शीर्षक: नाबालिग विवाह: धार्मिक रीति-रिवाजों और क़ानूनी वास्तविकताओं की पड़ताल (POCSO अधिनियम एवं बाल विवाह निषेध अधिनियम के अंतर्गत)
प्रस्तावना
भारत में विवाह को सामाजिक तथा धार्मिक रीति-रिवाजों का पवित्र बंधन माना जाता है। अतः कई परिवार धार्मिक रीति से नाबालिग लड़कियों का विवाह कर देते हैं। किंतु भारतीय दंड संहिता (IPC), बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (Prohibition of Child Marriage Act, 2006) तथा पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act, 2012) जैसे कड़े कानून इस प्रथा को अभिशप्त ठहराते हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि—
- धार्मिक रीति से सम्पन्न बाल विवाह क्यों अवैध है
- बाल विवाह निषेध अधिनियम में प्रावधान एवं दण्ड
- POCSO अधिनियम के तहत यौन शोषण मानने का आधार
- दोनों कानूनों का संगम और मिसालें
- नीतिगत सुझाव एवं जागरूकता
1. धार्मिक रीति-रिवाज बनाम संवैधानिक प्रावधान
- धार्मिक स्वतंत्रता: अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक आचरण की स्वतंत्रता है, परन्तु इसका दायरा “सामान्य सद्भाव, नैतिकता और स्वास्थ्य” के विरुद्ध नहीं जा सकता।
- समानता का अधिकार: अनुच्छेद 14-15 के तहत प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार प्राप्त है। बाल विवाह लड़कियों को शारीरिक, मानसिक व सामाजिक स्तर पर असमानता में डालता है।
- बाल संरक्षण: अनुच्छेद 15(3) एवं 39(e),(f) संविधान के तहत राज्य पर बच्चों को संरक्षण देने का दायित्व है।
2. बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
- परिभाषा:
- बालक: 21 वर्ष से कम आयु का पुरुष
- बालिका: 18 वर्ष से कम आयु की महिला
- निषेध आदेश: §3 के अंतर्गत नाबालिग का विवाह करने वाले एवं करवाने वाले—दोनों दण्डनीय।
- दण्ड (§7): पहली बार अपराधी को छह महीने तक का कारावास या ₹1 लाख तक जुर्माना, अथवा दोनों। पुनरावृत्ति पर ज्यादा कड़ी सजा।
- विवाह रद्दीकरण: §3(3) के तहत नाबालिग की याचिका पर कोर्ट विवाह को रद्द कर सकता है।
3. POCSO अधिनियम, 2012 के प्रावधान
- उद्देश्य: बच्चों (18 वर्ष से कम) के यौन शोषण, दुर्व्यवहार व परस्पर अनैतिक गतिविधियों को रोकना।
- परिभाषा (§2(1)(d)): ‘यौन संबंध’ में “संभोग” समेत कई कृत्य आते हैं, जिसमें नाबालिग के साथ विवाह संबंध को भी यौन अपराध माना जा सकता है।
- दण्ड (§4–9):
- संभवा यौन अपराध: 7 वर्ष तक कैद, जुर्माना।
- गंभीर अपराध: 10–20 वर्ष कैद व इलाज के बाद शासकीय संकल्प।
- ईमानदारी की कट्टरता: शिकार नाबालिग की सहमति का क़ानून में कोई वैध महत्व नहीं—अन्यथा भी शक्ति असंतुलन बनता है।
4. कानूनों का अंतरंग संबंध
- बाल विवाह निषेध अधिनियम विवाह सम्बन्ध को रद्द और दंडित करता है, जबकि POCSO अधिनियम यौन अपराध के रूप में पति के खिलाफ मुकदमा जोड़ता है।
- दृष्टांत:
- अमरिन्दर सिंह बनाम राज्य सरकार में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नाबालिग के साथ विवाह—even if religiously solemnized—is both a prohibited marriage under Child Marriage Act and sexual intercourse under POCSO§3(2)(v) का अपराध।
- कथनी व करनी का मेल: ग्रामीण व कुपठित क्षेत्रों में धार्मिक रीति-रिवाजों के नाम पर होने वाले बाल विवाहों पर कानून का पूर्ण उपयोग और सामाजिक जागरूकता आवश्यक।
5. चुनौतियाँ एवं समाधान
- जागरूकता अभाव:
- स्कूल, पंचायत एवं समुदाय स्तर पर कानूनी शिक्षा।
- लागू कार्यवाही में बाधाएँ:
- पुलिस त्वरित एफआईआर दर्ज कर, सख्त पूछताछ सुनिश्चित करें।
- वैकल्पिक कल्याण:
- किशोरी विवाहिता की शिक्षा-सहायता, पुनर्वास व आर्थिक सहायता योजनाएँ।
- समाज-धर्मगुरुओं की भूमिका:
- धार्मिक नेताओं को सम्मानजनक ढंग से कानून की व्याख्या कर समाज में परिवर्तन का नेतृत्व देना चाहिए।
समापन
नाबालिग के साथ धार्मिक रीति से सम्पन्न विवाह न केवल संवैधानिक मूल्यों का अपमान है, बल्कि बालिका के जीवन, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता पर चोट भी है। बाल विवाह निषेध अधिनियम एवं POCSO अधिनियम दोनों मिलकर विवाह को अवैध ठहराते तथा यौन अपराध मानते हुए आरोपी को सज़ा देते हैं। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार कभी भी नाबालिगों के संरक्षण के संवैधानिक दायित्व के आगे नहीं टिक सकता। समाज, प्रशासन और न्यायपालिका—तीनों को मिलकर इस प्रथा को समाप्त करना होगा, तभी हम एक सशक्त और न्यायपूर्ण राष्ट्र बन पाएंगे।