लेख शीर्षक:
“न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से डिगता है जनता का विश्वास : सीजेआई बी.आर. गवई ने दी न्यायिक नैतिकता पर कड़ी चेतावनी”
मुख्य बिंदु:
🔹 न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का खतरा:
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई ने चेतावनी दी है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाएं जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती हैं, जो पूरी न्याय प्रणाली की साख पर आघात करता है।
🔹 न्यायिक ईमानदारी की रक्षा के उपाय:
सीजेआई ने कहा कि ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए न्यायपालिका को त्वरित, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में ऐसे मामलों में तत्काल कदम उठाए हैं।
🔹 सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पदों को स्वीकार करने पर सवाल:
उन्होंने कहा कि यदि कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद कोई सरकारी पद स्वीकार करता है या राजनीतिक चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देता है, तो यह गंभीर नैतिक चिंता का विषय है। इससे हितों के टकराव और न्यायिक निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न होता है।
🔹 स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर जोर:
सीजेआई ने कहा कि ऐसी घटनाएं इस धारणा को जन्म देती हैं कि न्यायिक निर्णय संभवतः भविष्य की सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक लाभों से प्रेरित हो सकते हैं। उन्होंने स्वयं और अपने कई सहयोगियों के सेवानिवृत्ति के बाद किसी सरकारी पद को न लेने की प्रतिज्ञा का भी उल्लेख किया।
🔹 कोलेजियम प्रणाली की रक्षा:
सीजेआई गवई ने कोलेजियम प्रणाली का समर्थन करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य कार्यपालिका के हस्तक्षेप को रोकना और न्यायिक नियुक्तियों में स्वायत्तता बनाए रखना है।
उन्होंने कहा: “कोई भी समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आना चाहिए।”
🔹 पारदर्शिता के लिए स्वैच्छिक संपत्ति घोषणा:
सीजेआई ने बताया कि भारत में न्यायिक पारदर्शिता बनाए रखने हेतु न्यायाधीशों द्वारा स्वैच्छिक संपत्ति विवरण सार्वजनिक करना एक सराहनीय पहल है।
प्रासंगिक संदर्भ:
इस बयान की महत्ता और समय इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने की खबरें सामने आई थीं। इस संदर्भ में सीजेआई की टिप्पणियां न्यायपालिका की नैतिकता पर कठोर चेतावनी मानी जा रही हैं।
निष्कर्ष:
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई के ये विचार न केवल न्यायपालिका की ईमानदारी और स्वतंत्रता की रक्षा का संकल्प दर्शाते हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट करते हैं कि जनता का विश्वास न्याय प्रणाली की रीढ़ है। न्यायिक पद पर रहते हुए और सेवानिवृत्ति के बाद भी, न्यायिक गरिमा और निष्पक्षता बनाए रखना अनिवार्य है।