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“नीयत ही अपराध का निर्धारण करती है: सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि में IPC 420 और 406 का अंतर”

“धोखे या विश्वासघात – धारा 406 व धारा 420 के तहत ‘नीयत के समय’ का बारीक कानूनी अन्तर : सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण से”


प्रस्तावना

भारतीय दण्ड विधान में अपराधों का विश्लेषण करते समय “नीयत” अर्थात् dishonest intention / fraudulent intention का समय (जब वह जन्मा, या सामने आया) अत्यन्त महत्वपूर्ण है। क्योंकि दो समान-प्रायः आरोप — धारा 406 (विश्वासघात) व धारा 420 (ठगी) — बहुत बार एक दूसरे से उलझते पाए जाते हैं। हालाँकि, एससी ने स्पष्ट किया है कि ये दोनों अपराध खुल कर भिन्न हैं, तथा उनकी नीयत-समय-आवश्यकताएँ अलग-अलग हैं। उदाहरण के लिए, धारा 420 में दरअसल धोखा (deception) के समय नीयत होना चाहिए; जबकि धारा 406 में पहले से भरोसा (entrustment) होना चाहिए और बाद में उसका दुरुपयोग होना चाहिए।

इस लेख में हम निम्न बिंदुओं पर विचार करेंगे—

  1. धारा 406 व 420 की कानूनी रूप-रेखा (संरचना)
  2. नीयत (mens rea) का समय – “न जब धोखा हुआ”, बल्कि “जब नीयत बनी” — क्यों महत्वपूर्ण है
  3. सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णयों में दोनों धाराओं के बीच नीयत-समय के बारीक फर्क का विश्लेषण
  4. व्यावहारिक दिशा-निर्देश / सुझाव – पुलिस, अभियोजन तथा अभिभाषक दृष्टि से
  5. निष्कर्ष

1. धारा 406 व धारा 420 : कानूनी रूप-रेखा

धारा 406 – क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट (Criminal Breach of Trust)

  • धारा 405 IPC में “विश्वासघात” (breach of trust) की परिभाषा दी गई है — अर्थात् जब किसी व्यक्ति को संपत्ति सञ्चालित करने, या उस पर अधिकार या नियंत्रण रखने हेतु (entrustment) सौंपा जाए, और वह व्यक्ति — उस भरोसे को तोड़ते हुए — dishonestly संपत्ति का दुरुपयोग करे, उसे अपने लाभ के लिए प्रयोग करे, अथवा वश में रखे हुए संपत्ति को किसी अन्य को देने दे।
  • इसके उपरांत, धारा 406 IPC उस अपराध को दण्डित करती है।
  • इस प्रकार, मूलतः “विश्वास में सौंपा गया” होना, अर्थात् entrustment होना, इसके लिए एक आवश्यक अवयव है।
  • उदाहरणतः यदि A को B ने X संपत्ति अपने हाथ में काम करने हेतु दे दी, और A ने उसके प्रति भरोसा तोड़ते हुए उसे अपने लाभ के लिए उपयोग किया — तो धारा 406 लागू हो सकती है।
  • मैकेनिकल रूप से कहें तो, entrustment → विश्वास → दुरुपयोग = अपराध।

धारा 420 – ठगी (Cheating)

  • धारा 415 IPC में “ठगी” (cheating) की परिभाषा है: जब कोई व्यक्ति किसी अन्य को धोखे (false representation, or concealment of truth, or omission) में डालकर, या किसी भरोसे को उत्पन्न कर, उसे संपत्ति देने या किसी कार्य/उप-कार्य न करने के लिए प्रेरित करता है और वह प्रेरणा dishonestly होती है।
  • धारा 420 IPC उस अपराध को दण्डित करती है — अर्थात् धोखे द्वारा संपत्ति लेने या किसी अन्य को संपत्ति रखने को प्रेरित करना।
  • यहाँ मूल अवयव है: धोखा (deception) + प्रेरणा (inducing) + संपत्ति का हस्तांतरण या अन्य प्रकार का नुकसान।
  • उदाहरणतः A ने B को यह झूठ कहा कि वह X कर सकता है, B ने भरोसा करके संपत्ति या राशि A को दे दी, और A ने धोखे से अपने लाभ के लिए लिया — तो धारा 420 चल सकती है।

सरल तालिका में तुलना

अवयव धारा 406 धारा 420
भरोसा/सौंपना (entrustment) आवश्यक है नहीं आवश्यक
धोखे (deception) आवश्यक नहीं है कि शुरू में हो मुख्य अवयव है
संपत्ति का नियंत्रण/हस्तांतरण पहले से नियंत्रण या भरोसा दिया जाना चाहिए deception के बाद संपत्ति देना/लेना होता है
नीयत का समय भरोसा सौंपे जाने के बाद उस संपत्ति पर दुरुपयोग की नीयत बनने पर धोखे/प्रेरणा हेतु पहले से नीयत होना आवश्यक
क्या दोनों एक ही घटना में हो सकते हैं? अक्सर माना जाता है कि नहीं — “anti-thesis”

एससी ने कई बार स्पष्ट किया है कि ये अन्ततः भिन्न अपराध श्रेणियाँ हैं।


2. “नीयत के समय” का महत्व और कैसे आंका जाता है

नीयत (mens rea) का समय इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि अपराध तभी成立 होता है यदि आवश्यक अवयव उस समय मौजूद हों जब कानून उन्हें माँगता है। उदाहरणतः धारा 420 में यह ज़रूरी है कि धोखे की नीयत वहां से शुरू होकर हो जब समझौता/प्रस्ताव बनाया गया था — अर्थात् ‘प्रस्ताव के समय’ नीयत होनी चाहिए। यदि नीयत बाद में आई हो, प्रारंभ में उस तरह का धोखा उद्देश्य न था, तो सिर्फ बाद में भुगतान न करना या वादा न निभाना ठगी की संरचना नहीं बनाता, बल्कि वह साधारण संविदात्मक समस्या हो सकती है। (यह सिद्धांत एससी एवं अनेक उच्च न्यायालयों द्वारा स्पष्ट किया गया है)।

वहीं, धारा 406 में यह देखा जाता है कि जब संपत्ति ब्रॉडली ‘विश्वास’ में सौंपा गया हो — अर्थात् entrustment का समय तथा उस पर भरोसा देने का समय से — उस समय से लेकर उस संपत्ति के दुरुपयोग (misappropriation) तक की नीयत का प्रवाह होना चाहिए। इस अर्थ में, नीयत का समय ‘जब संपत्ति सौंपा गया’ या ‘जब भरोसा किया गया’ से शुरू हो सकती है, लेकिन दुरुपयोग के समय तक निरंतर होनी चाहिए।

संक्षिप्त रूप से:

  • ठगी में: धोखे (deception) के प्रारंभ समय में नीयत होनी चाहिए।
  • विश्वासघात (विश्वास के भरोसे में) में: सौंपे जाने तथा दुरुपयोग के बीच नीयत की निरंतरता होनी चाहिए।

इस बात को समझने के लिए कुछ दृष्टिकोण प्रस्तुत हैं:

  • अगर A ने B से वादा किया कि “मैं आपकी रकम आज लेता हूँ, और कल वापस कर दूँगा” — और A ने ऐसा वादा जान-बूझ कर किया था कि वह कभी वापस नहीं करेगा — तो यह ठगी/धोखा हो सकती है। क्योंकि धोखे का भाव प्रारंभ से था।
  • लेकिन अगर A को B ने भरोसा दिया कि “मेरे पास जिम्मेदारी है, आप मुझे यह संपत्ति सौंपो” — और उसने सौंपा — और बाद में A ने बिना नीयत बदलने के सिर्फ भुगतान न किया, या संविदात्मक रूप से बाधित हुआ — इस पर विश्वासघात या ठगी का निर्धारण बारीकी से किया जाएगा। संभव है केवल संविदात्मक उल्लंघन हो।

3. सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में बारीक अन्तर एवं विश्लेषण

(i) प्रमुख निर्णय – Delhi Race Club (1940) Ltd. v. State of Uttar Pradesh (2024)

  • इस मामले में, शिकायतकर्ता ने क्लब तथा उसके पदाधिकारियों के विरुद्ध ₹ 9,11,434/- की महाजनीका (ओट्स/मूल चारा) की सप्लाई के बाद भुगतान न होने के कारण शिकायत दर्ज की थी, जिसमें धारा 406, 420 एवं 120B लागू किए गए थे।
  • एससी ने कहा कि कोर्ट ने यह देखा कि “एक बार जब यह विक्रय (sale) हो गई — अर्थात् संपत्ति का हस्तांतरण हो गया — तो धारा 406 लागू नहीं हो सकती” (प्रस्तावना में entrustment नहीं थी)।
  • साथ ही, एससी ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल भुगतान न करना ठगी नहीं बनाता — क्योंकि वहाँ धोखे की प्रारंभिक नीयत साबित नहीं हुई। इसलिए मामला सामान्य रूप से संविदात्मक देयता का था।
  • एससी ने आगे कहा कि “हम इस बात पर खेद व्यक्त करते हैं कि आज भी पुलिस और न्यायालय विश्वासघात तथा ठगी के बीच अन्तर सहजता से नहीं समझ पा रहे हैं।”
  • इस निर्णय ने यह महत्वपूर्ण बिंदु दोहराया कि धारा 406 और 420 एक ही घटना-वस्तु (transaction) में सामान्यतः नहीं चल सकतीं क्योंकि उनकी अवयव-समय-रूप भिन्न हैं।

(ii) अन्य निर्णय – “Criminal Breach of Trust vs. Cheating: Decoding the Confusion”

  • इस लेख में बताया गया है कि धारा 420 में धोखा/प्रेरणा पहले से मौजूद होना चाहिए, जबकि धारा 406 में entrustment होना चाहिए।
  • लेख में यह भी दर्शाया गया है कि पुलिस कभी-कभी धारा 420 को इसलिए लागू करती है क्योंकि ठगी सन्दर्भ में Prevention of Money‑Laundering Act, 2002 के अंतर्गत उपाय हो सकते हैं, जबकि धारा 406 वह मौका नहीं देती।

(iii) प्रक्रिया-संबंधी दिशा-निर्देश

  • एससी ने यह कहा कि जब प्रारंभिक समाहार पर प्रोसेस जारी किया जाता है, तब मैजिस्ट्रेट को यह देखना चाहिए कि क्या आरोप में प्रिलिमिनरी ग्राउंड्स हैं कि आवश्यक अवयव मौजूद हैं–जैसे कि धोखे की नीयत कब बनी, entrustment कब हुआ, आदि।
  • “अदालत ने कहा कि समाहार (summons) जारी करना एक गम्भीर कदम है और इसे यंत्रवत् नहीं बल्कि सामग्री-आधारित सोच के बाद करना चाहिए।”

(iv) नीयत-समय पर विशेष ध्यान

  • ठगी (धारा 420) के लिए यह ज़रूरी है कि धोखे की नीयत प्रस्ताव या वादा बनाते समय हो — यदि वह नीयत बाद में विकसित हुई हो, तो ठगी का अपराध नहीं बनता।
  • विश्वासघात (धारा 406) में यह देखा जाता है कि entrustment से लेकर दुरुपयोग तक नीयत में निरंतरता बनी हो — अर्थात् चाहे दुरुपयोग बाद में हुआ हो, उसमें भरोसे के टूटने की शुरुआत पहले से होनी चाहिए।

(v) “दोनों धाराएँ एक ही लेनदेन में नहीं चल सकतीं”– सिद्धांत

  • उच्च न्यायालयों और कुछ सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने यह माना है कि धारा 406 और 420 एक ही लेनदेन (transaction) के विरुद्ध नहीं चल सकती — क्योंकि उन्हें अलग-अलग अवयव चाहिए।
  • उदाहरणतः एक न्यायालय ने कहा: “Offences under Sections 420 and 406 IPC are anti-thesis of each other.”
  • परंतु ध्यान दें — यह ‘समान लेनदेन’ की स्थिति में है; यदि आरोपी ने विभिन्न लेनदेन में विभिन्न व्यक्तियों के विरुद्ध चोरी/धोखे और दूसरे विरुद्ध भरोसेघात किया हो, तो दोनों धाराएँ चल सकती हैं।

4. व्यावहारिक दिशा-निर्देश / सुझाव

पुलिस / अभियोजन के लिए

  • शिकायत दर्ज करते समय यह प्रमाण जुटाएँ कि धोखे/विश्वासघात की प्रारंभ नीयत कब बनी थी — प्रस्ताव/वादा करते वक्त या सौंपते समय।
  • यदि मामला सिर्फ भुगतान न करने का है, तो पहले संविदात्मक देयता (civil liability) की दिशा देखें; अपराध के तत्व (mens rea, entrustment, deception) मौजूद हैं–नहीं यह देखें।
  • जब विश्वासघात (धारा 406) का आरोप हो, तो यह स्पष्ट करें कि संपत्ति या नियंत्रण पहले से “विश्वास” में सौंपा गया था (entrustment) — सिर्फ बाद में भुगतान न करना पर्याप्त नहीं।
  • अभियोजन-पत्र (charge-sheet) तैयार करते समय यह ध्यान रखें कि धारा 420 हेतु deception, inducement तथा संपत्ति हस्तांतरण हो चुका हो; धारा 406 हेतु entrustment व दुरुपयोग हो चुका हो।

अभिभाषक / बचाव पक्ष के लिए

  • यदि क्लाइंट पर धारा 420 का आरोप है, तो यह प्रश्न उठाएँ कि क्या धोखे की नीयत प्रस्ताव/वादा बनने समय मौजूद थी या वह बाद में आई है? यदि बाद में आई है, तो ठगी नहीं बनी।
  • यदि धारा 406 का आरोप है, तो पूछें: क्या वास्तव में entrustment हुआ था? क्या नियंत्रण या भरोसा A → B के बीच स्पष्ट था? सिर्फ विक्रय (sale)-सबंधित देयता नहीं पर्याप्त।
  • दोनों धाराओं के एक ही लेनदेन में आरोप किए गए हों, तो इस बिंदु पर आप मोटे तौर पर अपील कर सकते हैं कि “दोनों धाराएँ नहीं चल सकतीं” — सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के आधार पर।

न्यायालय के लिए

  • समाहार (summons) जारी करते समय मैजिस्ट्रेट को यह देखना चाहिए कि क्या शिकायत में पर्याप्त बिंदु हैं कि नीयत-समय, entrustment/deception स्पष्ट है।
  • यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्रिमिनल फरेमवर्क को संविदात्मक विवाद का रूप नहीं दिया जाए; केवल इसलिए कि भुगतान नहीं हुआ, क्रिमिनल धारा नहीं लगाई जा सकती।

5. निष्कर्ष

  • धारा 420 (ठगी) और धारा 406 (विश्वासघात) दोनों में नीयत का समय एक निर्णायक बिंदु है। ठगी में प्रारंभ-नीयत आवश्यक है; विश्वासघात में entrustment से दुरुपयोग तक नीयत का प्रवाह चाहिए।
  • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ये दो अपराध केवल एक ही लेनदेन में सामान्यतः नहीं चल सकते, क्योंकि उनकी संरचना व अवयव अलग-अलग हैं।
  • इसलिए, अभियोजन और बचाव दोनों को इस “नीयत-समय” के बारीक विश्लेषण पर विशेष ध्यान देना चाहिए; सिर्फ देयता-प्राप्ति या भुगतान-न करना स्वतः अपराध नहीं बनाता।
  • परीक्षा-तैयारी के दृष्टिकोण से यह विषय महत्वपूर्ण है — अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे “ठगी व विश्वासघात में अंतर क्या है?”, “नीयत का समय कब मापनीय है?”, “क्या धारा 420 व 406 एक-साथ चल सकते हैं?” इत्यादि। इस लेख द्वारा आपको उन बिंदुओं का गहरा चित्र मिल गया होगा।