“नोटिस की अनुपस्थिति और धारा 11 आवेदन में पक्षकार न होना – मध्यस्थता प्रक्रिया से बाहर करने के लिए पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट”

शीर्षक: “नोटिस की अनुपस्थिति और धारा 11 आवेदन में पक्षकार न होना – मध्यस्थता प्रक्रिया से बाहर करने के लिए पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट”
Adavya Projects Pvt. Ltd. बनाम M/S Vishal Structurals Pvt. Ltd. एवं अन्य


परिचय:
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने Adavya Projects Pvt. Ltd. बनाम M/S Vishal Structurals Pvt. Ltd. एवं अन्य मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 21 के अंतर्गत मध्यस्थता की सूचना (Notice Invoking Arbitration) प्राप्त न होने या धारा 11 के तहत मध्यस्थ की नियुक्ति हेतु याचिका में किसी पक्ष को शामिल न किए जाने मात्र से उसे मध्यस्थता प्रक्रिया से बाहर नहीं किया जा सकता।

यह निर्णय भारत में वाणिज्यिक विवादों के मध्यस्थता समाधान के संदर्भ में एक निर्णायक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है और “प्रक्रियात्मक तकनीकीता” के आधार पर न्याय से वंचित करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाता है।


मामले की पृष्ठभूमि:
Adavya Projects Pvt. Ltd. ने यह दलील दी कि उसे न तो धारा 21 के तहत मध्यस्थता प्रारंभ करने की पूर्व सूचना दी गई थी, न ही धारा 11 की याचिका में उसे पक्षकार बनाया गया, अतः उसे मध्यस्थता प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर, Vishal Structurals Pvt. Ltd. ने तर्क दिया कि अनुबंध में मध्यस्थता खंड मौजूद था और विवाद अनुबंध से संबंधित था, इसलिए सभी संबंधित पक्षों को मध्यस्थता में शामिल करना उचित है।


सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:

  1. प्रारंभिक नोटिस की अनुपस्थिति निर्णायक नहीं:
    कोर्ट ने कहा कि धारा 21 के अंतर्गत नोटिस प्राप्त न होने से यह स्वतः सिद्ध नहीं होता कि कोई पक्ष मध्यस्थता प्रक्रिया में सम्मिलित नहीं हो सकता। यदि वह पक्ष अनुबंध से संबंधित है और विवाद से उसका गहरा संबंध है, तो उसे प्रक्रियात्मक चूक के आधार पर बाहर नहीं रखा जा सकता।
  2. धारा 11 की याचिका में पक्षकार न होना असंगत आधार:
    न्यायालय ने यह भी कहा कि मध्यस्थ की नियुक्ति हेतु धारा 11 की याचिका में किसी पक्ष को शामिल न करना भी उसके मध्यस्थता में भाग लेने की वैधता को प्रभावित नहीं करता। यह केवल नियुक्ति की प्रक्रिया है, न कि मध्यस्थता की संपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया।
  3. वास्तविक विवाद और भागीदारी अधिक महत्वपूर्ण:
    न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि यदि कोई पक्ष विवाद से वास्तव में जुड़ा हुआ है और अनुबंध का आवश्यक भाग है, तो उसे केवल तकनीकी आधार पर बाहर नहीं रखा जा सकता।

इस निर्णय का विधिक प्रभाव:

  • मध्यस्थता प्रक्रिया की समावेशिता को बल:
    सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि मध्यस्थता विवाद का निष्पक्ष और समग्र समाधान हो, न कि तकनीकी कमियों के कारण अधूरी न्यायिक प्रक्रिया।
  • विवाद समाधान में न्यायसंगत दृष्टिकोण की पुष्टि:
    निर्णय यह सिद्ध करता है कि न्यायालय ‘न्याय प्रदान करने की भावना’ को प्राथमिकता देता है, न कि केवल प्रक्रियात्मक शुद्धता को।
  • अनुबंधों में मध्यस्थता खंड की शक्ति मजबूत:
    यह फैसला इस सिद्धांत को सुदृढ़ करता है कि एक बार जब पार्टियों ने मध्यस्थता के लिए सहमति दे दी है, तो विवाद के सभी आवश्यक पक्ष उस प्रक्रिया के अधीन रहेंगे।

निष्कर्ष:
Adavya Projects Pvt. Ltd. बनाम Vishal Structurals Pvt. Ltd. मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारतीय मध्यस्थता कानून की न्यायिक व्याख्या में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह फैसला बताता है कि मध्यस्थता का उद्देश्य विवादों का निष्पक्ष, प्रभावी और समावेशी समाधान है, और उसे मात्र तकनीकी चूकों के आधार पर विफल नहीं किया जा सकता। यह भारत में वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली की वृद्धि और मजबूती की दिशा में एक सशक्त कदम है।