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नाबालिग के गुप्तांगों को छूना बलात्कार नहीं, बल्कि यौन उत्पीड़न: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

नाबालिग के गुप्तांगों को छूना बलात्कार नहीं, बल्कि यौन उत्पीड़न: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

प्रस्तावना

भारत में बाल यौन शोषण के मामलों की गंभीरता को देखते हुए संसद ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) लागू किया था। इस कानून का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लील हरकतों से बचाना है। हालांकि, कई बार अदालतों के सामने यह प्रश्न आता है कि किसी विशेष कृत्य को “बलात्कार” (Rape) माना जाए या “यौन उत्पीड़न” (Sexual Assault)।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि बिना प्रवेशात्मक (penetrative) कृत्य के नाबालिग लड़की के गुप्तांगों को छूना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता, बल्कि इसे POCSO Act के तहत यौन उत्पीड़न माना जाएगा।


मामला: लक्ष्मण जांगड़े बनाम राज्य

इस प्रकरण में आरोपी लक्ष्मण जांगड़े पर आरोप था कि उसने 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की के गुप्तांगों को छुआ और अपने गुप्तांगों को भी छुआ

  • ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को IPC की धारा 376एबी (12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार) और POCSO Act की धारा 6 (गंभीर प्रवेशात्मक यौन उत्पीड़न) के तहत दोषी मानते हुए 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
  • हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के निर्णय की पुष्टि की।
  • इसके खिलाफ आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ (जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस जॉयमाल्या बागची) ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि:

  1. मेडिकल रिपोर्ट,
  2. पीड़िता के अलग-अलग अवसरों पर दिए गए बयान,
  3. और गवाहों की गवाही

से यह स्पष्ट नहीं हुआ कि कोई प्रवेशात्मक (penetrative) कृत्य हुआ हो।

मुख्य अवलोकन:

  • केवल गुप्तांग को छूना IPC की धारा 375/376एबी के अंतर्गत बलात्कार नहीं है।
  • यह आचरण POCSO Act की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) की श्रेणी में आता है।
  • चूंकि पीड़िता 12 वर्ष से कम उम्र की थी, इसलिए यह अपराध POCSO Act की धारा 9(एम) के अंतर्गत गंभीर यौन उत्पीड़न (Aggravated Sexual Assault) माना जाएगा।
  • इसके अलावा आरोपी पर IPC की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाना) भी लागू होती है।

अतः सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की 376एबी और POCSO की धारा 6 के तहत दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया, लेकिन उसे यौन उत्पीड़न और महिला की गरिमा भंग से संबंधित अपराधों का दोषी ठहराया।


संबंधित धाराएँ और प्रावधान

(1) भारतीय दंड संहिता (IPC)

  • धारा 375/376 – बलात्कार से संबंधित प्रावधान।
  • धारा 376एबी – यदि कोई व्यक्ति 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार करता है तो उसे कठोर दंड (20 वर्ष से लेकर मृत्युदंड तक) दिया जा सकता है।
  • धारा 354 – किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसकी गरिमा भंग करने हेतु शारीरिक संपर्क करना अपराध है।

(2) POCSO Act, 2012

  • धारा 7 – यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के गुप्तांगों को छूता है या बच्चे को ऐसा करने के लिए मजबूर करता है, तो यह यौन उत्पीड़न है।
  • धारा 9(एम) – यदि पीड़ित की आयु 12 वर्ष से कम है तो यह गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाएगा।
  • धारा 6 – गंभीर प्रवेशात्मक यौन उत्पीड़न पर कठोर दंड।

कानूनी विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि:

  1. बलात्कार और यौन उत्पीड़न में अंतर – बलात्कार तभी माना जाएगा जब प्रवेशात्मक कृत्य साबित हो। मात्र स्पर्श या छेड़छाड़ को बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
  2. POCSO Act की कठोरता – यह कानून बच्चों को हर प्रकार की यौन हिंसा से बचाने के लिए बना है। इसलिए इसमें प्रवेशात्मक और गैर-प्रवेशात्मक दोनों अपराधों को अलग-अलग परिभाषित किया गया है।
  3. साक्ष्य का महत्व – अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि मेडिकल साक्ष्य और गवाहियों से प्रवेशात्मक कृत्य साबित नहीं होता, तो आरोपी को बलात्कार के अपराध में दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
  4. IPC और POCSO का समन्वय – यह मामला यह भी दिखाता है कि कई बार IPC और POCSO की धाराएँ समानांतर चल सकती हैं।

प्रभाव और महत्व

यह निर्णय कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • स्पष्टता – इससे निचली अदालतों को यह स्पष्ट मार्गदर्शन मिलेगा कि किन परिस्थितियों में किसी आरोपी पर बलात्कार की धारा लगाई जाए और कब यौन उत्पीड़न की धारा लागू हो।
  • बच्चों की सुरक्षा – हालांकि आरोपी की सजा कम हुई है, लेकिन अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि नाबालिग बच्ची के साथ किया गया अपराध दंडित अवश्य हो।
  • कानूनी संतुलन – इस निर्णय से यह संतुलन बना है कि आरोपी पर बिना पर्याप्त साक्ष्य के कठोर धारा (376एबी) लागू न की जाए, परंतु अपराध को भी अनदेखा न किया जाए।

आलोचना और बहस

इस फैसले ने कानूनी और सामाजिक दोनों स्तर पर बहस छेड़ दी है।

  • आलोचकों का तर्क – इस निर्णय से अपराधियों को तकनीकी आधार पर कठोर दंड से बचने का मौका मिल सकता है।
  • समर्थकों का तर्क – कानून का उद्देश्य न्याय करना है, न कि बिना पर्याप्त प्रमाण किसी पर कठोर दंड लगाना। इसलिए यह निर्णय न्यायसंगत है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि:

  • नाबालिग के गुप्तांगों को छूना बलात्कार नहीं बल्कि यौन उत्पीड़न है।
  • इस तरह के मामलों में साक्ष्य और प्रवेशात्मक कृत्य की पुष्टि अत्यंत आवश्यक है
  • साथ ही अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि आरोपी अपने कृत्य के लिए बिना दंड के न बचे।

यह निर्णय एक ओर न्यायिक विवेक और साक्ष्यों पर आधारित निष्पक्षता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह भी संकेत देता है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का सही और संतुलित प्रयोग किया जाना चाहिए।


नाबालिग के गुप्तांगों को छूना बलात्कार नहीं, बल्कि यौन उत्पीड़न: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

प्रस्तावना

भारत में POCSO Act, 2012 को बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देने के उद्देश्य से बनाया गया। इस कानून में प्रवेशात्मक (Penetrative) और गैर-प्रवेशात्मक (Non-Penetrative) अपराधों के बीच स्पष्ट अंतर किया गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण जांगड़े बनाम राज्य मामले में यह स्पष्ट किया कि नाबालिग लड़की के गुप्तांगों को छूना बलात्कार नहीं, बल्कि यौन उत्पीड़न है।


मामला: लक्ष्मण जांगड़े बनाम राज्य

आरोपी को ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने IPC धारा 376एबी और POCSO धारा 6 के तहत दोषी ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि

  • कोई penetration (प्रवेश) साबित नहीं हुआ।
  • केवल छूने का कृत्य POCSO धारा 7 और 9(एम) के तहत यौन उत्पीड़न/गंभीर यौन उत्पीड़न है।
  • आरोपी IPC धारा 354 का भी दोषी है, लेकिन IPC धारा 376एबी और POCSO धारा 6 का नहीं।

संबंधित प्रावधान

  • IPC धारा 375/376 – बलात्कार
  • IPC धारा 376एबी – 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार
  • IPC धारा 354 – महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाना
  • POCSO धारा 7 – यौन उत्पीड़न (Sexual Assault)
  • POCSO धारा 9(एम) – गंभीर यौन उत्पीड़न (यदि बच्चा 12 वर्ष से कम आयु का है)
  • POCSO धारा 6 – गंभीर प्रवेशात्मक यौन उत्पीड़न पर दंड

सुप्रीम कोर्ट का कानूनी विश्लेषण

  • बलात्कार और यौन उत्पीड़न में स्पष्ट अंतर करना आवश्यक।
  • प्रवेशात्मक अपराध साबित करने के लिए मेडिकल साक्ष्य और गवाहियों का होना ज़रूरी।
  • केवल छूने को बलात्कार कहना कानून की मंशा के विपरीत होगा।

महत्वपूर्ण केस लॉ

  1. State of Punjab v. Gurmit Singh (1996) 2 SCC 384
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों के मामलों में पीड़िता की गवाही को विशेष महत्व देना चाहिए, बशर्ते वह विश्वसनीय हो।
  2. Satish Ragde v. State of Maharashtra (2021) (Nawab Malik case)
    • बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि कपड़े के ऊपर से गुप्तांग छूना POCSO के तहत यौन उत्पीड़न नहीं है।
    • लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द करते हुए कहा कि skin-to-skin टेस्ट कानून के खिलाफ है। कपड़े के ऊपर से छूना भी अपराध है।
  3. State of Himachal Pradesh v. Raghubir Singh (1993) 2 SCC 622
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों में आरोपी को केवल तकनीकी कारणों से दंड से मुक्त नहीं किया जा सकता, लेकिन साक्ष्य की मजबूती आवश्यक है।
  4. Tukaram v. State of Maharashtra (Mathura Rape Case, 1979 AIR 185)
    • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की आलोचना हुई थी क्योंकि उसने आरोपी को लाभ दिया। बाद में इस केस ने धारा 376 में संशोधन और POCSO Act जैसे कानूनों की आवश्यकता पर बल दिया।
  5. Independent Thought v. Union of India (2017) 10 SCC 800
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह में यदि पति पत्नी (15-18 वर्ष) के साथ यौन संबंध बनाता है, तो उसे भी बलात्कार माना जाएगा। यह बच्चों की सुरक्षा की भावना को मजबूत करता है।

प्रभाव

  • निचली अदालतों को स्पष्ट दिशा: penetration और touching के बीच अंतर।
  • बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित, परंतु आरोपी पर केवल उचित धाराएँ लागू हों।
  • न्यायपालिका द्वारा POCSO की मंशा का सही अनुप्रयोग।

आलोचना और बहस

  • आलोचक: आरोपी को तकनीकी कारणों से कठोर दंड से राहत मिल सकती है।
  • समर्थक: बिना प्रवेशात्मक साक्ष्य के बलात्कार साबित करना न्यायसंगत नहीं।
  • संतुलन: अदालत ने सुनिश्चित किया कि अपराध बिना दंड के न रहे, भले ही धारा बदली गई हो।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा से जुड़े कानूनों की व्याख्या को नया आयाम देता है।

  • नाबालिग के गुप्तांगों को छूना बलात्कार नहीं, बल्कि यौन उत्पीड़न है।
  • IPC और POCSO की धाराओं का संतुलित उपयोग करना न्याय की आवश्यकता है।
  • यह फैसला बताता है कि कठोर दंड तभी लगाया जाए जब प्रवेशात्मक अपराध के साक्ष्य हों।

इस प्रकार, यह निर्णय न्यायपालिका की संवेदनशीलता और कानून के सही अनुप्रयोग दोनों का उदाहरण है।