भारत में दिवालियापन से संबंधित मामलों के लिए इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC) लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य संकटग्रस्त कंपनियों के पुनर्गठन या समापन की प्रक्रिया को समयबद्ध और प्रभावी बनाना है। इस प्रक्रिया में दो प्रमुख प्रकार के लेनदार होते हैं: वित्तीय लेनदार और परिचालन लेनदार, जिनकी भूमिका, अधिकार और दायित्व अलग-अलग होते हैं।
1. परिभाषात्मक भेद
IBC की धारा 5(7) के अनुसार, वित्तीय लेनदार वह है जिसने एक कॉर्पोरेट डिबेटर को “वित्तीय ऋण” दिया हो – जैसे कि टर्म लोन, बॉन्ड, डिबेंचर, आदि। वहीं, धारा 5(20) के अनुसार, परिचालन लेनदार वह है जिसका दावा वस्तुओं की आपूर्ति, सेवाओं के प्रतिफल, या कर्मचारी वेतन के रूप में हो।
वित्तीय लेनदारों में मुख्यतः बैंक, वित्तीय संस्थान, और निवेशक आते हैं।
परिचालन लेनदारों में सप्लायर्स, ठेकेदार, कर्मचारी, और सरकारी विभाग (जैसे टैक्स विभाग) शामिल होते हैं।
2. दिवालियापन याचिका दायर करने का अधिकार और प्रक्रिया
वित्तीय लेनदार, IBC की धारा 7 के तहत, सीधे NCLT में कॉर्पोरेट डिबेटर के खिलाफ दिवालियापन याचिका दायर कर सकता है। उसे केवल यह साबित करना होता है कि डिफ़ॉल्ट हुआ है।
परिचालन लेनदार, धारा 9 के अंतर्गत याचिका दायर कर सकता है, परंतु इससे पहले उसे डिफ़ॉल्ट की सूचना (डिमांड नोट) भेजना आवश्यक होता है और यदि 10 दिन में भुगतान या विवाद का उत्तर नहीं मिलता, तभी वह याचिका दायर कर सकता है। यह अतिरिक्त चरण परिचालन लेनदार की प्रक्रिया को अधिक जटिल और सीमित बनाता है।
3. Committee of Creditors (CoC) में अधिकार
CoC दिवालियापन समाधान प्रक्रिया की मुख्य निर्णय लेने वाली संस्था होती है।
वित्तीय लेनदार CoC के पूर्ण सदस्य होते हैं और उन्हें समाधान योजना (Resolution Plan) को स्वीकृति देने, पुनर्गठन की दिशा तय करने, और यदि समाधान संभव न हो तो परिसमापन का निर्णय लेने का अधिकार होता है।
परिचालन लेनदार CoC के सदस्य नहीं होते। उन्हें केवल योजना प्रस्तुत होने के बाद अपनी आपत्ति या सुझाव दर्ज कराने का अधिकार होता है। वे प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं कर सकते।
उदाहरण: यदि किसी कंपनी पर 100 करोड़ का ऋण है और उसमें 80 करोड़ वित्तीय और 20 करोड़ परिचालन ऋण है, तो CoC में केवल वित्तीय लेनदारों का अधिकार होगा और वे 66% बहुमत से योजना स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।
4. समाधान योजना में भुगतान की प्राथमिकता
IBC के अनुसार, समाधान योजना बनाते समय लेनदारों को उनके दावे के प्रकार और प्राथमिकता के आधार पर भुगतान किया जाता है।
वित्तीय लेनदारों को भुगतान की प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि वे कोड की संरचना में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। उन्हें अक्सर रेजोल्यूशन प्रक्रिया से आंशिक या पूर्ण वसूली मिलती है।
परिचालन लेनदारों को भुगतान बाद में मिलता है, और कभी-कभी उन्हें नाममात्र राशि ही मिलती है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, समान व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती, परंतु उन्हें “न्यायसंगत और उचित” व्यवहार मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
Essar Steel मामले (2019) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CoC समाधान योजना को मंजूरी देते समय परिचालन लेनदारों के हितों की उपेक्षा नहीं कर सकती। हालांकि समान भुगतान आवश्यक नहीं, पर न्यायोचित हिस्सा मिलना चाहिए।
5. विवाद समाधान और अपील का अधिकार
वित्तीय लेनदार के पास समाधान योजना, CoC के गठन, और प्रक्रिया में त्रुटियों के विरुद्ध NCLT और NCLAT में अपील करने का प्रभावी अधिकार होता है।
परिचालन लेनदार के पास भी अपील का अधिकार होता है, परंतु उन्हें अपने अधिकारों को सिद्ध करने के लिए अधिक साक्ष्य और प्रयास की आवश्यकता होती है, विशेषकर जब कोई समाधान योजना पहले से स्वीकार हो चुकी हो।
6. व्यवहारिक प्रभाव और नीति परिप्रेक्ष्य
IBC ने ऋण वसूली की प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाया है, लेकिन इसकी संरचना अधिकतर वित्तीय लेनदारों के पक्ष में झुकी हुई है।
परिचालन लेनदारों को केवल सीमित भागीदारी दी गई है, जिससे उनकी वसूली की संभावना घट जाती है। यद्यपि न्यायालयों ने समय-समय पर उनके हितों की रक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं, फिर भी नीति निर्माताओं पर यह दबाव है कि वे परिचालन लेनदारों को अधिक संरक्षित और प्रभावी अधिकार दें।
निष्कर्ष:
दिवालियापन प्रक्रिया में वित्तीय लेनदार और परिचालन लेनदार की भूमिका और अधिकारों में स्पष्ट असमानता है। जहां वित्तीय लेनदार को कोड की आत्मा कहा जा सकता है, वहीं परिचालन लेनदार को सहायक भूमिका दी गई है।
हालांकि कोड का उद्देश्य दोनों के हितों की रक्षा करना है, परंतु अधिकारों और निर्णय प्रक्रिया में वित्तीय लेनदार को वरीयता दी गई है। भविष्य में इस असंतुलन को सुधारने हेतु नीतिगत संशोधन आवश्यक हो सकते हैं।