पंजीकृत विलेख के आधार पर किए गए म्युटेशन की वैधता: कर्नाटक उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय – Section 129, Karnataka Land Revenue Act, 1964 का विश्लेषण

शीर्षक: पंजीकृत विलेख के आधार पर किए गए म्युटेशन की वैधता: कर्नाटक उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय – Section 129, Karnataka Land Revenue Act, 1964 का विश्लेषण


परिचय:

भूमि संबंधी मामलों में “Mutation” अर्थात् ‘नामांतरण’ एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक प्रक्रिया है, जो भूमि के स्वामित्व में परिवर्तन को राजस्व अभिलेखों में दर्शाने हेतु की जाती है। जब भूमि का स्वामित्व विधिवत रूप से किसी अन्य को हस्तांतरित किया जाता है—जैसे पंजीकृत विलेख (Registered Gift Deed/Sale Deed) के माध्यम से—तो उस पर आधारित म्युटेशन किया जाता है। High Court at Karnataka के माननीय न्यायाधीश N. S. Sanjay Gowda द्वारा पारित नवीनतम निर्णय में Section 129 of Karnataka Land Revenue Act, 1964 की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया गया कि एक बार जब म्युटेशन पंजीकृत विलेख के आधार पर किया जा चुका हो, तो वह तब तक रद्द नहीं किया जा सकता जब तक कोई नया कानूनी हस्तांतरण या सिविल कोर्ट का डिक्री न हो।


मामले की पृष्ठभूमि:

इस मामले में विवाद इस बात को लेकर था कि एक पंजीकृत उपहार विलेख (Registered Gift Deed) के आधार पर किए गए म्युटेशन को कुछ व्यक्तियों द्वारा चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता चाहते थे कि राजस्व अभिलेखों में उनका नाम फिर से दर्ज किया जाए। लेकिन उन्होंने म्युटेशन रद्द कराने हेतु न तो कोई नवीन विलेख प्रस्तुत किया और न ही किसी सिविल न्यायालय से डिक्री प्राप्त की।


न्यायालय का निर्णय:

माननीय Justice N. S. Sanjay Gowda ने निर्णय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं को प्रतिपादित किया:

  1. पंजीकृत विलेख के आधार पर म्युटेशन वैध:
    जब म्युटेशन पंजीकृत विलेख (जैसे विक्रय विलेख या उपहार विलेख) के आधार पर किया जाता है, तो यह प्रथम दृष्टया प्रमाण होता है कि भूमि का स्वामित्व विधिवत रूप से हस्तांतरित हुआ है।
  2. म्युटेशन केवल प्रशासनिक प्रक्रिया है, परंतु उसका महत्व है:
    यद्यपि म्युटेशन राजस्व रिकॉर्ड में स्वामित्व दर्शाने की प्रक्रिया है और यह अपने आप में ‘स्वामित्व का प्रमाण’ नहीं है, फिर भी जब यह किसी पंजीकृत विलेख पर आधारित हो, तो उसे मनमाने ढंग से रद्द नहीं किया जा सकता।
  3. रद्द करने हेतु आवश्यक है – नया हस्तांतरण या न्यायिक डिक्री:
    यदि कोई अन्य पक्ष म्युटेशन से असहमत है, तो उसे या तो:

    • कोई नवीन पंजीकृत विलेख प्रस्तुत करना होगा जिससे वह स्वामित्व का दावा करे, या
    • किसी सिविल कोर्ट से डिक्री प्राप्त करनी होगी जो उस म्युटेशन को निरस्त कर सके।
  4. प्रशासनिक अधिकारियों की सीमित शक्ति:
    राजस्व अधिकारी केवल विधिवत दस्तावेजों के आधार पर म्युटेशन दर्ज या रद्द कर सकते हैं। वे स्वामित्व संबंधी विवादों का निपटारा नहीं कर सकते।

कानूनी विश्लेषण:

Section 129 of the Karnataka Land Revenue Act, 1964 स्पष्ट करता है कि भूमि के स्वामित्व परिवर्तन पर आधारित म्युटेशन तब तक वैध माना जाएगा जब तक उसे किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा निरस्त नहीं किया जाता। न्यायालयों ने बार-बार दोहराया है कि:

  • म्युटेशन का उद्देश्य केवल राजस्व अभिलेखों को अद्यतन करना है।
  • भूमि का वैधानिक स्वामित्व केवल विधिक दस्तावेजों और न्यायिक आदेशों से ही निर्धारित होता है।

निर्णय का प्रभाव:

यह निर्णय निम्नलिखित कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  1. भूमि विवादों में म्युटेशन प्रक्रिया को एक कानूनी स्पष्टता मिली है।
  2. यह प्रशासनिक अधिकारियों की सीमा और अधिकारों को स्पष्ट करता है।
  3. इससे राजस्व रिकॉर्ड की विश्वसनीयता बनी रहती है और अनावश्यक हस्तक्षेप को रोका जा सकता है।

निष्कर्ष:

High Court of Karnataka का यह निर्णय भूमि रिकॉर्ड प्रशासन की प्रक्रिया में पारदर्शिता और विधिक स्थिरता सुनिश्चित करता है। यह संदेश स्पष्ट करता है कि पंजीकृत विलेखों के आधार पर किए गए म्युटेशन को केवल ठोस कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से ही चुनौती दी जा सकती है, न कि केवल दावों और आपत्तियों के आधार पर। यह निर्णय भूमि संबंधी विवादों के न्यायसंगत समाधान के लिए एक दिशा-निर्देशक के रूप में कार्य करता है।