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“देश में पहली बार ‘डिजिटल अरेस्ट’ से ठगी करने वाले साइबर अपराधी को मिली सात साल की सजा: महिला डॉक्टर से ₹85 लाख की ठगी, पुलिस की तेज कार्रवाई और प्रभावी पैरवी से बनी ऐतिहासिक मिसाल”
🔷 भूमिका:
भारत में साइबर अपराधों की बढ़ती घटनाओं के बीच, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक ऐतिहासिक निर्णय सामने आया है। ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर ठगी करने वाले एक जालसाज को देश में पहली बार दोषसिद्धि के साथ सात साल की कठोर सजा सुनाई गई है। यह न केवल तकनीक का दुरुपयोग करने वाले अपराधियों के लिए चेतावनी है, बल्कि पीड़ितों को समय पर न्याय दिलाने की दिशा में पुलिस और न्यायपालिका की प्रभावी भूमिका को भी दर्शाता है।
🔷 मामले का संक्षिप्त विवरण:
वर्ष मई 2024 में लखनऊ की इंद्रप्रस्थ कॉलोनी निवासी और केजीएमयू (KGMU) की चिकित्सक डॉ. सौम्या गुप्ता को एक कॉल प्राप्त हुआ। कॉल करने वाले ने खुद को कस्टम अधिकारी बताते हुए कहा कि उनके नाम पर एक कार्गो पार्सल पकड़ा गया है, जिसमें जाली पासपोर्ट, एटीएम कार्ड और 140 ग्राम एमडीएम (नशीला पदार्थ) मिला है।
इसके बाद कॉल करने वाले ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताकर डॉक्टर को डराया और कहा कि उन्हें डिजिटल अरेस्ट कर लिया गया है। उन्होंने डॉक्टर को अलग-अलग माध्यमों से पैसे ट्रांसफर करने को मजबूर किया। इस तरह से आरोपी ने उनसे कुल ₹85 लाख रुपये की ठगी की।
🔷 डिजिटल अरेस्ट क्या है?
‘डिजिटल अरेस्ट’ एक नई साइबर ठगी की तकनीक है, जिसमें जालसाज खुद को किसी सरकारी अधिकारी (जैसे पुलिस, कस्टम, सीबीआई) के रूप में प्रस्तुत करता है और पीड़ित को यह विश्वास दिलाता है कि वह एक गंभीर अपराध में फंस चुका है। फिर वह पीड़ित से कहता है कि जांच पूरी होने तक वह “डिजिटल रूप से हिरासत में” है और उस दौरान किसी से संपर्क नहीं कर सकता। इस स्थिति का फायदा उठाकर अपराधी धीरे-धीरे पीड़ित से भारी रकम ऐंठ लेता है।
🔷 पुलिस की सक्रियता और कानूनी प्रक्रिया:
- घटना की जानकारी मिलते ही साइबर क्राइम पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए पाँच दिनों के भीतर आरोपी को पकड़ लिया।
- आरोपी देवाशीष राय को लखनऊ के गोमतीनगर विस्तार स्थित मंदाकिनी अपार्टमेंट से गिरफ्तार किया गया।
- देवाशीष राय मूल रूप से आजमगढ़ के मसौना गांव का रहने वाला है, और लखनऊ के सुलभ आवास में रह रहा था।
- पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) अपराध कमलेश दीक्षित के नेतृत्व में टीम ने तीन महीने में जांच पूरी कर चार्जशीट दाखिल कर दी।
🔷 सुनवाई और सजा:
- आरोपी को पूरे 14 माह की सुनवाई के दौरान एक बार भी जमानत नहीं मिली।
- आखिरकार अदालत ने देवाशीष राय को सात वर्ष की कठोर कारावास और ₹68,000 के आर्थिक दंड से दंडित किया।
- यह भारत का पहला मामला है जिसमें डिजिटल अरेस्ट के जरिए ठगी करने वाले साइबर अपराधी को दोषी ठहराकर सजा दी गई है।
🔷 इस निर्णय का महत्व और प्रभाव:
- साइबर अपराध के नए तरीकों पर रोक:
यह निर्णय साइबर अपराध की बदलती तकनीकों के विरुद्ध एक सशक्त संदेश देता है कि डिजिटल दुनिया में भी कानून की पकड़ मजबूत है। - पुलिस की तत्परता और न्याय की गति:
आमतौर पर न्यायिक प्रक्रियाएं लंबी चलती हैं, लेकिन इस मामले में 14 माह में सजा मिलना पुलिस और अभियोजन पक्ष की तेज़ और प्रभावी कार्यप्रणाली को दर्शाता है। - डर के माध्यम से ठगी पर कानूनी रोक:
इस मामले ने यह सिद्ध कर दिया कि भयभीत करने और सरकारी अधिकारी बनकर ठगी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। - महिला सशक्तिकरण का उदाहरण:
महिला डॉक्टर द्वारा मामले की रिपोर्टिंग और पुलिस द्वारा की गई निष्पक्ष जांच ने यह भी दर्शाया कि महिलाएं अब साइबर अपराधों के विरुद्ध संवेदनशील और सजग हैं।
🔷 सावधानियाँ और सुझाव:
- कभी भी अनजान कॉल्स पर व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें।
- कोई भी अधिकारी डिजिटल अरेस्ट का प्रावधान नहीं रखता — यह पूरी तरह फर्जी है।
- ठगी की सूचना तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 या वेबसाइट cybercrime.gov.in पर दें।
- कानूनी सहायता लेने में देर न करें।
- डरने की बजाय जांच की मांग करें, पहचान पत्र की सत्यता परखें।
🔷 निष्कर्ष:
डॉ. सौम्या गुप्ता के साथ हुई साइबर ठगी और देवाशीष राय को मिली सजा भारत के साइबर अपराध कानूनों के इतिहास में मील का पत्थर है।
यह निर्णय यह बताता है कि अब न केवल पारंपरिक अपराध, बल्कि डिजिटल युग के नए अपराधों पर भी कानून की पूरी निगरानी है। ऐसे अपराधों से निपटने के लिए पुलिस, अभियोजन और न्यायपालिका तीनों अब ज्यादा सतर्क और सक्रिय हो चुके हैं।