“दोष-संदेह के सिद्धांत की पुनः पुष्टि: Keshav बनाम महाराष्ट्र राज्य (30 अप्रैल 2025) में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय”

लेख शीर्षक:
“दोष-संदेह के सिद्धांत की पुनः पुष्टि: Keshav बनाम महाराष्ट्र राज्य (30 अप्रैल 2025) में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय”

परिचय:
Keshav v/s State of Maharashtra के निर्णय में दिनांक 30 अप्रैल 2025 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार के अपराध के एक गंभीर आरोप पर विचार करते हुए अभियुक्त को संदेह का लाभ प्रदान करते हुए दोषमुक्त कर दिया। यह निर्णय न केवल साक्ष्य मूल्यांकन के न्यायसंगत मापदंडों को रेखांकित करता है, बल्कि इस बात को भी स्पष्ट करता है कि केवल पीड़िता के बयान के आधार पर दोष सिद्धि नहीं की जा सकती जब संपूर्ण अभियोजन कहानी विरोधाभासों से ग्रसित हो और स्वतंत्र साक्ष्य से पुष्ट न हो।

मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में अभियोजन द्वारा एक विवाहित महिला द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोपों को प्रस्तुत किया गया था। अभियुक्त Keshav को दोषी ठहराया गया था, जिसके विरुद्ध उसने विशेष अनुमति याचिका (S.L.P. (Crl.) No.- 11566/2024) सर्वोच्च न्यायालय में दायर की।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख अवलोकन और विश्लेषण:

  1. पीड़िता का कथन और साक्ष्य की विश्वसनीयता:
    न्यायालय ने माना कि एक घायल साक्षी या पीड़िता की गवाही स्वाभाविक रूप से विश्वास योग्य मानी जाती है, विशेष रूप से जब उसकी घटना-स्थल पर उपस्थिति विवादित न हो। किंतु न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी गवाहियों को अक्षरशः सत्य नहीं माना जा सकता, विशेषकर तब जब वे अतिशयोक्ति या अलंकरण से युक्त प्रतीत हों।
  2. विवाहिता होने की प्रासंगिकता:
    चूंकि पीड़िता एक विवाहित महिला थी, न्यायालय ने अभियुक्त को झूठे फंसाए जाने की संभावनाओं को भी ध्यान में रखा, विशेषकर तब जब अभियोजन की कहानी में स्वतंत्र साक्षियों का अभाव था तथा उसकी कथावस्तु विरोधाभासों से भरी हुई थी।
  3. मेडिकल साक्ष्य का अभाव:
    चिकित्सा परीक्षण घटना के 15 दिन बाद किया गया था, और उसमें बलपूर्वक यौन संबंध बनाए जाने के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले। यद्यपि न्यायालय ने यह भी दोहराया कि बलात्कार मामलों में दोष सिद्धि हेतु मेडिकल साक्ष्य अनिवार्य नहीं है, फिर भी जब अभियोजन की कहानी पहले से ही कई तथ्यों में कमजोर हो, तब इस प्रकार के साक्ष्य का अभाव संदेह उत्पन्न करता है।
  4. पीड़िता के परिवार की गवाही का अभाव:
    पीड़िता के वैवाहिक परिवार द्वारा उसके अचानक बिना सूचना के चले जाने पर कोई प्रतिक्रिया या गवाही दर्ज न कराना अभियोजन की कहानी को और भी कमजोर करता है।

न्यायालय का निष्कर्ष:
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य दोष सिद्धि के लिए आवश्यक “संदेह से परे” मानक को पूरा नहीं करते। इसलिए अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया गया।

न्यायिक महत्व:
यह निर्णय इस बात की पुनः पुष्टि करता है कि भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अभियुक्त को दोषी सिद्ध करने की जिम्मेदारी पूरी तरह अभियोजन की होती है, और संदेह का लाभ हमेशा अभियुक्त को दिया जाता है। यह निर्णय विशेष रूप से उन मामलों में मार्गदर्शक के रूप में देखा जा सकता है जहां आरोप गंभीर हों लेकिन साक्ष्य संदिग्ध हों।

निष्कर्ष:
Keshav बनाम महाराष्ट्र राज्य का यह निर्णय इस बात का उदाहरण है कि भारतीय न्यायपालिका संवेदनशील मामलों में भी साक्ष्य की गुणवत्ता, गवाहियों की विश्वसनीयता और न्यायसंगत संदेह के सिद्धांत का पालन करते हुए न्याय प्रदान करती है। यह निर्णय यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी निर्दोष को केवल आरोपों के आधार पर सजा न हो।