पर्यावरणीय मंजूरी (Environmental Clearance) के विरुद्ध अपील की लिमिटेशन ‘सार्वजनिक सूचना की तिथि’ से शुरू होगी: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
Talli Gram Panchayat vs. Union of India & Ors — Supreme Court of India
भूमिका
पर्यावरणीय मंजूरी (Environmental Clearance – EC) आज के समय में किसी भी बड़े विकास कार्य, औद्योगिक परियोजना, सिंचाई योजना, खनन गतिविधि या निर्माण परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण चरण है।
Environmental Impact Assessment (EIA) के तहत पर्यावरण मंत्रालय या संबंधित प्राधिकरण द्वारा दी गई मंजूरी के विरुद्ध अपील करने का अधिकार कानून में उपलब्ध है।
लेकिन एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न वर्षों से विवादित था:
EC के विरुद्ध अपील दायर करने की समय-सीमा (Limitation Period) कब से शुरू मानी जाएगी?
क्या यह—
- मंजूरी दिए जाने की तिथि से?
- परियोजना प्रोफ़ाइल अपलोड होने की तिथि से?
- या जब यह सूचना सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हो जाए?
Supreme Court of India ने Talli Gram Panchayat vs. Union of India & Ors के महत्वपूर्ण निर्णय में इस मुद्दे को हमेशा के लिए स्पष्ट कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
Environmental Clearance के विरुद्ध अपील की लिमिटेशन ‘सार्वजनिक को सबसे पहले सूचना मिलने की तिथि’ (earliest date of communication to the public at large) से शुरू होगी।
यह फैसला पर्यावरणीय न्याय (Environmental Justice) और जनभागीदारी (Public Participation) को मजबूत करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
- Talli Gram Panchayat, स्थानीय ग्रामीण निकाय, एक औद्योगिक/इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना का विरोध कर रहा था।
- परियोजना को Environmental Clearance (EC) मिल चुकी थी।
- ग्राम पंचायत ने EC को चुनौती देने के लिए अपील दाखिल की, लेकिन परियोजना पक्ष ने यह कहते हुए आपत्ति उठाई कि—
अपील समय-सीमा से बाहर (Barred by Limitation) है। - उनका तर्क था कि EC पहले ही ग्रांट हो चुकी थी और अपील ‘निर्धारित 30 दिनों’ के भीतर नहीं दायर की गई।
- ग्राम पंचायत ने कहा कि—
हमें EC की जानकारी बाद में सार्वजनिक घोषणा से मिली।
और तभी से लिमिटेशन गिनी जानी चाहिए।
मामला बढ़ते-बढ़ते सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचा।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न
क्या Environmental Clearance के विरुद्ध अपील की लिमिटेशन EC के ‘Grant’ होने की तिथि से शुरू होगी, या जब वह ‘Public Domain’ में पहली बार प्रकाशित/उपलब्ध’ हो?
यह बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न था क्योंकि—
- बहुत बार EC बिना स्थानीय लोगों को बताए दे दी जाती है,
- और वास्तविक प्रभावित समुदाय को इसकी खबर महीनों बाद लगती है।
पर्यावरणीय कानून की प्रासंगिक कानूनी रूपरेखा
1. National Green Tribunal Act, 2010 (NGT Act)
- Section 16: अपील का अधिकार
- अपील की समय-सीमा: 30 दिन, प्रायः 60 दिन तक कंडोनेबल
2. EIA Notification, 2006
- पर्यावरणीय मंजूरी हेतु सार्वजनिक सुनवाई
- EC के बाद public disclosure अनिवार्य
3. ‘Right to Know’ सिद्धांत – पर्यावरण न्याय का आधार
- पर्यावरण से जुड़े निर्णयों का ओपन और ट्रांसपेरेंट होना अनिवार्य माना गया है।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में निम्न आधारों पर फैसला सुनाया:
1. EC का वास्तविक उद्देश्य ‘सार्वजनिक सूचना’ है
पर्यावरण से जुड़ी कोई भी परियोजना—
- स्थानीय निवासियों,
- पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं,
- पंचायतों,
- और आम जनता
को प्रभावित करती है।
ऐसे में, EC का अनिवार्य तत्व है:
सार्वजनिक को समय पर सूचना मिलना चाहिए।
यदि सरकार या परियोजना-उपक्रम केवल फाइल पर EC जारी करे लेकिन जनता को बताए ही नहीं, तो:
- लोकतांत्रिक भागीदारी समाप्त हो जाएगी,
- और अपील का अधिकार निरर्थक हो जाएगा।
2. Limitation तभी शुरू हो सकती है जब सूचना ‘Public at Large’ तक पहुँचे
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
लिमिटेशन ‘communication’ से शुरू होती है।
और पर्यावरणीय मामलों में Communication का अर्थ है—
जनता को सूचित किया जाना।
Communication के तीन प्रमुख तरीके बताए गए—
(a) वेबसाइट पर अपलोड करना
(b) समाचार पत्र में प्रकाशन
(c) स्थानीय निकाय / पंचायत क्षेत्र में सार्वजनिक सूचना
जब इनमें से पहला कदम लिया जाता है, और जनता को “सबसे पहले” ज्ञात होता है, वहीं से समय-सीमा गिनी जाएगी।
3. EC की ‘Grant’ और उसका ‘Notification’ दो अलग प्रक्रियाएँ हैं
- Grant: इंटरनल सरकारी प्रक्रिया
- Notification/Communication: जनता को जानकारी देना
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा:
“Grant की तारीख और जनता को जानकारी देने की तारीख अलग होती है।
Limitation दूसरी तारीख से शुरू होगी।”
**4. परियोजना पक्ष की यह दलील अस्वीकृत की गई कि—
‘Gram Panchayat को पहले ही जानकारी थी’**
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि—
- परियोजना क्षेत्र में किसी नोटिस की अनुपस्थिति,
- समाचार पत्र में प्रकाशन न होना,
- वेबसाइट पर EC से संबंधित विवरण अनुपलब्ध होना
यह दर्शाता है कि जनता को EC के बारे में वास्तव में ज्ञान नहीं मिला था।
5. पर्यावरणीय मामलों में ‘Liberal Interpretation’ आवश्यक है
पर्यावरणीय न्याय से जुड़े मामलों में—
- तकनीकी आधार,
- औपचारिक देरी,
- तथ्यों की देर से जानकारी
को कठोरता से नहीं देखा जा सकता।
6. अपील का अधिकार “Substantive Right” है
यदि Limitation को गलत तरीके से EC की Grant की तिथि से माना जाए, तो:
- पूरा Substantive Right समाप्त हो जाएगा,
- और जनता अपील ही नहीं कर पाएगी।
यह संविधान के Article 21 (Right to Life) के विरुद्ध होगा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
Environmental Clearance के विरुद्ध अपील की समय-सीमा ‘Earliest public communication’ से प्रारंभ होगी।
Grant की तिथि या File Signing की तिथि से Limitation नहीं चलेगी।
अतः, Talli Gram Panchayat द्वारा दायर अपील Limitation के भीतर मानी गई, और परियोजना पक्ष का Limitation-based objection खारिज कर दिया गया।
निर्णय के व्यावहारिक और व्यापक प्रभाव
1. स्थानीय समुदायों को बड़ा लाभ
अब किसी भी ग्राम पंचायत/NGO/नागरिक समूह को अपील का अधिकार खोने का डर नहीं रहेगा, क्योंकि—
Limitation तभी शुरू होगी जब सूचना सार्वजनिक हो।
2. परियोजना-उपक्रमों पर पारदर्शिता का दबाव बढ़ेगा
अब कंपनियों को मजबूरन—
- EC को वेबसाइट पर अपलोड करना होगा
- समाचार पत्र में प्रकाशित करना होगा
- स्थानीय निकाय को सूचित करना होगा
अन्यथा उनका प्रोजेक्ट कानूनी संकट में पड़ जाएगा।
3. सरकार पर ‘Environmental Due-Process’ पालन करने की बाध्यता बढ़ेगी
पर्यावरण मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि—
- EC तुरंत सार्वजनिक की जाए
- संबंधित दस्तावेज उपलब्ध हों
- स्थानीय लोगों को सूचित किया जाए
4. यह निर्णय पर्यावरणीय शासन को अधिक लोकतांत्रिक बनाता है
जनता को सूचना मिलना—
- सुशासन का पहला सिद्धांत है
- पर्यावरणीय न्याय का आधार है
- और Article 19(1)(a) (Right to Information) की आत्मा के अनुरूप है
5. भविष्य में सभी EC मामलों पर इसका प्रभाव पड़ेगा
अब हर Tribunal/High Court को Limitation का आकलन इस निर्णय के अनुसार करना होगा।
कानूनी सिद्धांतों की पुष्टि
इस निर्णय से निम्न सिद्धांत मजबूत हुए:
A. Doctrine of Public Participation
परियोजनाएँ जनता को प्रभावित करती हैं, इसलिए जनता को समय पर सूचना मिलनी चाहिए।
B. Environmental Rule of Law
कानून का उद्देश्य केवल कार्यवाही नहीं, बल्कि पारदर्शी प्रशासन है।
C. Liberal Interpretation of Limitation
पर्यावरणीय मामलों में समय-सीमा को कठोरता से नहीं पढ़ा जाएगा।
D. Communication Means “Effective Communication to Public”
सिर्फ फाइल पर EC लगा देना communication नहीं है।
निष्कर्ष
Talli Gram Panchayat vs. Union of India & Ors का निर्णय पर्यावरणीय शासन, जनभागीदारी, और अपील के अधिकार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि—
Environmental Clearance के विरुद्ध अपील की लिमिटेशन ‘Public Communication’ की तिथि से शुरू होगी, न कि EC की Grant की तिथि से।
यह निर्णय:
- जनता के अधिकारों को मजबूती देता है,
- कंपनियों और सरकार पर पारदर्शिता का दायित्व बढ़ाता है,
- और पर्यावरणीय न्याय प्रणाली को अधिक सक्रिय और संवेदनशील बनाता है।