दीर्घकालिक न्यायिक विलंब में सजायाफ्ता अभियुक्त को जमानत: झारखंड उच्च न्यायालय का मार्गदर्शक निर्णय

शीर्षक: दीर्घकालिक न्यायिक विलंब में सजायाफ्ता अभियुक्त को जमानत: झारखंड उच्च न्यायालय का मार्गदर्शक निर्णय

भूमिका:
भारतीय दंड न्याय प्रणाली में न्यायिक विलंब (judicial delay) एक जटिल समस्या बन चुका है। विशेष रूप से आपराधिक अपीलों में जब वर्षों तक निर्णय नहीं आता, तो यह न केवल आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र की विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है। झारखंड उच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद एवं न्यायमूर्ति राजेश कुमार द्वारा पारित निर्णय, “Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 की धारा 430” के अंतर्गत एक ऐसे ही संवेदनशील मामले में आया, जिसमें हत्या के दोषी अभियुक्त को एक दशक से अधिक कारावास भोगने के बाद सज़ा स्थगित करते हुए जमानत दी गई।


प्रकरण की पृष्ठभूमि:
मामले में अभियुक्त को हत्या के गंभीर आरोप में दोषी ठहराया गया और उसे दीर्घकालिक कारावास की सज़ा सुनाई गई। अभियुक्त ने उक्त सज़ा के विरुद्ध उच्च न्यायालय में आपराधिक अपील दायर की। परंतु, अपील के शीघ्र निपटान की कोई संभावना न देखते हुए, अभियुक्त ने सज़ा स्थगन (Suspension of Sentence) और जमानत (Bail) की अर्जी दाखिल की।


कानूनी प्रावधान – धारा 430, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023:
यह धारा उस स्थिति में लागू होती है जब किसी सजायाफ्ता व्यक्ति द्वारा दायर अपील विचाराधीन हो और न्यायालय को यह प्रतीत हो कि अपील का शीघ्र निपटान संभव नहीं है। इस स्थिति में यदि अभियुक्त ने सज़ा की आधी से अधिक अवधि पूर्ण कर ली हो, तो न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अभियुक्त की सज़ा को स्थगित कर उसे जमानत पर रिहा कर दे।


न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ:
न्यायालय ने कहा कि–

  1. “यदि कोई अभियुक्त हत्या जैसे गंभीर अपराध में दोषी करार दिया जाता है और वह 10 वर्षों से अधिक समय तक निरंतर जेल में रहता है, जबकि अपील का निस्तारण शीघ्र नहीं हो सकता, तो न्याय के हित में सज़ा को स्थगित कर जमानत देना उचित होगा।”
  2. “दोषसिद्धि के पश्चात भी, अभियुक्त की मौलिक स्वतंत्रता को पूर्णतः निरस्त नहीं किया जा सकता, विशेषकर तब, जब अपील लम्बे समय से लंबित है और अभियुक्त का आचरण जेल में संतोषजनक रहा हो।”
  3. “भारत का संविधान ‘न्याय’ को एक मौलिक अधिकार मानता है। यदि न्याय मिलने में अत्यधिक विलंब हो, तो वह स्वयं अन्याय बन जाता है।”

प्रभाव एवं व्यावहारिक महत्त्व:
इस निर्णय का महत्त्व न्यायिक व्यावहारिकता और मानवाधिकार दोनों की दृष्टि से अत्यधिक है। यह निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट करता है:

  1. सज़ा का उद्देश्य सुधार है, प्रतिशोध नहीं:
    अभियुक्तों को दीर्घकालिक कारावास के माध्यम से सुधारने की संकल्पना है। यदि किसी व्यक्ति ने सुधार का पर्याप्त संकेत दिया हो और न्यायिक प्रक्रिया में असाधारण विलंब हो, तो उसे अस्थायी रूप से स्वतंत्रता देना न्यायसंगत होगा।
  2. न्यायिक विलंब के प्रभाव को न्यून करना:
    न्यायपालिका स्वयं स्वीकार कर रही है कि अपीलों के शीघ्र निपटान में असमर्थता, दोषसिद्ध व्यक्तियों के अधिकारों का हनन कर सकती है। यह निर्णय ऐसे मामलों में एक मार्गदर्शक बन सकता है, जहां अभियुक्त वर्षों से जेल में है और उसकी अपील अभी तक सूचीबद्ध भी नहीं हुई है।
  3. Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 का व्यावहारिक प्रयोग:
    यह केस धारा 430 के तहत नए कानूनी प्रावधानों की व्याख्या और प्रभाव को दर्शाता है, जो विशेष रूप से अपील के लंबित रहने की स्थिति में न्यायिक विवेक के उपयोग की अनुमति देता है।

न्याय और मानवाधिकार के बीच संतुलन:
सज़ा स्थगन और जमानत, विशेषकर हत्या जैसे गंभीर अपराधों में, न्यायालयों के लिए एक कठिन संतुलन का विषय होता है। एक ओर पीड़ित पक्ष का अधिकार होता है कि उसे न्याय मिले, वहीं दूसरी ओर दोषसिद्ध अभियुक्त भी तब तक “अपील लंबित” की स्थिति में होता है और उसका मौलिक अधिकार समाप्त नहीं होता।

यह निर्णय इस संतुलन को सुरक्षित रखते हुए न्याय का विस्तार करता है। यह बताता है कि न्याय केवल सज़ा देने का ही नहीं, बल्कि समय पर न्याय प्रदान करने का भी नाम है।


निष्कर्ष:
झारखंड उच्च न्यायालय का यह निर्णय एक मिसाल प्रस्तुत करता है कि न्यायिक प्रक्रियाओं में विलंब से अभियुक्तों को होने वाले अन्याय को किस प्रकार सुलझाया जा सकता है। यह निर्णय विशेष रूप से उन मामलों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होगा जहां अपील वर्षों से लंबित हैं और अभियुक्त ने एक महत्वपूर्ण अवधि पहले ही जेल में गुज़ार दी है।

“न्याय में देरी, न्याय से वंचित करना होता है।” — इस मूलभूत सिद्धांत को पुनर्स्थापित करते हुए यह निर्णय न्यायपालिका के संवेदनशील पक्ष को उजागर करता है और भविष्य में ऐसे कई मामलों के लिए संदर्भ बिंदु बन सकता है।