नाबालिग न्याय अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act, 2015) – एक विस्तृत अध्ययन
प्रस्तावना
भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में अपराध नियंत्रण, विशेषकर बच्चों और किशोरों से जुड़े अपराधों का प्रश्न, सदैव गंभीर रहा है। समाज में यह धारणा लंबे समय से रही है कि नाबालिगों को सुधार के अवसर मिलने चाहिए न कि कठोर दंड। इसी सिद्धांत के आधार पर भारत सरकार ने समय-समय पर नाबालिग न्याय प्रणाली में सुधार किए। 1986 में पहला नाबालिग न्याय अधिनियम अस्तित्व में आया। इसके बाद 2000 में नया अधिनियम लागू हुआ, लेकिन दिल्ली के निर्भया कांड (2012) के बाद समाज में भारी दबाव और व्यापक बहस ने सरकार को नया कानून बनाने पर विवश कर दिया। इसी पृष्ठभूमि में संसद ने नाबालिग न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 पारित किया।
यह अधिनियम न केवल अपराधी नाबालिगों से संबंधित है बल्कि उन बच्चों से भी है जो परित्यक्त, अनाथ, शोषित या असुरक्षित परिस्थितियों में पाए जाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों की संरक्षा, देखभाल, पुनर्वास और पुन: एकीकरण है, जिससे वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।
अधिनियम का उद्देश्य
नाबालिग न्याय अधिनियम, 2015 के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- बच्चों के सर्वोत्तम हितों की रक्षा करना।
- बाल अपराधियों को सुधारने और समाज में पुन: स्थापित करने के लिए न्यायोचित प्रावधान करना।
- अनाथ, परित्यक्त और असुरक्षित बच्चों की देखरेख और पुनर्वास की व्यवस्था करना।
- गंभीर अपराधों में शामिल नाबालिगों के लिए विशेष प्रावधान करना।
- बच्चों को शोषण, उपेक्षा और तस्करी से बचाने हेतु कानूनी तंत्र को मजबूत बनाना।
अधिनियम की विशेषताएँ
2015 के अधिनियम में कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं, जो इसे पूर्ववर्ती अधिनियम से अलग बनाते हैं –
1. आयु सीमा
- अधिनियम के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक व्यक्ति को “बच्चा” या “नाबालिग” माना जाएगा।
- हालांकि, गंभीर अपराधों (जैसे हत्या, बलात्कार, जघन्य अपराध) के मामलों में 16-18 वर्ष की आयु वाले नाबालिगों को विशेष परिस्थितियों में वयस्क की तरह मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।
2. अपराध की श्रेणियाँ
अधिनियम ने अपराधों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है –
- साधारण अपराध (Petty Offence): अधिकतम 3 वर्ष की सजा वाले अपराध।
- गंभीर अपराध (Serious Offence): 3 से 7 वर्ष की सजा वाले अपराध।
- जघन्य अपराध (Heinous Offence): 7 वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले अपराध।
3. किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board – JJB)
- प्रत्येक जिले में किशोर न्याय बोर्ड का गठन अनिवार्य किया गया है।
- यह बोर्ड नाबालिगों से संबंधित अपराधों की सुनवाई करता है।
- इसमें एक न्यायिक मजिस्ट्रेट और दो समाजसेवी सदस्य होते हैं, जिनमें से एक महिला होनी चाहिए।
4. बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee – CWC)
- प्रत्येक जिले में बाल कल्याण समिति गठित की जाती है।
- यह समिति उन बच्चों से संबंधित मामलों को देखती है जो अपराधी नहीं बल्कि संरक्षण और देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चे होते हैं।
- समिति का कार्य बच्चों को सुरक्षित वातावरण, आश्रय, दत्तक ग्रहण और पुनर्वास की व्यवस्था करना है।
5. दत्तक ग्रहण (Adoption)
- इस अधिनियम में दत्तक ग्रहण से संबंधित विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।
- Central Adoption Resource Authority (CARA) को सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया है।
- किसी भी दंपति या अविवाहित व्यक्ति द्वारा भारतीय और विदेशी बच्चों को दत्तक लिया जा सकता है।
6. पुनर्वास और सामाजिक एकीकरण
- नाबालिग अपराधियों को जेल में नहीं भेजा जाता, बल्कि विशेष बाल सुधार गृहों में रखा जाता है।
- वहां शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, परामर्श और अन्य पुनर्वास कार्यक्रम उपलब्ध कराए जाते हैं।
7. जघन्य अपराध और 16-18 आयु वर्ग
- यह अधिनियम सबसे अधिक चर्चित इस प्रावधान के कारण हुआ कि यदि 16-18 वर्ष का नाबालिग किसी जघन्य अपराध में शामिल होता है, तो किशोर न्याय बोर्ड उसकी मानसिक और शारीरिक क्षमता का आकलन कर सकता है।
- यदि यह पाया जाता है कि अपराध सोच-समझकर किया गया है, तो उसे वयस्क के रूप में सत्र न्यायालय में मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।
अधिनियम की प्रमुख धाराएँ (Main Provisions)
- धारा 2(12): 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को बच्चा माना जाएगा।
- धारा 4-9: किशोर न्याय बोर्ड के गठन और उसकी शक्तियाँ।
- धारा 27-30: बाल कल्याण समिति के गठन और अधिकार।
- धारा 56-73: दत्तक ग्रहण से संबंधित प्रावधान।
- धारा 74: बच्चों की पहचान प्रकट करने पर प्रतिबंध।
- धारा 86: अपराधों के लिए विशेष न्यायालय की स्थापना।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य
निर्भया मामले के बाद इस अधिनियम की सबसे अधिक आलोचना और समर्थन दोनों देखने को मिले। समाज का एक वर्ग चाहता था कि 16-18 वर्ष के अपराधियों को वयस्क की तरह ही सजा मिले क्योंकि कई मामलों में अपराध अत्यंत गंभीर होते हैं। वहीं, दूसरा वर्ग मानता था कि नाबालिगों का मस्तिष्क अभी पूर्ण रूप से विकसित नहीं होता, इसलिए उन्हें सुधार का अवसर मिलना चाहिए।
2015 का अधिनियम दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करता है। यह नाबालिगों को दंडित करने के बजाय सुधारने पर बल देता है, लेकिन गंभीर अपराधों में कठोर दृष्टिकोण अपनाने की भी अनुमति देता है।
अधिनियम की उपलब्धियाँ
- दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया।
- बाल तस्करी और शोषण से बच्चों की सुरक्षा के लिए कानूनी ढांचा मजबूत हुआ।
- बाल अपराधियों के पुनर्वास के लिए सुधार गृह और परामर्श सेवाओं का विस्तार हुआ।
- गंभीर अपराधों में 16-18 वर्ष की आयु वाले नाबालिगों पर सख्त रुख अपनाया गया।
आलोचनाएँ और चुनौतियाँ
- 16-18 वर्ष के बच्चों को वयस्क की तरह मुकदमे का सामना कराना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में दिए गए समानता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया गया।
- अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन में संसाधनों की कमी है।
- कई सुधार गृहों में भ्रष्टाचार और दयनीय स्थिति पाई गई।
- बाल कल्याण समितियों की कार्यप्रणाली अक्सर धीमी और असंतोषजनक रही है।
- समाज में नाबालिग अपराधियों को “अपराधी” की बजाय “सुधार योग्य” मानने की मानसिकता का अभाव है।
न्यायिक दृष्टिकोण
भारत के विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने नाबालिग न्याय अधिनियम, 2015 की व्याख्या करते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं।
- सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016): सुप्रीम कोर्ट ने 16-18 वर्ष के नाबालिगों पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
- अदालतों ने बार-बार कहा है कि इस अधिनियम का उद्देश्य दंड नहीं बल्कि सुधार है।
निष्कर्ष
नाबालिग न्याय अधिनियम, 2015 एक ऐसा कानूनी प्रावधान है, जो बच्चों के अधिकारों, सुरक्षा और पुनर्वास को केंद्र में रखता है। यह कानून बच्चों को अपराध की दुनिया से बाहर निकालकर उन्हें शिक्षा, प्रशिक्षण और समाज में पुन: प्रतिष्ठा दिलाने का मार्ग प्रशस्त करता है। हालांकि इसके क्रियान्वयन में अनेक चुनौतियाँ हैं, फिर भी यह अधिनियम भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार का प्रतीक है।
समाज को यह समझना होगा कि बच्चे भविष्य के नागरिक हैं। उन्हें अपराधी के रूप में देखने के बजाय सुधार और अवसर प्रदान करने की नीति ही सही दिशा है। यही नाबालिग न्याय अधिनियम, 2015 का मूल दर्शन है।