दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

1. दिवालियापन (Bankruptcy) और दिवालियापन कानून (Bankruptcy Law) क्या है?

उत्तर:
दिवालियापन एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति या कंपनी अपने ऋणों को चुकाने में असमर्थ हो जाती है, और अदालत के आदेश से उसकी संपत्तियों का निपटान किया जाता है। दिवालियापन कानून उन नियमों और प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है जिनके तहत दिवालिया व्यक्ति या संस्था के ऋणों का निपटान किया जाता है।

2. भारत में दिवालियापन और ऋण वसूली से संबंधित प्रमुख कानून कौन-कौन से हैं?

उत्तर:
भारत में दिवालियापन और ऋण वसूली से संबंधित प्रमुख कानून हैं:

  1. दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 – IBC, 2016)
  2. सरफेसी अधिनियम, 2002 (SARFAESI Act, 2002)
  3. ऋण वसूली अधिकरण अधिनियम, 1993 (Recovery of Debts and Bankruptcy Act, 1993 – RDB Act, 1993)
  4. कंपनी अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) के प्रावधान
  5. परिसमापक अधिनियम, 1909 (Provincial Insolvency Act, 1909) और भारतीय परिसमापक अधिनियम, 1920 (Presidency Towns Insolvency Act, 1920)

3. दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC, 2016) क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?

उत्तर:
IBC, 2016 एक व्यापक कानून है जो दिवालियापन से संबंधित प्रक्रियाओं को सरल और प्रभावी बनाता है। इसका उद्देश्य:

  • दिवालिया प्रक्रिया को तेज करना और पारदर्शिता लाना।
  • ऋणदाताओं को उनकी वसूली में सहायता प्रदान करना।
  • व्यवसायों को पुनर्गठन (Reorganization) और परिसमापन (Liquidation) के विकल्प देना।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में वित्तीय स्थिरता बनाए रखना।

4. IBC, 2016 के तहत दिवालियापन प्रक्रिया क्या है?

उत्तर:
IBC के तहत दिवालियापन प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है:

  1. आवेदन (Initiation): ऋणदाता (Creditor) या देनदार (Debtor) राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) में आवेदन दाखिल करता है।
  2. कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रोसेस (CIRP): NCLT द्वारा समाधान पेशेवर (Resolution Professional) नियुक्त किया जाता है और 180 दिन (अधिकतम 330 दिन) की अवधि के लिए समाधान प्रक्रिया शुरू होती है।
  3. समाधान योजना (Resolution Plan): समाधान पेशेवर ऋणदाताओं की समिति (Committee of Creditors – COC) के साथ मिलकर समाधान योजना बनाता है।
  4. परिसमापन (Liquidation): यदि समाधान योजना मंजूर नहीं होती, तो कंपनी की संपत्तियों का परिसमापन कर दिया जाता है और ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है।

5. ऋण वसूली अधिकरण (Debt Recovery Tribunal – DRT) क्या है और इसका कार्य क्या है?

उत्तर:
DRT एक विशेष न्यायाधिकरण है जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों को ₹20 लाख से अधिक के असुरक्षित ऋणों की वसूली के लिए न्यायिक सहायता प्रदान करता है। इसका कार्य:

  • ऋण वसूली से जुड़े मामलों की सुनवाई करना।
  • ऋण वसूली के आदेश जारी करना।
  • ऋणदाताओं और देनदारों के अधिकारों की रक्षा करना।

6. SARFAESI अधिनियम, 2002 क्या है और यह कैसे कार्य करता है?

उत्तर:
SARFAESI (Securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002) बैंकों और वित्तीय संस्थानों को यह अधिकार देता है कि वे बिना किसी न्यायिक हस्तक्षेप के अपने ऋणों की वसूली कर सकें। इसके तहत बैंक:

  • बंधक संपत्तियों (Mortgaged Properties) को नीलाम कर सकते हैं।
  • ऋण खातों को एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (ARCs) को बेच सकते हैं।
  • बैंकों को DRT या NCLT जाने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे ऋण वसूली प्रक्रिया तेज होती है।

7. दिवालियापन और परिसमापन में क्या अंतर है?

उत्तर:
| आधार | दिवालियापन (Bankruptcy) | परिसमापन (Liquidation) |
|———-|———————|——————|
| परिभाषा | जब कोई व्यक्ति या कंपनी अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ होती है। | कंपनी की संपत्तियों को बेचकर ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है। |
| उद्देश्य | समाधान प्रक्रिया के माध्यम से पुनर्गठन या ऋण पुनर्भुगतान की व्यवस्था करना। | कंपनी को पूरी तरह से समाप्त कर देना। |
| कानून | IBC, 2016, RDB Act, 1993 | IBC, 2016, Companies Act, 2013 |

8. कौन-कौन दिवालियापन प्रक्रिया शुरू कर सकता है?

उत्तर:
दिवालियापन प्रक्रिया निम्नलिखित व्यक्ति या संस्थाएं शुरू कर सकती हैं:

  1. कॉर्पोरेट देनदार (Corporate Debtor): जब कंपनी स्वयं दिवालियापन की याचिका दायर करती है।
  2. ऋणदाता (Creditors): जब बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान कंपनी के खिलाफ दिवालियापन प्रक्रिया शुरू करते हैं।
  3. ऑपरेशनल क्रेडिटर्स (Operational Creditors): जब कंपनी किसी विक्रेता, कर्मचारी या अन्य सेवाप्रदाता का भुगतान करने में असमर्थ होती है।

9. IBC, 2016 के तहत व्यक्तिगत दिवालियापन (Personal Bankruptcy) कैसे किया जाता है?

उत्तर:
व्यक्तिगत दिवालियापन की प्रक्रिया IBC, 2016 के तहत निम्नलिखित चरणों में होती है:

  1. आवेदन दाखिल करना: देनदार या ऋणदाता DRT में आवेदन करता है।
  2. अंतरिम स्थगन (Moratorium): दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान ऋण की वसूली पर रोक लगती है।
  3. समाधान प्रक्रिया (Resolution Process): व्यक्ति को पुनर्भुगतान योजना प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है।
  4. परिसमापन (Liquidation): यदि समाधान योजना मंजूर नहीं होती, तो व्यक्ति की संपत्तियों को बेचकर ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है।

10. IBC, 2016 में कौन-कौन से न्यायाधिकरण और प्राधिकरण कार्यरत हैं?

उत्तर:

  1. राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT): कॉर्पोरेट दिवालियापन मामलों की सुनवाई करता है।
  2. राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण (NCLAT): NCLT के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है।
  3. ऋण वसूली अधिकरण (DRT): व्यक्तिगत दिवालियापन और बैंकों के ऋण वसूली मामलों को देखता है।
  4. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट: अंतिम अपील के रूप में कार्य करते हैं।

दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर (11-50)

11. IBC, 2016 में ऋणदाताओं को कितने प्रकारों में विभाजित किया गया है?

उत्तर: IBC, 2016 के तहत ऋणदाताओं को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है:

  1. वित्तीय ऋणदाता (Financial Creditors): बैंक, वित्तीय संस्थान, बॉन्डधारक, डिबेंचरधारक आदि।
  2. संचालन ऋणदाता (Operational Creditors): आपूर्तिकर्ता, विक्रेता, कर्मचारी, सरकार (कर देयता के मामलों में)।

12. कौन-से ऋणदाता IBC, 2016 के तहत समाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू कर सकते हैं?

उत्तर:

  • कोई भी वित्तीय ऋणदाता (Financial Creditor) या
  • कोई भी संचालन ऋणदाता (Operational Creditor) या
  • स्वयं कॉर्पोरेट देनदार (Corporate Debtor)

13. IBC, 2016 में समाधान प्रक्रिया (CIRP) कितने दिनों में पूरी होनी चाहिए?

उत्तर:

  • प्रारंभिक समयसीमा: 180 दिन
  • अधिकतम समयसीमा (विस्तार सहित): 330 दिन

14. दिवालियापन के दौरान ‘मोराटोरियम पीरियड’ (Moratorium Period) क्या होता है?

उत्तर: मोराटोरियम पीरियड वह अवधि होती है जिसमें कोई भी नया कानूनी मामला दर्ज नहीं किया जा सकता, और मौजूदा कानूनी कार्यवाही रोक दी जाती है। यह समाधान प्रक्रिया के दौरान लागू रहता है।

15. समाधान पेशेवर (Resolution Professional – RP) कौन होता है?

उत्तर: RP एक नियुक्त अधिकारी होता है जो समाधान प्रक्रिया का प्रबंधन करता है, ऋणदाताओं की समिति (COC) का समन्वय करता है और समाधान योजना को लागू करने में सहायता करता है।

16. ऋणदाताओं की समिति (COC) में कौन शामिल होते हैं?

उत्तर: COC में केवल वित्तीय ऋणदाता (Financial Creditors) शामिल होते हैं। संचालन ऋणदाता (Operational Creditors) को विशेष परिस्थितियों में आमंत्रित किया जा सकता है, लेकिन उनके पास मतदान का अधिकार नहीं होता।

17. NCLT और NCLAT में क्या अंतर है?

1. परिभाषा:
NCLT एक अर्ध-न्यायिक निकाय है, जो कंपनी कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई करता है। दूसरी ओर, NCLAT वह अपीलीय निकाय है, जहां NCLT के आदेशों के खिलाफ अपील दायर की जाती है।

2. स्थापना:
NCLT की स्थापना कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत की गई थी, जबकि NCLAT की स्थापना धारा 410, कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत की गई।

3. कार्यक्षेत्र:
NCLT कॉर्पोरेट मामलों जैसे कंपनी पंजीकरण, विलय, अधिग्रहण, कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) और ऋण वसूली से जुड़े मामलों की सुनवाई करता है। NCLAT उन मामलों की सुनवाई करता है, जो NCLT के आदेशों के खिलाफ अपील के रूप में दायर किए जाते हैं।

4. न्यायिक स्तर:
NCLT प्रथम अपील (Original Jurisdiction) की सुनवाई करता है, जबकि NCLAT द्वितीय अपील (Appellate Jurisdiction) के तहत कार्य करता है।

5. अपीलीय निकाय:
NCLT के आदेशों के खिलाफ अपील NCLAT में की जाती है, जबकि NCLAT के आदेशों के खिलाफ अपील भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) में की जा सकती है।

6. अध्यक्षता:
NCLT के अध्यक्ष (President) और सदस्य न्यायिक एवं तकनीकी विशेषज्ञ होते हैं। वहीं, NCLAT के अध्यक्ष (Chairperson) उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं।

7. भूमिका:
NCLT किसी भी कंपनी से जुड़े विवादों, दिवालियापन मामलों और प्रशासनिक मुद्दों की सुनवाई करता है, जबकि NCLAT केवल NCLT, IBBI (Insolvency and Bankruptcy Board of India), CCI (Competition Commission of India) और अन्य नियामक निकायों के आदेशों की समीक्षा और पुनर्विचार करता है।

इस प्रकार, NCLT और NCLAT एक-दूसरे से जुड़े होने के बावजूद, उनकी भूमिकाएं और अधिकार क्षेत्र अलग-अलग हैं।

18. परिसमापन (Liquidation) के दौरान संपत्ति के वितरण की प्राथमिकता क्या होती है?

उत्तर: परिसमापन के दौरान संपत्तियों का वितरण निम्नलिखित क्रम में होता है:

  1. परिसमापक व्यय और समाधान प्रक्रिया की लागत।
  2. सुरक्षित ऋणदाता (Secured Creditors)।
  3. श्रमिकों का वेतन और अन्य देनदारियाँ।
  4. असुरक्षित ऋणदाता (Unsecured Creditors)।
  5. वरीयता शेयरधारक (Preference Shareholders)।
  6. सामान्य शेयरधारक (Equity Shareholders)।

19. व्यक्तिगत दिवालियापन (Personal Insolvency) और कॉर्पोरेट दिवालियापन (Corporate Insolvency) में क्या अंतर है?

1. परिभाषा:
व्यक्तिगत दिवालियापन तब होता है जब कोई व्यक्ति (Individual) अपनी वित्तीय देनदारियों को पूरा करने में असमर्थ हो जाता है। इसके विपरीत, कॉर्पोरेट दिवालियापन तब होता है जब कोई कंपनी (Corporate Entity) या व्यवसाय अपने ऋणों को चुकाने में विफल हो जाता है।

2. लागू कानून:
व्यक्तिगत दिवालियापन के मामलों को भारतीय दिवालियापन और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC, 2016) के भाग III और राष्ट्रपति नगर दिवालियापन अधिनियम, 1909 जैसे अन्य प्रावधानों के तहत नियंत्रित किया जाता है। दूसरी ओर, कॉर्पोरेट दिवालियापन पूरी तरह से IBC, 2016 के भाग II के तहत संचालित होता है।

3. समाधान प्रक्रिया:
व्यक्तिगत दिवालियापन में ऋण पुनर्गठन (Debt Restructuring), समझौता (Settlement) या पूर्ण दिवालियापन की प्रक्रिया अपनाई जाती है। जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन में कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) चलाई जाती है, जिसमें समाधान पेशेवर (Resolution Professional) की देखरेख में कंपनी के पुनर्गठन या परिसमापन का निर्णय लिया जाता है।

4. न्यायिक मंच:
व्यक्तिगत दिवालियापन के मामलों की सुनवाई ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) में होती है, जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन से जुड़े मामलों को राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) में दायर किया जाता है।

5. प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार:
व्यक्तिगत दिवालियापन का आवेदन देनदार (Debtor) या ऋणदाता (Creditor) दोनों कर सकते हैं। इसके विपरीत, कॉर्पोरेट दिवालियापन के मामले में वित्तीय ऋणदाता (Financial Creditor), परिचालन ऋणदाता (Operational Creditor) या स्वयं कंपनी (Corporate Debtor) भी आवेदन कर सकती है।

6. समयसीमा:
IBC, 2016 के तहत व्यक्तिगत दिवालियापन मामलों के समाधान की कोई सख्त समयसीमा निर्धारित नहीं है, जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन मामलों को अधिकतम 330 दिनों के भीतर निपटाने की समयसीमा होती है।

7. परिणाम:
व्यक्तिगत दिवालियापन में उधारकर्ता के पास ऋण पुनर्भुगतान या संपत्ति नीलामी के माध्यम से वित्तीय संकट से उबरने के विकल्प होते हैं। दूसरी ओर, कॉर्पोरेट दिवालियापन में यदि समाधान योजना स्वीकृत नहीं होती, तो कंपनी का परिसमापन (Liquidation) कर दिया जाता है और उसकी संपत्तियों को बेचकर ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है।

इस प्रकार, व्यक्तिगत दिवालियापन एक व्यक्ति के वित्तीय संकट से संबंधित होता है, जबकि कॉर्पोरेट दिवालियापन एक संगठन या कंपनी की वित्तीय अस्थिरता से जुड़ा होता है।

20. समाधान योजना (Resolution Plan) को कौन अनुमोदित करता है?

उत्तर: COC (Committee of Creditors) के कम से कम 66% बहुमत से अनुमोदन आवश्यक होता है।

21-30: SARFAESI अधिनियम, 2002 से जुड़े प्रश्न

21. SARFAESI अधिनियम, 2002 का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: यह कानून बैंकों को बिना किसी न्यायिक हस्तक्षेप के ऋण की वसूली की शक्ति प्रदान करता है।

22. SARFAESI अधिनियम के तहत कौन-कौन से ऋण कवर किए जाते हैं?

उत्तर: ₹1 लाख से अधिक के ऋण और असुरक्षित ऋण (Unsecured Loans) को छोड़कर सभी ऋण इसमें आते हैं।

23. SARFAESI के तहत बैंक संपत्ति की नीलामी कब कर सकते हैं?

उत्तर: जब उधारकर्ता 90 दिनों तक भुगतान करने में असफल रहता है, तब बैंक संपत्ति को जब्त कर सकते हैं।

24. SARFAESI के तहत कार्रवाई के क्या तरीके हैं?

  1. प्रतिभूति को जब्त करना।
  2. ऋण को एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (ARC) को बेचना।
  3. कंपनी के प्रबंधन को अपने हाथ में लेना।

25-30: ऋण वसूली अधिकरण (Debt Recovery Tribunal – DRT) से जुड़े प्रश्न

25. DRT किस कानून के तहत कार्य करता है?
उत्तर: ऋण वसूली अधिकरण अधिनियम, 1993।

26. DRT में ऋण वसूली का न्यूनतम सीमा क्या है?
उत्तर: ₹20 लाख से अधिक के ऋणों के मामले DRT में सुने जाते हैं।

27. DRT में अपील कहाँ की जाती है?
उत्तर: अपीलीय अधिकरण (Debt Recovery Appellate Tribunal – DRAT) में।

31-40: अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

31. IBC, 2016 से पहले दिवालियापन के प्रमुख कानून कौन से थे?
उत्तर:

  1. कंपनी अधिनियम, 1956
  2. परिसमापक अधिनियम, 1909
  3. भारतीय परिसमापक अधिनियम, 1920

32. IBC, 2016 का प्रभाव किन संस्थानों पर हुआ?
उत्तर: बैंकों, वित्तीय संस्थानों, कॉर्पोरेट सेक्टर और छोटे व्यवसायों पर।

33. दिवालिया व्यक्ति कितने वर्षों के बाद नया व्यवसाय शुरू कर सकता है?
उत्तर: 3 साल।

41-50: न्यायिक निर्णय और व्यावहारिक पहलू

41. कौन-से न्यायालय IBC, 2016 के मामलों की निगरानी करते हैं?
उत्तर: NCLT, NCLAT और सुप्रीम कोर्ट।

42. भारत में सबसे बड़ा दिवालियापन मामला कौन-सा था?
उत्तर: IL&FS (Infrastructure Leasing & Financial Services)।

43. दिवालियापन का असर शेयर बाजार पर कैसे पड़ता है?
उत्तर: संबंधित कंपनी के शेयरों में भारी गिरावट होती है।

44. क्या एक दिवालिया व्यक्ति सरकारी नौकरी कर सकता है?
उत्तर: नहीं, जब तक कि उसे पुनः सक्षम घोषित न किया जाए।

45. क्या किसी कंपनी को IBC के तहत पुनर्जीवित किया जा सकता है?
उत्तर: हां, यदि समाधान योजना स्वीकार कर ली जाए।


46. IBC, 2016 के तहत समाधान प्रक्रिया (Corporate Insolvency Resolution Process – CIRP) की विस्तृत व्याख्या करें।

उत्तर:

कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) IBC, 2016 के तहत दी गई एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य किसी वित्तीय संकट में फंसी कंपनी के ऋण पुनर्गठन (Debt Restructuring) या परिसमापन (Liquidation) के माध्यम से समाधान निकालना है। इसका उद्देश्य कॉर्पोरेट देनदार (Corporate Debtor) को पुनर्जीवित करना और ऋणदाताओं को उनके बकाया ऋणों की वसूली में सहायता करना है।

मुख्य चरण:

  1. आवेदन (Application):
    • वित्तीय ऋणदाता, संचालन ऋणदाता या स्वयं कॉर्पोरेट देनदार, NCLT (National Company Law Tribunal) में CIRP शुरू करने के लिए आवेदन कर सकते हैं।
  2. प्रारंभिक जांच (Preliminary Examination):
    • NCLT आवेदन स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।
    • यदि आवेदन स्वीकृत होता है, तो एक समाधान पेशेवर (Resolution Professional – RP) नियुक्त किया जाता है।
  3. मोराटोरियम पीरियड (Moratorium Period):
    • सभी कानूनी कार्रवाई और ऋण पुनर्प्राप्ति रोक दी जाती है।
  4. ऋणदाताओं की समिति (Committee of Creditors – COC) का गठन:
    • वित्तीय ऋणदाता COC का गठन करते हैं और RP की नियुक्ति की पुष्टि करते हैं।
  5. समाधान योजना (Resolution Plan) तैयार करना:
    • इच्छुक पक्ष समाधान योजना प्रस्तुत कर सकते हैं।
    • COC को कम से कम 66% बहुमत से इसे मंजूरी देनी होती है।
  6. समाधान या परिसमापन:
    • यदि योजना स्वीकृत होती है, तो इसे NCLT द्वारा लागू किया जाता है।
    • यदि कोई योजना स्वीकृत नहीं होती, तो परिसमापन (Liquidation) की प्रक्रिया शुरू होती है।

47. परिसमापन (Liquidation) प्रक्रिया की विस्तृत व्याख्या करें।

उत्तर:

परिसमापन एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यवसाय को बंद कर दिया जाता है और उसकी संपत्तियों को बेचकर ऋणदाताओं का भुगतान किया जाता है। जब कोई कंपनी समाधान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान कोई व्यवहार्य समाधान योजना नहीं पेश कर पाती, तो परिसमापन किया जाता है।

परिसमापन की प्रक्रिया:

  1. परिसमापक (Liquidator) की नियुक्ति:
    • NCLT परिसमापक की नियुक्ति करता है, जो कंपनी की संपत्तियों को बेचने और ऋणदाताओं को भुगतान करने का कार्य करता है।
  2. संपत्तियों की सूची (Asset Inventory):
    • परिसमापक सभी संपत्तियों की सूची बनाता है और उन्हें बेचे जाने की प्रक्रिया शुरू करता है।
  3. ऋणों का भुगतान (Debt Repayment):
    परिसमापन की प्रक्रिया के दौरान संपत्तियों का वितरण निम्नलिखित प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है:

    • परिसमापन व्यय और समाधान प्रक्रिया की लागत।
    • सुरक्षित ऋणदाता (Secured Creditors)।
    • श्रमिकों का वेतन और अन्य देनदारियाँ।
    • असुरक्षित ऋणदाता (Unsecured Creditors)।
    • वरीयता शेयरधारक (Preference Shareholders)।
    • सामान्य शेयरधारक (Equity Shareholders)।
  4. कंपनी का विघटन (Dissolution of the Company):
    • जब सभी देनदारियों का निपटान हो जाता है, तो परिसमापक कंपनी को औपचारिक रूप से भंग कर देता है।

48. ऋण वसूली अधिकरण (Debt Recovery Tribunal – DRT) की संरचना और कार्यप्रणाली की व्याख्या करें।

उत्तर:

ऋण वसूली अधिकरण (DRT) 1993 के ऋण वसूली अधिकरण अधिनियम (Debt Recovery Tribunal Act, 1993) के तहत स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों को एक कुशल और त्वरित तरीके से अपने ऋण की वसूली में सहायता प्रदान करना है।

संरचना:

  1. DRT का अध्यक्ष (Presiding Officer):
    • भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक कार्य करता है।
  2. DRAT (Debt Recovery Appellate Tribunal):
    • DRT के आदेशों के विरुद्ध अपील की सुनवाई करता है।

कार्यप्रणाली:

  1. बैंक या वित्तीय संस्थान DRT में आवेदन करते हैं।
  2. DRT उधारकर्ता को नोटिस जारी करता है।
  3. दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद DRT निर्णय देता है।
  4. निर्णय के अनुसार, बैंक उधारकर्ता की संपत्ति जब्त कर सकते हैं।

49. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका IBC, 2016 और ऋण वसूली कानूनों में क्या है?

उत्तर:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत में वित्तीय प्रणाली का नियामक है और IBC, 2016 सहित विभिन्न ऋण वसूली कानूनों के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

RBI की प्रमुख भूमिकाएँ:

  1. बैंकों के लिए दिशानिर्देश:
    • RBI बैंकों को NPA (Non-Performing Assets) की पहचान और समाधान के लिए दिशानिर्देश जारी करता है।
  2. स्ट्रेस्ड एसेट्स (Stressed Assets) के समाधान की निगरानी:
    • RBI स्ट्रेस्ड एसेट्स को कम करने और ऋण पुनर्गठन (Debt Restructuring) के लिए विभिन्न उपाय करता है।
  3. SARFAESI अधिनियम, 2002 का कार्यान्वयन:
    • बैंकों को संपत्तियों की जब्ती और नीलामी में मदद करता है।

50. दिवालियापन और ऋण वसूली कानूनों के प्रभावों की विस्तृत व्याख्या करें।

उत्तर:

दिवालियापन और ऋण वसूली कानूनों ने भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली पर गहरा प्रभाव डाला है।

1. बैंकिंग प्रणाली पर प्रभाव:

  • बैंकों के डूबे हुए ऋण (NPA) की वसूली में सुधार हुआ।
  • ऋण देने की प्रक्रिया अधिक अनुशासित और पारदर्शी हुई।

2. कंपनियों और निवेशकों पर प्रभाव:

  • कंपनियों को संकट के समय समाधान ढूंढने का अवसर मिला।
  • निवेशकों में विश्वास बढ़ा, जिससे विदेशी निवेश आकर्षित हुआ।

3. कानूनी ढांचे पर प्रभाव:

  • NCLT और DRT जैसी संस्थाओं की भूमिका बढ़ी।
  • ऋण समाधान प्रक्रिया अधिक संरचित और समयबद्ध हो गई।

4. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • खराब प्रदर्शन करने वाली कंपनियों को समाप्त करने और संसाधनों के पुनर्वितरण में मदद मिली।
  • भारतीय उद्योग और वित्तीय प्रणाली अधिक स्थिर हुई।

51. राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) की भूमिका समझाइए।

उत्तर:

राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) भारत सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम, 2013 और IBC, 2016 के तहत स्थापित किए गए विशेष न्यायाधिकरण हैं, जो दिवालियापन और कंपनी मामलों की सुनवाई करते हैं।

NCLT की भूमिका:

  1. दिवालियापन मामलों की सुनवाई: कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) को लागू करता है।
  2. ऋण वसूली मामले: वित्तीय संस्थानों और बैंकों द्वारा दायर मामलों की सुनवाई करता है।
  3. कॉर्पोरेट गवर्नेंस और अघोषित कंपनियों की जांच करता है।

NCLAT की भूमिका:

  1. NCLT के आदेशों के विरुद्ध अपील सुनना।
  2. CIRP, परिसमापन और समाधान योजनाओं पर निर्णय लेना।
  3. सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने से पहले अंतिम अपीलीय मंच के रूप में कार्य करना।

52. IBC, 2016 और SARFAESI अधिनियम, 2002 में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर:

IBC, 2016 और SARFAESI अधिनियम, 2002 में अंतर

1. उद्देश्य:
IBC, 2016 का मुख्य उद्देश्य कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत दोनों तरह के दिवालियापन और समाधान प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना है। इसके तहत ऋणदाताओं को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर समाधान प्रक्रिया पूरी करनी होती है। दूसरी ओर, SARFAESI अधिनियम, 2002 का उद्देश्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बिना अदालती हस्तक्षेप के बंधक संपत्तियों को जब्त कर ऋण की वसूली करने का अधिकार देना है।

2. लागू क्षेत्र:
IBC, 2016 कॉर्पोरेट संस्थानों, साझेदारी फर्मों और व्यक्तिगत देनदारों पर लागू होता है, जबकि SARFAESI अधिनियम केवल बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा संपत्ति-आधारित ऋण वसूली के मामलों में लागू होता है।

3. समाधान प्रक्रिया:
IBC, 2016 के तहत समाधान पेशेवर (Resolution Professional – RP) की देखरेख में कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) चलाई जाती है। इसमें ऋणदाता और ऋणग्रस्त कंपनी के हितधारकों की एक समिति (COC) समाधान योजना को मंजूरी देती है। दूसरी ओर, SARFAESI अधिनियम के तहत, बैंक और वित्तीय संस्थान उधारकर्ता की संपत्ति को जब्त कर उसकी नीलामी कर सकते हैं, जिससे वे सीधे अपनी बकाया राशि की वसूली कर सकते हैं।

4. न्यायिक मंच:
IBC, 2016 के तहत मामलों की सुनवाई राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) द्वारा की जाती है, जबकि SARFAESI के तहत ऋण वसूली के मामले ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) द्वारा सुने जाते हैं।

5. समयसीमा:
IBC, 2016 के तहत समाधान प्रक्रिया को 180 दिनों के भीतर (90 दिनों के विस्तार के साथ) पूरा करने की समयसीमा होती है। यदि समाधान संभव नहीं होता, तो परिसमापन (liquidation) की प्रक्रिया शुरू होती है। वहीं, SARFAESI अधिनियम में समयसीमा का कोई सख्त प्रावधान नहीं है, लेकिन बैंक तीन महीने की नोटिस अवधि के बाद कार्रवाई कर सकते हैं।

6. उधारकर्ता के अधिकार:
IBC, 2016 में समाधान प्रक्रिया के दौरान उधारकर्ता की कंपनी का नियंत्रण समाधान पेशेवर को सौंप दिया जाता है, जबकि SARFAESI अधिनियम के तहत उधारकर्ता को संपत्ति नीलामी से पहले आपत्ति दर्ज करने का अधिकार होता है।

इस प्रकार, IBC, 2016 एक व्यापक कानून है जो समग्र दिवालियापन और समाधान प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, जबकि SARFAESI अधिनियम विशेष रूप से बैंकों और वित्तीय संस्थानों को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की वसूली में मदद करता है।


53. व्यक्तिगत दिवालियापन (Personal Insolvency) क्या है?

उत्तर:

व्यक्तिगत दिवालियापन तब होता है जब कोई व्यक्ति अपने ऋणों को चुकाने में असमर्थ हो जाता है और अदालत से राहत मांगता है। IBC, 2016 के तहत यह प्रक्रिया व्यक्तिगत देनदारों और साझेदारी फर्मों के लिए लागू होती है।

मुख्य चरण:

  1. दिवालियापन आवेदन: व्यक्ति स्वयं या उसके ऋणदाता NCLT/DRT में आवेदन कर सकते हैं।
  2. मध्यस्थता प्रक्रिया: ऋण पुनर्गठन के लिए वार्ता की जाती है।
  3. अदालत का निर्णय: यदि समाधान योजना स्वीकृत नहीं होती, तो संपत्तियों को बेचकर ऋण चुकाया जाता है।
  4. ऋण से मुक्ति (Discharge): सभी भुगतान पूरे होने के बाद व्यक्ति को ऋण से मुक्त कर दिया जाता है।

54. ऋण पुनर्गठन (Debt Restructuring) क्या है?

उत्तर:

ऋण पुनर्गठन एक प्रक्रिया है जिसमें उधारकर्ता की वित्तीय कठिनाइयों को देखते हुए ऋणदाता उसकी ऋण शर्तों में बदलाव करता है।

प्रमुख तरीके:

  1. ऋण की अवधि बढ़ाना (Loan Tenure Extension)
  2. ब्याज दर कम करना (Interest Rate Reduction)
  3. ऋण राशि को आंशिक रूप से माफ करना (Debt Forgiveness)
  4. ऋण पुनर्भुगतान अनुसूची बदलना (Rescheduling of Payments)

55. ऋण समाधान प्रक्रिया (Debt Resolution Process) कैसे काम करती है?

उत्तर:

ऋण समाधान प्रक्रिया का उद्देश्य वित्तीय संकट में फंसे उधारकर्ता को राहत देना और ऋणदाता को अधिकतम वसूली सुनिश्चित करना है।

मुख्य चरण:

  1. वित्तीय संकट की पहचान करना।
  2. ऋणदाता और उधारकर्ता के बीच वार्ता।
  3. नवीन समाधान योजना बनाना।
  4. समाधान योजना को लागू करना।

56. दिवालियापन के आर्थिक प्रभाव क्या हैं?

उत्तर:

  1. बैंकों के लिए:
    • एनपीए (NPA) कम होता है।
    • पूंजी प्रवाह में सुधार होता है।
  2. कंपनियों के लिए:
    • वित्तीय संकट से उबरने का मौका मिलता है।
    • निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।
  3. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
    • आर्थिक स्थिरता बनी रहती है।
    • पूंजी का प्रभावी उपयोग होता है।

57. भारत में ऋण वसूली कानूनों के तहत ऋणदाताओं के अधिकार क्या हैं?

उत्तर:

ऋणदाताओं को विभिन्न कानूनों के तहत कई अधिकार प्राप्त हैं:

  1. IBC, 2016: समाधान प्रक्रिया शुरू करने और परिसमापन का अधिकार।
  2. SARFAESI, 2002: संपत्तियों की जब्ती और नीलामी का अधिकार।
  3. DRT अधिनियम, 1993: त्वरित वसूली की प्रक्रिया।

58. IBC, 2016 के तहत समाधान पेशेवर (Resolution Professional – RP) की भूमिका समझाइए।

उत्तर:

समाधान पेशेवर (RP) वह व्यक्ति होता है जो CIRP के दौरान कंपनी की संपत्तियों और ऋणों का प्रबंधन करता है।

मुख्य कार्य:

  1. कंपनी की वित्तीय स्थिति का आकलन करना।
  2. ऋणदाताओं की समिति (COC) का गठन।
  3. समाधान योजना तैयार करना और प्रस्तुत करना।
  4. परिसमापन की प्रक्रिया को संचालित करना।

59. ऋण वसूली ट्रिब्यूनल (DRT) और NCLT में क्या अंतर है?

उत्तर: ऋण वसूली ट्रिब्यूनल (Debt Recovery Tribunal – DRT) और राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal – NCLT) के बीच प्रमुख अंतर

1. अधिकार क्षेत्र:
DRT केवल बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा दायर किए गए ऋण वसूली मामलों की सुनवाई करता है, जबकि NCLT मुख्य रूप से कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) और कंपनी कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई करता है।

2. लागू कानून:
DRT का गठन ऋण वसूली न्यायाधिकरण अधिनियम, 1993 (RDDBFI Act, 1993) के तहत किया गया है, जबकि NCLT को कंपनी अधिनियम, 2013 और दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC, 2016) के तहत स्थापित किया गया है।

3. मामलों का स्वरूप:
DRT उन मामलों की सुनवाई करता है जहां बैंक और वित्तीय संस्थान अपने बकाए ऋण की वसूली के लिए कार्रवाई करते हैं। दूसरी ओर, NCLT कॉर्पोरेट दिवालियापन मामलों, कंपनी विवादों, कंपनियों के विलय और समापन जैसे मामलों की सुनवाई करता है।

4. अपीलीय निकाय:
DRT के आदेशों के खिलाफ अपील ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण (DRAT) में की जाती है, जबकि NCLT के आदेशों के विरुद्ध अपील राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) में की जाती है।

5. कौन याचिका दायर कर सकता है?
DRT में केवल बैंक और वित्तीय संस्थान ऋण वसूली के लिए याचिका दायर कर सकते हैं, जबकि NCLT में ऋणदाता, कॉर्पोरेट देनदार और शेयरधारक विभिन्न मामलों के लिए आवेदन कर सकते हैं।

6. लागू होने वाला क्षेत्र:
DRT व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट दोनों प्रकार के ऋण वसूली मामलों की सुनवाई करता है, जबकि NCLT केवल कॉर्पोरेट मामलों से संबंधित होता है।

इस प्रकार, DRT और NCLT दोनों अलग-अलग उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं और उनकी कार्यप्रणाली तथा अधिकार क्षेत्र भी भिन्न हैं।


60. भारत में दिवालियापन कानूनों में सुधार की आवश्यकता क्यों है?

उत्तर:

हालांकि IBC, 2016 ने दिवालियापन समाधान प्रक्रिया को मजबूत किया है, लेकिन कुछ सुधारों की आवश्यकता है:

  1. समाधान प्रक्रिया की गति बढ़ाने की जरूरत है।
  2. NCLT और NCLAT में लंबित मामलों को कम करने की जरूरत है।
  3. छोटे व्यवसायों और व्यक्तिगत देनदारों के लिए अधिक प्रभावी समाधान प्रणाली विकसित करनी चाहिए।
  4. ऋण वसूली तंत्र को और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है।

61. भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) के तहत समाधान पेशेवर (Resolution Professional – RP) की भूमिका क्या है?
उत्तर: समाधान पेशेवर (RP) एक स्वतंत्र व्यक्ति होता है, जिसे राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) द्वारा नियुक्त किया जाता है। इसकी प्रमुख भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. ऋणग्रस्त कंपनी के प्रबंधन का नियंत्रण संभालना – IBC के तहत, कंपनी का बोर्ड निलंबित हो जाता है और RP के अधीन काम करता है।
  2. दावे आमंत्रित करना – RP सभी ऋणदाताओं और लेनदारों से उनके दावों की जानकारी एकत्र करता है।
  3. समाधान योजना तैयार करना – RP कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) के तहत निवेशकों से समाधान प्रस्ताव मांगता है।
  4. समिति की बैठक बुलाना – RP ऋणदाताओं की समिति (COC) की बैठक आयोजित कर प्रस्तावों पर चर्चा करता है।
  5. समाधान योजना को लागू करना – COC द्वारा अनुमोदित समाधान योजना को NCLT के समक्ष प्रस्तुत कर लागू करवाना।

62. IBC, 2016 के तहत फास्ट-ट्रैक दिवालियापन प्रक्रिया (Fast Track Insolvency Process) क्या है?
उत्तर:
IBC, 2016 में छोटे व्यवसायों, स्टार्टअप्स और कम परिसंपत्ति वाली कंपनियों के लिए एक त्वरित समाधान प्रक्रिया दी गई है, जिसे फास्ट-ट्रैक दिवालियापन प्रक्रिया कहते हैं। इसके मुख्य बिंदु:

  1. यह प्रक्रिया 90 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए (30 दिनों का अतिरिक्त विस्तार संभव)।
  2. यह केवल छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) और स्टार्टअप्स पर लागू होती है।
  3. इसमें सामान्य CIRP प्रक्रिया की तुलना में कम औपचारिकताओं की आवश्यकता होती है।
  4. इस प्रक्रिया का उद्देश्य तेजी से समाधान और परिसमापन करना है, ताकि व्यवसाय जल्दी उबर सके।

63. IBC, 2016 में परिसमापन (Liquidation) की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर: यदि किसी कंपनी के लिए समाधान योजना (Resolution Plan) नहीं बनाई जा सकती या यदि NCLT समाधान को अस्वीकार कर देता है, तो परिसमापन प्रक्रिया शुरू होती है। इसकी प्रक्रिया इस प्रकार है:

  1. परिसमापक (Liquidator) की नियुक्ति – NCLT एक समाधान पेशेवर (RP) को परिसमापक नियुक्त करता है।
  2. संपत्ति का मूल्यांकन – परिसमापक कंपनी की संपत्तियों का मूल्यांकन करता है।
  3. संपत्ति की बिक्री – नीलामी या अन्य तरीकों से संपत्तियों की बिक्री की जाती है।
  4. ऋणदाताओं को भुगतान – बिक्री से प्राप्त धन को IBC में दी गई प्राथमिकता के अनुसार वितरित किया जाता है।
  5. कंपनी का समाधान या समाप्ति – यदि पूरी संपत्ति वितरित हो जाती है, तो कंपनी को बंद कर दिया जाता है।

64. IBC, 2016 में समाधान योजना (Resolution Plan) क्या होती है?
उत्तर: समाधान योजना वह प्रस्तावित रणनीति होती है, जिसके तहत दिवालिया कंपनी को पुनर्जीवित किया जाता है।
इसके प्रमुख तत्व:

  1. ऋण पुनर्गठन (Debt Restructuring)
  2. कंपनी के प्रबंधन में बदलाव
  3. निवेशकों से नए फंड प्राप्त करना
  4. परिचालन लागत में कटौती
  5. ऋणदाताओं को धन वापस करने की योजना

समाधान योजना को ऋणदाताओं की समिति (COC) द्वारा अनुमोदित किया जाता है और अंतिम स्वीकृति के लिए NCLT में प्रस्तुत किया जाता है।

65. दिवालियापन और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) के लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर:
लाभ:

  1. ऋण समाधान की तेजी से प्रक्रिया (180-330 दिनों में निपटान)।
  2. बैंकों को NPA (Non-Performing Assets) की वसूली में सहायता।
  3. व्यवसायों को पुनर्गठन का अवसर प्रदान करता है।
  4. दिवालियापन की पारदर्शी और न्यायिक प्रक्रिया

चुनौतियाँ:

  1. समय पर समाधान में देरी
  2. संस्थानिक बुनियादी ढांचे की कमी (NCLT पर अधिक भार)।
  3. कुछ मामलों में अनुचित समाधान योजना
  4. व्यक्तिगत दिवालियापन से संबंधित प्रावधान अभी पूरी तरह प्रभावी नहीं हुए हैं।

66. SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत ऋण वसूली की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
SARFAESI (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002) के तहत बैंकों को बिना अदालती प्रक्रिया के ऋण वसूली का अधिकार मिलता है। प्रक्रिया इस प्रकार है:

  1. बैंक उधारकर्ता को 60 दिनों का नोटिस देता है
  2. यदि उधारकर्ता भुगतान करने में असमर्थ रहता है, तो बैंक संपत्ति जब्त कर सकता है।
  3. जब्त संपत्ति को नीलामी के माध्यम से बेचा जाता है
  4. यदि उधारकर्ता को आपत्ति हो तो वह DRT (Debt Recovery Tribunal) या उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

67. ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) में ऋण वसूली का दावा कैसे दायर किया जाता है?
उत्तर:

  1. बैंक या वित्तीय संस्थान DRT में दावा याचिका दाखिल करता है।
  2. DRT नोटिस जारी कर उधारकर्ता से जवाब मांगता है
  3. दोनों पक्षों को सुनने के बाद DRT निर्णय देता है
  4. यदि बैंक के पक्ष में निर्णय होता है, तो उधारकर्ता की संपत्ति कुर्क कर नीलामी की जाती है
  5. यदि कोई पक्ष असंतुष्ट हो, तो वह DRAT (Debt Recovery Appellate Tribunal) में अपील कर सकता है।

68. कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) में COC की भूमिका क्या होती है?
उत्तर:
COC (Committee of Creditors) दिवालिया कंपनी के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

  1. समाधान पेशेवर (RP) की नियुक्ति को मंजूरी देती है।
  2. समाधान योजना को स्वीकृत या अस्वीकृत करती है।
  3. परिसमापन का निर्णय ले सकती है।
  4. कंपनी की संपत्तियों के मूल्यांकन और बिक्री की निगरानी करती है।

69. IBC, 2016 में विलफुल डिफॉल्टर (Wilful Defaulter) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विलफुल डिफॉल्टर वह उधारकर्ता होता है, जो जानबूझकर ऋण चुकाने से बचता है, जबकि उसके पास वित्तीय संसाधन होते हैं। RBI के दिशानिर्देशों के अनुसार, विलफुल डिफॉल्टर्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है।

70. IBC, 2016 के तहत घरेलू और विदेशी ऋणदाताओं (Domestic and Foreign Creditors) के अधिकार क्या हैं?
उत्तर:

  1. घरेलू ऋणदाता – भारतीय बैंक और वित्तीय संस्थान CIRP में भाग ले सकते हैं और समाधान योजना का अनुमोदन कर सकते हैं।
  2. विदेशी ऋणदाता – यदि कोई विदेशी कंपनी भारतीय कंपनी को ऋण देती है, तो उसे भी CIRP में भाग लेने का अधिकार होता है।

यहां दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं। ये प्रश्न और उत्तर 71 से 90 तक हैं:

71. प्रश्न: दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (IBC) के तहत ऋणदाता की प्राथमिकता क्या होती है?

उत्तर: दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (IBC) के तहत, ऋणदाता की प्राथमिकता होती है कि वह अपने वसूली योग्य राशि को अधिकतम करने के लिए दिवालिया व्यक्ति या कंपनी की संपत्ति की बिक्री कर सके। यह प्रक्रिया क़ानूनी रूप से निर्धारित होती है ताकि सभी ऋणदाताओं के बीच समानता बनी रहे, और क्रमबद्ध तरीके से भुगतान किया जाए।

72. प्रश्न: IBC के तहत रिजॉल्यूशन प्रक्रिया क्या होती है?

उत्तर: IBC के तहत रिजॉल्यूशन प्रक्रिया का उद्देश्य यह होता है कि दिवालिया या संकट में पड़े व्यापार का पुनर्निर्माण और सुधार किया जाए, ताकि वह अपने ऋणों का भुगतान कर सके। रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को नियुक्त किया जाता है जो प्रक्रिया का संचालन करता है और समाधान की योजना तैयार करता है।

73. प्रश्न: दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (IBC) के तहत किसी व्यक्ति को दिवालिया घोषित करने के लिए क्या आवश्यक शर्तें हैं?

उत्तर: किसी व्यक्ति को दिवालिया घोषित करने के लिए, यह आवश्यक है कि उसके पास ऋण का 1 लाख रुपये या उससे अधिक का बकाया हो, और वह ऋण का भुगतान करने में असमर्थ हो। इसके अलावा, वह व्यक्ति सक्षम न हो तो उसे दिवालिया घोषित किया जा सकता है, और उसकी संपत्ति का वितरण क़ानूनी तरीके से किया जाता है।

74. प्रश्न: क्या IBC के तहत दिवालियापन घोषित होने के बाद कंपनी को पुनः स्थापित किया जा सकता है?

उत्तर: हां, IBC के तहत दिवालियापन घोषित होने के बाद कंपनी को पुनः स्थापित किया जा सकता है, यदि रिजॉल्यूशन प्रक्रिया के माध्यम से समाधान पाया जाए। यदि कंपनी का रिजॉल्यूशन सफल होता है तो वह व्यवसाय को फिर से चालू कर सकती है।

75. प्रश्न: दिवालियापन और ऋण वसूली कानून में ‘कृषि संकट’ से संबंधित प्रावधानों का क्या महत्व है?

उत्तर: IBC के तहत, कृषि संकट को विशेष रूप से ध्यान में रखा गया है। कृषि ऋणों को अन्य व्यवसायों के ऋणों से अलग माना जाता है और उनकी वसूली के लिए एक अलग प्रक्रिया होती है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसानों और कृषि-आधारित उद्योगों के ऋणों को उचित तरीके से हल किया जाए।

76. प्रश्न: IBC के तहत जो रिजॉल्यूशन प्रक्रिया होती है, उसमें कौन से प्रमुख कदम होते हैं?

उत्तर: IBC के तहत रिजॉल्यूशन प्रक्रिया में प्रमुख कदम निम्नलिखित होते हैं:

  1. आयुष्मान योजना का गठन।
  2. रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल का चयन।
  3. समाधान योजना का विकास।
  4. समाधान योजना का अनुमोदन।
  5. कर्ज का पुनर्निर्माण या निपटान।

77. प्रश्न: IBC के तहत निपटान प्रक्रिया में ऋणदाता की भूमिका क्या होती है?

उत्तर: IBC के तहत, ऋणदाता का कर्तव्य होता है कि वह दिवालिया कंपनी की संपत्तियों की बिक्री प्रक्रिया में भाग ले और समाधान योजना को स्वीकृति दे। ऋणदाता को यह सुनिश्चित करना होता है कि समाधान प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत तरीके से संपन्न हो।

78. प्रश्न: IBC के तहत “क्रेडिटर्स कमेटी” का गठन कैसे किया जाता है?

उत्तर: IBC के तहत, “क्रेडिटर्स कमेटी” का गठन उन सभी वित्तीय संस्थाओं द्वारा किया जाता है जिनके पास दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के प्रति उधारी होती है। यह कमेटी समाधान प्रक्रिया की निगरानी करती है और रिजॉल्यूशन योजना पर निर्णय लेने में मदद करती है।

79. प्रश्न: IBC के तहत ‘फ्रॉड’ के मामलों को कैसे निपटाया जाता है?

उत्तर: IBC के तहत, अगर किसी व्यक्ति द्वारा धोखाधड़ी का कार्य किया जाता है, तो उसे रिजॉल्यूशन प्रक्रिया से बाहर रखा जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति दिवालिया घोषित होने से पहले धोखाधड़ी करता है, तो उसे सजा हो सकती है और उसकी संपत्ति की वसूली के लिए अन्य उपाय किए जाते हैं।

80. प्रश्न: IBC के तहत दिवालिया घोषित किए गए व्यक्ति के खिलाफ क्या कानूनी कार्रवाई की जाती है?

उत्तर: IBC के तहत, दिवालिया घोषित व्यक्ति के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई की जाती है जिसमें उसकी संपत्तियों की नीलामी, ऋणों का पुनर्निर्माण या समाधान किया जाता है। इसके अलावा, उसके खिलाफ धोखाधड़ी या अन्य अपराधों के लिए भी मामला दर्ज किया जा सकता है।

81. प्रश्न: IBC के तहत ‘कंपनी’ और ‘व्यक्ति’ के बीच क्या अंतर होता है?

उत्तर: IBC के तहत, कंपनी और व्यक्ति दोनों ही दिवालियापन की स्थिति में आ सकते हैं, लेकिन उनके समाधान की प्रक्रिया अलग होती है। कंपनी के लिए रिजॉल्यूशन प्रक्रिया के तहत समाधान निकाला जाता है, जबकि व्यक्ति के लिए निपटान या दिवालियापन घोषित किया जाता है।

82. प्रश्न: IBC के तहत ‘आर्थिक अपराध’ क्या होते हैं?

उत्तर: IBC के तहत, आर्थिक अपराधों में वित्तीय धोखाधड़ी, दस्तावेजों में हेरफेर, और कर्जों को छिपाने जैसी घटनाएं आती हैं। इन अपराधों को गंभीर रूप से देखा जाता है और दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है।

83. प्रश्न: IBC के तहत ‘न्यायिक पुनरीक्षण’ का क्या महत्व है?

उत्तर: IBC के तहत, न्यायिक पुनरीक्षण का महत्व इस बात में है कि यह सुनिश्चित करता है कि रिजॉल्यूशन प्रक्रिया निष्पक्ष और क़ानूनी तरीके से चल रही है। न्यायालय में किसी भी निर्णय या प्रक्रिया को चुनौती दी जा सकती है, ताकि न्याय सुनिश्चित किया जा सके।

84. प्रश्न: IBC के तहत ‘कॉर्पोरेट दिवालियापन’ क्या होता है?

उत्तर: कॉर्पोरेट दिवालियापन तब होता है जब कोई कंपनी अपनी ऋणों को चुकाने में असमर्थ होती है और उसे दिवालिया घोषित किया जाता है। इस प्रक्रिया में कंपनी के ऋणदाताओं से समाधान प्राप्त करने की कोशिश की जाती है, और यदि समाधान नहीं निकलता, तो कंपनी की संपत्तियों की नीलामी की जाती है।

85. प्रश्न: IBC के तहत ‘सीमित समझौता’ (Limited Liability) का क्या महत्व है?

उत्तर: सीमित समझौता का मतलब है कि किसी व्यक्ति या कंपनी का केवल अपनी निर्धारित संपत्तियों तक ही उत्तरदायित्व है। इसका मतलब है कि यदि कंपनी दिवालिया हो जाती है, तो उसका व्यक्तिगत संपत्ति जोखिम में नहीं होती है।

86. प्रश्न: IBC के तहत ‘सुरक्षा हितधारक’ (Secured Creditors) और ‘असुरक्षित ऋणदाता’ (Unsecured Creditors) के अधिकारों में क्या अंतर होता है?

उत्तर: सुरक्षा हितधारक वे ऋणदाता होते हैं जिनके पास संपत्तियों पर अधिकार होता है (जैसे बंधक)। उन्हें पहले अपनी बकाया राशि की वसूली मिलती है। जबकि असुरक्षित ऋणदाता के पास कोई विशेष संपत्ति अधिकार नहीं होते, और उन्हें वसूली के लिए बाद में रखा जाता है।

87. प्रश्न: IBC के तहत दिवालियापन समाधान प्रक्रिया में किस प्रकार का ‘समाधान’ (Resolution) लागू किया जाता है?

उत्तर: IBC के तहत, समाधान का उद्देश्य दिवालिया व्यवसाय या व्यक्ति की वित्तीय स्थिति को ठीक करना होता है। इसमें व्यापार का पुनर्निर्माण, ऋण पुनर्गठन, या ऋणों की वसूली के लिए संपत्ति की बिक्री शामिल हो सकती है।

88. प्रश्न: IBC के तहत, दिवालिया होने पर संपत्तियों का वितरण कैसे किया जाता है?

उत्तर: IBC के तहत, दिवालिया व्यक्ति या कंपनी की संपत्तियों का वितरण ऋणदाताओं की प्राथमिकता के अनुसार किया जाता है। पहले secured creditors को भुगतान किया जाता है, फिर unsecured creditors को और अंत में, यदि कोई राशि बचती है, तो शेयरधारकों को वितरित की जाती है।

89. प्रश्न: IBC के तहत ‘सामूहिक समाधान’ (Collective Resolution) का क्या महत्व है?

उत्तर: सामूहिक समाधान का उद्देश्य यह होता है कि सभी ऋणदाताओं के हितों का समान रूप से ध्यान रखा जाए और ऋणों का निपटान एक साथ किया जाए, ताकि सभी पक्षों के लिए पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित हो सके।

90. प्रश्न: IBC के तहत, किसी कंपनी को दिवालिया घोषित करने के बाद उसे फिर से ऑपरेशन में लाने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं?

उत्तर: दिवालिया घोषित कंपनी को फिर से ऑपरेशन में लाने के लिए, रिजॉल्यूशन प्रक्रिया के तहत एक नए प्रबंधन का गठन किया जाता है, जो कंपनी की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करता है और समाधान के लिए योजना बनाता है। कंपनी के संचालन को फिर से चालू करने के लिए निवेशकों की भागीदारी और ऋणों का पुनर्गठन आवश्यक होता है।

यहां दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) से संबंधित 91 से 120 तक के महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं:

91. प्रश्न: IBC के तहत ‘रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल’ (Resolution Professional) की भूमिका क्या होती है?

उत्तर: रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल की भूमिका यह होती है कि वह दिवालिया व्यक्ति या कंपनी की संपत्तियों की निगरानी करता है, समाधान प्रक्रिया का संचालन करता है, और ऋणदाताओं के साथ मिलकर समाधान योजना तैयार करता है। यह प्रोफेशनल समाधान प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए जिम्मेदार होता है।

92. प्रश्न: IBC के तहत दिवालिया व्यक्ति के खिलाफ क्या आपराधिक मामले चलाए जा सकते हैं?

उत्तर: IBC के तहत, यदि दिवालिया व्यक्ति ने धोखाधड़ी की हो, तो उसके खिलाफ आपराधिक मामले चलाए जा सकते हैं। इसमें वित्तीय धोखाधड़ी, कागजात में हेरफेर, और दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया को गलत तरीके से प्रभावित करने जैसी गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं।

93. प्रश्न: IBC के तहत ‘प्रारंभिक आवेदन’ (Insolvency Application) किसे दाखिल करना होता है?

उत्तर: IBC के तहत, प्रारंभिक आवेदन वह पक्ष दाखिल कर सकता है जिसका ऋण 1 लाख रुपये या उससे अधिक है। यह आवेदन ऋणदाता द्वारा NCLT (National Company Law Tribunal) में दायर किया जाता है, ताकि दिवालिया घोषित किया जा सके और समाधान प्रक्रिया की शुरुआत हो सके।

94. प्रश्न: IBC के तहत ‘निपटान प्रक्रिया’ (Settlement Process) के दौरान किस प्रकार की योजना बनाई जाती है?

उत्तर: निपटान प्रक्रिया के दौरान एक समाधान योजना तैयार की जाती है जिसमें दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के ऋणों का पुनर्गठन, पुनर्भुगतान या संपत्तियों की बिक्री का प्रस्ताव होता है। यह योजना ऋणदाताओं की सहमति से तैयार होती है और इसका उद्देश्य वित्तीय संकट से उबारना होता है।

95. प्रश्न: IBC के तहत, अगर समाधान योजना को ऋणदाता द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता है, तो क्या होता है?

उत्तर: यदि ऋणदाता समाधान योजना को अनुमोदित नहीं करते हैं, तो दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के खिलाफ परिसमापन प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इस स्थिति में कंपनी की संपत्तियों को नीलाम किया जाता है और ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है।

96. प्रश्न: IBC के तहत ‘प्रोसीक्यूटर’ (Prosecutor) का क्या कार्य है?

उत्तर: IBC के तहत, प्रोसीक्यूटर का कार्य यह होता है कि वह किसी भी धोखाधड़ी, वित्तीय अपराध, या दिवालिया व्यक्ति द्वारा की गई गलत गतिविधियों की जांच करता है और क़ानूनी कार्रवाई शुरू करता है। इसके अलावा, वह रिजॉल्यूशन प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने में मदद करता है।

97. प्रश्न: IBC के तहत क्या कंपनियों के निदेशकों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

उत्तर: हां, IBC के तहत, अगर कंपनी के निदेशक ने वित्तीय अपराध किए हैं, तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। यह विशेष रूप से तब होता है जब निदेशक ने दिवालिया घोषित कंपनी की संपत्तियों का दुरुपयोग किया हो या धोखाधड़ी की हो।

98. प्रश्न: IBC के तहत परिसमापन प्रक्रिया को क्या माना जाता है?

उत्तर: परिसमापन प्रक्रिया का मतलब होता है कि जब समाधान योजना विफल हो जाती है और ऋणदाताओं के साथ समझौता नहीं हो पाता, तब कंपनी की संपत्तियों की नीलामी की जाती है। इसका उद्देश्य कर्ज चुकाने के लिए सभी संपत्तियों का समुचित वितरण करना होता है।

99. प्रश्न: IBC के तहत क्या दिवालिया व्यक्ति या कंपनी अपनी संपत्तियों को बेच सकता है?

उत्तर: हां, IBC के तहत, दिवालिया व्यक्ति या कंपनी अपनी संपत्तियों को बेच सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल और ऋणदाताओं की सहमति से होती है। यह संपत्तियां ऋणों की वसूली के लिए नीलाम की जा सकती हैं।

100. प्रश्न: IBC के तहत यदि किसी कंपनी के निदेशक या अधिकारी ने धोखाधड़ी की हो तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होती है?

उत्तर: यदि किसी कंपनी के निदेशक या अधिकारी ने धोखाधड़ी की हो, तो उन्हें IBC के तहत आपराधिक मामले का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, उन पर व्यक्तिगत रूप से संपत्तियों का दुरुपयोग करने, कर्ज छिपाने, या गलत जानकारी देने के लिए मुकदमा चल सकता है।

101. प्रश्न: IBC के तहत, ‘गैर-न्यायिक परिसमापन’ (Non-Judicial Liquidation) का क्या अर्थ होता है?

उत्तर: गैर-न्यायिक परिसमापन का मतलब होता है कि जब एक कंपनी दिवालिया होती है और कोई समाधान नहीं निकलता, तो उसकी संपत्तियों को न्यायालय के बजाय अन्य तरीके से निपटाया जाता है। इसमें रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल या अन्य संस्था के माध्यम से संपत्तियों की बिक्री होती है।

102. प्रश्न: IBC के तहत ‘ऋण वसूली’ (Debt Recovery) के लिए कौन सी विशेषताएँ होती हैं?

उत्तर: IBC के तहत, ऋण वसूली के लिए विशेष रूप से वित्तीय संकट में पड़े व्यक्तियों या कंपनियों के लिए समाधान योजनाएं बनाई जाती हैं। इसमें ऋणों का पुनर्निर्माण, संपत्तियों की नीलामी, या ऋणों के पुनर्गठन के उपाय शामिल होते हैं, ताकि ऋणदाताओं को भुगतान किया जा सके।

103. प्रश्न: IBC के तहत ‘न्यायिक परिसमापन’ (Judicial Liquidation) क्या होता है?

उत्तर: न्यायिक परिसमापन तब होता है जब दिवालिया कंपनी के लिए कोई समाधान योजना नहीं बन पाती और कंपनी की परिसमापन प्रक्रिया न्यायालय द्वारा शुरू की जाती है। इसमें कंपनी की संपत्तियों की बिक्री और ऋणदाताओं को भुगतान करना शामिल होता है।

104. प्रश्न: IBC के तहत ‘वित्तीय संकट’ (Financial Distress) का क्या मतलब है?

उत्तर: वित्तीय संकट का मतलब होता है जब कोई कंपनी या व्यक्ति अपने ऋणों को चुकाने में असमर्थ होता है। यह संकट तब उत्पन्न होता है जब किसी की वित्तीय स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि वह अपने कर्जों का निपटान करने के लिए सक्षम नहीं होता।

105. प्रश्न: IBC के तहत ‘अर्थव्यवस्था का सुधार’ (Economic Revival) कैसे होता है?

उत्तर: IBC के तहत, अर्थव्यवस्था का सुधार तब होता है जब दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के लिए समाधान प्रक्रिया सफल होती है, और ऋणदाताओं और निवेशकों की मदद से कंपनी को पुनर्जीवित किया जाता है। यह सुधार कंपनियों के पुनर्निर्माण और व्यापार की बढ़ती प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करता है।

106. प्रश्न: IBC के तहत अगर किसी ऋणदाता को समाधान योजना मंज़ूर नहीं होती, तो क्या होता है?

उत्तर: यदि कोई ऋणदाता समाधान योजना को मंज़ूर नहीं करता, तो वह अदालत में अपील कर सकता है। यदि यह समाधान स्वीकार नहीं किया जाता है, तो परिसमापन की प्रक्रिया शुरू हो सकती है और कंपनी की संपत्तियों को नीलाम किया जा सकता है।

107. प्रश्न: IBC के तहत दिवालियापन प्रक्रिया के पूरा होने के बाद क्या होता है?

उत्तर: दिवालियापन प्रक्रिया के पूरा होने के बाद, अगर समाधान योजना लागू की जाती है, तो कंपनी का पुनर्निर्माण किया जाता है और कर्ज चुकाने की प्रक्रिया शुरू होती है। यदि परिसमापन होता है, तो कंपनी की संपत्तियों को बेचा जाता है और ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है।

108. प्रश्न: IBC के तहत ‘ऋणदाता की बैठक’ (Creditor’s Meeting) का क्या महत्व है?

उत्तर: ऋणदाता की बैठक का महत्व इस बात में है कि इस बैठक में दिवालिया कंपनी के ऋणदाताओं द्वारा समाधान योजना पर विचार किया जाता है। ऋणदाताओं की बैठक में योजना की मंज़ूरी या अस्वीकृति पर चर्चा होती है और समाधान प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया जाता है।

109. प्रश्न: IBC के तहत दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के खिलाफ क्या आपराधिक दंड हो सकता है?

उत्तर: IBC के तहत, यदि दिवालिया व्यक्ति या कंपनी ने धोखाधड़ी, वित्तीय अपराध या अन्य गलत गतिविधियाँ की हैं, तो उन पर आपराधिक दंड लगाया जा सकता है। इसमें जेल की सजा और जुर्माना भी हो सकता है।

110. प्रश्न: IBC के तहत क्या किसी कंपनी को दिवालिया घोषित किए बिना समाधान मिल सकता है?

उत्तर: हां, IBC के तहत किसी कंपनी को दिवालिया घोषित किए बिना समाधान मिल सकता है। यदि ऋणदाता समाधान योजना पर सहमत होते हैं, तो कंपनी को पुनः संचालित किया जा सकता है और दिवालिया घोषित करने की आवश्यकता नहीं होती।

111. प्रश्न: IBC के तहत समाधान योजना में निवेशकों की भूमिका क्या होती है?

उत्तर: समाधान योजना में निवेशकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे ऋणदाता के रूप में समाधान योजना पर विचार करते हैं और उसकी मंज़ूरी देते हैं। निवेशक अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए समाधान प्रक्रिया में शामिल होते हैं और योजना की सफलता में योगदान करते हैं।

112. प्रश्न: IBC के तहत ऋणदाता के पास समाधान प्रक्रिया में क्या अधिकार होते हैं?

उत्तर: IBC के तहत, ऋणदाता के पास समाधान प्रक्रिया में यह अधिकार होता है कि वे समाधान योजना की मंज़ूरी दे सकते हैं, समाधान के लिए अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं, और वे दिवालिया कंपनी की संपत्तियों के वितरण पर निर्णय ले सकते हैं।

113. प्रश्न: IBC के तहत दिवालिया घोषित व्यक्ति या कंपनी के निदेशक की जिम्मेदारी क्या होती है?

उत्तर: दिवालिया घोषित व्यक्ति या कंपनी के निदेशक की जिम्मेदारी होती है कि वे वित्तीय रिपोर्टों को सही तरीके से प्रस्तुत करें, ऋणदाताओं को वास्तविक जानकारी दें, और समाधान प्रक्रिया में सहयोग करें। निदेशक पर यह भी जिम्मेदारी होती है कि वे धोखाधड़ी से बचें और क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करें।

114. प्रश्न: IBC के तहत समाधान प्रक्रिया में ‘मानव संसाधन’ (Human Resources) की भूमिका क्या होती है?

उत्तर: समाधान प्रक्रिया में मानव संसाधन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि कंपनी के कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखना होता है। कर्मचारियों के वेतन, लाभ और अन्य अधिकारों का निपटान समाधान योजना में किया जाता है।

115. प्रश्न: IBC के तहत यदि कोई ऋणदाता समाधान योजना पर सहमत नहीं होता, तो वह क्या कर सकता है?

उत्तर: यदि कोई ऋणदाता समाधान योजना पर सहमत नहीं होता, तो वह न्यायालय में अपील कर सकता है। यदि ऋणदाता की असहमति को हल नहीं किया जा सकता, तो परिसमापन की प्रक्रिया शुरू हो सकती है और दिवालिया कंपनी की संपत्तियों को बेचा जा सकता है।

116. प्रश्न: IBC के तहत किसी कंपनी के निदेशक को परामर्श देने के लिए कौन सा पेशेवर नियुक्त किया जाता है?

उत्तर: IBC के तहत, कंपनी के निदेशक को परामर्श देने के लिए एक रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) को नियुक्त किया जाता है। यह प्रोफेशनल समाधान प्रक्रिया का संचालन करता है और निदेशकों को क़ानूनी दिशानिर्देश देता है।

117. प्रश्न: IBC के तहत, दिवालिया व्यक्ति की संपत्तियों का सही मूल्यांकन कैसे किया जाता है?

उत्तर: IBC के तहत, दिवालिया व्यक्ति की संपत्तियों का मूल्यांकन एक प्रमाणित मूल्यांकनकर्ता द्वारा किया जाता है। यह मूल्यांकन कंपनी की संपत्तियों की वास्‍तविक स्थिति और बाजार मूल्य को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।

यहां दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) से संबंधित 118 से 130 तक के महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं:

118. प्रश्न: IBC के तहत, यदि दिवालिया व्यक्ति के पास संपत्ति नहीं है, तो क्या समाधान प्रक्रिया जारी रह सकती है?

उत्तर: हां, यदि दिवालिया व्यक्ति के पास संपत्ति नहीं है, तो भी समाधान प्रक्रिया जारी रह सकती है। हालांकि, यदि कंपनी के पास कोई संपत्ति नहीं है, तो समाधान प्रक्रिया का उद्देश्य केवल ऋणदाताओं के साथ समन्वय स्थापित करना और उनके लिए एक बेहतर समाधान प्रस्तुत करना होता है। यदि समाधान संभव नहीं है, तो परिसमापन प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।

119. प्रश्न: IBC के तहत ‘दिवालिया की पहचान’ (Identification of Insolvency) कैसे की जाती है?

उत्तर: IBC के तहत दिवालिया की पहचान तब की जाती है जब कोई व्यक्ति या कंपनी अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हो और उनके पास आवश्यक वित्तीय संसाधन नहीं होते। यह पहचान आमतौर पर ऋणदाताओं द्वारा दायर आवेदन या दिवालिया व्यक्ति के द्वारा खुद को दिवालिया घोषित करने से होती है।

120. प्रश्न: IBC के तहत किसी समाधान प्रक्रिया में ‘समाधान योजना’ (Resolution Plan) को अंतिम रूप से मंज़ूरी देने के लिए किन कारकों पर विचार किया जाता है?

उत्तर: समाधान योजना को मंज़ूरी देने के लिए कई कारकों पर विचार किया जाता है, जैसे कि योजना का वित्तीय प्रभाव, ऋणदाताओं का हित, कंपनी के भविष्य की संभावनाएं, कर्मचारियों के अधिकार, और नियामक आवश्यकता। इसके अलावा, यह सुनिश्चित किया जाता है कि समाधान योजना न्यायसंगत हो और सभी पक्षों के लिए लाभकारी हो।

121. प्रश्न: IBC के तहत यदि किसी कंपनी ने समाधान योजना को लागू करने से इनकार कर दिया, तो क्या होगा?

उत्तर: यदि कोई कंपनी समाधान योजना को लागू करने से इनकार करती है, तो इसके परिणामस्वरूप परिसमापन की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। कंपनी की संपत्तियों को नीलाम किया जाएगा और ऋणदाताओं को भुगतान किया जाएगा।

122. प्रश्न: IBC के तहत समाधान योजना की मंज़ूरी के बाद, क्या ऋणदाता के पास अपनी राशि के लिए कोई अन्य दावा करने का अधिकार है?

उत्तर: नहीं, समाधान योजना की मंज़ूरी के बाद, ऋणदाता के पास अपनी राशि के लिए किसी अन्य प्रकार का दावा करने का अधिकार नहीं होता है। समाधान प्रक्रिया में जो भी समझौता हुआ है, वही अंतिम होता है और इसके बाद कोई अन्य दावों की अनुमति नहीं होती।

123. प्रश्न: IBC के तहत समाधान योजना में कर्मचारी के वेतन और लाभों का निपटान कैसे किया जाता है?

उत्तर: IBC के तहत समाधान योजना में कर्मचारी के वेतन और लाभों का निपटान प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। कर्मचारियों को उनके पिछले वेतन, बोनस, ग्रेच्युटी, और अन्य लाभों का भुगतान किया जाता है। यदि समाधान योजना में ऐसा निपटान किया जाता है, तो यह योजना ऋणदाताओं की सहमति से तैयार होती है।

124. प्रश्न: IBC के तहत ‘निर्णायक मतदान’ (Decisive Voting) की प्रक्रिया क्या होती है?

उत्तर: ‘निर्णायक मतदान’ वह प्रक्रिया होती है, जिसमें ऋणदाताओं को समाधान योजना पर वोट करने का अवसर दिया जाता है। यह मतदान योजना की मंज़ूरी के लिए आवश्यक होता है और इसमें ऋणदाताओं का एक निश्चित प्रतिशत (75% या अधिक) वोट योजना के पक्ष में होना चाहिए।

125. प्रश्न: IBC के तहत परिसमापन की प्रक्रिया को समाप्त करने का क्या तरीका होता है?

उत्तर: परिसमापन प्रक्रिया को समाप्त करने का तरीका तब होता है जब कंपनी की सभी संपत्तियों का निपटान कर लिया जाता है और ऋणदाताओं को उनकी वसूली की राशि दी जाती है। इसके बाद, कंपनी को समाप्त किया जाता है और उसका पंजीकरण समाप्त कर दिया जाता है।

126. प्रश्न: IBC के तहत ‘समाधान योजना’ को लागू करने में कोई देरी होती है तो इसका क्या परिणाम हो सकता है?

उत्तर: यदि समाधान योजना को लागू करने में कोई देरी होती है, तो इसका परिणाम यह हो सकता है कि परिसमापन प्रक्रिया को शुरू किया जाए। ऋणदाताओं को यह अधिकार होता है कि वे समाधान योजना में देरी को लेकर कार्रवाई करें और कंपनी की स्थिति को खराब होने से बचाने के लिए कदम उठाएं।

127. प्रश्न: IBC के तहत दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के निदेशक के खिलाफ कार्रवाई कैसे की जाती है?

उत्तर: IBC के तहत यदि कंपनी के निदेशक ने धोखाधड़ी की हो या वित्तीय कदाचार किया हो, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इसमें व्यक्तिगत रूप से उनके खिलाफ कानूनी मुकदमे, जुर्माना और जेल की सजा हो सकती है। निदेशक के खिलाफ एक न्यायिक प्रक्रिया शुरू की जा सकती है, जिसमें उनके दायित्वों को स्पष्ट किया जाता है।

128. प्रश्न: IBC के तहत क्या दिवालिया घोषित कंपनी को पुनः व्यापार शुरू करने की अनुमति दी जाती है?

उत्तर: हां, अगर समाधान योजना सफल होती है, तो दिवालिया घोषित कंपनी को पुनः व्यापार शुरू करने की अनुमति दी जाती है। इसके लिए कंपनी को ऋणदाताओं के साथ मिलकर एक पुनर्निर्माण योजना तैयार करनी होती है, जिसे मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

129. प्रश्न: IBC के तहत क्या दिवालिया व्यक्ति के व्यक्तिगत संपत्तियों को वसूलने की प्रक्रिया होती है?

उत्तर: हां, IBC के तहत दिवालिया व्यक्ति के व्यक्तिगत संपत्तियों को भी वसूलने की प्रक्रिया होती है। अगर व्यक्ति का ऋण चुकाने का कोई तरीका नहीं निकलता, तो उसकी संपत्तियों की नीलामी की जा सकती है और ऋणदाताओं को उनकी वसूली की राशि दी जा सकती है।

130. प्रश्न: IBC के तहत समाधान प्रक्रिया में ‘आरंभिक कदम’ (Initial Steps) क्या होते हैं?

उत्तर: IBC के तहत समाधान प्रक्रिया में आरंभिक कदमों में ऋणदाताओं द्वारा आवेदन दायर करना, रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को नियुक्त करना, समाधान समिति का गठन करना, और दिवालिया व्यक्ति या कंपनी की संपत्तियों का आकलन करना शामिल है। इसके बाद समाधान योजना तैयार की जाती है और ऋणदाताओं की मंजूरी के लिए प्रस्तुत की जाती है।

यहां दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) से संबंधित 131 से 150 तक के महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं:

131. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान प्रक्रिया के दौरान यदि ऋणदाता समाधान योजना से असहमत होते हैं, तो क्या किया जाता है?

उत्तर: यदि ऋणदाता समाधान योजना से असहमत होते हैं, तो समाधान प्रक्रिया के दौरान उन्हें अपनी असहमतियों को समाधान समिति के सामने प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है। इसके बाद, अगर समाधान समिति ऋणदाताओं की असहमतियों को हल नहीं कर पाती, तो परिसमापन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।

132. प्रश्न: IBC के तहत समाधान योजना में ‘समाधान पेशेवर’ (Resolution Professional) का क्या कर्तव्य होता है?

उत्तर: समाधान पेशेवर का मुख्य कर्तव्य समाधान प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से लागू करना है। वह कंपनी के आंतरिक कार्यों की निगरानी करता है, समाधान योजना को तैयार करता है, और ऋणदाताओं के साथ बातचीत करता है। उनका उद्देश्य दिवालिया व्यक्ति के पुनर्निर्माण के लिए एक सही योजना तैयार करना होता है।

133. प्रश्न: IBC के तहत, जब एक कंपनी के खिलाफ समाधान प्रक्रिया शुरू होती है, तो कंपनी की संपत्ति को कैसे संभाला जाता है?

उत्तर: जब समाधान प्रक्रिया शुरू होती है, तो कंपनी की संपत्ति को ‘रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल’ द्वारा संभाला जाता है। समाधान पेशेवर यह सुनिश्चित करते हैं कि संपत्ति को सही तरीके से प्रबंधित किया जाए और इसका उपयोग समाधान योजना में किया जाए, ताकि ऋणदाताओं की वसूली सुनिश्चित हो सके।

134. प्रश्न: IBC के तहत, क्या दिवालियापन प्रक्रिया में किसी कंपनी के शेयरधारकों का कोई अधिकार होता है?

उत्तर: हां, दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान शेयरधारकों का कुछ अधिकार होता है, लेकिन उनका प्रभाव सीमित होता है। जब समाधान प्रक्रिया शुरू होती है, तो शेयरधारकों का प्राथमिक उद्देश्य कंपनी के पुनर्निर्माण में योगदान करना होता है। वे समाधान योजना पर मतदान कर सकते हैं, लेकिन उनकी प्राथमिकता ऋणदाताओं की तुलना में कम होती है।

135. प्रश्न: IBC के तहत, क्या कोई कंपनी जो दिवालिया हो चुकी है, फिर से व्यापार शुरू कर सकती है?

उत्तर: हां, यदि समाधान योजना सफल रहती है, तो दिवालिया हो चुकी कंपनी फिर से व्यापार शुरू कर सकती है। इसका उद्देश्य कंपनी को वित्तीय संकट से उबारना और उसे पुनर्निर्माण के रास्ते पर लाना होता है। समाधान प्रक्रिया के दौरान कंपनी के भविष्य के लिए एक मजबूत और टिकाऊ योजना बनाई जाती है।

136. प्रश्न: IBC के तहत, यदि समाधान योजना के लिए कोई प्रस्ताव नहीं मिलता, तो क्या होता है?

उत्तर: यदि समाधान प्रक्रिया के दौरान कोई समाधान प्रस्ताव नहीं मिलता है, तो कंपनी को परिसमापन की प्रक्रिया में भेज दिया जाता है। परिसमापन के तहत कंपनी की संपत्तियों की नीलामी की जाती है और ऋणदाताओं को उनके दावों का भुगतान किया जाता है।

137. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान प्रक्रिया के दौरान ऋणदाता कौन हो सकते हैं?

उत्तर: IBC के तहत, ऋणदाता उन व्यक्तियों या संस्थाओं को कहा जाता है जिनके पास दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के प्रति वित्तीय दायित्व होते हैं। इसमें बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, कर्मचारियों, आपूर्तिकर्ताओं और अन्य व्यवसायिक दावेदार शामिल हो सकते हैं।

138. प्रश्न: IBC के तहत, क्या दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के निदेशकों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

उत्तर: हां, यदि दिवालिया व्यक्ति या कंपनी के निदेशक ने धोखाधड़ी, कदाचार, या किसी अन्य अवैध गतिविधि में भाग लिया हो, तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। निदेशकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें उनके खिलाफ जुर्माना, कानूनी मुकदमे, और अन्य दंडात्मक कार्रवाई शामिल हो सकती है।

139. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान प्रक्रिया के लिए एक ‘समाधान समिति’ (Committee of Creditors) का गठन क्यों किया जाता है?

उत्तर: समाधान समिति का गठन ऋणदाताओं के हितों की रक्षा करने के लिए किया जाता है। समिति में प्रमुख ऋणदाता और अन्य महत्वपूर्ण पक्ष शामिल होते हैं, जो समाधान प्रक्रिया की निगरानी करते हैं और समाधान योजना पर मतदान करते हैं। इसका उद्देश्य कंपनी के पुनर्निर्माण के लिए सर्वश्रेष्ठ समाधान प्राप्त करना होता है।

140. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान योजना पर वोटिंग का क्या तरीका होता है?

उत्तर: समाधान योजना पर वोटिंग का तरीका ‘क्वोरम’ के आधार पर होता है। ऋणदाताओं को योजना पर मतदान करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, और इसके लिए कम से कम 75% ऋणदाताओं की सहमति आवश्यक होती है। यदि पर्याप्त वोट नहीं मिलते हैं, तो समाधान प्रक्रिया को खत्म किया जा सकता है और परिसमापन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।

141. प्रश्न: IBC के तहत, यदि कंपनी की संपत्ति का मूल्य कम हो, तो समाधान प्रक्रिया में क्या किया जाता है?

उत्तर: यदि कंपनी की संपत्ति का मूल्य कम होता है, तो समाधान पेशेवर विभिन्न विकल्पों पर विचार करते हैं, जैसे कि समाधान योजना में कुछ संपत्तियों की नीलामी करना, ऋणदाताओं के बीच संपत्तियों का पुनर्वितरण करना, या कंपनी को पुनर्निर्माण के लिए नई निवेश की आवश्यकता को पूरा करना।

142. प्रश्न: IBC के तहत, क्या कंपनी के कर्मचारियों के लिए समाधान प्रक्रिया में कोई विशेष अधिकार होते हैं?

उत्तर: हां, IBC के तहत कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाती है। कर्मचारियों के वेतन, बोनस, और अन्य लाभों का भुगतान समाधान प्रक्रिया में प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। अगर समाधान योजना में कर्मचारियों का भुगतान नहीं किया जाता है, तो वे समाधान प्रक्रिया में अपनी शिकायतें प्रस्तुत कर सकते हैं।

143. प्रश्न: IBC के तहत, क्या एक बार परिसमापन प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद समाधान प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जा सकता है?

उत्तर: नहीं, एक बार परिसमापन प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद समाधान प्रक्रिया को फिर से शुरू नहीं किया जा सकता है। परिसमापन प्रक्रिया में कंपनी की संपत्तियों को बेचकर ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है, और इसे समाधान प्रक्रिया की अंतिम स्थिति माना जाता है।

144. प्रश्न: IBC के तहत, ‘रिजॉल्यूशन प्लान’ (Resolution Plan) को मंजूरी देने का प्रक्रिया क्या है?

उत्तर: रिजॉल्यूशन प्लान को मंजूरी देने के लिए ऋणदाताओं द्वारा वोटिंग की जाती है। यदि कम से कम 75% ऋणदाताओं द्वारा योजना को मंजूरी मिलती है, तो इसे मंजूरी दी जाती है। इसके बाद, इसे ‘एनसीएलटी’ (NCLT) द्वारा भी मंजूरी प्राप्त करनी होती है।

145. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान पेशेवर को नियुक्त करने की प्रक्रिया क्या है?

उत्तर: समाधान पेशेवर को नियुक्त करने की प्रक्रिया यह होती है कि जब दिवालियापन प्रक्रिया शुरू होती है, तो एक योग्य समाधान पेशेवर को नियुक्त किया जाता है। वह व्यक्ति या संगठन दिवालिया कंपनी के वित्तीय और कानूनी मामलों का प्रबंधन करता है, समाधान योजना तैयार करता है, और ऋणदाताओं के साथ समन्वय करता है।

146. प्रश्न: IBC के तहत, क्या दिवालिया प्रक्रिया के दौरान निवेशक कंपनी में निवेश कर सकते हैं?

उत्तर: हां, दिवालिया प्रक्रिया के दौरान निवेशक कंपनी में निवेश कर सकते हैं। यह निवेश कंपनी के पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक हो सकता है और समाधान पेशेवर द्वारा निवेशकों से बातचीत की जाती है। निवेशकों को कंपनी की वित्तीय स्थिति और समाधान योजना के बारे में जानकारी दी जाती है।

147. प्रश्न: IBC के तहत, क्या समाधान योजना को लागू करने के बाद कंपनी के निदेशकों को पुनर्नियुक्त किया जा सकता है?

उत्तर: हां, समाधान योजना के तहत कंपनी को पुनर्निर्माण करने के बाद निदेशकों को पुनर्नियुक्त किया जा सकता है। यह स्थिति उस समाधान योजना पर निर्भर करती है जिसे ऋणदाताओं और समाधान पेशेवर द्वारा मंजूरी दी गई है। अगर कंपनी का पुनर्निर्माण सफल होता है, तो निदेशकों को पुनः नियुक्त किया जा सकता है।

148. प्रश्न: IBC के तहत, यदि समाधान योजना में कर्मचारियों के लिए कोई भुगतान नहीं किया जाता है, तो कर्मचारियों के पास क्या विकल्प होते हैं?

उत्तर: यदि समाधान योजना में कर्मचारियों के लिए कोई भुगतान नहीं किया जाता है, तो वे अपनी शिकायतों को समाधान पेशेवर के पास दर्ज कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर न्यायालय में भी मुकदमा दायर कर सकते हैं। कर्मचारियों का अधिकार प्राथमिकता के आधार पर होता है।

149. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान प्रक्रिया के दौरान ऋणदाताओं को किस प्रकार की जानकारी मिलती है?

उत्तर: समाधान प्रक्रिया के दौरान ऋणदाताओं को कंपनी के वित्तीय स्थिति, समाधान योजना, और कंपनी के पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक कदमों की जानकारी प्रदान की जाती है। समाधान पेशेवर द्वारा ऋणदाताओं को नियमित रूप से रिपोर्ट दी जाती है, ताकि वे योजना पर निर्णय ले सकें।

150. प्रश्न: IBC के तहत, क्या कंपनियों के दिवालिया होने के बाद भी उनके उत्पादों या सेवाओं का व्यापार जारी रखा जा सकता है?

उत्तर: हां, अगर समाधान प्रक्रिया के दौरान पुनर्निर्माण की योजना सफल होती है, तो कंपनियों के दिवालिया होने के बाद भी उनके उत्पादों या सेवाओं का व्यापार जारी रखा जा सकता है। इसका उद्देश्य कंपनी को फिर से व्यवस्थित करना और वित्तीय स्थिरता प्रदान करना होता है।

यहां दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) से संबंधित कुछ और महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर दिए गए हैं:

151. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान प्रक्रिया के दौरान क्या कंपनी का संचालन जारी रह सकता है?

उत्तर: हां, समाधान प्रक्रिया के दौरान कंपनी का संचालन जारी रखा जा सकता है, बशर्ते समाधान पेशेवर इसे उचित समझे और संचालन की निरंतरता कंपनी के पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक हो। यह कंपनी के भविष्य के लिए जरूरी हो सकता है कि वह अपनी गतिविधियों को जारी रखें।

152. प्रश्न: IBC के तहत, परिसमापन प्रक्रिया के दौरान कंपनी की संपत्तियों का बंटवारा किस आधार पर किया जाता है?

उत्तर: परिसमापन प्रक्रिया के दौरान, कंपनी की संपत्तियों का बंटवारा प्राथमिकता क्रम के आधार पर किया जाता है। सबसे पहले सुरक्षित ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है, फिर कार्यबल और अन्य असुरक्षित ऋणदाताओं को भुगतान किया जाता है। अंत में, यदि कोई शेष संपत्ति बचती है, तो शेयरधारकों को भुगतान किया जाता है।

153. प्रश्न: IBC के तहत, दिवालियापन प्रक्रिया में कौन से पक्ष सबसे अधिक प्रभावित होते हैं?

उत्तर: दिवालियापन प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले पक्ष होते हैं: कंपनी के कर्मचारी, ऋणदाता (बैंक और वित्तीय संस्थाएं), आपूर्तिकर्ता, और शेयरधारक। कर्मचारियों का वेतन और अन्य लाभ प्राथमिकता के आधार पर भुगतान किए जाते हैं, जबकि ऋणदाता और शेयरधारक उनके वित्तीय दावों के आधार पर प्रभावित होते हैं।

154. प्रश्न: IBC के तहत, क्या एक व्यक्ति जो दिवालिया घोषित हो गया है, फिर से व्यापार करने के लिए पात्र हो सकता है?

उत्तर: हां, यदि एक व्यक्ति दिवालिया घोषित हो गया है, तो वह पुनर्निर्माण प्रक्रिया के तहत पुनः व्यापार करने के लिए पात्र हो सकता है। IBC के तहत दिवालियापन प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति या कंपनी को पुनर्निर्मित करना और उसे व्यापार करने का अवसर देना होता है।

155. प्रश्न: IBC के तहत, दिवालियापन की प्रक्रिया में कितने दिन में निर्णय लिया जाता है?

उत्तर: IBC के तहत, दिवालियापन की प्रक्रिया में आमतौर पर 180 दिन का समय निर्धारित होता है, जिसे 90 दिन तक बढ़ाया जा सकता है, यदि समाधान प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए और समय की आवश्यकता हो।

156. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान पेशेवर की नियुक्ति की क्या प्रक्रिया है?

उत्तर: IBC के तहत, समाधान पेशेवर की नियुक्ति ‘कोर्ट’ द्वारा की जाती है। अगर किसी कंपनी के निदेशक और ऋणदाता समाधान योजना पर सहमत नहीं हो पाते, तो वे समाधान पेशेवर की नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकते हैं। समाधान पेशेवर कंपनी के आंतरिक कार्यों की देखरेख करता है और समाधान प्रक्रिया के दौरान उसे निष्पक्ष रूप से संचालित करता है।

157. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान पेशेवर के कार्यों का क्या मूल्यांकन किया जाता है?

उत्तर: समाधान पेशेवर के कार्यों का मूल्यांकन समाधान प्रक्रिया की सफलता और ऋणदाताओं को मिलने वाले भुगतान के आधार पर किया जाता है। उनके कार्यों का मूल्यांकन यह देखा जाता है कि क्या उन्होंने समाधान प्रक्रिया को पारदर्शी, निष्पक्ष और कंपनी के पुनर्निर्माण के लिए प्रभावी ढंग से चलाया।

158. प्रश्न: IBC के तहत, यदि कोई कंपनी समाधान योजना को मंजूरी नहीं देती, तो क्या होता है?

उत्तर: यदि कोई कंपनी समाधान योजना को मंजूरी नहीं देती, तो दिवालियापन प्रक्रिया को समाप्त कर दिया जाता है और परिसमापन की प्रक्रिया शुरू की जाती है। परिसमापन के तहत कंपनी की संपत्तियों की नीलामी की जाती है, और ऋणदाताओं को उनके दावों का भुगतान किया जाता है।

159. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान प्रक्रिया के दौरान कंपनियों के बारे में क्या वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है?

उत्तर: समाधान प्रक्रिया के दौरान कंपनी के वित्तीय स्थिति को स्पष्ट करने के लिए समाधान पेशेवर द्वारा वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। इस रिपोर्ट में कंपनी की संपत्ति, दायित्व, आय, व्यय और अन्य महत्वपूर्ण आंकड़े होते हैं, जो ऋणदाताओं को समाधान योजना पर विचार करने में मदद करते हैं।

160. प्रश्न: IBC के तहत, क्या परिसमापन प्रक्रिया में ऋणदाताओं की प्राथमिकता होती है?

उत्तर: हां, परिसमापन प्रक्रिया में ऋणदाताओं को प्राथमिकता दी जाती है। ऋणदाताओं का भुगतान सबसे पहले किया जाता है, और फिर कर्मचारियों का वेतन और अन्य लाभों का भुगतान किया जाता है। उसके बाद, यदि कोई शेष राशि बचती है, तो शेयरधारकों को भुगतान किया जाता है।

161. प्रश्न: IBC के तहत, एक कंपनी का समाधान किस तरह से किया जा सकता है?

उत्तर: एक कंपनी का समाधान कई तरीकों से किया जा सकता है, जैसे कि कंपनी को पुनः वित्तीय स्थिति में लाना, किसी नए निवेशक द्वारा कंपनी में निवेश करना, या कंपनी के स्वामित्व और संचालन के अधिकारों को फिर से संरचित करना। समाधान योजना को ऋणदाताओं और न्यायालय द्वारा मंजूरी प्राप्त करनी होती है।

162. प्रश्न: IBC के तहत, क्या समाधान पेशेवर को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?

उत्तर: हां, समाधान पेशेवर के कार्यों को अदालत में चुनौती दी जा सकती है, यदि उनके कार्यों को गलत, अवैध, या अनुशासनहीन माना जाए। अगर कोई ऋणदाता या अन्य पक्ष समाधान पेशेवर के निर्णय से असहमत होता है, तो वे अदालत में अपील कर सकते हैं।

163. प्रश्न: IBC के तहत, क्या दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान कंपनी का निदेशक अपनी भूमिका निभा सकता है?

उत्तर: दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान, कंपनी का निदेशक अपनी भूमिका निभा सकता है, लेकिन निदेशक का कार्य समाधान पेशेवर द्वारा निगरानी और मार्गदर्शन किया जाता है। यदि निदेशक कंपनी के पुनर्निर्माण के लिए सहायक होते हैं, तो उन्हें अपनी भूमिका निभाने की अनुमति मिल सकती है।

164. प्रश्न: IBC के तहत, क्या परिसमापन के दौरान कंपनी की संपत्तियां सार्वजनिक नीलामी के लिए रखी जा सकती हैं?

उत्तर: हां, परिसमापन के दौरान कंपनी की संपत्तियों को सार्वजनिक नीलामी के लिए रखा जा सकता है। नीलामी प्रक्रिया द्वारा प्राप्त धन से ऋणदाताओं को उनके दावों का भुगतान किया जाता है।

165. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान योजना की मंजूरी का समय क्या होता है?

उत्तर: समाधान योजना की मंजूरी आमतौर पर 180 दिनों के भीतर की जाती है, और इसे 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है, यदि समाधान पेशेवर को अधिक समय की आवश्यकता होती है। योजना को ऋणदाताओं और न्यायालय की मंजूरी के बाद ही लागू किया जाता है।

166. प्रश्न: IBC के तहत, अगर समाधान योजना सफल नहीं होती, तो क्या किया जाता है?

उत्तर: यदि समाधान योजना सफल नहीं होती, तो कंपनी को परिसमापन की प्रक्रिया में भेज दिया जाता है। परिसमापन में कंपनी की संपत्तियों की नीलामी की जाती है और ऋणदाताओं को उनके दावों का भुगतान किया जाता है।

167. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान पेशेवर को हटाने की क्या प्रक्रिया होती है?

उत्तर: समाधान पेशेवर को हटाने के लिए न्यायालय में आवेदन किया जा सकता है, यदि उनके कार्यों में कोई दोष पाया जाता है। न्यायालय समाधान पेशेवर के काम की जांच करता है और यह तय करता है कि उन्हें हटाया जाए या नहीं।

168. प्रश्न: IBC के तहत, समाधान पेशेवर के द्वारा किए गए निर्णयों की समीक्षा की जाती है?

उत्तर: हां, समाधान पेशेवर द्वारा किए गए निर्णयों की समीक्षा की जा सकती है। यदि किसी पक्ष को लगता है कि निर्णय अनुचित है, तो वे अदालत में अपील कर सकते हैं। न्यायालय समाधान पेशेवर के निर्णयों की समीक्षा कर सकता है और उचित कार्रवाई कर सकता है।

169. प्रश्न: IBC के तहत, कंपनी के निदेशकों की भूमिका क्या होती है जब कंपनी पर दिवालियापन प्रक्रिया लागू हो?

उत्तर: दिवालियापन प्रक्रिया शुरू होने के बाद, कंपनी के निदेशकों की भूमिका सीमित हो जाती है। समाधान पेशेवर द्वारा कंपनी के संचालन की निगरानी की जाती है, और निदेशकों को समाधान प्रक्रिया में केवल सलाह देने या सहमति देने का अधिकार होता है। निदेशकों का कार्य समाधान प्रक्रिया के दौरान केवल जानकारी देने तक सीमित रहता है।

170. प्रश्न: IBC के तहत, क्या कर्मचारी कंपनी के दिवालियापन की प्रक्रिया के दौरान अपनी दावों को प्रस्तुत कर सकते हैं?

उत्तर: हां, कर्मचारी दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान अपनी दावों को प्रस्तुत कर सकते हैं। उनके वेतन, बोनस, और अन्य लाभों का भुगतान प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। यदि कर्मचारियों का भुगतान समाधान प्रक्रिया के दौरान नहीं किया जाता है, तो वे न्यायालय में अपील कर सकते हैं।

यहां दी गई जानकारी दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (IBC) के अंतर्गत विभिन्न प्रक्रियाओं और मुद्दों पर विस्तृत प्रकाश डालती है।

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