दिल्ली हाई कोर्ट : पति की आय में अचानक गिरावट ‘वास्तविक आय छिपाने का प्रयास’, भरण-पोषण मामलों में आयकर रिटर्न का महत्व
भूमिका
भारतीय समाज में विवाह केवल सामाजिक ही नहीं, बल्कि कानूनी संबंध भी है। विवाह टूटने की स्थिति में या वैवाहिक विवाद के दौरान, पत्नी का भरण-पोषण एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा बन जाता है। इस संदर्भ में भारतीय न्यायालयों ने समय-समय पर विभिन्न निर्णय दिए हैं, ताकि महिला की गरिमा और जीवन-निर्वाह सुनिश्चित हो सके। हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें पति की आय में अचानक आई गिरावट को पत्नी को भरण-पोषण न देने के बहाने के रूप में खारिज किया गया।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि न्यायालय केवल कागजी आयकर रिटर्न (ITR) पर ही निर्भर नहीं रहेंगे, बल्कि परिस्थितियों और व्यवहारिक तथ्यों को भी देखेंगे।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय (Family Court) से भरण-पोषण की मांग की थी। पति ने दावा किया कि उसकी आय बहुत कम हो गई है और वह पत्नी को भरण-पोषण देने में सक्षम नहीं है।
- पारिवारिक न्यायालय ने पति की हाल की आयकर रिटर्न के बजाय दो साल पुराने ITR को आधार बनाया।
- कारण यह था कि पति की आय में अचानक और अस्वाभाविक गिरावट दिखाई दे रही थी।
- पति यह साबित करने में असफल रहा कि उसकी आय वास्तव में क्यों घटी।
पत्नी ने तर्क दिया कि पति जानबूझकर अपनी वास्तविक आय छिपा रहा है ताकि उसे पर्याप्त भरण-पोषण न देना पड़े।
इस विवाद के बाद मामला दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा, जहाँ न्यायमूर्ति डॉ. स्वरना कांत शर्मा ने स्पष्ट टिप्पणी की कि आय में अचानक गिरावट, बिना ठोस कारण, संदेह उत्पन्न करती है और यह दिखाता है कि पति अपनी वास्तविक वित्तीय क्षमता छिपाने की कोशिश कर रहा है।
दिल्ली हाई कोर्ट का निर्णय
हाई कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के फैसले को सही ठहराया और कहा कि:
- आय में अचानक गिरावट पर संदेह:
यदि पति की आय पहले स्थिर और पर्याप्त थी, लेकिन विवाह विवाद के बाद अचानक गिर गई, तो यह ‘वास्तविक आय छिपाने का प्रयास’ माना जाएगा। - दो साल पुराने ITR का प्रयोग उचित:
भरण-पोषण तय करने के लिए पुराने ITR का सहारा लेना गलत नहीं है, क्योंकि वे पति की वास्तविक आर्थिक क्षमता का बेहतर प्रतिबिंब दिखाते हैं। - भरण-पोषण महिला का अधिकार:
पत्नी को भरण-पोषण मिलना उसके जीवन-निर्वाह और गरिमा से जुड़ा अधिकार है। पति अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता। - न्यायालय का दायित्व:
कोर्ट का कर्तव्य है कि वह परिस्थितियों को ध्यान में रखे और सुनिश्चित करे कि कोई भी महिला केवल इसलिए कष्ट न सहे क्योंकि पति अपनी आय छिपा रहा है।
कानूनी दृष्टिकोण
1. भरण-पोषण का संवैधानिक आधार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार’ हर नागरिक को मिला है। इसमें सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है। यदि महिला को विवाह के बाद आर्थिक सहयोग नहीं मिलता तो यह अधिकार प्रभावित होता है।
2. भरण-पोषण का वैधानिक आधार
- धारा 125, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC): पत्नी, बच्चे और माता-पिता को भरण-पोषण का अधिकार देती है।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25: पत्नी (या पति) को अंतरिम और स्थायी भरण-पोषण का अधिकार।
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 20: पत्नी को आर्थिक राहत दिलाने की व्यवस्था।
3. आय छिपाने की प्रवृत्ति पर न्यायालयों की राय
न्यायालय पहले भी यह कह चुके हैं कि कई बार पति अपनी वास्तविक आय और संपत्ति छिपाकर भरण-पोषण से बचने का प्रयास करते हैं। इसलिए केवल आयकर रिटर्न पर निर्भर रहना न्यायसंगत नहीं है।
महत्वपूर्ण न्यायिक नज़ीरें
- Rajnesh v. Neha (2020, SC):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों को अपनी आय, संपत्ति और देनदारियों का पूर्ण खुलासा करना होगा। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत फॉर्म भी जारी किया गया। - Chaturbhuj v. Sita Bai (2008, SC):
भरण-पोषण पत्नी का अधिकार है, पति केवल ‘कानूनी चाल’ से इससे बच नहीं सकता। - Shamima Farooqui v. Shahid Khan (2015, SC):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी को भरण-पोषण देना पति का दायित्व है और यह ‘कृपा’ नहीं बल्कि ‘अधिकार’ है।
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का महत्व
- आर्थिक न्याय की स्थापना:
यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायालय महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए पति की आय में आई संदिग्ध गिरावट को गंभीरता से लेंगे। - कानूनी दुरुपयोग पर अंकुश:
पति आय छिपाकर या गलत कागज़ी सबूत दिखाकर जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। - महिलाओं का सशक्तिकरण:
यह फैसला महिलाओं को यह भरोसा देता है कि न्यायालय उनकी स्थिति और अधिकारों की रक्षा करेगा।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय समाज में अब भी कई महिलाएं आर्थिक रूप से पति पर निर्भर रहती हैं। विवाह टूटने पर या विवाद की स्थिति में उनका जीवन कठिन हो जाता है। ऐसे में भरण-पोषण का निर्णय केवल कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक न्याय का प्रश्न भी है।
यदि पति अपनी आय छिपाएगा तो महिला और उसके बच्चों का जीवन संकट में पड़ जाएगा। यह फैसला इस समस्या पर एक ठोस समाधान प्रस्तुत करता है।
आलोचना और चुनौतियाँ
- आय का सटीक निर्धारण कठिन:
कई व्यवसायिक या स्वरोजगार करने वाले व्यक्तियों की आय का सटीक आकलन मुश्किल होता है। - कानूनी प्रक्रिया में देरी:
अक्सर ऐसे मामलों में लंबी अदालती प्रक्रिया महिला के लिए आर्थिक और मानसिक दबाव बढ़ा देती है। - दुरुपयोग का खतरा:
कुछ मामलों में पत्नी भी झूठे आरोप लगाकर अधिक भरण-पोषण पाने की कोशिश कर सकती है।
भविष्य की दिशा
- डिजिटल और वित्तीय पारदर्शिता:
कोर्ट को बैंक खातों, संपत्ति, निवेश और अन्य वित्तीय रिकॉर्ड की जांच की अनुमति होनी चाहिए। - सख्त हलफनामा:
पति-पत्नी दोनों को अपनी आय और संपत्ति का हलफनामा देना अनिवार्य होना चाहिए। - तेजी से निपटान:
भरण-पोषण मामलों का त्वरित निपटान होना चाहिए ताकि महिला को तुरंत राहत मिले।
निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय न केवल भरण-पोषण मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी बताता है कि पति अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए आय छिपाने का प्रयास नहीं कर सकता। भरण-पोषण महिला का संवैधानिक और कानूनी अधिकार है, और इसे सुनिश्चित करना न्यायालय का दायित्व है।
यह फैसला भविष्य में भरण-पोषण से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण नज़ीर बनेगा और महिलाओं के लिए आर्थिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।