“धारा 51 BNS: दुष्प्रेरक की जवाबदेही – जब अपराध के साथ-साथ उसके संभावित परिणाम के लिए भी सज़ा मिलती है”
परिचय:
भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 51 अपराधशास्त्र और न्याय के उस बिंदु को छूती है जहाँ किसी अपराध के संभावित परिणाम भी कानून की नजर में महत्वपूर्ण बन जाते हैं। यह धारा बताती है कि जब कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए किसी और को दुष्प्रेरित करता है (उकसाता है) और वह व्यक्ति वह अपराध करने के साथ-साथ कोई दूसरा अपराध भी कर देता है, तो दुष्प्रेरक को उस दूसरे अपराध के लिए भी दोषी ठहराया जा सकता है – यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरणा का स्वाभाविक या संभावित परिणाम था।
धारा 51 का कानूनी सार:
“यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष अपराध के लिए दुष्प्रेरण करता है, और उस दुष्प्रेरणा के परिणामस्वरूप कोई अन्य अपराध भी हो जाता है, जो उस दुष्प्रेरण का संभावित परिणाम है, तो दुष्प्रेरक उस अन्य अपराध के लिए भी उत्तरदायी होगा।”
आसान भाषा में समझें:
- अगर आपने चोरी के लिए उकसाया, लेकिन जिसने चोरी की उसने साथ में किसी को चोट भी पहुँचा दी,
- और अगर चोट लगना स्वाभाविक या अपेक्षित था,
- तो आप (दुष्प्रेरक) दोनों अपराधों के लिए दोषी माने जाएंगे — चोरी और चोट।
उदाहरण द्वारा व्याख्या:
उदाहरण 1:
‘राम’ ने ‘श्याम’ को कहा कि वो किसी के घर में घुसकर मोबाइल चोरी कर ले।
श्याम चोरी करने गया, लेकिन मालिक ने विरोध किया, तो श्याम ने लाठी से मारकर घायल कर दिया।
👉 यहाँ, भले ही राम ने सिर्फ चोरी के लिए उकसाया था,
लेकिन घर में घुसकर चोरी करने में विरोध का सामना करना और चोट पहुँचाना एक संभावित परिणाम था।
इसलिए राम, चोरी और चोट – दोनों के लिए दोषी होगा।
ध्यान देने योग्य बातें (Key Points):
- ✅ दुष्प्रेरक ने किसी एक अपराध के लिए प्रेरित किया हो।
- ✅ मुख्य अपराधी ने कोई अतिरिक्त अपराध भी कर दिया हो।
- ✅ वह अतिरिक्त अपराध दुष्प्रेरण का संभावित या स्वाभाविक परिणाम होना चाहिए।
- ✅ दुष्प्रेरक को उस दूसरे अपराध की आशंका होनी चाहिए थी।
‘संभावित परिणाम’ (Probable Consequence) का अर्थ:
- ऐसा परिणाम जो उस दुष्प्रेरण के सामान्य स्वभाव से स्वाभाविक रूप से हो सकता है।
- उदाहरण के लिए:
- चोरी के समय चोट लगना
- अपहरण के दौरान हत्या हो जाना
- बलात्कार के प्रयास में गंभीर मानसिक या शारीरिक क्षति होना
धारा 51 क्यों महत्वपूर्ण है?
- यह सुनिश्चित करती है कि दुष्प्रेरक सिर्फ सीमित दायित्व से नहीं बच सके।
- यह अपराध के विस्तृत प्रभावों की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी तय करती है।
- यह मास्टरमाइंड अपराधियों को भी पूरे अपराध के लिए जवाबदेह बनाती है, भले ही उन्होंने अतिरिक्त हिंसा का आदेश न दिया हो।
सम्बंधित धाराएं:
धारा | विषय |
---|---|
धारा 46 | दुष्प्रेरण की परिभाषा |
धारा 49 | जब उकसाया गया अपराध होता है, तो समान सज़ा |
धारा 50 | जब उकसाया गया अपराध न होकर कोई अन्य अपराध होता है |
धारा 51 | जब दुष्प्रेरण के संभावित परिणामस्वरूप अन्य अपराध होता है |
न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Perspective):
भारतीय न्यायालयों ने यह माना है कि:
- “यदि दुष्प्रेरण के दौरान यह अपेक्षा की जा सकती है कि आगे चलकर हिंसा या अन्य अपराध हो सकता है, तो दुष्प्रेरक उसकी अनदेखी नहीं कर सकता।”
- “न्याय व्यवस्था अपराध को संकुचित रूप में नहीं देखती, बल्कि उसके प्रभावों को भी न्याय के दायरे में लाती है।”
अभ्यास आधारित प्रश्न:
प्रश्न:
‘आरव’ ने ‘नीरज’ को सिर्फ चोरी के लिए प्रेरित किया। लेकिन चोरी के समय नीरज ने मालिक को गंभीर रूप से घायल कर दिया।
क्या आरव को चोट पहुँचाने के अपराध के लिए भी दोषी ठहराया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि चोट लगना दुष्प्रेरण का संभावित परिणाम था, तो धारा 51 के अंतर्गत आरव दोनों अपराधों के लिए दोषी होगा।
निष्कर्ष:
धारा 51 यह संदेश देती है कि:
“दुष्प्रेरण की ज़िम्मेदारी सिर्फ नियोजित अपराध तक नहीं, बल्कि उसके संभावित परिणामों तक फैली होती है।”
यह धारा उन परिस्थितियों में न्याय की स्थापना करती है जहाँ एक व्यक्ति परदे के पीछे रहकर अपराध की चिंगारी सुलगाता है, और जब आग अधिक फैल जाती है, तब कहता है – “मैंने तो बस माचिस जलाई थी!”
ऐसे मामलों में कानून उसे पूरी आग के लिए जिम्मेदार मानता है – और यही है धारा 51 का न्यायिक बल।