“नागरिकों की सुरक्षा और प्रक्रिया न्यायः नई संहिता का प्रभाव”
🔷 प्रस्तावना:
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कानून और प्रक्रिया का उद्देश्य केवल अपराध को दंडित करना नहीं, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और उन्हें निष्पक्ष न्याय देना भी है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) वर्षों से इस उद्देश्य को पूरा कर रही थी, किंतु तकनीकी, सामाजिक और संवैधानिक परिवर्तनों के साथ उसकी सीमाएं स्पष्ट हो गई थीं।
इन्हीं चिंताओं के बीच “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023” (भा.ना.सु.सं.) को लागू किया गया है। यह कानून भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक समावेशी, पीड़ित-केंद्रित, और नागरिकों की रक्षा में तत्पर बनाने का दावा करता है। इस लेख में हम नई संहिता के प्रभावों को नागरिक सुरक्षा और प्रक्रिया न्याय के दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे।
🔷 1. नागरिक सुरक्षा की अवधारणा:
नागरिक सुरक्षा का आशय केवल शारीरिक सुरक्षा से नहीं, बल्कि कानूनी सुरक्षा, गरिमा, निजता और निष्पक्षता से भी है। भा.ना.सु.सं. 2023 ने इस अवधारणा को केंद्र में रखते हुए कुछ प्रमुख प्रावधान किए हैं:
- ई-एफआईआर और ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की सुविधा, जिससे विशेषकर महिलाएं और कमजोर वर्ग सुरक्षित रूप से रिपोर्ट कर सकें।
- पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के अधिकारों पर सीमाएं, जिससे मनमानी गिरफ्तारियों को रोका जा सके।
- वीडियो रिकॉर्डिंग और डिजिटल ट्रायल, जो पुलिसिया उत्पीड़न और ग़लत बयानों से सुरक्षा देते हैं।
🔷 2. प्रक्रिया न्याय (Procedural Justice) की भूमिका:
प्रक्रिया न्याय का अर्थ है – कानून के तहत हर व्यक्ति को निष्पक्ष, पारदर्शी और समान प्रक्रिया का लाभ मिले। नई संहिता इस विचार को निम्नलिखित तरीकों से मजबूत करती है:
- समयबद्ध जांच और ट्रायल: जांच 90 दिन में पूर्ण होनी चाहिए, ताकि न्याय में अनावश्यक देरी से नागरिकों को क्षति न पहुंचे।
- पीड़ित को सूचना देने का अधिकार: प्राथमिकी, चार्जशीट, जमानत आदेश की कॉपी पीड़ित को देना अनिवार्य किया गया है।
- गवाहों की सुरक्षा: गवाहों की पहचान और सुरक्षा के लिए प्रावधान, जिससे भय के बिना साक्ष्य दिया जा सके।
🔷 3. डिजिटल न्याय प्रणाली:
भा.ना.सु.सं. 2023 तकनीकी युग के अनुकूल है। इसमें:
- साक्ष्य की इलेक्ट्रॉनिक रूप में मान्यता दी गई है।
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बयान, जिससे समय, संसाधन और सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- डिजिटल चार्जशीट और ट्रैकिंग प्रणाली, जिससे नागरिक अपने मामले की स्थिति ऑनलाइन देख सकते हैं।
यह सब प्रक्रिया को पारदर्शी, सुलभ और नागरिक-मित्र बनाता है।
🔷 4. कमजोर वर्गों की सुरक्षा:
- महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, और अनुसूचित जाति/जनजाति जैसे समूहों के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए हैं।
- महिलाओं के बयान महिला अधिकारी द्वारा लेना, असहाय व्यक्तियों की पहचान की रक्षा, और निजता की रक्षा जैसे कदम न्यायिक प्रक्रिया को मानवीय बनाते हैं।
🔷 5. चुनौतियाँ और आलोचना:
यद्यपि संहिता के प्रावधान नागरिक सुरक्षा की दिशा में स्वागतयोग्य हैं, लेकिन इसके समुचित प्रभाव हेतु कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:
- पुलिस और न्यायालयों के ढांचे में सुधार के बिना तकनीकी बदलाव पर्याप्त नहीं होंगे।
- अशिक्षित और ग्रामीण नागरिकों को डिजिटल प्रक्रियाओं की जानकारी कैसे मिलेगी – यह बड़ा प्रश्न है।
- व्यवस्था का दुरुपयोग रोकने के लिए पर्याप्त निगरानी और जवाबदेही चाहिए।
🔷 निष्कर्ष:
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने नागरिकों की सुरक्षा और प्रक्रिया न्याय को कानूनी व्यवस्था का मूल आधार बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास किया है। यह कानून केवल अपराधियों को दंडित करने तक सीमित नहीं, बल्कि हर नागरिक को सुरक्षा, गरिमा और निष्पक्ष न्याय दिलाने का वादा करता है।
हालांकि यह केवल एक “कानूनी दस्तावेज” नहीं है, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक आत्मा की पुनर्पुष्टि है – जिसमें प्रत्येक नागरिक की स्वतंत्रता, अधिकार और न्याय की भावना सर्वोपरि है।