IndianLawNotes.com

न्याय (Justice) की अवधारणा : विभिन्न न्यायविदों के दृष्टिकोण से एक विवेचन

न्याय (Justice) की अवधारणा : विभिन्न न्यायविदों के दृष्टिकोण से एक विवेचन


प्रस्तावना

न्याय (Justice) मानव सभ्यता के लिए एक केंद्रीय मूल्य है। यह वह आधार है जिस पर विधि (Law), नैतिकता (Morality), और सामाजिक संगठन खड़े होते हैं। “न्याय” शब्द अपने आप में बहुस्तरीय और गहन है, जिसकी परिभाषा समय, समाज और विचारकों के दृष्टिकोण से बदलती रही है। प्राचीन ग्रीक दार्शनिकों से लेकर आधुनिक विधि-तत्वज्ञों तक, प्रत्येक ने न्याय को भिन्न दृष्टिकोण से परिभाषित किया है। किसी के लिए न्याय समानता (Equality) है, तो किसी के लिए निष्पक्षता (Fairness), किसी के लिए प्रतिशोध (Retribution), तो किसी के लिए सामाजिक कल्याण (Social Welfare)

न्याय की अवधारणा केवल विधिक (Legal) संदर्भ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नैतिक (Moral), राजनीतिक (Political), और सामाजिक (Social) मूल्यों से गहराई से जुड़ी है।

इस उत्तर में हम विभिन्न न्यायविदों जैसे प्लेटो, अरस्तु, सिसरो, थॉमस अक्विनास, बेंथम, जॉन रॉल्स, साल्मंड, केल्सन, डगलस, फ्राइडमैन आदि के दृष्टिकोण से न्याय की व्याख्या करेंगे और उनके विचारों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करेंगे।


1. प्लेटो (Plato) का न्याय सिद्धांत

प्लेटो ने अपनी पुस्तक “The Republic” में न्याय की व्यापक व्याख्या दी।

  • प्लेटो के अनुसार, न्याय का अर्थ है—”हर व्यक्ति वही कार्य करे जिसके लिए वह सर्वश्रेष्ठ उपयुक्त है और दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप न करे।”
  • उन्होंने समाज को तीन वर्गों में विभाजित किया—
    1. दार्शनिक/शासक (Philosophers/Rulers) – जिनका कार्य शासन करना है।
    2. सैनिक (Auxiliaries/Warriors) – जिनका कार्य राज्य की रक्षा करना है।
    3. उत्पादक वर्ग (Producers/Farmers/Artisans) – जिनका कार्य उत्पादन करना है।
  • प्लेटो के अनुसार, जब प्रत्येक वर्ग अपने-अपने कर्तव्य का पालन करता है और दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करता, तभी समाज में न्याय स्थापित होता है।

👉 सारतः प्लेटो ने कर्तव्य-आधारित न्याय (Duty-Oriented Justice) की अवधारणा दी।


2. अरस्तु (Aristotle) का न्याय सिद्धांत

अरस्तु ने न्याय को “समानता” (Equality) और “निष्पक्षता” (Fairness) के रूप में देखा।

उन्होंने न्याय को दो भागों में विभाजित किया—

  1. वितरणात्मक न्याय (Distributive Justice) – इसमें समाज की संपत्ति, अधिकारों और पदों का वितरण व्यक्तियों की योग्यता और योगदान के आधार पर किया जाता है।
    • उदाहरण: अधिक प्रतिभाशाली व्यक्ति को अधिक अवसर और पुरस्कार मिलना।
  2. सुधारात्मक न्याय (Corrective Justice) – इसमें अन्याय या असमानता होने पर संतुलन स्थापित किया जाता है।
    • उदाहरण: अपराध करने पर दंड देना, या अनुचित लाभ को वापस कराना।

👉 अरस्तु का न्याय सिद्धांत आज भी आधुनिक विधि और राजनीति विज्ञान का आधार है।


3. सिसरो (Cicero) का न्याय सिद्धांत

सिसरो ने न्याय को प्राकृतिक विधि (Natural Law) के आधार पर परिभाषित किया।

  • उनके अनुसार, न्याय का अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति को उसका “Due” (हक) प्रदान करना।
  • सिसरो का मानना था कि न्याय किसी राज्य की बनाई गई विधि पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह प्रकृति और तर्क (Reason) से उत्पन्न होता है।

👉 सिसरो ने न्याय को सार्वभौमिक नैतिक व्यवस्था से जोड़ा।


4. थॉमस अक्विनास (Thomas Aquinas) का दृष्टिकोण

मध्यकालीन ईसाई विचारक थॉमस अक्विनास ने न्याय को दैवीय इच्छा (Divine Will) और प्राकृतिक विधि से जोड़ा।

  • उनके अनुसार, न्याय का अर्थ है—
    1. प्रत्येक व्यक्ति को उसका अधिकार देना।
    2. समाज में सामान्य भलाई (Common Good) को बढ़ावा देना।

👉 अक्विनास ने न्याय को धर्म (Religion) और नैतिकता (Morality) से जोड़कर देखा।


5. जेरमी बेंथम (Jeremy Bentham) का न्याय सिद्धांत

बेंथम ने उपयोगितावाद (Utilitarianism) के आधार पर न्याय की अवधारणा दी।

  • उनके अनुसार, “न्याय वही है जो अधिकतम लोगों के लिए अधिकतम सुख (Greatest Happiness of the Greatest Number) सुनिश्चित करे।”
  • बेंथम के लिए न्याय का मूल्यांकन व्यक्तिगत अधिकारों से नहीं, बल्कि सामाजिक उपयोगिता (Social Utility) से किया जाना चाहिए।

👉 उनके अनुसार, न्याय एक परिणामवादी (Consequentialist) अवधारणा है।


6. जॉन रॉल्स (John Rawls) का न्याय सिद्धांत

आधुनिक समय में जॉन रॉल्स ने अपनी पुस्तक “A Theory of Justice” (1971) में न्याय को Fairness (निष्पक्षता) के रूप में परिभाषित किया।

  • रॉल्स ने “Original Position” और “Veil of Ignorance” की कल्पना प्रस्तुत की।
  • इसके अनुसार, यदि व्यक्ति बिना यह जाने कि भविष्य में उसका समाज में क्या स्थान होगा (अमीर या गरीब, शक्तिशाली या कमजोर), न्याय के सिद्धांतों का चुनाव करे, तो चुने गए सिद्धांत सबसे निष्पक्ष होंगे।

रॉल्स के दो मुख्य सिद्धांत—

  1. स्वतंत्रता का सिद्धांत (Principle of Liberty) – प्रत्येक व्यक्ति को समान मूलभूत स्वतंत्रताएँ मिलनी चाहिए।
  2. अंतर का सिद्धांत (Difference Principle) – समाज में असमानताएँ तभी न्यायसंगत हैं जब वे सबसे कमजोर वर्ग के हित में हों।

👉 रॉल्स का सिद्धांत आधुनिक लोकतांत्रिक समाज और कल्याणकारी राज्य का आधार है।


7. साल्मंड (Salmond) का न्याय दृष्टिकोण

साल्मंड ने न्याय को विधि और राज्य से गहराई से जोड़ा।

  • उनके अनुसार, न्याय का वास्तविक अर्थ है—विधि का स्थिर और नियमित अनुपालन।
  • साल्मंड के लिए न्याय एक व्यावहारिक विधिक अवधारणा (Legal Concept) थी, जो सामाजिक व्यवस्था और विधिक प्रणाली पर आधारित है।

👉 उन्होंने न्याय को नैतिक मूल्य से कम, और विधिक प्रक्रिया से अधिक जोड़ा।


8. केल्सन (Hans Kelsen) का दृष्टिकोण

केल्सन ने न्याय को एक आदर्श (Ideal) माना, लेकिन अपनी Pure Theory of Law में इसे विधि से अलग रखा।

  • उनके अनुसार, न्याय एक व्यक्तिपरक और सापेक्ष अवधारणा (Subjective and Relative Concept) है।
  • एक विधिक व्यवस्था न्यायसंगत तभी कही जा सकती है जब वह सामान्य नियमों के अनुसार समान रूप से लागू की जाए।

👉 सारतः, केल्सन के लिए न्याय की कोई अंतिम सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है।


9. डगलस और फ्राइडमैन का दृष्टिकोण

  • डगलस के अनुसार, न्याय का वास्तविक स्वरूप केवल विधिक निर्णयों में नहीं, बल्कि सामाजिक वास्तविकताओं में निहित है।
  • फ्राइडमैन ने कहा कि न्याय एक गतिशील अवधारणा है, जो समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है।

10. भारतीय संदर्भ में न्याय

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में न्याय को विशेष महत्व दिया गया है—

  • सामाजिक न्याय (Social Justice) – समाज में समान अवसर और सम्मान।
  • आर्थिक न्याय (Economic Justice) – संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण।
  • राजनीतिक न्याय (Political Justice) – लोकतांत्रिक अधिकारों की समानता।

👉 भारतीय न्याय-व्यवस्था ने अरस्तु, रॉल्स और बेंथम की अवधारणाओं को मिलाकर न्याय की एक व्यापक समझ प्रस्तुत की है।


तुलनात्मक सारांश (Comparative Table)

न्यायविद न्याय की परिभाषा विशेषता
प्लेटो हर वर्ग/व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन करे कर्तव्य-आधारित न्याय
अरस्तु समानता और संतुलन वितरणात्मक और सुधारात्मक न्याय
सिसरो प्रत्येक को उसका “Due” प्राकृतिक विधि आधारित न्याय
थॉमस अक्विनास सामान्य भलाई और धर्म आधारित न्याय दैवीय और नैतिक आधार
बेंथम अधिकतम सुख का सिद्धांत उपयोगितावादी न्याय
रॉल्स न्याय = निष्पक्षता स्वतंत्रता व अंतर का सिद्धांत
साल्मंड विधि का स्थिर अनुपालन विधिक दृष्टिकोण
केल्सन न्याय = सापेक्ष आदर्श Pure Theory of Law
भारतीय संविधान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय व्यापक व बहुआयामी

निष्कर्ष

न्याय की अवधारणा बहुआयामी और गतिशील है।

  • प्लेटो और अरस्तु ने इसे कर्तव्य और समानता से जोड़ा।
  • सिसरो और अक्विनास ने इसे प्राकृतिक और नैतिक व्यवस्था से जोड़ा।
  • बेंथम और रॉल्स ने इसे सुख और निष्पक्षता से जोड़ा।
  • साल्मंड और केल्सन ने इसे विधिक व्यवस्था से जोड़ा।

आधुनिक युग में न्याय को केवल विधिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाता है। भारतीय संविधान में न्याय की यही समग्र और संतुलित परिभाषा परिलक्षित होती है।