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“दूसरी जमानत याचिका की प्रवर्तनीयता पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का मार्गदर्शक निर्णय

“दूसरी जमानत याचिका की प्रवर्तनीयता पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का मार्गदर्शक निर्णय — ‘Gurdeep Singh v. State of Haryana (2025)’ का गहन विधिक विश्लेषण”


🔷 प्रस्तावना

भारतीय दंड प्रक्रिया में जमानत (Bail) का अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता से गहराई से जुड़ा हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत “व्यक्तिगत स्वतंत्रता” की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है, और इसी कारण न्यायालयों ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद (Bail is the rule, Jail is an exception)

किन्तु, जब कोई आरोपी व्यक्ति एक बार जमानत याचिका दाखिल कर चुका होता है और वह याचिका खारिज हो जाती है — तब यह प्रश्न उठता है कि क्या वह पुनः दूसरी या सक्सेसिव (successive) जमानत याचिका दाखिल कर सकता है?

इसी प्रश्न पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है — Gurdeep Singh v. State of Haryana, PbHr 2025 (CRM-M-49751-2025) — जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल सतही (superficial) या औपचारिक (ostensible) परिवर्तन परिस्थितियों में पर्याप्त नहीं हैं; बल्कि दूसरी जमानत याचिका के लिए परिस्थितियों में वास्तविक और सार्थक परिवर्तन (substantial change in circumstances) दिखाना आवश्यक है।


🔷 मामले का संक्षिप्त पृष्ठभूमि (Background of the Case)

मामले के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार हैं:

  • याचिकाकर्ता (Petitioner): गुरदीप सिंह
  • प्रतिवादी (Respondent): हरियाणा राज्य
  • प्रकरण संख्या: CRM-M-49751-2025
  • न्यायालय: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय, चंडीगढ़
  • विषय: दूसरी नियमित जमानत (Second Regular Bail Application)

गुरदीप सिंह को एक गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया गया था। उसने पहले भी नियमित जमानत के लिए याचिका दाखिल की थी जो न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई थी। इसके कुछ समय बाद उसने फिर से दूसरी जमानत याचिका दाखिल की।

राज्य पक्ष ने आपत्ति उठाई कि दूसरी जमानत याचिका प्रवर्तनीय (maintainable) नहीं है क्योंकि परिस्थितियों में कोई नया या वास्तविक परिवर्तन नहीं हुआ है।


🔷 मुख्य प्रश्न (Key Legal Issue)

क्या कोई आरोपी व्यक्ति दूसरी या बाद की नियमित जमानत याचिका दाखिल कर सकता है जब उसकी पहली याचिका पहले ही खारिज हो चुकी हो — और यदि हाँ, तो किन परिस्थितियों में?


🔷 न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय (Court’s Observations & Ruling)

माननीय न्यायालय ने अपने निर्णय में निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला —


1️⃣ दूसरी या क्रमिक जमानत याचिका (Second/Successive Bail Application) का सिद्धांत

न्यायालय ने यह कहा कि —

“For second or successive regular bail petitions to succeed, the petitioner must show a substantial change in circumstances; a mere superficial or ostensible change would not suffice.”

इसका अर्थ यह है कि यदि कोई आरोपी पुनः जमानत याचिका दाखिल करना चाहता है, तो उसे यह दिखाना होगा कि पहली याचिका के बाद परिस्थितियाँ मूल रूप से बदल चुकी हैं। केवल वही तथ्य या परिस्थिति दोहराना जो पहले मौजूद थी, दूसरी याचिका को बनाए नहीं रखता।


2️⃣ दूसरी जमानत याचिका का Maintainability का दायरा

अदालत ने स्पष्ट किया कि दूसरी जमानत याचिका हर स्थिति में बनाए रखी जा सकती है, चाहे —

  • पहली याचिका Dismiss as Withdrawn की गई हो,
  • या Dismissed as Not Pressed,
  • या Dismissed for Non-Prosecution,
  • या Dismissed on Merits

परंतु, ऐसी याचिका में वास्तविक परिवर्तन प्रदर्शित करना होगा। उदाहरणस्वरूप —

  • लंबा समय कारावास में बिताना,
  • गवाहों की गवाही पूरी हो जाना,
  • जांच या ट्रायल में देरी होना,
  • आरोपों की प्रकृति में बदलाव,
  • या किसी अन्य महत्वपूर्ण परिस्थिति का उदय होना।

इनमें से किसी भी आधार पर “substantial change” दिखाया जा सकता है।


3️⃣ सतही परिवर्तन पर्याप्त नहीं (Mere Superficial Change is Not Enough)

अदालत ने चेतावनी दी कि आरोपी या उसके वकील केवल यह दिखाकर कि कुछ समय बीत गया या अदालत का स्टाफ बदला है, यह नहीं कह सकते कि परिस्थितियाँ बदल गई हैं।

“Superficial or ostensible change in circumstances cannot be treated as substantial change sufficient to reopen bail consideration.”

इस प्रकार, न्यायालय ने यह संकेत दिया कि “substantial change” को वस्तुतः ठोस, वास्तविक और न्यायिक दृष्टि से प्रासंगिक होना चाहिए।


4️⃣ जमानत के सिद्धांत और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संतुलन

न्यायालय ने यह भी माना कि बेल का सिद्धांत व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा है, परंतु न्यायालय को “individual liberty and societal interest” दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा।
यदि आरोपी की रिहाई से जांच या गवाहों पर असर पड़ने की आशंका है, तो दूसरी जमानत याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।


5️⃣ पहले के निर्णयों का संदर्भ (Reference to Earlier Precedents)

अदालत ने कई सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें समान विचार रखे गए हैं:

  • State of Maharashtra v. Captain Buddhikota Subha Rao, AIR 1989 SC 2292
    → अदालत ने कहा कि दूसरी जमानत याचिका तभी सुनवाई योग्य होगी जब परिस्थितियों में वास्तविक परिवर्तन हुआ हो।
  • Kalyan Chandra Sarkar v. Rajesh Ranjan @ Pappu Yadav, (2005) 2 SCC 42
    → सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “Second bail petition without showing change in circumstances is not maintainable.”
  • Rakesh Ranjan v. State of Bihar, (2019) 13 SCC 29
    → पुनः पुष्टि की गई कि जमानत के लिए अदालतों को अपने ही पहले आदेश की समीक्षा करने की अनुमति केवल तब है जब substantial बदलाव दिखाया जाए।

🔷 6️⃣ केस में गुरदीप सिंह का दावा और उसका मूल्यांकन

गुरदीप सिंह ने यह कहा कि:

  • वह लंबे समय से जेल में है,
  • जांच पूरी हो चुकी है,
  • गवाहों की गवाही प्रारंभ हो गई है,
  • और पहले की याचिका खारिज होने के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन आया है।

राज्य ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ये परिवर्तन superficial हैं क्योंकि अधिकांश परिस्थितियाँ पहले भी मौजूद थीं।

अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनकर यह पाया कि “परिस्थितियों में कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं हुआ” और इसलिए दूसरी जमानत याचिका खारिज कर दी गई।


🔷 7️⃣ न्यायालय की तार्किक विवेचना

न्यायालय ने कहा कि जमानत प्रक्रिया का उद्देश्य आरोपी को अनंत बार राहत प्राप्त करने की अनुमति देना नहीं है।
यदि प्रत्येक अस्वीकृति के बाद आरोपी यह दावा करे कि अब ‘कुछ समय’ बीत गया है, तो यह न्यायिक प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से बाधित करेगा।

न्यायालय ने लिखा:

“A litigant cannot be permitted to repeatedly move bail applications on identical facts and seek reconsideration merely because of passage of time or minor procedural progress.”


🔷 8️⃣ निष्कर्षात्मक सिद्धांत (Doctrinal Summary)

इस निर्णय से निम्नलिखित कानूनी सिद्धांत निकलते हैं:

  1. दूसरी जमानत याचिका का अधिकार:
    यह absolute bar नहीं है; आरोपी पुनः याचिका दाखिल कर सकता है।
  2. सार्थक परिवर्तन आवश्यक:
    परिस्थितियों में substantial change दिखाना आवश्यक है। उदाहरण — लंबी हिरासत, जांच की समाप्ति, अभियोजन की ढिलाई, या साक्ष्यों की स्थिति में बदलाव।
  3. सतही परिवर्तन अस्वीकार्य:
    केवल समय बीतना या औपचारिक परिवर्तन ‘superficial’ माने जाएंगे।
  4. पहली याचिका के आधार:
    यदि पहली याचिका merits पर खारिज की गई है, तब दूसरी याचिका का औचित्य और अधिक मजबूत होना चाहिए।
  5. न्यायिक अनुशासन (Judicial Discipline):
    अदालतें अपनी पूर्ववर्ती जमानत आदेशों से भिन्न राय तभी बना सकती हैं जब नई परिस्थिति वास्तव में न्यायोचित हो।

🔷 9️⃣ संवैधानिक दृष्टिकोण

यह निर्णय अनुच्छेद 21 (Right to Life and Personal Liberty) और अनुच्छेद 22 (Protection in certain cases) के बीच संतुलन का उदाहरण है।
अदालत ने माना कि व्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण आवश्यक है, परंतु उसका प्रयोग जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए।
कानून को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामुदायिक सुरक्षा — दोनों के बीच संतुलित न्याय सुनिश्चित करना होगा।


🔷 10️⃣ व्यावहारिक प्रभाव (Practical Implications)

  1. वकीलों के लिए मार्गदर्शन:
    यह निर्णय वकीलों को यह दिशा देता है कि वे दूसरी जमानत याचिका दाखिल करने से पूर्व यह सुनिश्चित करें कि नई परिस्थिति वस्तुतः मौजूद है।
  2. न्यायिक भार में कमी:
    अनावश्यक जमानत याचिकाएँ जो केवल पुनरावृत्ति करती हैं, उन्हें इस निर्णय के बाद न्यायालयों द्वारा प्रारंभिक स्तर पर ही रोका जा सकेगा।
  3. न्यायिक स्थिरता (Judicial Consistency):
    यह निर्णय न्यायिक प्रणाली में स्थिरता और अनुशासन लाता है कि प्रत्येक जमानत आदेश का पुनर्विचार केवल गंभीर कारणों पर ही किया जाए।

🔷 11️⃣ अन्य समान निर्णयों की दृष्टि

  • Y.S. Jagan Mohan Reddy v. CBI, (2013) 7 SCC 439:
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “Repeated bail applications without change in circumstance are abuse of process.”
  • Nirmal Singh v. State of Punjab, 2020 SCC OnLine P&H 557:
    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भी यही सिद्धांत अपनाया था।
  • Rajesh Ranjan v. State of Bihar (2005):
    दोहराया कि दूसरी जमानत तभी संभव है जब परिस्थिति “materially altered” हुई हो।

🔷 निष्कर्ष

Gurdeep Singh v. State of Haryana (PbHr 2025) का यह निर्णय भारतीय जमानत न्यायशास्त्र में एक सुस्पष्ट दिशा-निर्देश प्रस्तुत करता है।

इसने यह स्पष्ट किया कि:

  • दूसरी या क्रमिक जमानत याचिका अस्वीकार्य नहीं, परंतु स्वतः स्वीकार्य भी नहीं
  • केवल “substantial change in circumstances” ही ऐसी याचिका को वैध ठहराता है।
  • सतही परिवर्तन (superficial change) या समय-व्यतीत होना पर्याप्त नहीं है।
  • जमानत के सिद्धांतों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायिक अनुशासन — दोनों की दृष्टि से संतुलित रखना होगा।

अंततः यह कहा जा सकता है कि —

“जमानत का अधिकार मौलिक है, परंतु उसका प्रयोग विवेकपूर्ण सीमाओं के भीतर ही न्यायोचित है।”