धारा 138 एनआई अधिनियम में दोषसिद्धि को प्रभावित कर सकता है यदि ऋणदाता राज्य के मनी-लेंडिंग कानून के तहत ऋण वसूलने का कानूनी अधिकारी नहीं है – सुप्रीम कोर्ट (राजेन्द्र अनंत वरिक बनाम गोविंद बी. प्रभुगांवकर, निर्णय दिनांक 06 मई 2025)

धारा 138 एनआई अधिनियम में दोषसिद्धि को प्रभावित कर सकता है यदि ऋणदाता राज्य के मनी-लेंडिंग कानून के तहत ऋण वसूलने का कानूनी अधिकारी नहीं है – सुप्रीम कोर्ट
(राजेन्द्र अनंत वरिक बनाम गोविंद बी. प्रभुगांवकर, निर्णय दिनांक 06 मई 2025)


🔎 भूमिका:

भारतीय दंड प्रक्रिया में चेक बाउंस से संबंधित मामलों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act), 1881 के तहत ऐसे मामलों में दंडात्मक प्रावधान हैं। परंतु, यदि उधार देने वाला व्यक्ति स्वयं ही कानून के अनुसार ऋण देने का पात्र नहीं है, तो क्या उस पर आधारित चेक बाउंस का मामला बनता है? सुप्रीम कोर्ट ने राजेन्द्र अनंत वरिक बनाम गोविंद बी. प्रभुगांवकर [2025 SCC OnLine SC ___, निर्णय दिनांक 06/05/2025] में इस जटिल प्रश्न का उत्तर दिया है।


⚖️ मामले के तथ्य:

  • अभियुक्त (Accused) के विरुद्ध धारा 138 एनआई अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दायर की गई थी।
  • शिकायतकर्ता (Complainant) ने यह दावा किया कि उसने आरोपी को उधार दिया था, और उसी के प्रतिफल में जारी चेक बाउंस हो गया।
  • बचाव पक्ष ने यह दलील दी कि शिकायतकर्ता एक “money lender” है, किंतु उसने राज्य मनी-लेंडिंग अधिनियम के तहत आवश्यक लाइसेंस नहीं लिया था, इसलिए वह ऋण वसूलने का कानूनी अधिकारी नहीं है।

⚖️ प्रमुख मुद्दा:

क्या शिकायतकर्ता जो कि राज्य मनी-लेंडिंग कानून के अनुसार अवैध ऋणदाता है, वह धारा 138 के अंतर्गत चेक बाउंस की कार्रवाई करने का हकदार है?


🧑‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता राज्य मनी-लेंडिंग अधिनियम के अंतर्गत वैध रूप से पंजीकृत नहीं है, और वह अवैध रूप से ऋण देता है, तो वह उस ऋण की वसूली के लिए धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत शिकायत करने का अधिकारी नहीं माना जा सकता।
  • अदालत ने कहा कि यदि ऋण अनुबंध कानून की दृष्टि में अमान्य है, तो उस पर आधारित चेक के अनादर पर अभियोजन नहीं किया जा सकता।
  • निचली अदालतों द्वारा बचाव पक्ष की इस वैध आपत्ति की अनदेखी करना न्यायिक त्रुटि है, और इस कारण दोषसिद्धि को रद्द किया जा सकता है।

📌 महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. मनी-लेंडिंग कानून के उल्लंघन से ऋण अनुबंध अवैध हो सकता है।
  2. धारा 138 NI Act की प्रक्रिया तभी लागू होती है जब चेक ‘कानूनी देयता’ को चुकाने के लिए जारी हुआ हो।
  3. यदि कानूनी देयता ही अवैध ऋण पर आधारित है, तो शिकायतकर्ता को कोई राहत नहीं मिल सकती।

📚 न्यायालय द्वारा उद्धृत सिद्धांत:

  • Kusum Ingots v. Pennar Steels, AIR 2000 SC 1276
  • Krishnaiah v. State of Karnataka, (2005) 4 SCC 75
  • राज्य के Money Lending Regulation Acts का उल्लंघन अभियोजन को प्रभावित कर सकता है।

🔚 निष्कर्ष:

यह निर्णय न्यायालयों को यह सावधानी बरतने की चेतावनी देता है कि वे चेक बाउंस मामलों में केवल चेक की अदायगी न होने तक ही सीमित न रहें, बल्कि यह भी जाँच करें कि क्या वादी के पास कानूनी रूप से चेक के आधार पर राशि की वसूली का अधिकार है। यदि ऋणदाता स्वयं ही अवैध है, तो अभियोजन भी कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं माना जा सकता।