पर्यावरण कानून: भारत में संरक्षण और चुनौतियाँ (Environmental Law: Conservation and Challenges in India) –
परिचय (Introduction):
पर्यावरण का अर्थ है वह प्राकृतिक परिवेश जिसमें हम रहते हैं – जैसे वायु, जल, भूमि, वनस्पति, जीव-जंतु आदि। यह मानव जीवन के अस्तित्व और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। औद्योगीकरण, शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और तकनीकी विकास ने जहाँ मनुष्य को सुविधाएं दी हैं, वहीं पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाला है। भारत में पर्यावरण संरक्षण हेतु अनेक संवैधानिक प्रावधान, अधिनियम और न्यायिक निर्णय लागू किए गए हैं, किंतु इसके समक्ष अनेक चुनौतियाँ भी हैं।
भारत में पर्यावरण संरक्षण का संवैधानिक आधार (Constitutional Basis for Environmental Protection in India):
- संविधान का अनुच्छेद 48A (Directive Principles of State Policy):
राज्य का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण, वन, और वन्यजीवों की रक्षा और सुधार के लिए प्रयास करे। - अनुच्छेद 51A(g) (Fundamental Duties):
प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे और उसे संरक्षित रखे। - अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार):
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्याख्या दी है कि अनुच्छेद 21 में प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीवन का अधिकार भी सम्मिलित है।
भारत में प्रमुख पर्यावरण कानून (Major Environmental Laws in India):
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:
यह अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी के बाद लागू किया गया। यह एक व्यापक अधिनियम है, जो केंद्र सरकार को पर्यावरण संरक्षण हेतु शक्तियाँ प्रदान करता है। - जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974:
इस अधिनियम का उद्देश्य जल स्रोतों के प्रदूषण को रोकना और नियंत्रित करना है। - वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981:
यह अधिनियम वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु बनाया गया था और इसके तहत केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गठित किए गए। - वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972:
इस अधिनियम का उद्देश्य वन्य जीवों की रक्षा करना और उनके निवास स्थान को संरक्षित करना है। - भारतीय वन अधिनियम, 1927:
यह अधिनियम वनों की रक्षा, उनके रखरखाव और उपयोग को नियंत्रित करता है। - राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010:
इसके तहत “National Green Tribunal” (NGT) की स्थापना की गई है, जो पर्यावरणीय मामलों में शीघ्र न्याय प्रदान करता है।
न्यायपालिका की भूमिका (Role of Judiciary in Environmental Protection):
भारत के उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने अनेक ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया है:
- MC Mehta बनाम भारत संघ (Ganga Pollution Case):
इसमें न्यायालय ने गंगा नदी में अपशिष्ट निस्सारण को रोकने के आदेश दिए। - Vellore Citizens Welfare Forum बनाम Union of India:
न्यायालय ने “Sustainable Development” और “Precautionary Principle” को भारतीय कानून का हिस्सा माना। - Subhash Kumar बनाम State of Bihar:
न्यायालय ने कहा कि स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीने का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
भारत में पर्यावरण संरक्षण की योजनाएँ और संस्थाएँ (Environmental Programs and Institutions in India):
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB):
यह बोर्ड जल और वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण हेतु कार्य करता है। - राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs):
ये राज्य स्तर पर पर्यावरणीय मानकों का पालन सुनिश्चित करते हैं। - राष्ट्रीय पर्यावरण नीति (2006):
इस नीति का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग को बढ़ावा देना है। - स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे, जल जीवन मिशन, अंतरिक्षीय वन सर्वेक्षण आदि:
ये योजनाएँ पर्यावरण की रक्षा और जन-भागीदारी बढ़ाने हेतु चलाई गई हैं।
भारत में पर्यावरण संरक्षण की चुनौतियाँ (Challenges of Environmental Protection in India):
- जनसंख्या वृद्धि:
तीव्र जनसंख्या वृद्धि से प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ता है। - औद्योगीकरण और शहरीकरण:
अनियंत्रित औद्योगीकरण और शहरी विस्तार से वायु, जल और भूमि प्रदूषण में वृद्धि हुई है। - प्रदूषण की निगरानी में कमी:
अधिकांश प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास पर्याप्त संसाधन और जनशक्ति की कमी है। - सजगता की कमी:
आम जनता में पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता की कमी एक बड़ी बाधा है। - निष्पादन में ढिलाई:
कानून तो बनाए गए हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन में गंभीर खामियाँ हैं। - राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी:
कई बार पर्यावरणीय मुद्दों को राजनीतिक लाभ-हानि के आधार पर टाल दिया जाता है।
पर्यावरण संरक्षण हेतु सुझाव (Suggestions for Environmental Conservation):
- प्रभावी क्रियान्वयन:
पर्यावरण कानूनों का कड़ाई से पालन कराया जाए। - जनजागरूकता:
विद्यालयों और समाज में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य किया जाए। - तकनीकी विकास:
स्वच्छ और हरित तकनीकों का प्रयोग बढ़ाया जाए। - जनभागीदारी:
स्थानीय समुदायों को पर्यावरणीय निर्णयों में भागीदारी दी जाए। - न्यायिक निगरानी:
पर्यावरणीय उल्लंघनों पर कठोर न्यायिक कार्यवाही हो। - पुनः चक्रीकरण और कचरा प्रबंधन:
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को प्रभावी बनाया जाए।
निष्कर्ष (Conclusion):
भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए संवैधानिक, विधिक और न्यायिक आधार मजबूत हैं। अनेक अधिनियमों, नीतियों और योजनाओं के माध्यम से सरकार ने पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रयास किए हैं। परंतु बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण, संसाधनों का अत्यधिक दोहन, और प्रशासनिक अक्षमता जैसी चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान हैं। जब तक आम नागरिकों, सरकार, उद्योगों और न्यायपालिका द्वारा सामूहिक रूप से और समर्पित भाव से प्रयास नहीं किए जाते, तब तक सतत विकास और स्वच्छ पर्यावरण का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। अतः पर्यावरण संरक्षण अब केवल विधिक दायित्व नहीं, अपितु प्रत्येक नागरिक का नैतिक और सामाजिक कर्तव्य है।