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न्यायालय और अपराध जांच में फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक की भूमिका — मन और कानून के बीच सेतु

न्यायालय और अपराध जांच में फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक की भूमिका — मन और कानून के बीच सेतु


भूमिका

अपराध केवल कानून का उल्लंघन नहीं होता, बल्कि यह मानव मस्तिष्क, भावनाओं और व्यवहारिक प्रवृत्तियों का परिणाम भी होता है।
कभी अपराध आवेग से होता है, कभी बदले की भावना से, तो कभी मानसिक असंतुलन से।
इन सबके पीछे “क्यों” और “कैसे” को समझना केवल पुलिस या वकीलों का काम नहीं — बल्कि यह कार्य फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिकों (Forensic Psychologists) का क्षेत्र है।

फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक वे विशेषज्ञ होते हैं जो मनोविज्ञान के सिद्धांतों को न्यायिक प्रक्रिया और अपराध जांच में लागू करते हैं।
वे अपराधी के मनोविज्ञान को समझने, साक्ष्य की व्याख्या करने, अपराधी के मानसिक स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने, और न्यायालय में विशेषज्ञ राय देने का कार्य करते हैं।

आज के दौर में जब अपराध अधिक जटिल, योजनाबद्ध और मानसिक रूप से प्रेरित होते जा रहे हैं, तब फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है।


फॉरेंसिक मनोविज्ञान की परिभाषा और प्रकृति

फॉरेंसिक मनोविज्ञान (Forensic Psychology) मनोविज्ञान की वह शाखा है जो कानूनी और अपराध संबंधी मामलों में मानव व्यवहार का अध्ययन और विश्लेषण करती है।
“फॉरेंसिक” शब्द लैटिन के शब्द forensis से बना है, जिसका अर्थ है “न्यायालय या सार्वजनिक बहस से संबंधित”।

फॉरेंसिक मनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य है —

  • अपराधी के मानसिक और भावनात्मक कारणों को समझना,
  • न्यायालय को अपराधी की मानसिक स्थिति पर राय देना,
  • पुलिस की जांच में मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना,
  • गवाहों और पीड़ितों के मानसिक प्रभाव का अध्ययन करना,
  • और अपराधियों के पुनर्वास (Rehabilitation) में योगदान देना।

ऐतिहासिक विकास

फॉरेंसिक मनोविज्ञान का इतिहास 19वीं सदी के उत्तरार्ध से प्रारंभ होता है।

  • 1893 में जेम्स मकीन कैटेल ने गवाहों की विश्वसनीयता पर पहला मनोवैज्ञानिक प्रयोग किया।
  • 1908 में ह्यूगो म्यूनस्टरबर्ग की प्रसिद्ध पुस्तक “On the Witness Stand” प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने न्यायालय में मनोविज्ञान के प्रयोग का समर्थन किया।
  • 1954 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Brown v. Board of Education में पहली बार मनोवैज्ञानिक शोधों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया।

आज फॉरेंसिक मनोविज्ञान न केवल पश्चिमी देशों में, बल्कि भारत जैसे देशों में भी अपराध जांच और न्यायिक प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।


अपराध जांच में फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक की भूमिका

अपराध की जांच में फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि वे अपराध के पीछे छिपे मानसिक उद्देश्यों और व्यवहारिक पैटर्न को समझने में सहायता करते हैं।

1. अपराधी का मनोवैज्ञानिक प्रोफाइल बनाना (Criminal Profiling)

फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक अपराध स्थल (crime scene), पीड़ित के व्यवहार, और अपराध की पद्धति का अध्ययन कर यह अनुमान लगाते हैं कि अपराधी की उम्र, व्यक्तित्व, लिंग, शिक्षा, और मानसिक स्थिति कैसी हो सकती है।
उदाहरण के लिए, किसी सीरियल किलर (Serial Killer) के अपराधों का विश्लेषण यह दिखा सकता है कि वह व्यक्ति जुनूनी (obsessive), प्रतिशोधी या मानसिक विकृति से ग्रस्त है।

2. व्यवहारिक विश्लेषण (Behavioral Analysis)

जांच के दौरान संदिग्ध व्यक्ति के शारीरिक हावभाव, आवाज़ के उतार-चढ़ाव, चेहरे के भाव और प्रतिक्रिया का अध्ययन कर मनोवैज्ञानिक यह बता सकते हैं कि वह सच बोल रहा है या झूठ।

3. पूछताछ में सहयोग (Assisting in Interrogation)

फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक पुलिस को यह बताते हैं कि किसी आरोपी या संदिग्ध से किस प्रकार पूछताछ की जाए जिससे वह भयभीत या आक्रामक न हो, बल्कि सच्ची जानकारी दे सके।
वे पूछताछ को मानसिक रूप से नैतिक और प्रभावी बनाने के तरीके सुझाते हैं।

4. पीड़ित के मनोविज्ञान का अध्ययन (Victimology)

अक्सर अपराध की जड़ें अपराधी और पीड़ित के संबंधों में होती हैं।
फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक पीड़ित के जीवन, आदतों और मानसिक स्थिति का अध्ययन करते हैं ताकि अपराध की पूरी कहानी समझी जा सके।

5. झूठ पकड़ना और पॉलीग्राफ परीक्षण (Lie Detection and Polygraph Tests)

मनोवैज्ञानिक झूठ पकड़ने की तकनीकों, जैसे पॉलीग्राफ (Polygraph) और ब्रेन मैपिंग (Brain Electrical Oscillation Signature) में विशेषज्ञ की भूमिका निभाते हैं।
वे बताते हैं कि व्यक्ति की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है या दबाव में दी गई है।


न्यायालय में फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक की भूमिका

न्यायालय में फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक “विशेषज्ञ गवाह (Expert Witness)” के रूप में कार्य करते हैं। उनका कार्य न्यायाधीश और जूरी को यह समझाना होता है कि आरोपी या गवाह की मानसिक स्थिति क्या थी, और वह अपराध के समय कितना सजग था।

1. मानसिक योग्यता का मूल्यांकन (Assessment of Mental Competency)

यदि कोई आरोपी यह दावा करता है कि अपराध के समय वह मानसिक रूप से असंतुलित था, तो फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक उसकी मनोवैज्ञानिक जांच करते हैं।
वे अदालत को बताते हैं कि क्या वह व्यक्ति अपने कार्यों के परिणाम समझने की क्षमता रखता था या नहीं।

2. अपराध के समय मानसिक स्थिति (Insanity Defence Evaluation)

कई अपराधी “पागलपन के कारण अपराध” (Insanity Plea) का सहारा लेते हैं।
फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक यह निर्धारित करते हैं कि अपराधी वास्तव में मानसिक रोगी था या झूठ बोल रहा है।

3. गवाहों की विश्वसनीयता का मूल्यांकन

गवाह के बयान, भावनात्मक प्रतिक्रिया और याददाश्त की सटीकता का मनोवैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है।
इससे यह पता चलता है कि गवाह सत्य बोल रहा है या बाहरी प्रभाव में आकर बयान बदल रहा है।

4. अपराधी के पुनर्वास (Rehabilitation)

अदालतें अपराधी को सजा के साथ-साथ सुधारात्मक उपाय भी देती हैं।
मनोवैज्ञानिक अपराधी की मानसिक स्थिति देखकर यह सुझाव देते हैं कि उसे थेरेपी, परामर्श, या मनोचिकित्सा की आवश्यकता है या नहीं।


भारत में फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिकों की भूमिका और चुनौतियाँ

भारत में फॉरेंसिक मनोविज्ञान अब भी एक विकासशील क्षेत्र है।
सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (CFSL), गुजरात फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (GFSU) और नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फॉरेंसिक साइंस (NICFS) जैसे संस्थान इस क्षेत्र में प्रशिक्षण देते हैं।

हालांकि, अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं —

  • न्यायाधीशों और पुलिस अधिकारियों में मनोवैज्ञानिक साक्ष्यों की समझ की कमी,
  • प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की कमी,
  • पॉलीग्राफ और ब्रेनमैपिंग जैसे परीक्षणों पर विवाद,
  • और साक्ष्य के रूप में मनोवैज्ञानिक रिपोर्टों की सीमित स्वीकृति।

महत्वपूर्ण उदाहरण

  1. नीरभया केस (2012):
    इस मामले में अपराधियों के मानसिक विश्लेषण ने दिखाया कि अपराध केवल शारीरिक नहीं बल्कि गहरी मानसिक विकृति का परिणाम था।
    मनोवैज्ञानिक रिपोर्टों ने सजा निर्धारण में सहायता की।
  2. आरुषि तलवार हत्याकांड:
    इस मामले में फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिकों ने अपराधियों के मनोवैज्ञानिक प्रोफाइल और व्यवहारिक विरोधाभासों का विश्लेषण किया था।

निष्कर्ष

फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक आज के आपराधिक न्याय तंत्र में कानून और मानव मन के बीच एक आवश्यक सेतु हैं।
वे अपराध को केवल कानूनी नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक दृष्टि से भी समझते हैं।
उनकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि न्याय केवल साक्ष्य पर आधारित न हो, बल्कि मानव व्यवहार की गहराई को समझकर दिया गया निर्णय हो।

भविष्य में, जैसे-जैसे अपराध का स्वरूप बदलता जा रहा है — साइबर अपराध, आतंकवाद, बाल अपराध और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अपराधों में — फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिकों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जाएगी।

अंततः,

“कानून अपराध को रोक सकता है, पर उसे समझने और सुधारने की कुंजी केवल मनोविज्ञान के पास है।”