“निगरानी की आड़ में हिस्ट्रीशीटर्स के घरों में घुसना असंवैधानिक: केरल हाईकोर्ट की पुलिस पर सख्त टिप्पणी”

लेख शीर्षक:
“निगरानी की आड़ में हिस्ट्रीशीटर्स के घरों में घुसना असंवैधानिक: केरल हाईकोर्ट की पुलिस पर सख्त टिप्पणी”


भूमिका:
भारत में अपराध नियंत्रण के नाम पर पुलिस को कई विशेष शक्तियां प्रदान की गई हैं, जिनमें ‘निगरानी’ एक प्रमुख साधन है। लेकिन हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने इस शक्ति के दुरुपयोग पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस किसी व्यक्ति के ‘हिस्ट्रीशीटर’ होने के आधार पर उसके घर में जबरन प्रवेश नहीं कर सकती, जब तक कि वैध कारण और कानूनी प्रक्रिया का पालन न किया गया हो।

इस निर्णय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निजता के अधिकार और पुलिस की जवाबदेही जैसे मुद्दों को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है।


🔹 मामले की पृष्ठभूमि:

एक याचिकाकर्ता ने केरल हाईकोर्ट में शिकायत दर्ज की कि:

  • वह पहले कुछ आपराधिक मामलों में आरोपी रहा है और पुलिस ने उसे हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया है।
  • इसके आधार पर पुलिस अधिकारी बार-बार उसके घर में घुसते हैं, परिवार से सवाल-जवाब करते हैं और निगरानी के नाम पर मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं।
  • यह न केवल अवैध है, बल्कि उसके निजता के अधिकार (Right to Privacy) का स्पष्ट उल्लंघन है।

🔹 केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी:

न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हीकृष्णन (Justice P.V. Kunhikrishnan) की एकलपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

निगरानी की आड़ में किसी भी व्यक्ति के घर में जबरन प्रवेश करना संविधान द्वारा प्रदत्त निजता के अधिकार का हनन है।

हिस्ट्रीशीटर होना किसी व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं करता। पुलिस को कानून के अनुसार कार्य करना होगा, न कि मनमानी से।


🔹 महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत

📌 अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार

हर व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। इसमें निजता, स्वतंत्रता और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा शामिल है।

📌 Puttaswamy v. Union of India (2017)

सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। यह निर्णय पुलिस की मनमानी कार्रवाई के खिलाफ मजबूत आधार प्रदान करता है।

📌 Kharak Singh v. State of UP (1962)

इस मामले में भी पुलिस की निगरानी गतिविधियों की आलोचना की गई थी, और कहा गया था कि बिना उचित प्रक्रिया के घर में निगरानी असंवैधानिक है।


🔹 हिस्ट्रीशीटर और निगरानी रजिस्टर का दुरुपयोग

पुलिस अक्सर पुराने आरोपियों को निगरानी रजिस्टर में डालकर, बिना किसी ताज़ा अपराध या शिकायत के, उनके मानवाधिकारों का हनन करती है।

  • इस तरह की कार्रवाई से व्यक्ति और उसके परिवार को सामाजिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान होता है।
  • कई बार यह राजनीतिक या व्यक्तिगत कारणों से भी किया जाता है।

🔹 कोर्ट ने क्या निर्देश दिए?

  1. पुलिस को केवल निगरानी के आधार पर किसी के घर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
  2. यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ नई आपराधिक शिकायत या जांच हो, तभी उसके घर में तलाशी या प्रवेश किया जा सकता है — वह भी CrPC के प्रावधानों के अनुसार
  3. निगरानी रजिस्टर का उद्देश्य केवल सतर्कता है, न कि दमन।
  4. पुलिस को नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करना अनिवार्य है।

🔹 इस निर्णय का व्यापक महत्व

मानवाधिकारों की रक्षा

इस फैसले से स्पष्ट हुआ कि पुलिस की शक्तियां असीमित नहीं हैं, और उन्हें संविधान की सीमाओं में रहकर ही काम करना होगा।

हिस्ट्रीशीटर की भी है गरिमा

केरल हाईकोर्ट ने यह स्थापित किया कि पूर्व अपराधी होने मात्र से कोई नागरिक अपने मूल अधिकारों से वंचित नहीं होता

पुलिस की जवाबदेही तय

अब यदि कोई पुलिस अधिकारी निगरानी के नाम पर मनमानी करता है, तो उसके खिलाफ कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है


🔹 निष्कर्ष:

केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय केवल एक व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा नहीं करता, बल्कि भारत में नागरिक स्वतंत्रता और पुलिस की जवाबदेही को मजबूती प्रदान करता है।
यह बताता है कि लोकतंत्र में कानून के ऊपर कोई नहीं, चाहे वह आम नागरिक हो या वर्दीधारी अधिकारी।

संविधान की शक्ति का यही अर्थ है – जहां हर व्यक्ति की गरिमा और निजता सर्वोपरि है।