“न्यायिक आदेश की अवहेलना और आधार की अनिवार्यता पर रोक: Microfibers Pvt. Ltd बनाम यस बैंक लिमिटेड (सुप्रीम कोर्ट – 2025)”

शीर्षक:
“न्यायिक आदेश की अवहेलना और आधार की अनिवार्यता पर रोक: Microfibers Pvt. Ltd बनाम यस बैंक लिमिटेड (सुप्रीम कोर्ट – 2025)”


भूमिका:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने Justice K.S. Puttaswamy बनाम भारत संघ (2018) के ऐतिहासिक फैसले में मान्यता दी थी। इस निर्णय के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया गया था कि आधार संख्या का उपयोग सीमित और स्वैच्छिक परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, विशेषकर तब जब बात नागरिकों और संस्थाओं की निजता तथा सुविधा की हो।

हाल ही में Microfibers Pvt. Ltd बनाम यस बैंक लिमिटेड के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसी सिद्धांत को दोहराते हुए कहा कि बैंक द्वारा बैंक खाता खोलने के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता थोपना सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की सीधी अवहेलना है। इस निर्णय ने बैंकिंग प्रणाली में नागरिक अधिकारों के उल्लंघन और व्यावसायिक संस्थाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार को उजागर किया है।


मामले की पृष्ठभूमि:
Microfibers Pvt. Ltd एक निजी कंपनी है, जिसने यस बैंक लिमिटेड में अपना कॉर्पोरेट खाता खोलने के लिए आवेदन किया। बैंक ने आवेदन प्रक्रिया को तब तक लंबित रखा जब तक कंपनी आधार कार्ड की प्रति उपलब्ध नहीं करवा सकी। जबकि कंपनी ने अन्य वैकल्पिक केवाईसी (KYC) दस्तावेजों जैसे पैन कार्ड, कंपनी पंजीकरण प्रमाणपत्र, निदेशकों के पहचान प्रमाण, GST पंजीकरण आदि प्रस्तुत कर दिए थे।

कंपनी ने इस आधार पर हाईकोर्ट का रुख किया कि:

  1. बैंक आधार को अनिवार्य बना रहा है, जबकि यह सुप्रीम कोर्ट के Puttaswamy निर्णय के बाद गैरकानूनी है।
  2. खाता खुलने में हुई देरी के कारण कंपनी को व्यावसायिक हानि हुई और उसका वित्तीय लेन-देन प्रभावित हुआ।

न्यायालय का अवलोकन:
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:

  • सुप्रीम कोर्ट ने Puttaswamy फैसले में स्पष्ट किया था कि आधार को निजी कंपनियों के साथ साझा करना अनिवार्य नहीं हो सकता।
  • बैंक, जो एक निजी संस्था है, किसी ग्राहक से आधार कार्ड की अनिवार्यता नहीं थोप सकता।
  • कंपनी के पास सभी आवश्यक वैकल्पिक दस्तावेज़ मौजूद थे, जिनके आधार पर खाता खोला जा सकता था।
  • बैंक द्वारा आधार की ज़िद और खाता खोलने में हुई अनुचित देरी एक प्रकार का न्यायिक आदेश की अवहेलना और सेवा में लापरवाही है।

निर्णय और मुआवजा:
न्यायालय ने बैंक के व्यवहार को अनुचित, गैर-जिम्मेदाराना और संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में रखा। इसके आधार पर न्यायालय ने:

  • यस बैंक लिमिटेड को ₹50,000 की प्रतिपूर्ति राशि (Compensation) देने का निर्देश दिया, जो कि वादी कंपनी को हुई मानसिक, व्यापारिक एवं कानूनी क्षति के एवज़ में था।
  • यह राशि बैंक को स्वेच्छा से भुगतान करने हेतु 4 सप्ताह की अवधि में प्रदान करने का निर्देश दिया गया।

न्यायिक महत्व:
इस निर्णय के निम्नलिखित व्यापक प्रभाव हैं:

  1. निजता के अधिकार की पुनर्पुष्टि: यह निर्णय नागरिकों और कंपनियों को उनकी जानकारी और पहचान से संबंधित अधिकारों की रक्षा प्रदान करता है।
  2. बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता: यह फैसला बैंकों को उनके केवाईसी मानकों की समीक्षा के लिए प्रेरित करेगा, जिससे वे अनावश्यक दस्तावेज़ों की मांग बंद करें।
  3. न्यायिक आदेशों की अवहेलना पर चेतावनी: यह एक स्पष्ट संदेश है कि यदि कोई संस्था सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की अनदेखी करती है, तो उसे कानूनी परिणाम भुगतने होंगे।
  4. कॉर्पोरेट स्वतंत्रता की रक्षा: कंपनी के अधिकारों की रक्षा यह दर्शाती है कि न्यायालय केवल व्यक्तियों के नहीं, संस्थाओं के भी संवैधानिक अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

Puttaswamy निर्णय से संबंध:
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि:

“आधार कार्ड केवल उन योजनाओं के लिए अनिवार्य हो सकता है जो सरकारी सब्सिडी या लाभों से संबंधित हों। निजी संस्थाओं को आधार मांगने का कोई वैध अधिकार नहीं है।”

इस संदर्भ में Microfibers Pvt. Ltd के मामले में बैंक का व्यवहार न केवल कानून की अवहेलना था, बल्कि ग्राहकों पर अनावश्यक दबाव बनाने का उदाहरण भी।


निष्कर्ष:
Microfibers Pvt. Ltd बनाम यस बैंक लिमिटेड का निर्णय न केवल कॉर्पोरेट स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक मजबूत कदम है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 – “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” – की न्यायिक व्याख्या का सटीक अनुप्रयोग भी है।

यह फैसला एक नज़ीर (precedent) बनता है उन सभी संस्थाओं के लिए जो अपनी नीतियों के माध्यम से ग्राहकों पर अवैधानिक रूप से दस्तावेज़ थोपने का प्रयास करती हैं। यह न्यायिक चेतावनी है कि किसी भी संस्था को संविधान से ऊपर नहीं रखा जा सकता।