“दुर्घटना बीमा दावों में बीमा कंपनी पहले भुगतान के लिए बाध्य: म.प्र. हाई कोर्ट का निर्णय, वसूली बाद में वाहन मालिक व चालक से संभव”

“दुर्घटना बीमा दावों में बीमा कंपनी पहले भुगतान के लिए बाध्य: म.प्र. हाई कोर्ट का निर्णय, वसूली बाद में वाहन मालिक व चालक से संभव”


पूरा लेख:
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: बीमा कंपनी की प्रारंभिक देनदारी अनिवार्य, ड्राइवर द्वारा लाइसेंस उल्लंघन के बावजूद मुआवज़ा रोका नहीं जा सकता

🔷 प्रासंगिक कानून:

  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988
    • धारा 166: दुर्घटना मुआवज़ा दावा
    • धारा 163A: नो-फॉल्ट दायित्व के आधार पर मुआवज़ा
    • धारा 173(1): ट्रिब्यूनल के आदेश के विरुद्ध अपील

🔷 मामले की पृष्ठभूमि:
एक दुखद सड़क दुर्घटना में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। उसकी पत्नी और बेटी ने ₹33,25,000 का मुआवज़ा दावा किया, लेकिन Claims Tribunal ने केवल ₹4,87,000 (7.5% वार्षिक ब्याज सहित) मुआवज़ा देने का आदेश दिया। ट्रिब्यूनल ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह यह राशि पहले अदा करे और बाद में वाहन के मालिक व चालक से वसूले।


🔷 प्रमुख कानूनी प्रश्न:

  1. क्या बीमा कंपनी, पॉलिसी उल्लंघन (जैसे ड्राइवर का वैध लाइसेंस न होना) की स्थिति में मुआवज़ा देने के लिए उत्तरदायी है?
  2. क्या मुआवज़ा राशि को बढ़ाया जा सकता है?

🔷 उच्च न्यायालय का निर्णय:

“बीमा कंपनी को मुआवज़े का भुगतान पहले करना होगा, फिर वह कानूनन उस राशि की वसूली वाहन मालिक और चालक से कर सकती है।”

“मृतक के परिवार को ‘spousal consortium’ और ‘parental consortium’ जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर अतिरिक्त ₹80,000 की वृद्धि उचित और न्यायसंगत है।”


🔷 निर्णय के मुख्य बिंदु:

  1. मुआवज़ा बढ़ाया गया:
    ₹4,87,000 की राशि में ₹80,000 की वृद्धि करते हुए कुल मुआवज़ा ₹5,67,000 निर्धारित किया गया।
  2. बीमा कंपनी की प्रारंभिक जिम्मेदारी:
    भले ही ड्राइवर के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस न था, बीमा कंपनी को पहले दावा राशि का भुगतान करना होगा।
  3. वसूली का अधिकार सुरक्षित:
    बीमा कंपनी चाहे तो यह राशि वाहन मालिक या चालक से बाद में वसूल सकती है। यह सिद्धांत “Pay and Recover” कहा जाता है।
  4. प्रत्येक पक्ष की अपील पर निर्णय:
    • पीड़ित परिवार की अपील (Enhanced Compensation): स्वीकार की गई।
    • बीमा कंपनी की अपील: खारिज की गई।
  5. भुगतान की समय सीमा:
    बढ़ाया गया मुआवज़ा बीमा कंपनी को 60 दिनों के भीतर, 6% वार्षिक ब्याज के साथ अदा करना होगा (दावा दाखिल करने की तारीख से)।

🔷 विधिक सिद्धांत:

  • सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का अनुपालन:
    कोर्ट ने Apex Court के उन निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें यह सिद्ध किया गया था कि बीमा कंपनी को प्रारंभिक भुगतान करना होगा, भले ही पॉलिसी उल्लंघन हुआ हो, और बाद में वसूली का रास्ता खुला रहता है।
  • न्याय का उद्देश्य:
    दुर्घटना पीड़ितों को त्वरित और प्रभावी राहत मिले, ताकि वे तकनीकी बहानों में फँसकर न्याय से वंचित न हों।

🔷 निष्कर्ष:

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय यह स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है कि बीमा कंपनी दुर्घटना दावों में पहले भुगतान करने के लिए बाध्य है, और पॉलिसी के उल्लंघन जैसे मुद्दों को अगले चरण में वसूली (recovery proceedings) के लिए उठाया जा सकता है।

यह फैसला न केवल पीड़ित परिवारों के लिए न्याय का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि बीमा कानून के “Pay First, Recover Later” सिद्धांत को भी पुनः स्थापित करता है।