पटना हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय पत्नी को भरण-पोषण से वंचित करने के लिए केवल एक बार का व्यभिचार पर्याप्त नहीं

पटना हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय पत्नी को भरण-पोषण से वंचित करने के लिए केवल एक बार का व्यभिचार पर्याप्त नहीं


प्रस्तावना

भारतीय समाज में विवाह केवल एक सामाजिक संस्था ही नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच आपसी कर्तव्यों और अधिकारों का भी आधार है। विवाह के पश्चात पति पर यह कानूनी और नैतिक दायित्व है कि वह पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करे। यही कारण है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 में भरण-पोषण (Maintenance) का प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि कोई भी पत्नी, बच्चा या माता-पिता भूखे न रहें और उनकी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

लेकिन अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जहाँ पति-पत्नी के संबंध बिगड़ जाने पर पति भरण-पोषण देने से बचने की कोशिश करता है और पत्नी पर तरह-तरह के आरोप लगाकर उसकी याचिका को कमजोर करने का प्रयास करता है। ऐसा ही एक मामला पटना हाईकोर्ट के समक्ष आया जिसमें यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि यदि पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया जाता है, तो क्या वह भरण-पोषण के अधिकार से वंचित हो जाएगी?

इस मामले में उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया और कहा कि—सिर्फ एक बार का व्यभिचार पत्नी को भरण-पोषण से वंचित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, इसके लिए यह साबित होना आवश्यक है कि पत्नी लगातार और स्थायी रूप से किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध में रह रही है।


तथ्य (Facts of the Case)

  • याचिकाकर्ता का नाम बुलबुल खातून है, जिसने अपने पति मोहम्मद शमशाद के खिलाफ भरण-पोषण की याचिका दायर की।
  • बुलबुल खातून का कहना था कि उसके पति और ससुराल वालों ने अवैध दहेज की मांग की, जिसके चलते उसे घर छोड़ना पड़ा।
  • वह अपने नाबालिग बेटे के साथ अपने मायके में रहने लगी और आर्थिक रूप से असमर्थ हो गई।
  • पति मजदूरी करता है और सक्षम है, इसलिए उसे पत्नी और बेटे का भरण-पोषण करना चाहिए।

दूसरी ओर, पति मोहम्मद शमशाद का तर्क था कि बुलबुल खातून किसी अन्य पुरुष मोहम्मद तरीकत के साथ व्यभिचार में रह रही है। इसलिए उसे भरण-पोषण पाने का कोई अधिकार नहीं है।

पारिवारिक न्यायालय ने पति के पक्ष को मानते हुए पत्नी की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद बुलबुल खातून ने इस आदेश के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में अपील की।


मुद्दे (Issues Before the Court)

  1. क्या तीन तलाक के बावजूद पत्नी अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार है?
  2. क्या व्यभिचार का आरोप साबित होने पर पत्नी भरण-पोषण से वंचित की जा सकती है?
  3. पत्नी को यदि भरण-पोषण का अधिकार है, तो उसकी राशि कितनी निर्धारित की जानी चाहिए?

याचिकाकर्ता के तर्क (Petitioner’s Arguments)

  • बुलबुल खातून ने कहा कि उसे उसके पति की दहेज मांग और उत्पीड़न के कारण घर छोड़ना पड़ा।
  • वह अपने बच्चे के साथ अपने मायके में रह रही है और कोई आय का स्रोत नहीं है।
  • पति मजदूरी करता है और सक्षम है, इसलिए वह भरण-पोषण देने के लिए बाध्य है।
  • पति का यह आरोप कि वह किसी अन्य पुरुष के साथ रह रही है, झूठा और निराधार है।

प्रतिवादी के तर्क (Respondent’s Arguments)

  • पति ने कहा कि बुलबुल खातून किसी अन्य व्यक्ति मोहम्मद तरीकत के साथ अवैध संबंधों में रह रही है।
  • चूँकि पत्नी व्यभिचार कर रही है, इसलिए उसे सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का अधिकार नहीं है।
  • पारिवारिक न्यायालय का आदेश सही है और उसे बरकरार रखा जाना चाहिए।

संबंधित कानून (Relevant Legal Provisions)

  1. दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC), धारा 125 – भरण-पोषण का प्रावधान करती है, ताकि पत्नी, बच्चे और माता-पिता आर्थिक रूप से असुरक्षित न रहें।
  2. मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 – तीन तलाक (Triple Talaq) को अवैध और अमान्य घोषित करता है।
  3. भारतीय दंड संहिता, धारा 497 (Adultery) – पहले व्यभिचार को अपराध मानती थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया। फिर भी, धारा 125 CrPC के अंतर्गत यदि पत्नी लगातार किसी अन्य पुरुष के साथ रह रही है, तो उसका भरण-पोषण रोका जा सकता है।

न्यायालय का विश्लेषण (Court’s Analysis)

  • अदालत ने कहा कि पति यह साबित करने में असफल रहा कि पत्नी लगातार और स्थायी रूप से किसी अन्य पुरुष के साथ रह रही है।
  • केवल एक बार का व्यभिचार यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि पत्नी भरण-पोषण के अधिकार से वंचित हो।
  • धारा 125 CrPC का उद्देश्य उन महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा करना है, जो स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।
  • पति मजदूरी करता है और स्वस्थ है, इसलिए उस पर यह कानूनी कर्तव्य है कि वह पत्नी और बच्चे का पालन-पोषण करे।

अदालत का निर्णय (Court’s Decision)

  • पटना हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय का आदेश खारिज कर दिया।
  • अदालत ने कहा कि बुलबुल खातून भरण-पोषण की हकदार है।
  • अदालत ने मोहम्मद शमशाद को आदेश दिया कि वह अपनी पत्नी को आवेदन की तिथि से प्रति माह ₹2000/- भरण-पोषण के रूप में अदा करे।

महत्व (Significance of the Judgment)

  1. महिला अधिकारों की सुरक्षा – यह फैसला महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की रक्षा में एक मील का पत्थर है।
  2. व्यभिचार का सही परिभाषीकरण – अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि केवल एक बार का व्यभिचार भरण-पोषण रोकने का आधार नहीं हो सकता।
  3. ट्रिपल तलाक पर स्पष्टता – तीन तलाक अवैध है, इसलिए पति इस आधार पर पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं कर सकता।
  4. सामाजिक प्रभाव – यह निर्णय उन पत्नियों को राहत देता है जिन्हें झूठे आरोपों के आधार पर भरण-पोषण से वंचित करने की कोशिश की जाती है।
  5. न्यायालय की संवेदनशीलता – यह दिखाता है कि अदालतें महिलाओं और बच्चों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाती हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

पटना हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल मुस्लिम महिलाओं बल्कि सभी विवाहित महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण और मार्गदर्शक है। अदालत ने साफ कर दिया कि पति केवल झूठे आरोप लगाकर पत्नी को उसके भरण-पोषण के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। इस निर्णय ने यह भी दोहराया कि धारा 125 CrPC का उद्देश्य कमजोर वर्ग, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की आर्थिक सुरक्षा करना है।

यह फैसला इस बात का प्रतीक है कि भारतीय न्यायपालिका महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। अब यह मिसाल बनेगी कि यदि पति पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है, तो उसे ठोस और निरंतर साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे, तभी पत्नी को भरण-पोषण से वंचित किया जा सकेगा।