लेख शीर्षक:
“न्यायाधीशों के मतभेद की स्थिति में अपील का निर्णय: दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 98 का विश्लेषण”
प्रस्तावना:
भारत में दीवानी न्याय व्यवस्था को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करने हेतु दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 – CPC) लागू की गई है। इसमें न्यायालयों की प्रक्रिया, अधिकारक्षेत्र, और अपीलों आदि से संबंधित विस्तृत प्रावधान हैं। जब किसी मामले की अपील उच्च न्यायालय या किसी अन्य अपीलीय न्यायालय में दो या दो से अधिक न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनी जाती है, और उन न्यायाधीशों की राय एकमत नहीं होती, तब उस स्थिति में निर्णय कैसे दिया जाएगा – इस संदर्भ में धारा 98 अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह धारा ऐसी स्थिति में निर्णय के सिद्धांतों को स्पष्ट करती है।
धारा 98 का पाठ (Section 98 – CPC):
“Where an appeal is heard by a bench of two or more judges and there is a difference of opinion among them, the decision shall be in accordance with the opinion of the majority, if there is a majority.”
यदि बहुमत न हो, और पीठ केवल दो न्यायाधीशों की हो, और वे किसी बिंदु पर सहमत न हों, तो वे उस बिंदु को एक या अधिक अन्य न्यायाधीशों के समक्ष प्रस्तुत करेंगे, और अंततः बहुमत से निर्णय लिया जाएगा।
धारा 98 के प्रमुख प्रावधान:
- बहुमत का सिद्धांत (Majority Principle):
यदि अपील दो या अधिक न्यायाधीशों द्वारा सुनी गई और उनमें बहुमत है, तो निर्णय बहुमत की राय के अनुसार दिया जाएगा। - जब बहुमत नहीं बनता (No Majority):
यदि केवल दो न्यायाधीशों की पीठ हो और वे किसी भी बिंदु पर सहमत न हों, तब:- विवादित बिंदु को एक या अधिक अन्य न्यायाधीशों के पास भेजा जाएगा।
- अंततः निर्णय बहुमत की राय के अनुसार होगा।
- किसी निर्णय की पुष्टि/रद्द करने के प्रश्न पर मतभेद:
जब पीठ केवल दो न्यायाधीशों की हो और वे इस बात पर सहमत न हों कि डिक्री (न्यायालय का आदेश) की पुष्टि की जाए या रद्द किया जाए, तो वह डिक्री यथावत बनी रहती है (i.e., Appeal Dismissed by Default).
व्यावहारिक महत्व (Practical Significance):
- यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि न्याय में अनिश्चितता न बनी रहे।
- मतभेद की स्थिति में उचित न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से निर्णय तक पहुंचना सुनिश्चित किया जाता है।
- यह न्यायिक प्रणाली में स्थिरता और स्पष्टता को बनाए रखता है।
प्रासंगिक निर्णय (Important Case Law):
- U.J.S. Chopra v. State of Bombay, AIR 1955 SC 633:
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के सिद्धांत की व्याख्या की और धारा 98 की व्यावहारिक उपयोगिता को स्वीकार किया। - Jagdish Prasad v. State of M.P., AIR 1994 SC 1251:
जहां दो न्यायाधीशों के मतभेद के कारण डिक्री को यथावत रखा गया, यह दर्शाता है कि न्यायालय मतभेद की स्थिति में अपील को खारिज मान सकते हैं।
निष्कर्ष:
धारा 98, CPC भारतीय न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, विशेष रूप से उच्च न्यायालयों और अपीलीय न्यायालयों की बहु-न्यायाधीश पीठों के संदर्भ में। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक निर्णय बहुमत की राय पर आधारित हो और मतभेद की स्थिति में भी न्यायिक प्रक्रिया जारी रह सके। इससे न्यायालयों में न्यायिक व्यवस्था में समरसता और सुव्यवस्था बनी रहती है।