लेख शीर्षक:
“दिल्ली हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पत्नी को भरण-पोषण देने से पति को राहत नहीं”
परिचय
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत पत्नी को दिए गए भरण-पोषण (maintenance) आदेश को बरकरार रखते हुए यह स्पष्ट किया कि केवल यह तर्क कि पत्नी कुछ आय अर्जित कर रही है या पति पर अन्य वित्तीय दायित्व हैं — भरण-पोषण देने से बचने का वैध आधार नहीं हो सकता। इस निर्णय ने पारिवारिक मामलों में महिलाओं की वित्तीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने की न्यायिक प्रवृत्ति को बल दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
पति ने न्यायालय में यह दावा करते हुए भरण-पोषण आदेश को चुनौती दी कि:
- उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और उस पर कई वित्तीय दायित्व (Financial Obligations) हैं।
- पत्नी शिक्षित है और आय अर्जित करने में सक्षम (Earning Capacity) है, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं होनी चाहिए।
लेकिन ट्रायल कोर्ट ने धारा 24 के तहत पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया था, जिसे पति ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
दिल्ली हाई कोर्ट का निर्णय
उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया और निम्नलिखित प्रमुख बातें कही:
- ‘Earning Capacity’ मात्र एक कारक है, निर्णायक नहीं:
यदि पत्नी के पास कुछ सीमित आमदनी है या वह आय अर्जित करने में सक्षम है, तो भी यह उसे धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता। - पति के वित्तीय दायित्व कोई ढाल नहीं:
पति की ओर से प्रस्तुत यह दलील कि वह पहले से ही आर्थिक रूप से दबाव में है, कोर्ट ने अस्वीकार कर दी। न्यायालय ने कहा कि जीवनसाथी की आवश्यकताओं के लिए भरण-पोषण देना एक विधिक जिम्मेदारी है। - धारा 24 का उद्देश्य:
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वैवाहिक विवादों के दौरान जीवनसाथी (विशेषतः पत्नी) को सम्मानजनक जीवन के लिए वित्तीय सहायता मिलती रहे।
फैसले का महत्व
यह निर्णय निम्नलिखित बिंदुओं के लिए मार्गदर्शक है:
- केवल यह कहना कि पत्नी आय अर्जित कर सकती है, उसे भरण-पोषण से वंचित नहीं करता।
- कोर्ट हर मामले में तथ्यों के आधार पर यह देखेगा कि क्या पत्नी की आय उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप है या नहीं।
- यह फैसला महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की रक्षा में एक मजबूत दृष्टांत प्रस्तुत करता है।
निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भरण-पोषण केवल आर्थिक निर्भरता नहीं, बल्कि जीवन की गरिमा और सामाजिक संतुलन से भी जुड़ा विषय है। पति की वित्तीय जिम्मेदारियाँ या पत्नी की आंशिक कमाई भरण-पोषण देने की बाध्यता से मुक्ति का आधार नहीं हो सकते। यह फैसला महिलाओं को वैवाहिक न्यायिक प्रक्रिया के दौरान वित्तीय सहारा प्रदान करने की न्यायिक भावना को मजबूत करता है।
संदर्भ:
- Delhi High Court Judgment – Section 24, Hindu Marriage Act
- Hindu Marriage Act, 1955 – Section 24 (Maintenance Pendente Lite and Expenses of Proceedings)