न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता: भारतीय न्यायपालिका की भूमिका का विश्लेषण (Judicial Review and Judicial Activism: An Analysis of the Role of Indian Judiciary)

न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता: भारतीय न्यायपालिका की भूमिका का विश्लेषण
(Judicial Review and Judicial Activism: An Analysis of the Role of Indian Judiciary)


प्रस्तावना (Introduction)

भारतीय संविधान की मूल संरचना में न्यायपालिका को स्वतंत्र और प्रभावशाली बनाया गया है। इसकी दो महत्वपूर्ण शक्तियाँ—न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) और न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism)—संविधान की सर्वोच्चता, विधायिका और कार्यपालिका की सीमाओं का निर्धारण, तथा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने हेतु स्थापित की गई हैं। ये दोनों अवधारणाएँ भारतीय लोकतंत्र को संतुलित और न्यायपूर्ण बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


न्यायिक समीक्षा की परिभाषा (Definition of Judicial Review)

न्यायिक समीक्षा का तात्पर्य न्यायपालिका की उस शक्ति से है जिसके द्वारा वह यह निर्धारित करती है कि संसद या राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाया गया कोई भी कानून संविधान के अनुरूप है या नहीं। यदि कोई कानून संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध पाया जाता है, तो न्यायालय उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है।

👉 यह सिद्धांत सर्वप्रथम अमेरिका के Marbury v. Madison (1803) मामले में स्थापित हुआ और भारत में इसे संविधान के अनुच्छेद 13, 32, 226 आदि के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है।


न्यायिक सक्रियता की परिभाषा (Definition of Judicial Activism)

न्यायिक सक्रियता वह प्रक्रिया है जिसमें न्यायालय विधायिका या कार्यपालिका की निष्क्रियता या असंवेदनशीलता की स्थिति में सक्रिय होकर जनहित से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप करता है और नीतिगत निर्देश देता है। इसका उद्देश्य समाज में न्याय, समानता और नागरिक अधिकारों की रक्षा करना है।

👉 PIL (Public Interest Litigation) और Suo Moto कार्यवाही न्यायिक सक्रियता के दो प्रमुख उपकरण हैं।


न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता में अंतर (Difference Between Judicial Review and Judicial Activism)

तत्व न्यायिक समीक्षा न्यायिक सक्रियता
उद्देश्य कानून की संवैधानिकता की जांच कार्यपालिका/विधायिका की निष्क्रियता की पूर्ति
स्वरूप निष्क्रिय/नकारात्मक सक्रिय/सृजनात्मक
आधार संविधान का पालन समाजिक न्याय एवं जनहित
प्रमुख उपकरण अनुच्छेद 13, 32, 226 PIL, Suo Moto

भारत में न्यायिक समीक्षा का विकास (Development of Judicial Review in India)

भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार (भाग III), और अनुच्छेद 13 न्यायिक समीक्षा को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं। प्रमुख निर्णयों में—

  1. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973):
    न्यायालय ने संविधान की मूल संरचना सिद्धांत को मान्यता दी और कहा कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन मूल संरचना को नहीं बदल सकती।
  2. मीनर्वा मिल्स मामला (1980):
    न्यायिक समीक्षा को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना गया।

भारत में न्यायिक सक्रियता के उदाहरण (Examples of Judicial Activism in India)

न्यायिक सक्रियता ने भारतीय समाज में कई ऐतिहासिक परिवर्तन लाए हैं:

  1. हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979):
    कैदियों के अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया।
  2. एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ:
    पर्यावरण सुरक्षा, प्रदूषण नियंत्रण, औद्योगिक जिम्मेदारी जैसे विषयों पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए।
  3. विश्वा लोचन मदन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया:
    फर्जी तांत्रिकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए निर्देश।
  4. Vishakha बनाम राजस्थान राज्य (1997):
    कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ दिशा-निर्देश (Vishakha Guidelines) जारी किए गए।

न्यायिक सक्रियता के लाभ (Advantages of Judicial Activism)

  • कमजोर वर्गों की रक्षा
  • शासन के दोषों की पहचान और समाधान
  • मानवाधिकारों की सुरक्षा
  • संवैधानिक नैतिकता की रक्षा

न्यायिक सक्रियता की आलोचना (Criticism of Judicial Activism)

  • न्यायपालिका की Overreach या अतिक्रमण
  • लोकतंत्र के तीन स्तंभों के संतुलन में बाधा
  • न्यायपालिका की सीमाओं का अतिक्रमण
  • नीति निर्माण में न्यायालय की भूमिका विवादास्पद

निष्कर्ष (Conclusion)

भारतीय लोकतंत्र में न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता दोनों ही महत्वपूर्ण यंत्र हैं जो संविधान की गरिमा और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं। जहाँ न्यायिक समीक्षा विधायी कार्यों की संवैधानिकता सुनिश्चित करती है, वहीं न्यायिक सक्रियता समाज में न्याय और समानता को सुदृढ़ करने का प्रयास करती है। दोनों शक्तियों का विवेकपूर्ण प्रयोग ही भारत को एक न्यायसंगत और उत्तरदायी राष्ट्र बनाने में सहायक सिद्ध हो सकता है।