नेगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 के मुख्य प्रावधानों की चर्चा कीजिए।

नेगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 – एक विस्तृत विवेचना

1. प्रस्तावना (Preamble):
नेगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 भारत में व्यापारिक लेन-देन को नियमित करने के लिए पारित किया गया था। इसका उद्देश्य ऐसे दस्तावेज़ों को कानूनी मान्यता देना था जिनके द्वारा एक पक्ष, दूसरे पक्ष को एक निश्चित राशि भुगतान करने का वादा या आदेश देता है।


2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

यह कानून मूलतः अंग्रेजी कानून पर आधारित है और 1881 में भारतीय विधायी परिषद द्वारा पारित किया गया था। पहले इस अधिनियम के अंतर्गत केवल प्रॉमिसरी नोट, बिल ऑफ एक्सचेंज और चेक ही आते थे, लेकिन बाद में इसमें कई संशोधन करके चेक बाउंस और डिजिटल भुगतान से संबंधित धाराएँ जोड़ी गईं।


3. अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य

  • व्यापारिक दस्तावेजों को वैधानिक स्वरूप देना
  • लेन-देन को सरल, सुरक्षित और शीघ्र बनाना
  • वचनबद्धता और भुगतान की विश्वसनीयता को बढ़ाना
  • दस्तावेजों के हस्तांतरण की प्रक्रिया को कानूनी संरक्षण प्रदान करना

4. नेगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट्स के प्रकार (Section 13):

इस अधिनियम के अनुसार निम्नलिखित दस्तावेज़ नेगोशिएबल माने गए हैं:

(a) प्रॉमिसरी नोट (Promissory Note) – Section 4

यह एक ऐसा लिखित वचन है जिसमें एक पक्ष (निर्देशक) दूसरे पक्ष (प्रापक) को एक निश्चित राशि भुगतान करने का वचन देता है।

(b) बिल ऑफ एक्सचेंज (Bill of Exchange) – Section 5

यह एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को एक तीसरे व्यक्ति को भुगतान करने का आदेश देता है।

(c) चेक (Cheque) – Section 6

यह बिल ऑफ एक्सचेंज का एक विशेष प्रकार है, जो केवल बैंक के माध्यम से भुगतान योग्य होता है और इसमें कोई निश्चित समय नहीं होता।


5. प्रमुख धाराएँ और प्रावधान

(a) Section 8 & 9 – होल्डर और होल्डर इन ड्यू कोर्स

  • होल्डर: वह व्यक्ति जो किसी दस्तावेज़ को वैध रूप से अपने अधिकार में रखता है।
  • होल्डर इन ड्यू कोर्स: वह व्यक्ति जिसने किसी इन्स्ट्रूमेंट को मूल्य के बदले, बिना किसी दोष की जानकारी के प्राप्त किया है।

(b) Sections 10-20 – एन्डोर्समेंट और हस्तांतरण

यह धाराएँ बताती हैं कि नेगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट को कैसे एक व्यक्ति से दूसरे को सौंपा जा सकता है, और किन शर्तों के तहत यह वैध होगा।

(c) Section 91 & 92 – अवमानना (Dishonour), नोटिंग और प्रोटेस्ट

जब भुगतान करने से मना कर दिया जाता है तो उसे Dishonour कहा जाता है। इसके लिए नोटरी पब्लिक द्वारा नोटिंग की जाती है और यदि आवश्यक हो तो प्रोटेस्ट जारी होता है।

(d) Section 118 & 139 – वैधानिक अनुमानों की धाराएँ (Legal Presumptions)

इन धाराओं के तहत यह माना जाता है कि दस्तावेज़:

  • वैध है
  • मूल्य के लिए बनाया गया है
  • सही समय पर बना है
  • सही व्यक्ति को दिया गया है

(e) Sections 138-142 – चेक बाउंस से संबंधित आपराधिक प्रावधान

  • यदि किसी व्यक्ति द्वारा जारी किया गया चेक बाउंस हो जाता है, तो वह दंडनीय अपराध बन जाता है।
  • दंड: 2 साल तक की सजा, जुर्माना (दोगुनी रकम तक), या दोनों
  • इसके लिए विधिपूर्व नोटिस भेजना आवश्यक है।

6. डिजिटल भुगतान और संशोधन

हाल के वर्षों में भारत सरकार ने डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए अधिनियम में संशोधन किए हैं। जैसे:

  • इलेक्ट्रॉनिक चेक की मान्यता
  • ट्रंकेटेड चेक की धाराएँ (धारा 6 में संशोधन)
  • ऑनलाइन बैंकिंग व यूपीआई लेनदेन की वैधानिकता को लेकर स्पष्टीकरण

7. न्यायिक निर्णयों द्वारा व्याख्या

भारतीय न्यायपालिका ने इस अधिनियम की धाराओं की समय-समय पर व्याख्या की है।
उदाहरण:

  • Dashrath Rupsingh Rathod v. State of Maharashtra (2014) – चेक बाउंस के मामलों में क्षेत्रीय अधिकारिता से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय।
  • Kumar Exports v. Sharma Carpets (2009) – होल्डर इन ड्यू कोर्स की अवधारणा को स्पष्ट किया।

8. निष्कर्ष

नेगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 भारत के व्यापारिक और वित्तीय क्षेत्र की रीढ़ है। यह अधिनियम भुगतान की प्रक्रिया को सुगम बनाता है और दस्तावेज़ों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। वर्तमान डिजिटल युग में इसके दायरे का विस्तार और भी आवश्यक हो गया है जिससे यह अधिनियम आज भी पूरी तरह प्रासंगिक और प्रभावी बना हुआ है।


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