“न्यायपालिका की गरिमा बनाम सोशल मीडिया का दुरुपयोग: अदालती कार्यवाही के वीडियो के इस्तेमाल पर SCAORA की चिंता”

शीर्षक:
“न्यायपालिका की गरिमा बनाम सोशल मीडिया का दुरुपयोग: अदालती कार्यवाही के वीडियो के इस्तेमाल पर SCAORA की चिंता”

प्रस्तावना:
भारतीय न्याय व्यवस्था की गरिमा और निष्पक्षता उसके शांत, सुसंयमित और औपचारिक स्वरूप में निहित है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई को एक पत्र लिखकर सोशल मीडिया पर अदालत की कार्यवाही के वीडियो और तस्वीरों के दुरुपयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की है। पत्र में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स—जैसे इंस्टाग्राम, एक्स (पूर्व में ट्विटर), यूट्यूब और फेसबुक—पर अधिवक्ताओं द्वारा अदालती कार्यवाही के अंशों को प्रचार का माध्यम बनाए जाने की प्रवृत्ति को न्यायपालिका की गरिमा के लिए खतरा बताया गया है।

SCAORA की आपत्ति और मांग:
SCAORA ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि कुछ वकील और अधिवक्ता अदालती कार्यवाही की क्लिप्स का उपयोग निजी प्रचार, पेशेवर प्रतिष्ठा बनाने, या अपने यूज़र बेस को बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता, गरिमा और गोपनीयता को क्षति पहुंचा सकती है।
SCAORA ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर ठोस दिशानिर्देश जारी करे, जिससे इस प्रकार की प्रवृत्तियों पर रोक लग सके और अदालत की गरिमा सुरक्षित रहे।

न्यायिक कार्यवाही का सोशल मीडिया पर प्रसार – दोधारी तलवार:
हालांकि डिजिटल युग में न्यायिक पारदर्शिता की माँग बढ़ी है और अदालतों की कार्यवाही की सार्वजनिक पहुँच एक सकारात्मक कदम माना जाता है, लेकिन जब इसका प्रयोग निजी लाभ, प्रचार या अनुचित विश्लेषण हेतु होता है, तो यह न्यायपालिका की निष्पक्षता और गरिमा को हानि पहुंचा सकता है

  1. प्रचार बनाम जनजागरूकता – सोशल मीडिया पर क्लिप्स का चयनित उपयोग अक्सर संदर्भ से काटा गया होता है, जिससे आमजन में ग़लतफ़हमी फैल सकती है।
  2. न्यायाधीशों की छवि पर असर – यदि किसी निर्णय या सुनवाई की क्लिप वायरल होती है, तो वह व्यक्तिगत राय या आलोचना का विषय बन सकती है, जो न्यायिक स्वतंत्रता के लिए घातक है।
  3. न्यायिक प्रक्रिया में बाधा – ऐसी क्लिप्स ट्रायल बाय मीडिया को जन्म दे सकती हैं, जो विचाराधीन मामलों में पक्षपात उत्पन्न कर सकती हैं।

वकीलों की भूमिका और पेशेवर आचरण:
बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित आचार संहिता में वकीलों को अदालत के प्रति सम्मान और गोपनीयता बनाए रखने की बाध्यता दी गई है। सोशल मीडिया पर अदालत की कार्यवाही का प्रचार इस संहिता का उल्लंघन माना जा सकता है। साथ ही, यह “न्यायालय को एक मंच बनाकर” उसके औचित्य को कम करने जैसा प्रतीत हो सकता है।

भविष्य के लिए सुझाव:

  1. स्पष्ट दिशानिर्देशों की आवश्यकता – सुप्रीम कोर्ट को सोशल मीडिया पर अदालती सामग्री के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए ठोस नियम बनाने चाहिए।
  2. डिजिटल एथिक्स ट्रेनिंग – वकीलों के लिए सोशल मीडिया आचार संहिता पर कार्यशालाएं और ट्रेनिंग आयोजित की जानी चाहिए।
  3. संस्था स्तर पर निगरानी – SCAORA जैसे संगठनों को स्वयं अपने सदस्यों के सोशल मीडिया व्यवहार पर नज़र रखनी चाहिए और अनुचित आचरण की रिपोर्टिंग करनी चाहिए।
  4. जनहित बनाम निजी हित का संतुलन – यदि अदालती कार्यवाही को सार्वजनिक करना है, तो वह संस्थागत स्तर पर अधिकृत चैनलों के माध्यम से होना चाहिए न कि व्यक्तिगत वकीलों के चैनलों से।

निष्कर्ष:
SCAORA की यह पहल न्यायपालिका की गरिमा और गोपनीयता को बचाए रखने की दिशा में एक सार्थक और समयोचित कदम है। सोशल मीडिया का उपयोग आज के समय की आवश्यकता है, लेकिन जब इसका प्रयोग न्यायिक संस्थाओं के प्रति आदर, संयम और मर्यादा के साथ न हो, तो वह लोकतंत्र के स्तंभों को कमजोर कर सकता है। इसलिए, ऐसी पहल न केवल सराहनीय है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के लिए अनिवार्य भी है।