“न्याय के प्रहरी: वकीलों की स्वतंत्रता और उनका संवैधानिक अधिकार”
“हम वकील हैं, हमें न कोई डरा सकता है, न रोक सकता है।”
यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि भारत के न्यायिक तंत्र की आत्मा को दर्शाने वाला घोषवाक्य है। वकील, न केवल न्यायालय में बल्कि समाज के हर उस कोने में जहां अन्याय पसरा हो, वहां न्याय का दीप जलाने का कार्य करते हैं। इस दायित्व और अधिकार का मूल आधार भारतीय संविधान और विधियों में निहित है।
अनुच्छेद 19(1)(g) – व्यवसाय की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत प्रत्येक नागरिक को यह मौलिक अधिकार प्राप्त है कि वह कोई भी व्यवसाय, व्यापार या पेशा स्वतंत्र रूप से अपना सके। यह अधिकार वकीलों पर भी समान रूप से लागू होता है। इसका अर्थ है कि वकील अपनी सेवाएं किसी भी न्यायिक या अर्ध-न्यायिक मंच पर स्वतंत्र रूप से दे सकते हैं, जब तक कि वह विधि द्वारा उचित रूप से प्रतिबंधित न किया गया हो।
एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 30 – पूरे भारत में वकालत का अधिकार
एडवोकेट्स एक्ट की धारा 30 स्पष्ट रूप से वकीलों को यह कानूनी अधिकार देती है कि वे भारत के किसी भी न्यायालय, न्यायाधिकरण या प्राधिकरण के समक्ष अपनी प्रैक्टिस कर सकते हैं। यह धारा वकीलों की पेशेवर स्वतंत्रता को विधिक मान्यता देती है और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सेवाएं देने का संवैधानिक संरक्षण प्रदान करती है।
भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा 32 – अभियोजन में सहयोग
BNSS (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 32 वकीलों को अभियोजन में सहायता करने का प्रावधान देती है, विशेषकर उन मामलों में जहां पीड़ित को उचित प्रतिनिधित्व की आवश्यकता हो। यह वकीलों की भूमिका को केवल अदालत तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उन्हें समाज के कमजोर वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करने का संवैधानिक अवसर प्रदान करती है।
वकील – लोकतंत्र के स्तंभ
वकील न केवल कानून के ज्ञाता होते हैं, बल्कि वे लोकतंत्र के सशक्त स्तंभ भी होते हैं। उनका कार्य केवल कानूनी तर्क देना नहीं होता, बल्कि वे जनसाधारण की आवाज बनकर अन्याय के विरुद्ध खड़े होते हैं। उनका दायित्व है कि वे नागरिक अधिकारों की रक्षा करें, संविधान की गरिमा बनाए रखें और समाज में न्याय और समानता की भावना को सुदृढ़ करें।
निष्कर्ष
जब कोई वकील यह कहता है –
“हम वकील हैं, हमें न कोई डरा सकता है, न रोक सकता है।”
तो यह केवल आत्मबल नहीं, बल्कि संविधान और कानूनों द्वारा प्रदत्त वह शक्ति है, जो उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने, पीड़ितों की आवाज़ बनने, और समाज में विधिक जागरूकता फैलाने की स्वतंत्रता देती है। यह गौरव की बात है कि हमारे संविधान, हमारे अधिनियम और हमारी न्याय प्रणाली वकीलों को वह मंच देते हैं, जहां वे निडर होकर न्याय के लिए संघर्ष कर सकें।