कार्रवाई करने के उद्देश्य से लागू किए गए हैं।


1. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974

(Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974)

उद्देश्य:

  • जल स्रोतों (नदी, झील, तालाब, भूमिगत जल) को प्रदूषण से बचाना।
  • औद्योगिक अपशिष्ट और सीवेज के अवैध निस्तारण को रोकना।
  • जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB और SPCB) की स्थापना।

मुख्य प्रावधान:

  1. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) का गठन।
    • जल की गुणवत्ता की निगरानी और मानकों को निर्धारित करने का कार्य।
  2. प्रदूषण फैलाने पर प्रतिबंध
    • औद्योगिक और नगर निगम कचरे का नदियों और झीलों में निर्वहन प्रतिबंधित।
    • उद्योगों को अपशिष्ट जल शुद्धिकरण संयंत्र (Effluent Treatment Plant – ETP) लगाने का निर्देश।
  3. उल्लंघन पर दंड
    • पहली बार उल्लंघन करने पर 6 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों
    • पुनः अपराध करने पर 7 साल तक की सजा

2. वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981

(Air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981)

उद्देश्य:

  • वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना और स्वस्थ पर्यावरण को बढ़ावा देना।
  • औद्योगिक और वाहन प्रदूषण की रोकथाम।
  • हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण।

मुख्य प्रावधान:

  1. वायु गुणवत्ता मानक
    • प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और वाहनों के लिए सख्त मानक निर्धारित।
    • सरकार को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र घोषित करने का अधिकार।
  2. प्रदूषण फैलाने पर प्रतिबंध
    • कारखानों, बिजली संयंत्रों और वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण पर नियंत्रण।
    • धूल, धुआं, गैसें (CO₂, SO₂, NO₂) आदि के उत्सर्जन को सीमित करना।
  3. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की शक्तियां
    • औद्योगिक इकाइयों का निरीक्षण और दोषी संस्थानों को बंद करने का अधिकार।
    • प्रदूषण फैलाने वाले उपकरणों और वाहनों पर कार्रवाई।
  4. दंड और सजा
    • पहली बार अपराध करने पर ₹1 लाख तक का जुर्माना या 5 साल की सजा
    • अपराध जारी रहने पर ₹5,000 प्रति दिन अतिरिक्त जुर्माना
    • गंभीर मामलों में 7 साल तक की सजा

निष्कर्ष

जल और वायु प्रदूषण कानून भारत में पर्यावरण संरक्षण का एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं। ये कानून उद्योगों, वाहनों और अन्य प्रदूषण स्रोतों पर सख्त नियंत्रण रखते हैं। इनके प्रभावी क्रियान्वयन से जल और वायु की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है, जिससे स्वस्थ जीवन और सतत विकास संभव हो सके।