लेख शीर्षक:
“न्यूनतम वेतन और रोजगार सुरक्षा: सम्मानजनक जीवन और श्रमिक अधिकारों की नींव”
भूमिका:
श्रमिक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। उनके परिश्रम से उत्पादन होता है, सेवाएं चलती हैं और समाज गतिशील रहता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि उन्हें न्यूनतम वेतन (Minimum Wages) और रोजगार की सुरक्षा (Job Security) प्राप्त हो, ताकि वे गरिमा के साथ जीवन यापन कर सकें। भारत जैसे विशाल श्रमिक-आधारित देश में यह मुद्दा न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक न्याय और मानव अधिकारों से भी जुड़ा हुआ है।
🔹 क्या है न्यूनतम वेतन?
न्यूनतम वेतन वह सबसे कम मजदूरी होती है जिसे कानूनन किसी नियोक्ता को श्रमिक को देना अनिवार्य होता है — भले ही उसका कौशल, अनुभव या शिक्षा कुछ भी हो।
🔸 उद्देश्य:
- श्रमिक का शोषण रोकना
- गरिमापूर्ण जीवन जीने की न्यूनतम आर्थिक शक्ति देना
- भुखमरी, कुपोषण और बाल श्रम जैसी समस्याओं को कम करना
🔹 भारत में न्यूनतम वेतन की कानूनी व्यवस्था
📜 मजदूरी संहिता, 2019 (Code on Wages, 2019):
भारत सरकार ने विभिन्न पुराने श्रम कानूनों को मिलाकर चार श्रम संहिताएं (Labour Codes) बनाई हैं, जिनमें से “Code on Wages” न्यूनतम वेतन से संबंधित है।
🏛️ प्रमुख प्रावधान:
- सभी श्रमिकों को न्यूनतम वेतन मिलेगा, चाहे वे संगठित हों या असंगठित।
- केन्द्र और राज्य सरकारें न्यूनतम वेतन तय कर सकती हैं।
- राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन (National Floor Wage) की अवधारणा — जिससे राज्यों में न्यूनतम वेतन बहुत कम न रखा जाए।
- वेतन का समय पर भुगतान, भले ही दैनिक, साप्ताहिक या मासिक हो।
🔹 रोजगार सुरक्षा: क्या है इसकी आवश्यकता?
रोजगार सुरक्षा का मतलब है कि किसी श्रमिक को बिना वैध कारण के काम से हटाया न जाए, और यदि हटाया जाए, तो उसे उचित मुआवज़ा, नोटिस और वैकल्पिक रोज़गार का अवसर मिले।
⚠️ भारत में स्थिति:
- बड़ी संख्या में श्रमिक ठेके पर, अस्थायी या अनौपचारिक रूप में कार्यरत हैं
- उन्हें कभी भी हटाया जा सकता है, बिना किसी कानूनी प्रक्रिया या मुआवज़े के
- इस कारण उनका जीवन असुरक्षित, अनिश्चित और तनावपूर्ण बना रहता है
🔹 रोजगार सुरक्षा से जुड़े प्रमुख कानून
- औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (Industrial Relations Code)
- स्थायी कर्मचारियों की सुरक्षा
- अनुचित छंटनी पर रोक
- यूनियन बनाने और सामूहिक सौदेबाज़ी का अधिकार
- अनुबंध श्रमिक (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम, 1970
- ठेका श्रमिकों के अधिकार सुनिश्चित करता है
- भुगतान, कार्यदशा, सुविधा आदि की गारंटी
🔹 समस्या की जड़: न्यूनतम वेतन तो है, लेकिन लागू नहीं
समस्या | प्रभाव |
---|---|
🔻 न्यूनतम वेतन की दर बहुत कम | जीवन यापन मुश्किल |
❌ कानून की अनुपालना नहीं | कंपनियाँ पे-रोल से बाहर रखती हैं |
💼 असंगठित क्षेत्र का वर्चस्व | जहां श्रमिक अधिकार नहीं लागू होते |
🧾 यूनियन का अभाव | श्रमिक मोलभाव नहीं कर सकते |
🔹 न्यूनतम वेतन की मांग कितनी होनी चाहिए?
विभिन्न रिपोर्ट्स के अनुसार, एक श्रमिक को और उसके परिवार को स्वस्थ, सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन के लिए कम से कम ₹375–₹500 प्रति दिन की दर से मासिक वेतन मिलना चाहिए, जो कि ₹10,000–₹15,000 प्रति माह से कम नहीं होना चाहिए।
🔹 सरकार की पहलें
- ई-श्रम पोर्टल: असंगठित श्रमिकों के पंजीकरण हेतु
- राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन पर रिपोर्ट (2019): ₹375/दिन की सिफारिश
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना: पेंशन सुविधा
- आवास, स्वास्थ्य और बीमा योजनाएं — जैसे आयुष्मान भारत, PMSBY
🔹 न्यायपालिका की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट के फैसले:
People’s Union for Democratic Rights v. Union of India (1982)
“न्यूनतम वेतन का भुगतान न करना बंधुआ मजदूरी के बराबर है।”
Reptakos Brett & Co. Ltd. v. Workmen (1992)
“न्यूनतम वेतन में जीवनयापन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए।”
🔹 निष्कर्ष:
न्यूनतम वेतन और रोजगार की सुरक्षा केवल आर्थिक मुद्दे नहीं हैं, ये मानव गरिमा, सामाजिक समानता और न्याय से जुड़े हुए अधिकार हैं। जब तक श्रमिक अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते, तब तक देश की आर्थिक प्रगति अधूरी रहेगी।
समान काम के लिए समान वेतन और काम की सुरक्षा — ये दो स्तंभ भारत को एक न्यायसंगत और समावेशी राष्ट्र बनाने की दिशा में अनिवार्य हैं।