शीर्षक: “पत्नी के अवैध संबंध साबित होने पर नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता”
कोर्ट: दिल्ली उच्च न्यायालय
प्रकरण सारांश: पति से अलग रह रही पत्नी और दूसरे व्यक्ति से अवैध संबंधों पर न्यायालय का अहम फैसला
🔷 प्रस्तावना:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई पत्नी अपने पति से अलग रहते हुए किसी अन्य पुरुष के साथ अवैध संबंध रखती है, तो वह पति से गुजारा भत्ता (Maintenance) पाने की हकदार नहीं होगी। यह फैसला भारत के पारिवारिक कानूनों में गंभीर नैतिकता और दायित्वों की व्याख्या करता है।
🔷 मामले की पृष्ठभूमि:
मामले में पति ने अदालत के समक्ष यह दावा किया कि उसकी पत्नी उससे पिछले कई वर्षों से अलग रह रही है और एक अन्य पुरुष के साथ उसके अवैध संबंध हैं। इस आधार पर पति ने यह याचिका दायर की कि पत्नी को दिया जा रहा गुजारा भत्ता रोका जाए, क्योंकि वह अब उसकी वैवाहिक जिम्मेदारियों का पालन नहीं कर रही है।
वहीं, पत्नी ने यह दलील दी कि वह अपने खर्चों के लिए पति की आर्थिक सहायता चाहती है और उसका जीवन निर्वाह मुश्किल हो गया है।
🔷 दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय:
मुख्य टिप्पणियाँ:
- अवैध संबंध और Maintenance का अधिकार:
न्यायालय ने कहा कि यदि पत्नी का व्यवस्थित रूप से किसी अन्य पुरुष के साथ यौन या भावनात्मक संबंध स्थापित होना साबित हो जाए, तो उसे गुजारा भत्ता प्राप्त करने का नैतिक और कानूनी अधिकार नहीं रह जाता। - गुजारा भत्ते की धाराएं उद्देश्यपूर्ण हैं:
अदालत ने कहा कि धारा 125 CrPC (दण्ड प्रक्रिया संहिता) के अंतर्गत गुजारा भत्ता का उद्देश्य उन स्त्रियों की सुरक्षा करना है जो स्वयं अपने भरण-पोषण में अक्षम हैं और जो पति के प्रति वफादार और निष्ठावान रही हैं। - साक्ष्यों की भूमिका:
न्यायालय ने पाया कि पति ने पत्नी के अन्य पुरुष के साथ रहने, सार्वजनिक रूप से व्यवहार, सोशल मीडिया साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के माध्यम से यह साबित कर दिया कि पत्नी के संबंध वैवाहिक विश्वासघात की श्रेणी में आते हैं।
🔷 कानूनी व्याख्या:
- CrPC की धारा 125(4) में स्पष्ट रूप से कहा गया है:
यदि पत्नी व्यभिचार (adultery) कर रही है, या किसी अन्य पुरुष के साथ रह रही है, तो वह गुजारा भत्ते की पात्र नहीं होती। - अदालत ने इसी प्रावधान के तहत यह निष्कर्ष निकाला कि ऐसे मामलों में पति पर Maintenance देने का दायित्व नहीं डाला जा सकता, क्योंकि पत्नी ने स्वयं वैवाहिक संबंधों की पवित्रता तोड़ी है।
🔷 सामाजिक और नैतिक आयाम:
यह निर्णय यह संदेश देता है कि गुजारा भत्ता कोई अधिकार नहीं, बल्कि एक न्यायसंगत सहायता है, जो उन महिलाओं के लिए है जो सच में पीड़ित हैं और पति की उपेक्षा या हिंसा का शिकार रही हैं। लेकिन अगर कोई पत्नी स्वयं वैवाहिक मर्यादाओं को तोड़ती है, तो वह इस संरक्षण की पात्र नहीं रहेगी।
🔷 निष्कर्ष:
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय उन मामलों में स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करता है, जहां विवाह विच्छेद के बाद भरण-पोषण की मांग की जाती है। यदि पत्नी के आचरण में गंभीर नैतिक चूक हो, जैसे कि अवैध संबंध, तो अदालतें गुजारा भत्ता देने से इनकार कर सकती हैं।
यह न्यायिक दृष्टिकोण समाज में नैतिकता, पारिवारिक अनुशासन और न्यायसंगत व्यवहार को सुदृढ़ करता है।