🔷 शीर्षक: “नॉमिनी बनाम उत्तराधिकारी: बैंक खाता विवादों में कानून की सच्चाई”
🔍 भूमिका:
भारत में अक्सर पारिवारिक संपत्ति और बैंक खातों को लेकर विवाद सामने आते हैं, विशेष रूप से तब जब माता या पिता अपने जीवनकाल में किसी एक संतान को नॉमिनी बना देते हैं। सामान्य धारणा यह होती है कि नामांकित व्यक्ति (Nominee) ही उस रकम का वास्तविक मालिक बन जाता है। परंतु यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। कानून की दृष्टि में “नॉमिनी” केवल एक ट्रस्टी होता है, न कि उस संपत्ति का वास्तविक उत्तराधिकारी।
📌 नॉमिनी क्या होता है?
भारतीय कानून में नॉमिनी वह व्यक्ति होता है जिसे किसी खाते, बीमा, निवेश आदि में यह अधिकार दिया जाता है कि यदि खाता धारक की मृत्यु हो जाए तो वह उस संपत्ति को “अस्थायी रूप से प्राप्त” कर सके। लेकिन:
🔸 नॉमिनी = ट्रस्टी (विश्वस्त), न कि मालिक।
🔸 नॉमिनी को केवल वह धनराशि/संपत्ति संभालनी होती है और उसे कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच बांटना होता है।
⚖️ प्रमुख न्यायिक दृष्टिकोण:
“नामांकन से नामांकित व्यक्ति को उस विषयगत संपत्ति पर पूर्ण अधिकार प्राप्त नहीं होता जिसके लिए ऐसा नामांकन किया गया है।”
📚 प्रमुख निर्णय – केरल उच्च न्यायालय:
राजेशबाबू बनाम मुरलीकृष्णन, RFA No. 59/2014
निर्णय दिनांक: 28.07.2025
इस केस में अदालत ने स्पष्ट किया कि नॉमिनी केवल एक सुविधा के रूप में होता है – ताकि खाताधारक की मृत्यु के पश्चात बैंक पैसे किसी को सौंप सके, लेकिन असली हकदार वे उत्तराधिकारी होते हैं जो उत्तराधिकार अधिनियम के तहत आते हैं।
🛑 क्या नॉमिनी पूरी राशि रख सकता है?
नहीं। नॉमिनी यदि संपूर्ण राशि अपने पास रखता है, तो वह अन्य उत्तराधिकारियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है और यह अवैध भी माना जा सकता है।
⚠️ क्या करें यदि कोई नॉमिनी संपूर्ण राशि हड़प ले?
- बैंक या संस्था को लिखित में आपत्ति दें।
- उत्तराधिकार प्रमाण पत्र (Legal Heir Certificate या Succession Certificate) के लिए सक्षम न्यायालय में आवेदन करें।
- अंतरिम आदेश (Interim Injunction) हेतु निवेदन करें ताकि विवादित राशि को रोका जा सके।
- न्यायालय में याचिका दायर कर दावा करें कि नॉमिनी ने ट्रस्टी के कर्तव्यों का उल्लंघन किया है।
📌 निष्कर्ष:
कोई भी संतान यदि माता या पिता को अपने पक्ष में करके खुद को नॉमिनी बनवा भी ले, तो इसका अर्थ यह नहीं कि उस खाते की संपूर्ण राशि का वह अकेला मालिक बन गया है। अन्य भाई-बहनों की जानकारी और सहमति के बिना वह धन अपने पास रखना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि कानूनन भी दंडनीय हो सकता है।
🖋️ अंतिम टिप्पणी:
“धन का अधिकार केवल नॉमिनेशन से नहीं, बल्कि उत्तराधिकार कानून से निर्धारित होता है।”
अतः सभी उत्तराधिकारियों को उनके हिस्से का न्याय मिले – यह केवल एक वकील या न्यायालय नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।