दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील अभियुक्त का संवैधानिक अधिकार है – सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील अभियुक्त का संवैधानिक अधिकार है – सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय


🔷 परिचय:

भारतीय दंड प्रक्रिया में दोषसिद्धि (Conviction) के विरुद्ध अपील करना न केवल एक वैधानिक अधिकार (Statutory Right) माना जाता है, बल्कि संवैधानिक अधिकार (Constitutional Right) भी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि अपील दायर करने का अधिकार केवल कानून द्वारा दिया गया अधिकार नहीं है, बल्कि यह संविधान द्वारा संरक्षित मौलिक सिद्धांतों का हिस्सा है। यह फैसला भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अभियुक्तों के अधिकारों को और अधिक मजबूती देता है।


⚖️ प्रकरण की पृष्ठभूमि:

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा कि –

“जब किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है और उसे सज़ा दी जाती है, तो उसे यह अधिकार है कि वह उच्चतर न्यायालय में अपील करे। यह सिर्फ CrPC के तहत दिया गया अधिकार नहीं है, बल्कि यह Article 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षित है।”


📜 संवैधानिक प्रावधान – अनुच्छेद 21 का महत्व:

अनुच्छेद 21 कहता है:

“किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से तभी वंचित किया जा सकता है जब वह विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार हो।”

➡️ इसका अर्थ यह है कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और सभी उपलब्ध उपायों को सुनिश्चित करने वाली होनी चाहिए – जिसमें अपील का अधिकार शामिल है।


📚 महत्वपूर्ण निर्णय:

K.M. Nanavati v. State of Maharashtra (1961)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपील न्यायिक प्रणाली की आत्मा है, और यह निष्पक्ष न्याय की बुनियाद है।

S. Satyanarayana v. State of Andhra Pradesh (2023)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि के बाद अपील करने का अवसर न मिलना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है

Hussainara Khatoon v. State of Bihar (1979)

इस फैसले में कोर्ट ने माना कि फ्री लीगल एड और अपील तक पहुंच जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है


🔍 क्या कहती है आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC)?

  • धारा 374 CrPC:
    यदि किसी व्यक्ति को सत्र न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी ठहराया गया है, तो वह उच्च न्यायालय या अपीलीय न्यायालय में अपील कर सकता है।
  • धारा 389 CrPC:
    अपील लंबित रहने तक सजा को निलंबित किया जा सकता है और दोषसिद्ध व्यक्ति को जमानत पर छोड़ा जा सकता है

➡️ ये धाराएँ वैधानिक अधिकार देती हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें संवैधानिक मूल्यों से जोड़कर देखा है।


📌 सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ (Observations):

  • “अपील की अनुपलब्धता न्यायिक अन्याय है।”
  • “किसी दोषसिद्ध अभियुक्त को अपील का अधिकार न देना उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन है।”
  • “संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है कि प्रत्येक नागरिक को अपनी सज़ा के खिलाफ न्याय पाने का अवसर मिलना चाहिए।”

न्यायिक सिद्धांत:

  1. न्याय केवल किया ही न जाए, बल्कि होता हुआ दिखाई भी दे।
  2. दोषसिद्धि अंतिम नहीं है, जब तक अपील की प्रक्रिया समाप्त न हो।
  3. हर दोषसिद्ध व्यक्ति को सुधार और न्याय का अवसर मिलना चाहिए।

🧾 निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली में न्यायिक संतुलन और मानवाधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह स्पष्ट करता है कि अपील का अधिकार केवल CrPC की धाराओं में सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय संविधान की आत्मा का हिस्सा है
इस फैसले के माध्यम से न्यायालय ने यह संदेश दिया कि – “कोई भी दोषसिद्ध व्यक्ति तब तक दोषी नहीं माना जाना चाहिए, जब तक उसे अपील का पूरा अवसर न दिया जाए।”