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“न्यायालय में ज्ञान खरीदना या तैयारी से आना? — पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का वकीलों को चेतावनी पत्र: ‘AI/Google’ युग में पेशीनवरी की मर्यादा”

“न्यायालय में ज्ञान खरीदना या तैयारी से आना? — पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का वकीलों को चेतावनी पत्र: ‘AI/Google’ युग में पेशीनवरी की मर्यादा”


प्रस्तावना

आधुनिक युग में तकनीक ने हमारी दैनिक गतिविधियों को तीव्र, सुविधाजनक और सूचना-प्रधान बना दिया है। लेकिन क्या हर क्षेत्र में इसका उपयोग समान रूप से स्वीकृत और सकारात्मक है? न्यायालय, जहाँ वाद-विवाद, तर्क-वितर्क और सिद्धांतों की भूमिका प्रमुख होती है, वहाँ तकनीक का दुरुपयोग या अनुचित उपयोग गंभीर नैतिक, न्यायिक और पेशागत प्रश्न खड़े कर सकता है। इस चेतावनी का नवीनतम उदाहरण है — पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा वकीलों को कड़ी नसीहत देना, जब उन्होंने सुनवाई के बीच मोबाइल फोन पर AI/Google की सहायता से न्यायालय के प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश की। इस घटना ने न्यायालय के अंदर जारी शिष्टाचार, वकीलों की तैयारी और न्यायिक गरिमा पर नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

इस लेख में हम निम्न मुख्य बिंदुओं पर विशद दृष्टि डालेंगे:

  1. घटना एवं निर्णय का संक्षिप्त परिचय
  2. उच्च न्यायालय की आलोचना: क्या कहा गया?
  3. घटना के कानूनी, व्यावसायिक एवं नैतिक पहलू
  4. तकनीक (AI/Google) और न्यायालय की सीमा
  5. वकीलों की तैयारी और पेशागत अनुशासन
  6. चुनौतियाँ, बहस एवं विरोधी दृष्टिकोण
  7. सुझाव एवं निष्कर्ष

घटना एवं उच्च न्यायालय का निर्णय

पिछले दिनों, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने वकीलों को फटकार लगाई क्योंकि सुनवाई के दौरान वे मोबाइल फोन निकाल कर AI टूल्स या Google खोज की सहायता लेने की कोशिश कर रहे थे, जब न्यायालय ने उनसे तुरंत प्रस्‍न किया। न्यायमूर्ति संजय वशिष्ठ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसे “निरुत्तरदायी एवं अनुशासनहीन” व्यवहार करार देते हुए, एक वकील का मोबाइल फोन जब्त कर लिया।

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि:

  • मोबाइल फोन का उपयोग सुनवाई के दौरान तर्क-वितर्क के बीच ज्ञान प्राप्त करने के लिए करना “स्वीकार्य नहीं” है।
  • यदि वकील को किसी तथ्यों, न्यायनिर्देशकों या विधि की जानकारी की आवश्यकता हो, तो उस तैयारी पहले से की जानी चाहिए थी — न कि सुनवाई के दौरान खोजने की प्रवृत्ति।
  • न्यायालय ने यह अंतर किया कि iPads, लैपटॉप आदि को पेशेवर उपकरण माना जा सकता है, लेकिन मोबाइल फोन इस प्रकार के उपयोग के लिए स्वीकार्य नहीं हैं।
  • आदेश जारी कर कहा गया कि यह निर्णय बार एसोसिएशन को भी प्रसारित किया जाए, ताकि वकीलों को यह चेतना हो कि न्यायालय ऐसे व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करेगा।
  • यह मामला आगे की तारीख पर पुनर्सुनवाई हेतु रखा गया है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह पारित आदेश इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वकीलों को यह संदेश देता है कि न्यायालय को तकनीक के नाम पर “तत्काल ज्ञान” की आपूर्ति करना वकील की तैयारी की कमी को छुपाने का माध्यम नहीं बन सकती।


न्यायालय की आलोचना: तर्क एवं आशंकाएँ

उच्च न्यायालय द्वारा इसे आलोचना करने के पीछे कई तर्क हैं, जो हम नीचे विस्तार से देख सकते हैं:

  1. अनुचित आचरण और विशेषज्ञता का अभाव
    न्यायालय ने वकीलों के इस व्यवहार को “अशिष्ट” और “गैर पेशेवर” माना। जब वकील सुनवाई के बीच अपने मोबाइल पर खोज कर रहे हों, तो यह दर्शाता है कि उन्होंने पर्याप्त तैयारी नहीं की।
  2. श्रोताओं और न्यायालय का समय बर्बाद होना
    न्यायालय ने यह चिंता जताई कि कभी-कभी सुनवाई रुक जाती है, क्योंकि वकील मोबाइल से जानकारी खोजने में समय लेते हैं। न्यायालय को प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा करनी पड़ती है — इस प्रकार सुनवाई की गति बाधित होती है।
  3. प्रस्तुति और तर्क-वितर्क की गुणवत्ता पर असर
    वकील यदि अपनी दलील सुनवाई के बीच खोजे गए तर्कों पर आधारित करेगा, तो उसकी प्रस्तुति सतही और अनजान स्रोतों पर आधारित हो सकती है। न्यायालय ने यह संकेत दिया कि तर्क-वितर्क की गहराई और गंभीरता बनी रहनी चाहिए।
  4. न्यायालय की गरिमा और शिष्टाचार
    न्यायालय को यह उम्मीद है कि वकील अपने पेशे और न्यायालय की गरिमा का सम्मान करेंगे। मोबाइल खोज के इस उपयोग को न्यायालय ने मानदंडों का उल्लंघन माना।
  5. प्रणालीगत संदर्भ
    न्यायालय ने यह तर्क दिया कि यदि वकील को किसी तथ्य, संख्या या निर्णय की आवश्यकता हो, तो अभ्यास के समय ही उसे समेकित करना चाहिए था—not hearing के दौरान।

घटना के कानूनी, व्यावसायिक और नैतिक पहलू

कानूनी दृष्टिकोण

  • वकील पेशेवर कर्तव्य और अदालत के प्रति उत्तरदायित्व से बंधे हैं। उन कर्तव्यों में न्यायालय की अखंडता, समय पालन, तर्क-वितर्क की विश्वसनीयता आदि शामिल हैं।
  • भारतीय वकील संघ और सम्बद्ध Bar Council के आचार संहिताएँ वकीलों को यह अपेक्षित करती हैं कि वे न्यायालय के आदेशों और शिष्टाचार का पालन करें।
  • यदि कानून किसी वकील को यह निर्देश देता हो कि वह सुनवाई के दौरान केवल तैयार दलीले प्रस्तुत करें, तो मोबाइल उपयोग उस निर्देश का उल्लंघन हो सकता है।

व्यावसायिक एवं पेशागत पक्ष

  • वकील का पेशा तैयारी पर आधारित है। प्रत्येक प्रश्न या समस्या का अनुमान लगाकर उचित शोध, फैसले, पूर्व अभिदान (precedent) इकट्ठा करने की जिम्मेदारी वकील की होती है।
  • अगर वकील सुनवाई के समय मोबाइल खोज पर निर्भर हो गया, तो यह संकेत होगा कि उसने पर्याप्त तैयारी नहीं की — और इस तरह वह अपने पक्ष का भरोसा जनता और न्यायालय दोनों से खो सकता है।
  • पेशागत स्तर पर, वकीलों की प्रतिष्ठा और विश्वास घट सकता है यदि उन्हें यह माना जाए कि वे तर्क-वितर्क की बजाय “Google-रन दलीलें” प्रस्तुत करते हैं।

नैतिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोण

  • न्यायालय और वकील के बीच पारस्परिक विश्वास और गरिमा की अपेक्षा होती है। वकील यदि मोबाइल पर खोज कर जवाब देता है, तो यह भरोसे और पेशेवर गरिमा को आघात पहुँचा सकता है।
  • यह पूछने योग्य है कि तकनीक कहाँ तक हमारे तर्कों और निर्णय-क्षमता का प्रतिनिमिर्माण करती है — क्या वकील की बुद्धि या तर्क की जगह AI का निर्भर होना न्यायालय के मूल सिद्धांतों के अनुकूल है?
  • न्यायालय में न्यायलयीन बहस की प्रकृति अक्सर मानवीय विवेक, न्यायबोध, विवेकाधीन विश्लेषण और पूर्व अनुभव पर निर्भर करती है — उपकरण केवल सहायता कर सकते हैं, स्थान नहीं ले सकते।

तकनीक (AI / Google) और न्यायालय: सीमा एवं भूमिका

तकनीक — विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ऑनलाइन खोज इंजन जैसे Google — शोध, संदर्भ, निर्णय-समूह विश्लेषण आदि में उपयोगी हो सकती हैं। लेकिन न्यायालयीन सुनवाई के बीच उनका उपयोग सीमित और नियंत्रित होना चाहिए। नीचे इस सीमा का विवेचन है:

  1. तत्काल ज्ञान vs न्यायिक विवेक
    उपकरण तुरंत जानकारी दे सकते हैं — लेकिन वह जानकारी संदर्भ, सन्दर्भ-सापेक्षता और सटीकता की कसौटी पर सही हो या न हो, इसकी गारंटी नहीं होती।
    AI मॉडल कभी-कभी “hallucinations” या मिथ्या जानकारी उत्पन्न कर सकते हैं।
  2. संसाधन के रूप में उपयोग
    तकनीक सर्वोत्तम परिणाम तब देती है जब वह वकील या न्यायाधीश द्वारा संदर्भ, जांच और व्याख्या के उपरांत उपयोग में लाई जाए — न कि तर्क की मुख्य धारा बन जाए।
  3. विश्वसनीयता और प्रमाणिकता
    न्यायालय अपेक्षा करता है कि मान्य स्रोत, निर्णय, अधिनियम आदि प्रस्तुत किए जाएँ। AI-निर्मित स्रोतों की प्रमाणिकता और विश्वसनीयता पर प्रश्न उठ सकते हैं।
  4. नैतिक एवं जवाबदेही
    यदि वकील AI की जानकारी प्रस्तुत करें और वह गलत निकले, तो कौन जवाबदेह होगा? वकील को ही जवाबदेह माना जाना चाहिए।
  5. न्यायालय के उपकरणों एवं अधिनियम की स्वीकार्यता
    यदि न्यायालय खुद (सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय) AI/ML उपकरणों का परिचालन करता है — जैसे SUPACE नामक AI सहायक उपकरण — तो उसका उपयोग नियंत्रित और न्यायाधीश की समीक्षा के अधीन होना चाहिए।
    लेकिन वकील द्वारा सुनवाई के बीच अपनी निजी खोज की स्वतंत्रता न्यायालयीन शिष्टाचार और प्रक्रिया के अनुरूप सीमित होनी चाहिए।

वकीलों की तैयारी और पेशागत अनुशासन

इस घटना ने यह उजागर किया कि वकील किस तरह से अपनी तैयारी प्रक्रिया को पुनर्मूल्यांकन करें:

  1. पूर्व तैयारी, अनुसंधान और रिकॉर्ड संकलन
    प्रत्येक मामला शुरू होते ही वकील को संभावित प्रश्न-प्रतिक्रिया (Queries & Responses) सूची बनानी चाहिए और इसमें मान्य निर्णय, कानून, तथ्य आदि शामिल होने चाहिए।
    DM, judgments, precedent notes, शॉर्ट पंखे आदि तैयारी सूची में शामिल हो सकते हैं।
  2. मॉक प्रश्न-उत्तर सत्र
    मुकदमे से पहले प्रशिक्षित सहयोगियों या भागीदारों के साथ सवाल-उत्तर सत्र करना — जिससे सुनवाई के दौरान अप्रत्याशित प्रश्नों का सामना बेहतर तरीके से किया जा सके।
  3. संक्षिप्त तर्क-संग्रह
    वकील को हल्के संदर्भ या चिट शीट (but कानूनी और स्वीकृत) तैयार रखनी चाहिए, जिसमें मुख्य निर्णय और तर्क सूचीबद्ध हों।
  4. शिष्टाचार एवं अनुशासन
    • सुनवाई के दौरान मोबाइल निकालना, खोज करना या स्क्रीन देखना शिष्टाचार की दिशा में नकारात्मक माना जाना चाहिए।
    • यदि वकील को किसी जानकारी की आवश्यकता हो, तो उसे पहले से तैयारी में समाहित करना चाहिए।
    • वकील को न्यायालय से अनुमति लेकर ही उपकरण (iPad/laptop) उपयोग करना चाहिए और यदि आवश्यकता हो, उसकी स्वीकृति लेनी चाहिए।
  5. निरंतर अधिगम
    वकील को समय-समय पर नवीन निर्णय, विधि संशोधन, न्यायशास्त्र आदि का अध्ययन करते रहना चाहिए, ताकि वह नवीनतम कानूनी प्रवृत्तियों से अवगत हो।

चुनौतियाँ, विवाद और विरोधी दृष्टिकोण

इस न्यायालयीन फैसले के विरोध और चुनौतियाँ भी सामने आती हैं, जिनका विवेचन आवश्यक है:

विरोधी दृष्टिकोण

  1. तकनीक को निराधार रूप में दमन करना
    कुछ वकील कहते हैं कि मोबाइल फोन सिर्फ एक उपकरण है — जैसे अन्य आवश्यक उपकरण — और यदि उपयोग संयम और मर्यादा में हो, तो निषेध नहीं किया जाना चाहिए।
    कुछ लोग तर्क देते हैं कि वकील पहले से ही मोबाइल पर summons, नोटिस, दस्तावेज आदि भेजते हैं, इसलिए उन्हें पूरी तरह से निषिद्ध करना अनावश्यक कठोर हो सकता है।
  2. युवा वकीलों की निर्भरता
    आज की युवा पीढ़ी ने डिजिटल उपकरणों का अधिक उपयोग किया है — वे AI/online स्रोतों पर अधिक निर्भर हो सकते हैं। इस फैसले से उन्हें असमर्थ या पिछड़ा महसूस हो सकता है।
  3. उपकरण स्वीकार्यता
    यदि iPad या लैपटॉप स्वीकार्य हैं, तो मोबाइल भी एक छोटा उपकरण ही तो है — अंतर केवल आकार का है। न्यायालय ने इसे अलग क्यों माना? यह तर्क विरोधियों द्वारा उठाया जाता है।

चुनौतियाँ

  • न्यायालय की संसाधन सीमाएँ: यदि सभी वकील इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ले जाकर प्रस्तुत करना चाहें, तो न्यायालय को इन्फ्रास्ट्रक्चर (Wi-Fi, सुरक्षा आदि) भी तैयार करना होगा।
  • टेक्नोलॉजी-डिजिटली विभाजन: सभी वकील तकनीकी उपकरणों से सुसज्जित नहीं हो सकते — विशेषकर ग्रामीण या पिछड़े इलाके से आने वाले वकील।
  • नियंत्रण और निगरानी: कैसे सुनिश्चित करें कि वकील सुनवाई में मोबाइल नहीं देख रहे? नियमन एवं निरीक्षण की आवश्यकता।
  • चुकी हुई जानकारी या AI त्रुटियाँ: यदि वकील AI-निर्देश पर दोषपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करे, तो न्यायालयीय परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।
  • न्यायालय की बदलती भूमिका: न्यायालय को यह तय करना होगा कि किस हद तक तकनीक को अनुमति देना है और किस हद तक नियंत्रण रखना है।

सुझाव एवं रूपरेखा

निम्न सुझाव इस दिशा में उपयोगी हो सकते हैं:

  1. न्यायालय-निर्धारित नीतियाँ
    उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों को स्पष्ट नीति बनानी चाहिए कि किन परिस्थितियों में वकील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं — और किन परिस्थितियों में नहीं।
  2. उपकरण स्वीकृति एवं सीमाएँ
    यदि वकील को iPad, लैपटॉप या अन्य उपकरण लाई जाने की अनुमति मिले, तो उसका उपयोग सीमित Bereichen तक होना चाहिए — जैसे दस्तावेज संदर्भ, नोट्स आदि — लेकिन सुनवाई के बीच खोज नहीं।
  3. नियंत्रण और निरीक्षण व्यवस्था
    सुनवाई कक्षों में मोबाइल की जाँच या निष्क्रिय मोड रखने की व्यवस्था हो सकती है।
    यदि वकील को किसी जानकारी की आवश्यकता हो, वह लिखित आवेदन करके समय मांगे, न कि मोबाइल त्वरित खोज करे।
  4. पैडेड तैयारी – प्रशिक्षण और कार्यशालाएँ
    बार एसोसिएशन और लॉ कॉलेजों द्वारा वकीलों को “आर्गुमेंट तैयारी”, “प्रश्न-उत्तर प्रशिक्षण” कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
  5. दायित्व व जवाबदेही
    यदि वकील मोबाइल-रीय खोज से प्रस्तुत जानकारी गलत या भ्रामक निकली, तो उस वकील पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
  6. न्यायालय–वकील संवाद
    बार एसोसिएशन और न्यायालयों के बीच संवाद कायम होना चाहिए, ताकि तकनीक उपयोग की सीमाएँ साझा हों और वकीलों की व्यावहारिक चुनौतियाँ समझी जाएँ।
  7. न्यायालय स्वयं AI उपकरणों का संतुलित उपयोग
    न्यायालय अपने निर्णय शोध, तथ्य जाँच आदि में AI / ML उपकरणों का उपयोग कर सकती है, लेकिन वह जानकारी न्यायाधीश द्वारा समीक्षा और सत्यापन के बाद ही स्वीकार्य होनी चाहिए।

निष्कर्ष

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये इस कठोर निर्देश में संदेश स्पष्ट है — कानून पेशे का मूल आधार तैयारी, तर्क, न्यायबोध और विधिक दक्षता है, न कि किसी त्वरित खोज-उपकरण की निर्भरता।

इस घटना ने न्यायालय, वकील और समाज को यह चुनौती दी है कि तकनीक की उपयोगिता को स्वीकार करते हुए, उसकी सीमाओं और मर्यादाओं को स्पष्ट करना ज़रूरी है। वकील यदि मोबाइल-AI खोज पर निर्भर हो जाएंगे, तो न्यायालयीय बहस और तर्क का मूल बिंदु ही खतरे में पड़ सकता है। दूसरी ओर, तकनीक को पूरी तरह से निषिद्ध करना भी व्यावहारिक नहीं है — क्रियाशील संतुलन बनाना ज़रूरी है।