Supreme Court Flags Failure Of New Arbitration Bill In Providing Statutory Appeal Against Arbitral Tribunals’ Termination Orders
नए मध्यस्थता विधेयक में ट्रिब्यूनलों के समाप्ति आदेशों के विरुद्ध वैधानिक अपील के अभाव पर सुप्रीम कोर्ट की गंभीर टिप्पणी
भारत में मध्यस्थता (Arbitration) को एक प्रभावी, तेज और न्यायिक भार को कम करने वाला विवाद समाधान का माध्यम माना जाता है। लेकिन वर्षों से यह सवाल उठता रहा है कि भारतीय मध्यस्थता कानून—विशेषकर Arbitration and Conciliation Act, 1996—व्यवहार में कितनी प्रभावी है। न केवल देरी, बल्कि प्रक्रियात्मक अस्पष्टताएँ, ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र से जुड़े विवाद, और अपील के सीमित विकल्प अक्सर मध्यस्थता प्रक्रिया को जटिल बनाते रहे हैं।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित नए ‘Arbitration Bill’ में एक मौलिक कमी की ओर संकेत किया—कि अर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के द्वारा मध्यस्थता कार्यवाही को समाप्त (terminate) करने के आदेश के विरुद्ध कोई विशिष्ट वैधानिक अपील प्रावधान इस नए विधेयक में भी नहीं दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी केवल एक तकनीकी आपत्ति नहीं, बल्कि मध्यस्थता की विश्वसनीयता और दक्षता से जुड़ा एक मूल प्रश्न है। यह लेख इसी विषय पर विस्तृत रूप से चर्चा करता है और समझाता है कि यह वैधानिक कमी क्यों महत्वपूर्ण है, इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं, क्या समाधान संभव हैं, और इस पर सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन क्यों विशेष मायने रखते हैं।
प्रस्तावित नया विधेयक: सुधार या अपूर्ण प्रयास?
भारत सरकार ने वर्षों से यह संकेत दिया है कि भारतीय मध्यस्थता ढांचे में व्यापक सुधार की आवश्यकता है ताकि भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का एक प्रमुख केंद्र बन सके। इसी उद्देश्य से एक नया Arbitration Bill तैयार किया गया है जिसमें संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक सुधार शामिल हैं।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि—
ट्रिब्यूनल द्वारा कार्यवाही समाप्त करने (termination under Section 25, Section 32 आदि) के विरुद्ध कोई स्पष्ट अपील प्रावधान विधेयक में नहीं है।
यह कमी मध्यस्थता कानून के हृदय को प्रभावित करती है, क्योंकि termination आदेश कई बार एक पक्ष के लिए गंभीर क्षति का कारण बन सकते हैं—विशेषकर जब termination non-payment of fees, default, या procedural objections के आधार पर किया गया हो।
Termination Orders क्यों महत्वपूर्ण हैं?
अर्बिट्रल ट्रिब्यूनल कई स्थितियों में कार्यवाही समाप्त कर सकता है—जैसे:
- दावा-पत्र या उत्तर-पत्र दाखिल न करना (Section 25)
- दावेदार द्वारा लापरवाही या prosecution में default
- फीस का भुगतान न होना
- पक्षकारों का समझौता हो जाना
- विवाद का प्रभावहीन होना
- ट्रिब्यूनल द्वारा यह पाया जाना कि आगे कार्यवाही संभव नहीं
इनमे से कई termination orders ऐसे होते हैं जो वास्तविक विवाद के गुण-दोष (merits) से संबंधित नहीं होते, बल्कि केवल तकनीकी आधारों पर पारित किए जाते हैं।
ऐसे में यदि किसी पक्ष को termination order गलत लगे, तो उसे स्वाभाविक रूप से न्यायिक समीक्षा (judicial review) का अधिकार मिलना चाहिए। लेकिन वर्तमान कानून में इस संबंध में अस्पष्टता बनी हुई है।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण: एक गंभीर विधायी चूक
हाल की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि:
“Termination orders के विरुद्ध अपील का स्पष्ट प्रावधान न होना नए विधेयक की एक गंभीर कमी है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि:
- कार्यवाही समाप्त करने का आदेश अक्सर अधिकार क्षेत्र (jurisdiction), पक्षकार के अधिकारों, या प्रक्रिया पर दूरगामी प्रभाव डालता है।
- ऐसे आदेशों को non-appealable रखना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।
- ट्रिब्यूनलों का यह अधिकार अत्यधिक संवेदनशील है और इसे बिना अपील विकल्प के नहीं छोड़ा जा सकता।
- विधेयक का उद्देश्य मध्यस्थता को कुशल बनाना है, लेकिन अपील संरचना का अभाव विवाद समाधान को उलटा जटिल बना देगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि:
Termination orders को appealable बनाने के लिए एक स्पष्ट वैधानिक ढांचे की आवश्यकता है।
क्या वर्तमान कानून (Arbitration Act, 1996) में कोई उपाय है?
1996 अधिनियम की संरचना इस मुद्दे पर स्पष्ट नहीं है। सामान्यत: termination orders के विरुद्ध अपील के लिए निम्नलिखित मार्ग अपनाए जाते हैं:
1. Section 14(2): termination के बाद tribunal को हटाने या उसके आदेश को चुनौती देने के लिए न्यायालय में आवेदन
सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में कहा है कि यह प्रावधान एक सीमित राहत देता है—यह appeal नहीं, बल्कि judicial intervention है। यह remedy पर्याप्त नहीं मानी जाती।
2. Section 34: Award के विरुद्ध challenge
लेकिन termination order एक “award” नहीं होता, सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि इसे Section 34 में challenge नहीं किया जा सकता।
3. Writ jurisdiction (Article 226/227)
कई हाई कोर्ट ने termination orders को writ jurisdiction में challenge करने की अनुमति दी है, लेकिन यह मार्ग:
- धीमा,
- असंगत,
- और मध्यस्थता की spirit के विपरीत है।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह अवलोकन कि विधायी ढांचा अधूरा है, पूरी तरह उचित है।
Termination Orders के Appeal न होने के व्यावहारिक दुष्परिणाम
यदि termination orders अपील योग्य न हों, तो मध्यस्थता प्रक्रिया में निम्नलिखित गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होंगी:
1. पक्षकार का substantive justice छिन सकता है
एक गलत termination order से किसी पक्ष का पूरा दावा ही समाप्त हो सकता है, बिना यह सुने कि उसका मामला merit पर मजबूत था।
2. Arbitrators की मनमानी पर नियंत्रण कमजोर पड़ जाता है
ट्रिब्यूनल शुल्क विवाद, अनुपस्थिति, या दस्तावेज़ी देरी के आधार पर गलत termination कर सकता है।
3. पूरा विवाद पुनः न्यायालय में पहुँच सकता है
ऐसी स्थिति में न्यायालयों पर भार कम होने के बजाय बढ़ जाएगा—जो मध्यस्थता के उद्देश्य के विपरीत है।
4. अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मध्यस्थता प्रभावित होगी
विदेशी निवेशकों और कॉर्पोरेट संस्थाओं का भरोसा भारतीय मध्यस्थता प्रणाली से हट सकता है।
5. पक्षकार को Bar of “no appeal” के कारण अत्यधिक procedural uncertainty झेलनी पड़ती है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: न्यायिक समीक्षा का अधिकार अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:
- यदि ट्रिब्यूनल कोई ऐसा आदेश पारित करे जिससे कार्यवाही पूरी तरह समाप्त हो जाए,
- और उस आदेश के विरुद्ध कोई remedy न हो,
तो यह natural justice, fair hearing और due process के सिद्धांतों के खिलाफ है।
इसलिए termination orders को appealable बनाना विधायी आवश्यकता है।
क्या सरकार को वैधानिक संशोधन करने होंगे?
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से यह संकेत मिलता है कि:
- सरकार को नए Arbitration Bill में एक स्पष्ट प्रावधान जोड़ना चाहिए जिसके तहत termination orders के विरुद्ध appeal या review संभव हो।
संभावनाएँ:
संभावित Section: “Appeal against orders terminating proceedings”
जिसमें निम्न शामिल हो सकता है:
- Appeal to Court within 30 days
- Appeal limited to procedural and jurisdictional grounds
- No challenge permitted directly under writ unless exceptional circumstances हों
- Fast-track disposal mechanism
Termination Orders को Appeal-able बनाने से क्या लाभ होगा?
1. Arbitrators का Accountability बढ़ेगा
वे termination जैसे कठोर आदेश सोच-समझकर देंगे।
2. पक्षकार का substantive justice सुरक्षित रहेगा
गलत procedural termination से उसका दावा नष्ट नहीं होगा।
3. न्यायपालिका पर भार कम होगा
क्योंकि writ petitions की बाढ़ रुक जाएगी।
4. मध्यस्थता की विश्वसनीयता बढ़ेगी
अंतरराष्ट्रीय निवेशक भी भरोसा करेंगे कि मध्यस्थता न्यायपूर्ण है।
5. समानता और स्पष्टता आएगी
वर्तमान असंगत स्थिति (कभी writ, कभी Section 14) समाप्त होगी।
हाल के फैसलों में सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने हाल के महत्वपूर्ण निर्णयों में यह कहा है कि—
“If the arbitral tribunal terminates the proceedings due to non-payment of fees, the remedy is to seek recall and thereafter move under Section 14(2).”
लेकिन यह remedy परोक्ष है। यह appeal नहीं है।
इसलिए नए विधेयक में भी termination पर appeal का अभाव होना एक गंभीर कमी माना जा रहा है।
क्या अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कानूनों में appeal का प्रावधान है?
1. UNCITRAL Model Law
Termination orders पर appeal का स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन judicial review के पर्याप्त विकल्प मौजूद हैं।
2. UK Arbitration Act, 1996
कुछ orders (जैसे jurisdiction) appealable हैं।
3. Singapore Arbitration Act
मजबूत judicial review संरचना मौजूद है।
भारत को इन देशों की तरह एक संगठित appeal संरचना अपनानी चाहिए।
सार्वजनिक नीति और मध्यस्थता सुधार
Termination orders के विरुद्ध appeal का प्रावधान न होने से:
- न्यायपालिका के दायरे को सीमित किया जा सकता है,
- लेकिन पक्षकारों के अधिकारों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इसी चिंता को दर्शाती है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि:
“मध्यस्थता को कुशल बनाना महत्वपूर्ण है, लेकिन न्याय को न्यूनतम मानक से नीचे गिराकर नहीं।”
आवश्यक सुझाए गए सुधार
सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन को ध्यान में रखते हुए निम्न सुधार आवश्यक हैं:
1. Termination orders को स्पष्ट रूप से appealable बनाना
2. एक Fast-Track Appeal Bench बनाई जाए
3. Arbitrators के ऊपर accountability clauses जोड़े जाएँ
4. Fee disputes के कारण termination न हो—इसके लिए स्वतंत्र Fee Resolution Authority बने
5. Non-payment of fees को termination का आधार धीरे-धीरे हटाया जाए
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए Arbitration Bill में यह गंभीर कमी इंगित करना वास्तव में भारतीय मध्यस्थता प्रणाली को सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि termination orders के विरुद्ध appeal का प्रावधान नहीं होगा, तो:
- पक्षकारों के अधिकारों का हनन होगा,
- arbitrators के निर्णय मनमाने हो सकते हैं,
- writ courts के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया जटिल हो जाएगी,
- और भारत का लक्ष्य—“वैश्विक मध्यस्थता केंद्र”—कमज़ोर पड़ जाएगा।
इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार विधेयक में संशोधन कर appeal mechanism को स्पष्ट रूप से जोड़े। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल विधायी सुधार की दिशा में एक मार्गदर्शन है, बल्कि भारतीय मध्यस्थता को अधिक न्यायसंगत, पारदर्शी और प्रभावी बनाने का अवसर भी प्रदान करती है।