“धर्म परिवर्तन के बिना अंतर्धार्मिक विवाह अवैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय – आर्य समाज विवाह प्रमाणपत्रों की जांच के निर्देश”

शीर्षक:
“धर्म परिवर्तन के बिना अंतर्धार्मिक विवाह अवैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय – आर्य समाज विवाह प्रमाणपत्रों की जांच के निर्देश”


परिचय:
भारत जैसे बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में विवाह न केवल एक सामाजिक अनुबंध है, बल्कि कानून द्वारा नियंत्रित एक महत्वपूर्ण विधिक प्रक्रिया भी है। विशेषकर जब दो भिन्न धर्मों के व्यक्ति विवाह करते हैं, तो यह न केवल सामाजिक मानदंडों की परीक्षा बन जाता है, बल्कि कानून की व्याख्या और अनुपालन का विषय भी बनता है। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण प्रकरण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय (प्रयागराज) ने हाल ही में कहा है कि बिना धर्म परिवर्तन के की गई अंतर्धार्मिक शादी वैध नहीं मानी जा सकती

इस निर्णय में न्यायालय ने यह भी कहा कि आर्य समाज मंदिरों के माध्यम से फर्जी या अवैध रूप से की जा रही शादियों, विशेषकर नाबालिगों के विवाह, की गंभीर जांच की आवश्यकता है। इसके साथ ही, उत्तर प्रदेश के गृह सचिव को जांच कर व्यक्तिगत हलफनामे सहित रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश भी दिया गया है।


🔹 मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के निचलौल थाना क्षेत्र से संबंधित है। जहां एक युवक सोनू उर्फ सहनूर के खिलाफ अपहरण, बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। आरोपी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उसने आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की।

याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत तर्क में कहा गया कि उसने पीड़िता से आर्य समाज मंदिर में विवाह कर लिया है, और अब पीड़िता बालिग हो चुकी है, इसलिए उसके खिलाफ आपराधिक मामला नहीं बनता।


🔹 न्यायालय की कार्यवाही एवं टिप्पणियाँ:

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की एकल पीठ ने की। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिवक्ता ने याचिकाकर्ता के तर्कों का विरोध किया और कहा कि:

  • युवक और युवती विपरीत धर्मों से हैं, और
  • उन्होंने धर्म परिवर्तन किए बिना विवाह किया है,
  • न ही उनकी शादी कानूनन पंजीकृत है।

इन तथ्यों के आधार पर सरकारी अधिवक्ता ने याचिका को खारिज करने का अनुरोध किया।

न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि भारत में स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के अंतर्गत ही बिना धर्म परिवर्तन के अंतर्धार्मिक विवाह को मान्यता प्राप्त है, जिसके लिए आवश्यक विधिक प्रक्रिया (जैसे नोटिस देना, रजिस्ट्रेशन, गवाह, आदि) का पालन अनिवार्य है। यदि यह प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती, तो ऐसा विवाह कानूनन मान्य नहीं होता।


🔹 आर्य समाज सोसायटियों की भूमिका पर सवाल:

न्यायालय ने इस केस के संदर्भ में यह भी रेखांकित किया कि:

  • कई आर्य समाज संस्थाएं बिना विधिक जांच के,
  • नाबालिगों को भी विवाह प्रमाणपत्र जारी कर रही हैं,
  • जोकि स्पष्ट रूप से कानून का उल्लंघन है।

कोर्ट ने कहा कि यह एक गंभीर सामाजिक और विधिक समस्या है, क्योंकि ऐसे प्रमाणपत्रों के सहारे आरोपी पॉक्सो जैसे गंभीर अपराधों से बचने का प्रयास करते हैं।

इसलिए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गृह सचिव को निर्देश दिया कि:

  1. राज्य भर में संचालित आर्य समाज सोसायटियों की जांच कराई जाए,
  2. विशेष रूप से उन मामलों में जहां नाबालिग लड़कियों के विवाह प्रमाणपत्र जारी किए गए हैं,
  3. और कोर्ट में 29 अगस्त तक रिपोर्ट पेश की जाए,
  4. साथ ही गृह सचिव से व्यक्तिगत हलफनामा भी तलब किया गया है।

🔹 न्यायालय का कानूनी दृष्टिकोण:

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि विवाह का उद्देश्य यदि अपराध को वैध बनाने या विधिक सुरक्षा प्राप्त करने का माध्यम बन जाए, तो यह न्याय व्यवस्था के साथ धोखा होगा। यदि कोई नाबालिग लड़की अगवा की जाती है, और आरोपी तथाकथित आर्य समाज विवाह का प्रमाण पत्र दिखाकर आपराधिक प्रक्रिया से बचना चाहता है, तो यह न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग है।

न्यायालय ने याचिकाकर्ता का यह तर्क भी खारिज कर दिया कि पीड़िता अब बालिग है और दोनों ने अपनी इच्छा से शादी की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब अपराध घटित हुआ, तब पीड़िता नाबालिग थी, और वह शादी कानून के तहत मान्य नहीं है, क्योंकि:

  • न तो धर्म परिवर्तन हुआ,
  • न स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह हुआ,
  • और न ही विवाह की वैधानिक पंजीकरण की प्रक्रिया अपनाई गई।

🔹 फैसले के प्रभाव और व्यापक महत्व:

इस निर्णय के माध्यम से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि:

  1. अंतर्धार्मिक विवाह केवल वैधानिक प्रक्रिया के पालन के साथ ही मान्य होंगे।
  2. धर्म परिवर्तन किए बिना किसी धार्मिक संस्था में केवल रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह करना विधिक दृष्टि से अमान्य है।
  3. आर्य समाज मंदिरों द्वारा जारी किए गए विवाह प्रमाणपत्र, विशेष रूप से नाबालिगों के मामलों में, अब सख्त जांच के दायरे में आ चुके हैं।
  4. यह निर्णय पॉक्सो और महिला संरक्षण कानूनों की रक्षा को और अधिक मजबूत करता है,
  5. साथ ही यह उन आरोपियों के विरुद्ध कानूनी रोक बनता है जो धार्मिक विवाह का ढोंग रचाकर गंभीर अपराधों से बचना चाहते हैं।

🔹 निष्कर्ष:

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल अंतर्धार्मिक विवाहों के संबंध में कानून की स्पष्ट व्याख्या करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून का दुरुपयोग कर अपराधियों को संरक्षण न मिले। इस फैसले के ज़रिए न्यायालय ने संदेश दिया है कि विवाह का प्रयोग किसी अपराध को ढकने के लिए नहीं किया जा सकता और विवाह एक विधिक अनुबंध है, जिसे सावधानीपूर्वक कानूनों के दायरे में ही संपन्न किया जाना चाहिए।

यह फैसला कानून, नैतिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व की संतुलित व्याख्या प्रस्तुत करता है, और देश के न्यायिक इतिहास में एक मार्गदर्शक मिसाल के रूप में दर्ज होगा।