“धारा 92 CPC का दुरुपयोग नहीं कर सकते निष्कासित किरायेदार: पूर्ववर्ती निर्णय की अंतिमता को दरकिनार नहीं किया जा सकता — कर्नाटक उच्च न्यायालय”

शीर्षक: “धारा 92 CPC का दुरुपयोग नहीं कर सकते निष्कासित किरायेदार: पूर्ववर्ती निर्णय की अंतिमता को दरकिनार नहीं किया जा सकता — कर्नाटक उच्च न्यायालय”


लेख:

प्रसंग:
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि ऐसे किरायेदार (tenants) जो पहले निष्कासन डिक्री (eviction decree) भुगत चुके हैं, वे अब सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 (Section 92 CPC) के तहत सार्वजनिक न्यास वाद (public trust suit) दायर करके अपनी कब्जेदारी की रक्षा (protect possession) नहीं कर सकते। ऐसा करना पूर्ववर्ती निर्णयों की अंतिमता को अवैध रूप से चुनौती देने जैसा होगा और यह धारा 92 CPC के दायरे से परे होगा।


⚖️ न्यायालय का मुख्य अवलोकन:

  1. पूर्ववर्ती निष्कासन आदेशों की अंतिमता (Finality of Eviction Decrees):
    उच्च न्यायालय ने कहा कि जब किसी किरायेदार के खिलाफ निष्कासन का अंतिम आदेश पहले ही न्यायालय द्वारा पारित किया जा चुका है, और उसे किसी उच्चतर मंच द्वारा पलटा भी नहीं गया है, तो उस किरायेदार को दोबारा उसी विवाद में घुसने की कानूनी अनुमति नहीं दी जा सकती
  2. धारा 92 CPC का उद्देश्य:
    धारा 92 CPC का उद्देश्य है — सार्वजनिक धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट के प्रशासन से संबंधित नियमितता, पारदर्शिता और सुधार सुनिश्चित करना। यह व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण के लिए नहीं है, विशेषकर तब, जब ऐसा दावा पहले ही किसी अन्य वाद में पराजित हो चुका हो।
  3. ट्रस्ट की आड़ में कब्जेदारी का गलत प्रयास:
    जिन किरायेदारों को पहले ट्रस्ट संपत्ति से निष्कासित किया गया है, वे अब ट्रस्ट के नाम पर धारा 92 CPC के तहत मुकदमा दायर करके अपने कब्जे को वैध ठहराने की कोशिश नहीं कर सकते। यह न केवल न्यायालय के आदेश की अनदेखी है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग भी है।

🛑 गलत मंशा और प्रक्रिया का उल्लंघन:

  • ऐसे किरायेदार धारा 92 का उपयोग अपने वैयक्तिक अधिकारों को फिर से जीवित करने के लिए नहीं कर सकते, खासकर तब जब उनका अधिकार पूर्व में न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से खंडित किया जा चुका हो।
  • धारा 92 CPC केवल तभी लागू होती है जब मामला वास्तव में सार्वजनिक हित और ट्रस्ट के प्रशासन से जुड़ा हो, न कि व्यक्तिगत कब्जे के संरक्षण के लिए।

📝 न्यायालय की टिप्पणी:

“Tenants who suffered eviction decree cannot use Section 92 CPC as a backdoor entry to undo the judicially settled position. Such an attempt amounts to overreaching the jurisdiction and misusing the process of law.”


🔍 निष्कर्ष:

कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि:

  • न्यायालय के आदेशों की अंतिमता का सम्मान अनिवार्य है।
  • धारा 92 CPC का सीमित और उद्देश्यपरक प्रयोग ही स्वीकार्य है।
  • न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर कब्जे की पुनर्स्थापना करना न केवल अवैध है, बल्कि अवमानना का विषय भी हो सकता है।

यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता, और सार्वजनिक ट्रस्ट कानून की सीमाओं को लेकर एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बनता है।