पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय — “फोटोस्टेट प्रतियों के आधार पर हस्ताक्षर की विशेषज्ञ तुलना की अनुमति नहीं दी जा सकती”

🔖 पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय — “फोटोस्टेट प्रतियों के आधार पर हस्ताक्षर की विशेषज्ञ तुलना की अनुमति नहीं दी जा सकती”


🧾 केस संदर्भ:
Punjab & Haryana High Court Judgment
संबंधित प्रावधान:

  • परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881), धारा 138
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), धारा 528

🧩 निर्णय का सारांश:

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक आवेदन को खारिज कर दिया जिसमें एक विशेषज्ञ (Handwriting Expert) को यह अनुमति देने की मांग की गई थी कि वह एक विवादित दस्तावेज़ (चिन्हित ‘A’) पर हस्ताक्षर की तुलना स्वीकृत (admitted) हस्ताक्षरों से करे, जबकि वह दस्तावेज़ केवल फोटोकॉपी के रूप में उपलब्ध था।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी विशेषज्ञ तुलना केवल मूल दस्तावेज़ (original document) के आधार पर ही की जा सकती है, क्योंकि फोटोस्टेट प्रतियों के साथ छेड़छाड़ और धोखाधड़ी की संभावनाएं बहुत अधिक होती हैं।


⚖️ निर्णय के प्रमुख बिंदु:

  1. फोटोकॉपी पर विशेषज्ञ जांच अविश्वसनीय:
    न्यायालय ने कहा कि आज के डिजिटल युग में सही हस्ताक्षरों को आसानी से स्कैन करके फर्जी दस्तावेज़ों पर लगाया जा सकता है, जिससे जांच की निष्पक्षता और न्याय की पवित्रता प्रभावित होती है।
  2. मूल साक्ष्य नियम (Best Evidence Rule):
    जब किसी दस्तावेज़ की प्रामाणिकता पर विवाद हो, तो न्यायालय को मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है। फोटोकॉपी केवल तब ही स्वीकार्य हो सकती है जब मूल दस्तावेज़ उपलब्ध न हो और पर्याप्त प्रमाण से उसकी वैधता साबित की जा सके।
  3. न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता:
    फोटोकॉपी पर आधारित विशेषज्ञ विश्लेषण को अनुमति देना न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को खतरे में डाल सकता है, क्योंकि ऐसी प्रतियाँ आसानी से तोड़-मरोड़ या छेड़छाड़ की जा सकती हैं।
  4. दस्तावेज़ की प्रामाणिकता का संदेह:
    अदालत ने दोहराया कि जब तक मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया जाता, तब तक हस्ताक्षरों की तुलना व्यर्थ और भ्रामक हो सकती है।

📌 न्यायालय की टिप्पणी:

“Photocopies are inherently susceptible to fabrication and cannot form the basis of expert comparison. The absence of the original renders the exercise futile and risky.”


📚 निष्कर्ष:

✅ यह निर्णय स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि केवल मूल दस्तावेज़ ही विशेषज्ञ विश्लेषण और साक्ष्य परीक्षण के लिए मान्य आधार हो सकते हैं
धोखाधड़ी की बढ़ती संभावनाओं और डिजिटल छेड़छाड़ को देखते हुए, न्यायालयों को साक्ष्य के स्वरूप को लेकर अधिक सतर्क रहना आवश्यक है।
✅ यह निर्णय न्याय प्रक्रिया में विश्वसनीयता और साक्ष्य की शुद्धता को बनाए रखने की दिशा में एक मजबूत कदम है।