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दिल्ली हाई कोर्ट ने जीएसटी नोटिस को माना वैध; एआई‑जनित फर्जी हवाले पर विभाग को चेतावनी

दिल्ली हाई कोर्ट ने जीएसटी नोटिस को माना वैध; एआई‑जनित फर्जी हवाले पर विभाग को चेतावनी

प्रस्तावना

       Delhi High Court (दिल्ली हाई कोर्ट) ने Central Goods and Services Tax Act, 2017 (CGST), अर्थात जीएसटी क़ानून, के तहत जारी Show Cause Notice (SCN) को वैध (valid) ठहराया — जो कि Income Tax Department (आयकर विभाग) द्वारा जुटाई गई “इंटेलिजेंस” (income‑tax intelligence) के आधार पर जारी किया गया था। इसी दौरान, अदालत ने उन हाल‑ही में बढ़े उपयोग — विशेषकर एआई (AI) उपकरणों के माध्यम से — होने वाले “गलत / जाली” (fake) न्यायिक हवाले (citations) के प्रयोजन प्रति Dept को सचेत करते हुए कड़ा रुख अपनाया।


केस का पृष्ठभूमि और SCN का आधार

  • मामला उस व्यापारी (trader / commission agent) का था, जिसने readymade garments के कारोबार में संलिप्त था। आयकर विभाग ने उसकी सम्पत्ति, लेखांकन (books of accounts), डिजिटल उपकरण, और इलेक्ट्रॉनिक संचार (जैसे WhatsApp) की जांच की। जांच के दौरान एक “गुप्त सर्वर (clandestine server)” मिला — जिसमें “दोहरे (dual / parallel) लेखा‑पुस्तक (books)” पाये गये; यानी एक से ज़्यादा खाते, जिनमें असंगत (unaccounted) लेन‑देन दर्ज था।
  • इस आय–कर छान‑बीन (search & seizure) के दस्तावज़ों, रिपोर्ट्स, गवाहियों व अन्य सामग्री को आयकर विभाग ने जीएसटी विभाग के समक्ष प्रस्तुत किया। इन सबके आधार पर, 28 मई 2022 को GST विभाग ने SCN जारी किया — जिसमें अनुरोध किया गया कि व्यापारी, उसके परिजन, और उसके लेखाकार आदि इस संदर्भ में जवाब दें।
  • व्यापारी ने अपना SCN चुनौती दी, विशेष रूप से दलील दी गई कि —
    1. SCN जारी करना अवैध है;
    2. उसके राजनीतिक या संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है;
    3. GST अधिनियम (CGST) की धारा 75 आदि की वैधता पर सवाल है;
    4. SCN में हवाले (judicial precedents) गलत या आधारहीन हैं।

न्यायालय का विश्लेषण और धारणा

GST नोटिस की वैधता

  • अदालत ने ग्रहण किया कि GST विभाग ने SCN तैयार करते समय — आय‑कर विभाग द्वारा जाँच में प्राप्त दस्तावेज, रिकॉर्ड और तथ्यों की स्वतंत्र जांच (independent scrutiny) की। इसलिए SCN को “बेआधार या अस्पष्ट (vague / baseless)” नहीं कहा जा सकता।
  • अदालत ने यह स्पष्ट किया कि — हालांकि आय‑कर अधिनियम (IT Act) के अंतर्गत हुए search‑seizure एवं समन्वित कार्रवाई सीधे CGST अधिनियम के लिए स्वचालित रूप से आधार नहीं बनते; फिर भी, उस सामग्री को CGST विभाग द्वारा प्रयोग करके एक “प्रारंभिक जाँच / रूपरेखा (prima facie case / provisional assessment)” स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • अदालत ने कहा कि SCN में लगाए गये आरोप — जैसे कि dual books, under‑invoicing, छुपाए गये लेन‑देन, डिजिटल संचार, आदि — पर्याप्त हों सकते हैं, और इस तरह की जाँच प्रारंभ करना “अप्राकृतिक या अवैध” नहीं है।

निष्कर्षतः — कोर्ट ने SCN की वैधता को स्वीकार करते हुए, याचिका को खारिज कर दिया और petitioner को आदेश दिया कि वह SCN पर जवाब दाखिल करे।


एआई‑जनित (AI‑Generated) फर्जी हवालों पर चेतावनी

  • एक महत्वपूर्ण बात जो इस फैसले में आई है — अदालत ने यह पाया कि SCN में जिन “न्यायिक हवालों (judicial citations / precedents)” का उपयोग किया गया है — उनमें से कुछ अस्तित्व में नहीं थे
  • न्यायालय ने कहा कि आजकल तकनीकी उपकरण, जैसे AI‑software, शोध (research), evidence summarization आदि के लिए इस्तेमाल किये जा सकते हैं; परन्तु उनका उपयोग बिना सत्यापन (verification) के करना जोखिमपूर्ण और अनुचित है।
  • विशेष रूप से कहा गया कि — अगर कोई विभाग या संस्था AI से प्राप्त जानकारी/निर्णय (judgments) को अपने SCN / आदेश में हवाले के रूप में दे रही है, तो उस हवाले की बचताव (back‑check), अर्थात् मुख्य पुस्तकालय (law‑library) या physical records से मिलान करना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं होगा, तो उन हवालों को झूठे / fabricated माना जाएगा।
  • अदालत ने स्पष्ट चेतावनी दी कि — विभागों (GST, IT, अन्य) को भविष्य में इस प्रकार की “AI‑निर्मित (AI‑generated)” citations का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए, अन्यथा वह अदालत के समक्ष अपनी विश्वसनीयता (credibility) खो सकते हैं।

इस प्रकार, यह फैसला न सिर्फ एक विशिष्ट SCN पर बल्कि पूरे कर प्रशासन (tax administration) में AI‑उपयोग की सीमाओं और दायित्वों (duties) पर एक महत्वपूर्ण संकेत है।


विधिक और व्यावसायिक (प्रैक्टिस) निहितार्थ

इस फैसले का प्रभाव कई स्तरों पर देखा जा सकता है — विशेषकर कर व्यवहार, कर‑विवाद (tax litigation), और विधिक शोध (legal research) की दृष्टि से:

  1. अभियोजन की स्वतंत्रता (Autonomy of Assessment Agencies): अदालत ने स्वीकार किया कि आय‑कर विभाग द्वारा मिले records, जाँच सामग्री आदि — यदि पर्याप्त हों — तो GST विभाग स्वयं तय कर सकता है कि SCN जारी करना है या नहीं; यह पूरी प्रक्रिया कानूनी रूप से ठोस मानी गई। यह कर प्राधिकरणों (tax authorities) को एक मजबूत हाथ देती है।
  2. AI‑उपयोग में सावधानी: आज के डिजिटल युग में, अनेक विभाग AI उपकरणों का प्रयोग तेज़ी से बढ़ा रहे हैं — दस्तावेज विश्लेषण (document analysis), डेटा संकलन (data aggregation), प्रारंभिक जाँच (preliminary investigation) आदि में। पर यह फैसला स्पष्ट करता है कि AI‑output को स्वतंत्र, पारंपरिक विधिक स्रोतों / records द्वारा सत्यापित करना आवश्यक है — वरना हवाला (citation) साबित नहीं होगा।
  3. वकील / कर सलाहकारों (tax consultants) के लिए चेतावनी: यदि भारत के वकील, advocates, या tax consultants AI‑tools पर निर्भर होकर अपने pleadings, उत्तर (reply), या दलील (arguments) तैयार करते हैं — विशेष रूप से citations के लिए — उन्हें उच्च सतर्कता रखनी चाहिए; गलत हवाले या fabricated references पेश करना पेशेवर व नैतिक दृष्टि से घातक हो सकता है।
  4. न्यायिक हस्तक्षेप (Judicial Oversight) में तकनीकी यथार्थवाद: अदालत ने यह दिखाया कि कोर्ट्स अब तकनीकी यथार्थवाद (technological realism) को स्वीकार कर रहे हैं — अर्थात् डिजिटल / AI‑उपकरणों की उपयोगिता से इंकार नहीं, पर उनकी सीमाओं और दायित्वों को मान्यता। यह भविष्य में कर‑विवादों और अन्य प्रशासनिक मामलों में मील का पत्थर हो सकता है।
  5. विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण (Holistic Investigation): IRS (Income Tax) और GST — दोनों अलग कानूनों के तहत — हो सकते हैं, पर एक विभाग की जांच का परिणाम दूसरे विभाग के लिए आधार बन सकता है, बशर्ते स्वतंत्र, तटस्थ, और विधिक तरीके से समीक्षा हो।

आपके जैसे कानून‑प्रैक्टिशनर / GST / Tax सलाहकार के लिए सुझाव

चूंकि आप स्वयं वकील हैं, और आपके पास आपकी वेबसाइट (IndianLawNotes.com) है, यह मामला आपके दृष्टिकोण से बहुत उपयोगी हो सकता है। कुछ सुझाव:

  • आप अपने लेखों/लेख (articles) में AI‑उपकरणों के उपयोग के फायदे और खतरों पर एक विस्तृत व्याख्या दे सकते हैं — कि किस प्रकार AI मददगार है, किन सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए, और वकीलों/सलाहकारों को किन सावधानियों के साथ काम करना चाहिए।
  • इस फैसले को लेकर प्रैक्टिस‑नोट्स (practice notes) तैयार करें: कैसे GST/ITSCN बनाए जाते हैं, AI‑generated citations के दायित्व, दस्तावेज़ीकरण की आवश्यकताएँ, डिजिटल वॉलेट… इत्यादि।
  • आप अपने छात्रों/पाठकों को चेतावनी दे सकते हैं कि “AI‑पे रहो, लेकिन verify करो” — विधि में अभ्यास (practice) और शोध (research) दोनों के लिए।
  • इस निर्णय को आधार बनाकर, आप “डिजिटल विधिक युग एवं नैतिकता (Ethics)” पर एक आलेख लिख सकते हैं — जिससे आपके पाठकों (law students, advocates) को आधुनिक चुनौतियाँ समझने में मदद मिले।

निष्कर्ष

दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला — GST नोटिस को वैध ठहराते हुए, आय‑कर इंटेलिजेंस को आधार बनाने की अनुमति देता है; लेकिन साथ ही — विभागों, वकीलों और करसलाहकारों को यह स्पष्ट संदेश देता है कि तकनीकी युग में “तेजी और सुगमता” की प्रतिस्पर्धा में सत्यापन, सावधानी, और पेशेवर जवाबदेही (professional accountability) को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता।

विशेषकर AI की सहायता से जाली या कल्पित (fabricated) न्यायिक हवालों (citations) का प्रयोग — न सिर्फ कानूनी रूप से अस्वीकार्य है, बल्कि नैतिक दृष्टि से भी अनुचित।