“धारा 144 CPC के तहत पुनर्स्थापन का अधिकार: जब निष्क्रिय निर्णय को रद्द किया जाए – Jyoti v/s Darshana Rani, 2025”

लेख शीर्षक:
“धारा 144 CPC के तहत पुनर्स्थापन का अधिकार: जब निष्क्रिय निर्णय को रद्द किया जाए – Jyoti v/s Darshana Rani, 2025″


परिचय:
न्यायिक प्रक्रिया में निष्क्रिय (ex-parte) निर्णय और उसकी परिणामी कार्यवाही का क्या प्रभाव होता है, और जब ऐसा निर्णय बाद में रद्द कर दिया जाए तो संबंधित पक्ष को क्या पुनर्स्थापन का अधिकार प्राप्त है — इसी प्रश्न का उत्तर Jyoti v/s Darshana Rani मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने दिया। यह निर्णय धारा 144 सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के प्रावधानों की व्याख्या और पुनर्स्थापन के अधिकार को मजबूत करता है।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • वादिनी ज्योति द्वारा एक स्वामित्व वाद (Suit for Possession) दायर किया गया था, जिसमें प्रतिवादी दर्शन रानी की अनुपस्थिति में निष्क्रिय निर्णय (Ex-parte Decree) पारित कर दिया गया।
  • इस निर्णय के आधार पर, निष्पादन कार्यवाही (Execution Proceedings) में वादिनी को संपत्ति का वास्तविक कब्जा सौंप दिया गया।
  • तत्पश्चात, प्रतिवादी ने आदेश 9 नियम 13 CPC के तहत आवेदन दायर किया, जो स्वीकार कर लिया गया।
    इस प्रकार, निष्क्रिय निर्णय रद्द कर दिया गया और मुकदमा मूल स्थिति में बहाल किया गया।
  • मुकदमे की दोबारा सुनवाई के बाद न्यायालय ने वाद को गुण-दोष के आधार पर खारिज कर दिया।
  • ऐसे में, प्रतिवादी ने धारा 144 CPC के तहत पुनः कब्जा पाने हेतु याचिका दायर की।

न्यायालय की विधिक विवेचना:
मुख्य प्रश्न:
क्या जब निष्क्रिय निर्णय और उसके अधार पर प्राप्त निष्पादन को रद्द कर दिया जाए, तो पूर्ववर्ती प्रतिवादी (अब विजेता) को धारा 144 CPC के तहत कब्जे की बहाली का अधिकार है?

न्यायालय का उत्तर: हाँ।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:

“जब वह निर्णय और डिक्री, जिसके आधार पर निष्पादन की गई थी, रद्द कर दी जाती है, तो उसका कोई वैधानिक अस्तित्व नहीं रहता। ऐसी स्थिति में, जिस पक्ष को उस आदेश के कारण लाभ मिला था, उसे वह लाभ वापस करना होगा।”

धारा 144 CPC की प्रयोज्यता:
यह धारा कहती है कि जब किसी निर्णय या डिक्री को संबंधित अदालत द्वारा रद्द या संशोधित कर दिया जाता है, और किसी पक्ष ने उस निर्णय के कारण कोई लाभ या संपत्ति प्राप्त की हो, तो दूसरे पक्ष को उसका पुनर्स्थापन (Restitution) दिया जाएगा।


न्यायालय का निर्णय:

  • धारा 144 CPC के तहत दायर याचिका को पूर्णतः स्वीकार किया गया।
  • वादिनी ज्योति द्वारा प्राप्त कब्जा अब प्रतिवादी दर्शन रानी को वापस देने का आदेश दिया गया, क्योंकि वह डिक्री अब अस्तित्व में नहीं रही।
  • न्यायालय ने इस मामले को “न्याय के सिद्धांतों और प्रक्रिया की निष्पक्षता का मूल आधार” करार दिया।

न्यायिक महत्व:

  • यह निर्णय दर्शाता है कि निष्क्रिय निर्णयों के आधार पर प्राप्त लाभ अस्थायी होते हैं और उन्हें तब लौटाना पड़ता है जब वह निर्णय रद्द कर दिया जाए।
  • यह सुस्पष्ट करता है कि धारा 144 CPC न्याय की बहाली हेतु एक महत्वपूर्ण उपाय है।
  • यह निर्णय उस स्थिति को ठीक करता है जहाँ कोई पक्ष न्यायिक चूक या एकपक्षीय प्रक्रिया के कारण नुकसान उठाता है।

निष्कर्ष:
Jyoti v/s Darshana Rani का यह निर्णय भारतीय दीवानी न्याय व्यवस्था में निष्पक्षता और पुनर्स्थापन के अधिकार को और अधिक सशक्त करता है। यह स्पष्ट करता है कि यदि किसी पक्ष को निष्क्रिय डिक्री के माध्यम से लाभ प्राप्त हुआ है, और वह डिक्री बाद में रद्द कर दी जाती है, तो न्यायालय उस लाभ को वापस लेने का निर्देश देने के लिए बाध्य है।
इस प्रकार, धारा 144 CPC न केवल विधिक प्रक्रिया को संतुलित करती है बल्कि न्याय की गरिमा और विश्वसनीयता को भी बनाए रखती है।